सितंबर के महीने में पिछले साल प्रकाशित हुई एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में टीबी के करीब 27 लाख मरीज हैं। हमारे देश में टीबी से मरनेवाले लोगों की संख्या आज भी इतनी अधिक है कि पूरी दुनिया में टीबी कारण होनेवाली मौतों के आंकड़े के आधार पर हमारा देश दूसरे नंबर पर आता है। आइए, इस बीमारी के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाते हैं ताकि इससे बचाव किया जा सके...
शुगर के मरीजों को टीबी का खतरा अधिक
हमारे देश को शुगर के मरीजों की या डायबीटीज की कैपिटल कहा जाता है। क्योंकि पूरी दुनिया में सबसे अधिक शुगर के मरीज हमारे देश में हैं। ऐसे में टीबी के मरीजों की संख्या अधिक होने का खतरा और बढ़ जाता है। क्योंकि सामान्य लोगों की तुलना में डायबीटीज के मरीजों को टीबी की बीमारी होने का खतरा 2 से 3 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
दोबारा टीबी होने की संभावना
अगर टीबी के मरीज को डायबीटीज भी होती है तो इनमें दोबारा टीबी होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। साथ ही इन दोनों बीमारियों से एक साथ जूझ रहे मरीजों में मृत्युदर भी अधिक देखी जाती है।
इलाज में होनेवाली मुश्किल
डायबीटीज होने की वजह से टीबी का इलाज मुश्किल हो जाता है। इस कारण मरीजों की तकलीफ कई गुना बढ़ जाती है। डाबीटीज के कारण मरीजों का इलाज काफी लंबे समय तक चलता है। टीबी होने की वजह से डायबीटिक लोगों में शुगर कंट्रोल करना भी मुश्किल हो जाता है।
एचआईवी और टीबी एक साथ
टीबी एक ऐसी मुख्य बीमारी है, जो एचआईवी पेशंट्स की बड़े स्तर पर जान ले रही है। सामान्य लोगों की तुलना में HIV पेशंट्स में टीबी होने के चांस 21 गुना अधिक होते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक हमारे देश में एचआईवी मरीजों में से 25 प्रतिशत की मृत्यु टीबी के कारण होती है।
बच्चों में टीबी की बढ़ती समस्या
हमारे देश में बच्चों की एक बड़ी संख्या टीबी की बीमारी का शिकार है। पीडियाट्रिक ट्यूबरक्लॉसिस जो 15 साल से कम उम्र के बच्चों में होती है, इनके केसेज भी पहले की तुलना में काफी अधिक बढ़ गए हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में इस वक्त 1 लाख 33 हजार से अधिक केस ऐसे हैं, जिनमें मरीज की उम्र 15 साल से कम है। यह आंकड़ा टीबी के मरीजों की कुल संख्या का 6.17 प्रतिशत है।
मल्टीपल ड्रग रजिस्टेंट (MDR)टीबी के केस
सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि मल्टीपल ड्रग रजिस्टेंट (MDR)टीबी के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सामान्य तौर पर टीबी के इलाज के लिए दी जानेवाली दवाइयां इस स्थिति में पेशंट पर काम करना बंद कर देती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में करीब 27 हजार मरीज ऐसे हैं, जिन्हें एमडीआर टीबी है।
ट्रीटमेंट सक्सेस रेट पहले की तुलना में कम
इस सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018 के मुकाबले 2019 में जो टीबी के जो नए पेशंट्स आए, उनमें ट्रीटमेंट सक्सेस रेट पहले की तुलना में 9 प्रतिशत तक कम हो गया, जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है।