राजनीति

नई दिल्ली: आज दिल्ली में वक्फ विधेयक पर जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की बैठक में हाथापाई हो गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बिल को लेकर चर्चा हो रही थी कि तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने सबका ध्यान खींचा। बीजेपी के अभिजीत गंगोपाध्याय और टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी के बीच तीखी बहस हो गई। बहस के दौरान टीएमसी सांसद ने खुद को बोतल मारकर चोटिल कर लिया। कल्याण बनर्जी को लेकर यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले कल्याण बनर्जी का नाम पूर्व राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री वाले मामले में भी सामने आया था। तो आइए जानते हैं कल्याणा बनर्जी कौन है और इनका कब-कब विवादों से नाता रहा। 2009 से शुरू हुआ था विवाद कल्याण बनर्जी का विवादों से सबसे पहला पाला साल 2009 में पड़ा था। तब कल्याण बनर्जी को सीएम ममता बनर्जी का वफादार माना जाता है। 2009 में तत्कालीन बंगाल सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य पर आलोचनात्मक टिप्पणी की थी। तब बुद्धदेव भट्टाचार्य अपने शहर के सांस्कृतिक केंद्र नंदन में थे। कल्याण बनर्जी के इस बयान की खूब आलोचना हुई थी।
मुंबई,महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए रविवार को बीजेपी ने 99 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की। इनमें 6 सीटें एसटी और 4 सीटें एससी के लिए हैं। वहीं, 13 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया गया है। 11 पहली बार चुनाव लड़ेंगे। डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस नागपुर दक्षिण-पश्चिम से, महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले को कामठी सीट से टिकट दिया गया है। महाराष्ट्र के पूर्व CM अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण को भोकर और पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे के बेटे संतोष दानवे को भोकरदन सीट से टिकट मिला है। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को कोलाबा से और नितेश राणे को कंकावली से चुनाव लड़ेंगे। नार्वेकर शिवसेना और NCP विधायकों की सदस्यता खत्म नहीं करने को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहे हैं। नितेश राणे मुस्लिम विरोधी बयानों को लेकर विवादों में हैं। महाराष्ट्र की सभी 288 विधानसभा सीटों पर सिंगल फेज में 20 नवंबर को वोटिंग होगी। चुनाव नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। 20 नवंबर को ही नांदेड़ लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव होगा। भाजपा ने नांदेड़ से अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।
रांचीः झारखंड में चुनावी सरगर्मी तेज होने के साथ-साथ लगातार माहौल बदल रहा है। अभी तक भाजपा और आजसू पार्टी के लिए झटका लग रहा था। अब इंडिया महागठबंधन के लिए भी मुश्किलें बढ़ने वाली है। राजद ने झारखंड विधानसभा में 22 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश की है। जेएमएम-कांग्रेस का सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तार्किक नहीं राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने रविवार को रांची में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 22 सीटों पार्टी की स्थिति मजबूत है। उन्होंने बताया कि पिछले चुनाव में भी आरजेडी सात सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें से एक सीट पर जीत मिली और पांच सीटों पर काफी कम अंतर से हार हुई।
रांचीः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने दावा किया है कि आने वाले समय में 50 प्रतिशत आरक्षण का बैरियर टूटेगा। रांची में शनिवार को 'संविधान सम्मान सम्मेलन'को संबोधित करते राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में गेम पलटने की रणनीति का भी खुलासा करते हुए बीजेपी नेताओं पर निशाना साधा।' संविधान की वजह से ही चुनाव का गेम पलटा राहुल गांधी ने कहा- '20 साल बाद भारत की राजनीति में समझता हूं। उन्होंने कहा कि संविधान की वजह से ही लोकसभा चुनाव 2024 का गेम पलटा। लोकसभा चुनाव में सिर्फ कांग्रेस पार्टी की एक फैसले से बीजेपी चित हो गई। पूरे चुनाव में मैंने बस लोगों को बाबा साहेब का संविधान दिखाना शुरू किया।' राहुल बोले- 'मैंने सिर्फ इतना कहा कि इसे किसी को छूने नहीं देंगे, इसकी रक्षा करेंगे।'
नई दिल्ली,वोट काउंटिंग से पहले गृह मंत्री द्वारा 150 कलेक्टर्स को फोन करके डराने-धमकाने के दावे पर चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता जयराम रमेश को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय देने से इनकार कर दिया है। चुनाव आयोग ने आज यानी 3 जून को जयराम रमेश को पत्र लिखकर आज ही जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1 जून को दावा किया था कि वोट काउंटिंग से पहले गृह मंत्री ने 150 जिला कलेक्टर्स/DMs फोन करके डराया-धमकाया है। इसे लेकर चुनाव आयोग ने 2 जून की शाम 7 बजे तक इन अधिकारियों की डिटेल देने का कहा था। इसे लेकर जयराम रमेश ने चुनाव आयोग से सात दिन का समय मांगा था। आयोग बोला- आज जवाब नहीं दिया, तो हम मान लेंगे कि आपके पास कोई ठोस जवाब नहीं आयोग ने अपने पत्र लिखकर कहा कि आपने दावा किया था गृहमंत्री ने 150 जिला कलेक्टर्स, जो कि रिटर्निंग ऑफिसर और जिला चुनाव अधिकारी भी हैं, उन्हें फोन करके उन्हें धमकाया। आपका यह दावा 4 जून को होने वाली काउंटिंग प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है। जैसा कि हमने 2 जून को पत्र लिखकर बताया था कि अब तक किसी DM ने ऐसी घटना का जिक्र नहीं किया है। लिहाजा, अपना जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन के समय की मांग हम खारिज करते हैं। साथ ही आपको निर्देश देते हैं कि आप आज (3 जून) शाम 7 बजे तक तथ्यों के साथ अपना जवाब दाखिल करें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो हम मान लेंगे कि आपके पास बताने को कोई ठोस जवाब नहीं है। इसके बाद चुनाव आयोग आगे की कार्रवाई करेगा। जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा था- गृहमंत्री कलेक्टर्स को फोन कर रहे 1 जून को जयराम रमेश ने X पर पोस्ट करके कहा था कि निवर्तमान गृह मंत्री आज सुबह से जिला कलेक्टर्स से फोन पर बात कर रहे हैं। अब तक 150 अफसरों से बात हो चुकी है। अफसरों को इस तरह से खुल्लमखुल्ला धमकाने की कोशिश निहायत ही शर्मनाक है एवं अस्वीकार्य है। याद रखिए कि लोकतंत्र जनादेश से चलता है, धमकियों से नहीं। जून 4 को जनादेश के अनुसार श्री नरेन्द्र मोदी, श्री अमित शाह व भाजपा सत्ता से बाहर होंगे एवं INDIA जनबंधन विजयी होगा। अफसरों को किसी प्रकार के दबाव में नहीं आना चाहिए व संविधान की रक्षा करनी चाहिए। वे निगरानी में हैं। इलेक्शन कमीशन ने कहा- ऐसे बयान चुनावी प्रक्रिया पर संदेह पैदा करते हैं कमीशन ने 2 जून को मामले का संज्ञान लिया और जयराम रमेश को पत्र लिखकर कहा कि आचार संहिता लागू होने के दौरान सभी अधिकारी इलेक्शन कमीशन को रिपोर्ट करते हैं। अब तक किसी DM ने ऐसी जानकारी नहीं दी है, जैसे आप दावा कर रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि वोट काउंटिंग की प्रक्रिया एक पवित्र ड्यूटी है, जो हर रिटर्निंग अफसर को सौंपी गई है। आपके ऐसे बयान इस प्रक्रिया पर संदेह पैदा करते हैं, इसलिए इस बयान पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कमीशन ने आगे कहा कि आप एक नेशनल पार्टी के जिम्मेदारी, अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं। जो फैक्ट और जानकारी आपको सही लगी, उसके आधार पर काउंटिंग की तारीख से पहले आपने ऐसा बयान दिया, इसलिए आपसे हमारी रिक्वेस्ट है कि आप उन 150 DM की डिटेल हमें दें, जिन्हें गृहमंत्री की तरफ से फोन किए जाने का आप दावा कर रहे हैं। इसके साथ ही आप तथ्यात्मक जानकारी और अपने दावे का आधार भी बताएं। यह जानकारी आप 2 जून को शाम 7 बजे तक दें, ताकि जरूरी कार्रवाई की जा सके। जयराम बोले- इलेक्शन कमीशन पर भरोसा नहीं रहा इसके जवाब में रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस इलेक्शन कमीशन का सम्मान करती है, लेकिन अब तक यह संस्था जिस तरह से काम करती आई है, उसकी वजह से इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इलेक्शन कमीशन संवैधानिक संस्था है, इसे निष्पक्ष होना चाहिए। लोग न सिर्फ पार्टियों, कैंडिडेट्स को बल्कि इलेक्शन कमीशन को भी देख रहे हैं।
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद आए लगभग सभी एग्जिट पोल में मोदी सरकार की वापसी के आसार जताए गए हैं। सभी एग्जिट पोल में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन बड़ी जीत का दावा किया गया है। वहीं एग्जिट पोल पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने इन एग्जिट पोल को मोदी मीडिया पोल कहा है। राहुल गांधी ने कहा कि ये मोदी जी का पोल है, फैंटेसी पोल है उनका। वहीं उनसे जब पूछा गया कि विपक्षी गठबंधन को कितनी सीटें आ रही तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि 295 सीटें आएंगी। एग्जिट पोल पर राहुल गांधी ने उठाए सवाल राहुल गांधी रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष खरगे की बुलाई बैठक में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। मल्लिकार्जुन खरगे ने लोकसभा चुनाव के पार्टी उम्मीदवारों, विधायक दल के नेताओं और पार्टी की राज्य इकाइयों के प्रमुखों के साथ रविवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बैठक की। उनसे मतगणना के दिन सतर्क रहने और धांधली की किसी भी तरह की कोशिश को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा। इस बैठक के लिए राहुल गांधी भी कांग्रेस ऑफिस पहुंचे थे।
लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर सातों चरणों का मतदान समाप्त हो चुका है। अलग-अलग चैनलों द्वारा लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे भी जारी कर दिए गए हैं। ऐसे में अधिकांश एग्जिट पोल में यह बात सामने आ रही है कि भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए गठबंधन एक बार फिर देश में सरकार बना सकती है। इस एक तरफ जहां एग्जिट पोल के आने के बाद भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर देखने को मिल रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी में हलचल तेज हो गई है। दरअसल कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने लोकसभा सदस्यों के संग जूम कॉल पर मीटिंग की। कांग्रेस में हलचल तेज बता दें कि कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश आज कांग्रेस पार्टी के राज्य इकाई के अहम नेताओं संग मुलाकात और बैठक करने वाले हैं। इस बैठक में चुनाव के परिणाम को लेकर चर्चा होगी, जिसपर 1 बजे से बैठक शुरू होने जा रही है। बता दें कि इससे पहले जयराम रमेश ने एग्जिट पोल पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि एग्जिट पोल मैनेज किया गया है। इस पर कोई विश्वास नहीं कर सकता है। हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल कम नहीं हुआ है। उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "4 जून को असली पोल आने दीजिए। इंडी गठबंधन को 295 से कम सीट नहीं मिल रही है। एग्जिट पोल पर विश्वास नहीं करना चाहिए। एक माहौल बनाया जा रहा है कि हम आने वाले हैं।" 4 जून को आएगा वास्तविक फैसला उन्होंने आगे लिखा कि हम आने वाले हैं और ये जाने वाले हैं। पोस्टल बैलेट की शिकायत को लेकर चुनाव आयोग डरा हुआ है। उनका जाना तय है। इससे पहले शुक्रवार को कांग्रेस ने ऐलान किया था कि वह 1 जून को किसी न्यूज चैनलों में एग्जिट पोल से जुड़ी बहस में हिस्सा नहीं लेंगे। बता दें कि कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस बाबत बयान देते हुए कहा था कि पार्टी ने 4 जून को वास्तविक रिजल्ट आने से पहले अटकलों और बहस में शामिल न होने का फैसला किया है। उन्होंने आगे लिखा कि मतदाताओं ने वोट डाल दिया है। उनका फैसला सुरक्षित है। परिणाम 4 जून को आएंगे। उससे पहले हमें टीआरपी के लिए अटकलों और बहस में शामिल होने का कोई कारण नहीं दिखता है।
हनुमानगढ़, 21 मई। सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनान्तर्गत वृद्धजन, विधवा एवं विशेष योग्यजन व्यक्तियों को पेंशन सुचारू रखने के लिए भौतिक सत्यापन कराना होगा। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक श्री सुरेंद्र पूनियां ने बताया कि वार्षिक भौतिक सत्यापन 31 मई 2024 तक कराया जा सकता है। सत्यापन नहीं होने पर पेंशन का भुगतान नहीं हो सकेगा। भौतिक सत्यापन में पेंशनर के आधार नंबर से मोबाइल नंबर जुड़ा होना अनिवार्य है। नंबर जिला आधार केन्द्र से जुड़वाया जा सकते है। सत्यापन से वंचित पेंशनर ई-मित्र कियोस्क, राजीव गांधी सेवा केन्द्र एवं ई-मित्र प्लस इत्यादि केन्द्रों पर बायोमैट्रिक के साथ-साथ राजस्थान सोशल पेंशन मोबाइल एन्ड्रॉइड एप और आधार फेस आरडी डाउनलोड कर फेस रिकाग्निशन से भी सत्यापन करवा सकते हैं। यह सुविधा निःशुल्क है। पेंशनर क्षेत्रीय भौतिक सत्यापन अधिकारी (ग्रामीण क्षेत्र के पेंशनरों के लिए विकास अधिकारी तथा शहरी क्षेत्र के पेंशनरों के लिए उपखण्ड अधिकारी) के समक्ष व्यक्तिगत उपस्थित होकर आधार नम्बर से लिंक मोबाइल पर ओटीपी प्राप्त कर सत्यापन करा सकते हैं।
आज लोकसभा चुनाव 2024 के तीसरे चरण की वोटिंग प्रक्रिया पूरी हो गई है। इसी बीच कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों के नाम हैं यानी कि 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने 312 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। साथ ही सीट पर कब चुनाव होने हैं, इसकी भी जानकारी दी गई है। जानकारी दे दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 421 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। कब होंगे रायबरेली में चुनाव? इस लिस्ट में सभी उम्मीदवारों के नाम है, चाहे वो दिग्विजय सिंह की सीट राजगढ़ है या सहारनपुर की सीट जिस पर इमरान मसूद को टिकट दिया गया है। लिस्ट में रायबरेली के उम्मीदवार राहुल गांधी का भी नाम है। बता दें कि राय बरेली में 5वें चरण में चुनाव होने हैं। वहीं, अमेठी में भी 5वें चरण में चुनाव होंगे, यहां से कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को टिकट दिया है। कब होगा चौथे चरण का चुनाव? वहीं, लिस्ट में यूपी के वाराणसी से पीएम मोदी के सामने कांग्रेस ने अजय राय को टिकट दिया है, वाराणसी में सातवें चरण में चुनाव होने हैं। बरहमपुर से अधीर रंजन चौधरी को टिकट दिया है, इस सीट पर चौथे चरण में चुनाव होने हैं। बता दें कि देश में आज तीसरे चरण के मतदान संपन्न हो गए हैं। अब चुनाव आयोग चौथे चरण की तैयारी में जुट गए है, जो 13 मई को होनी है। इस चरण में 1717 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होना है।
कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उनके साथ कुल पांच नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली। लवली ने इसी सप्ताह रविवार को दिल्ली कांग्रेस प्रमुख के पद से इस्तीफा दिया था। किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के सवाल पर उनका कहना था कि उन्होंने सिर्फ कांग्रेस दिल्ली प्रमुख के पद से इस्तीफा दिया है। वह पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं और कहीं नहीं जा रहे हैं। हालांकि, एक सप्ताह के अंदर ही उन्होंने अपने बयान के उलट भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। बीजेपी में शामिल होने के बाद लवली ने कहा "दिल्ली में सात आठ सालों से जो माहौल बना है, उसे खत्म करने और दिल्ली में बीजेपी का परचम लहराने में योगदान देंगे। हमें बीजेपी के बैनर और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में दिल्ली के लोगों के लिए लड़ने का मौका मिला है। मुझे पूरा यकीन है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बन रही है। आने वाले समय में दिल्ली में भी बीजेपी का झंडा लहराएगा।" अमित मलिक भी बीजेपी में शामिल अरविंदर सिंह लवली के प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद कांग्रेस के दो अन्य नेताओं ने इस्तीफा दिया था। पूर्व विधायक नीरज बसोया और नसीब सिंह ने दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन पर आपत्ति जताते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इन दोनों नेताओं के साथ राजकुमार चौहान और अमित मलिक भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। लवली ने क्यों दिया था इस्तीफा? इस्तीफा देने के बाद अरविंदर सिंह लवली ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने अपने लिए नहीं दिया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए मैंने ये इस्तीफा दी है। उन्होंने कहा कि यदि मेरा इस्तीफा स्वीकार हुआ है तो बावरिया जी का धन्यवाद। किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने को लेकर उन्होंने कहा कि मैं किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने नहीं जा रहा हूं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस वर्कर ने यह नहीं कहा कि मौजूदा केजरीवाल सरकार को हमने क्लीनचिट दे दिया है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने मन की पीड़ा दिल्ली के तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पीड़ा को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास भेज दिया है। मेरी पीड़ा उसूलों को लेकर है। कांग्रेस की प्रतिक्रिया अरविंदर सिंह लवली के बीजेपी में शामिल होने पर दिल्ली कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा "कुछ लोगो की फितरत ऐसी होती है कि जब बाप को सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तो बेटा सबसे ज्यादा परेशान करता है। कांग्रेस ने अरविंदर सिंह लवली को बेटे की तरह माना। कांग्रेस ने अरविंदर सिंह लवली को सब कुछ दिया। आज अरविंदर लवली ने अपना किरदार दिखा दिया। कांग्रेस बहुत बड़ा समुद्र है।" कौन हैं अरविंदर लवली ? 1998 में 30 साल के लवली दिल्ली के सबसे युवा विधायक बने थे। शीला दीक्षित सरकार में वह राज्य के सबसे युवा मंत्री भी थे। शीला दीक्षित के कार्यकाल में उन्हें शिक्षा, परिवहन और शहरी विकास जैसे अहम मंत्रालय मिले। लवली के मंत्री रहते ही ब्लूलाइन बसों की जगह नई और बेहतर व्यवस्था लाई गई। उन्हीं के मंत्री रहते दिल्ली आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 फीसदी आरक्षण लागू करने वाला पहला राज्य बना। 2013 में उनकी अगुआई में कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। हालांकि, उन्होंने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया। 2015 में कांग्रेस को बुरी तरह हार मिली। 2017 में वह बीजेपी में चले गए। 2018 में फिर कांग्रेस में लौट आए। अब उन्होंने दोबारा कांग्रेस छोड़ बीजेपी का हाथ थामा है।
नई दिल्ली: केएल शर्मा और राहुल गांधी के नामांकन भरने के बाद हाई प्रोफाइल सीट अमेठी और रायबरेली का सस्पेंस खत्म हो गया। अमेठी से केएल शर्मा स्मृति ईरानी को चुनौती देंगे तो वहीं, राहुल गांधी बीजेपी के दिनेश सिंह को रायबरेली से चुनौती देंगे। राहुल के रायबरेली सीट से खड़े होने पर कांग्रेस महासचिव जयरान रमेश ने कहा कि उन्हें वहां से खड़ा करना केवल विरासत नहीं, जिम्मेदारी भी है। जयराम रमेश ने कहा कि यह चुनाव की लंबी प्रक्रिया है और शतरंज की कुछ चालें बाकी हैं और हमने बहुत विचार-विमर्श करने के बाद एक रणनीति के तहत राहुल गांधी को रायबरेली से मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। प्रियंका गांधी क्यों नहीं लड़ रहीं चुनाव? जयराम रमेश ने चुनाव मैदान में नहीं उतरने के पार्टी नेता प्रियंका गांधी वाद्रा के फैसले को उचित बताते हुए कहा कि वह कोई भी उपचुनाव लड़कर संसद में पहुंच सकती हैं लेकिन वह इस समय धुआंधार प्रचार कर रही हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर झूठ का जवाब सच से देकर उनकी अकेले ही बोलती बंद कर रही हैं। रमेश ने कहा, 'राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने की खबर पर कई लोगों की अलग-अलग राय हैं लेकिन वह राजनीति और शतरंज के मंजे हुए खिलाड़ी हैं तथा सोच समझ कर दांव चलते हैं। पार्टी के नेतृत्व ने यह निर्णय बहुत विचार-विमर्श करके बड़ी रणनीति के तहत लिया है।'
लोकसभा चुनाव 2024 के तीसरे फेज की वोटिंग की तैयारियां जोर-शोर से जारी है। वहीं, अभी भी राजनीतिक पार्टियों की ओर से विभिन्न फेज के तहत आने वाली लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम पर मंथन किया जा रहा है। इसी में एक हॉट सीट है उत्तर प्रदेश का कैसरगंज लोकसभा सीट। इस सीट से वर्तमान में भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह सांसद हैं। हालांकि, भाजपा में अब तक इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है कि कैसरगंज से किसे टिकट दिया जाए। लेकिन अब इस बारे में एक बड़ा अपडेट सामने आया है। बेटे को मिल सकता है टिकट सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी कैसरगंज लोकसभा सीट से बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काट सकती है। जल्द ही पार्टी की ओर से इस बात की घोषणा भी कर दी जाएगी। बताया जा रहा है कि भाजपा कैसरगंज क्षेत्र से बृजभूषण के बेटे करन भूषण सिंह को को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार सकती है। महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप बृजभूषण पर कई महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था जिसपर कोर्ट में सुनवाई हो रही है। राउज एवेन्यू कोर्ट ने बृजभूषण सिंह के खिलाफ 6 महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित मामले में 'आरोप तय' करने पर आदेश सुनाने के लिए 7 मई, 2024 की तारीख तय की है। सांसद बृजभूषण सिंह ने भी अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकारा है। कैसरगंज में 20 मई को होगा मतदान बता दें कि कैसरगंज लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होगा। 2019 के चुनाव में बृजभूषण सिंह ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। उन्हें 5,81,358 वोट मिले थे। बसपा के चंद्रदेव राम यादव को 3,19,757 वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार विनय कुमार पांडे को 3,7132 वोट मिले थे। 2019 में सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे।
तिरुवनंतपुरम: बीजेपी के नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से वामपंथी नेताओं की मुलाकात ने केरल की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया है। एक तरफ जावड़ेकर से मुलाकात को लेकर CPM के वरिष्ठ नेता और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के संयोजक ई.पी. जयराजन कटघरे में हैं, वहीं कांग्रेस ने शनिवार को केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से पूछा कि उन्होंने खुद बीजेपी नेता से मुलाकात क्यों की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरन ने कहा कि मुख्यमंत्री विजयन ने खुद स्वीकार किया है कि उन्होंने जावड़ेकर से मुलाकात की थी। ‘विजयन बताएं कि मुलाकात कहां हुई थी’ सुधाकरन ने कहा, ‘विजयन ने कहा है कि वह एक सार्वजनिक बैठक के दौरान प्रकाश जावड़ेकर से मिले थे। हम जानना चाहते हैं कि वह सार्वजनिक बैठक कब और कहां हुई थी। क्या मीडिया ने उस कार्यक्रम को कवर किया था, जहां विजयन और जावड़ेकर ने हिस्सा लिया था? विजयन को बताना चाहिए कि उनकी मुलाकात कहां और क्यों हुई।' जावड़ेकर ने एक बार एक सवाल के जवाब में कहा था कि उन्होंने CPM, कांग्रेस और CPI के नेताओं से मुलाकात की है। जावड़ेकर से मुलाकात के बारे में सुधाकरन से पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि जावड़ेकर काले हैं या सफेद, मैं उनसे कभी नहीं मिला।’ ‘जयराजन LDF के संयोजक हैं या NDA के’ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘विजयन जानते हैं कि उन्हें कुछ मामलों में बीजेपी की मदद की जरूरत है। इन मामलों में वह और उनकी बेटी शामिल हैं।’ विपक्ष के नेता वी.डी. सतीसन ने पिछले महीने कहा था कि उन्होंने CPM से पूछा था कि जयराजन LDF के संयोजक हैं या NDA के। सतीसन ने कहा, ‘जावड़ेकर के साथ जयराजन की मुलाकात विजयन की जानकारी में थी, लेकिन अब जयराजन को खलनायक बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि हम लंबे समय से कह रहे हैं कि CPM और BJP के बीच गुप्त समझौता है और यह अब खुलकर सामने आ गया है।’ केरल में आमने सामने हैं CPM और कांग्रेस सतीसन ने कहा, ‘इस मामले में मुख्य आरोपी विजयन हैं और अब ऐसा लग रहा है कि जयराजन को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।’ उन्होंने सीएम विजयन से जावड़ेकर के साथ बैठकों पर सफाई देने की मांग की। बता दें कि भले ही कांग्रेस और CPM दोनों I.N.D.I.A. गठबंधन में शामिल हैं लेकिन केरल में ये पार्टियां आमने-सामने हैं और इनके बीच बयानबाजी भी खूब हो रही है।
बेंगलुरु,कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कर्नाटक के बीजापुर में चुनावी रैली के दौरान अपने संबोधन में कहा कि आजकल PM नरेंद्र मोदी अपने भाषण के दौरान काफी घबराए हुए रहते हैं। शायद कुछ दिनों में स्टेज पर उनके आंसू निकल आएं। राहुल ने कहा- PM मोदी ने पिछले 10 साल में गरीबों से सिर्फ पैसा छीना है। उन्होंने सिर्फ 20-25 लोगों को अरबपति बनाया है। उन अरबपतियों के पास उतना धन है, जितना 70 करोड़ हिंदुस्तानियों के पास है। हिंदुस्तान में 1% ऐसे लोग हैं, जो 40% धन कंट्रोल करते हैं। कांग्रेस सांसद ने आगे कहा- मोदी कुछ लोगों को अरबपति बनाते हैं, कांग्रेस सरकार करोड़ों लोगों को लखपति बनाएगी। कांग्रेस बेरोजगारी और महंगाई मिटाकर आपको भागीदारी देगी। जितना पैसा मोदी ने अरबपतियों को दिया है, उतना पैसा हम गरीबों को देंगे। राहुल बोले- ये चुनाव पिछले चुनावों से अलग राहुल ने कहा- यह लोकसभा चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं है। यह पिछले चुनावों से अलग है, क्योंकि भारत के इतिहास में पहली बार एक पार्टी (भाजपा) और एक व्यक्ति (भाजपा) भारत के संविधान और लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस और I.N.D.I.A गठबंधन संविधान को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी ने कहा कि भारत के संविधान ने लोगों को अधिकार, आवाज और आरक्षण दिया है। संविधान से पहले भारत पर राजा-महाराजाओं का शासन था। अगर आज भारत के गरीबों, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के पास अधिकार हैं, आवाज है, तो ये संविधान ने दी है। मोदी ने कहा- कर्नाटक सरकार जिन विचारों को सपोर्ट कर रही, वह खतरनाक राहुल से पहले PM मोदी 20 अप्रैल को कर्नाटक गए थे। उन्होंने बेंगलुरु में जनसभा के दौरान कहा कि कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु को टैंकर माफिया के हवाले कर दिया है। बीते महीनों में बेंगलुरु में पानी की खासी किल्लत चल रही है। पानी की राशनिंग हो रही है। ज्यादा पानी खर्च करने पर जुर्माना लिया जा रहा है। मोदी ने ये भी कहा कि कांग्रेस सरकार एंटी-प्राइवेट सेक्टर, एंटी-टैक्सपेयर और एंटी-वैल्थ क्रिएटर्स है। कर्नाटक सरकार जिन विचारों को सपोर्ट कर रही है, वह खतरनाक है। I.N.D.I. गठबंधन का फोकस मोदी पर है, जबकि मोदी का फोकस भारत के विकास और दुनियाभर में देश की इमेज पर है। पीएम ने कहा कि इस चुनाव में I.N.D.I. अलायंस के नेता अपना घिसा-पिटा टेप रिकॉर्डर लेकर घूम रहे हैं। जबकि मैं और मेरे साथी जनता के बीच अपना ट्रैक रिकॉर्ड लेकर जा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवारों की 10वीं लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में बीजेपी ने कुल 9 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से 7, पश्चिम बंगाल से 1 और चंडीगढ़ से प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया है। नई लिस्ट में बीजेपी ने यूपी से जिन सात सीटों पर उम्मदीवारों के नाम का ऐलान किया है, उनमें मैनपुरी, कौशांबी, फूलपुर, इलाहाबाद, बलिया, मछलीशहर और गाजीपुर शामिल हैं। बलिया से नीरज शेखर को मिला टिकट मैनपुरी से जयवीर सिंह ठाकुर, कौशांबी से विनोद सोनकर, फूलपुर से प्रवीण पटेल, इलाहाबाद से नीरज त्रिपाठी, बलिया से नीरज शेखर, मछलीशहर से बीपी सरोज और गाजीपुर से पारस नाथ राय को उम्मीदवार बनाया गया है। बीजेपी ने बलिया और इलाहाबाद से अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं। इलाहाबाद की सांसद रीता बहुगुणा जोशी की जगह नीरज त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतार गया है। बलिया से बीजेपी ने मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को को दिया है। डिंपल यादव Vs जयवीर सिंह ठाकुर मैनपुरी से सपा अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्नी और मौजूदा सांसद डिंपल यादव चुनावी मैदान में हैं। ऐसे में डिंपल यादव का मुकाबला बीजेपी के जयवीर सिंह ठाकुर से होगा, जो मौजूदा योगी सरकार में पर्यटन मंत्री हैं। वहीं, गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ पारस नाथ राय बीजेपी के उम्मीदवार होंगे। वहीं, चंडीगढ़ से संजय टंडन को टिकट दिया गया है। इस सीट से दो बार की सांसद किरण खेर का टिकट काटा गया है। किरण खेर 2014 और 2019 में दो बार लोकसभा चुनाव जीतीं। शत्रुघ्न सिन्हा Vs एस एस अहलुवालिया इसके अलावा पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से एस एस अहलुवालिया को टिकट दिया है। इस सीट से बीजेपी ने पहले भोजपुरी स्टार पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन बाद में उन्होंने टिकट वापस कर दिया। इस सीट से टीएमसी ने अभिनेत्रा शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है।
नई दिल्ली: राम मंदिर का मुद्दा चुनाव के दौरान गूंजेगा यह बात पहले से ही कही जा रही थी और जैसे-जैसे पहले चरण के वोटिंग की तारीख करीब आ रही है इसकी गूंज और अधिक सुनाई पड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के दूसरे बड़े नेता इस मुद्दे पर कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साध रहे हैं। राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर कांग्रेस और दूसरे कई विपक्षी दलों के नेता गायब रहे। इसको लेकर उस वक्त भी निशाना साधा गया। लेकिन अब वक्त चुनाव का है। यूपी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। मोदी ने कांग्रेस पर भगवान राम का अपमान करने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को कहा कि यह पार्टी तुष्टीकरण के दलदल में इतनी डूब गई है कि उससे कभी बाहर नहीं निकल सकती। मोदी ने पीलीभीत में आयोजित चुनावी रैली में कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A) पर तीखे प्रहार किए। यह पहली बार नहीं पिछले तीन दिनों के भीतर ही महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान से इसी मुद्दे पर पीएम मोदी ने विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। राम मंदिर की बात और यूपी में निशाने पर सपा और कांग्रेस 9 अप्रैल मंगलवार पीलीभीत में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सपा और कांग्रेस के इंडी गठबंधन को भारत की विरासत की परवाह ही नहीं है। 500 साल के इंतजार के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर बना। इंडी गठबंधन वालों को राम मंदिर के निर्माण से पहले भी नफरत थी और आज भी नफरत है। आपने मंदिर बनने से रोकने के लिए अदालत में जो करना था, कर लिया। मंदिर ना बने इसके लिए आपने लाख कोशिश भी कर ली। लेकिन देश की जनता ने पाई पाई देकर इतना भव्य मंदिर बना दिया। जब आपके सारे गुनाह माफ करके आपको प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में सम्मानपूर्वक निमंत्रित किया गया तो आपने निमंत्रण ठुकरा दिया। आपने प्रभु राम का अपमान कर दिया।
साल 2024 का अभी बमुश्किल चौथा महीना चल रहा है, लेकिन देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को दर्जनभर नेताओं को टाटा बाय-बाय बोल दिया। इस भगदड़ का एक कारण लोकसभा चुनाव भी हैं, लेकिन ये अपने आप में हैरान करने वाली तस्वीर है कि कांग्रेस साल 2024 में अब तक कांग्रेस के 12 दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। हम आपको बताएंगे कि कैसे 'कट्टर' कांग्रेसी माने जाने वाले गौरव वल्लभ से लेकर संजय निरुपम और मिलिंद देवड़ा तक ने कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया। गौरव वल्लभ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने आज सुबह-सुबह पार्टी से इस्तीफा दिया और फिर दोपहर होते होते उस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया, जिसकी मुखाल्फत करने में उनका नाम सबसे आगे रहता था। गौर करने वाली बात ये है कि वल्लभ कई महीनों से कांग्रेस की ओर से टेलीविजन कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रहे थे और लंबे समय से उनकी कोई प्रेस वार्ता भी नहीं हुई थी। गौरव कांग्रेस पार्टी के अंदर आर्थिक मसलों पर मजबूती से पक्ष रखते आए हैं। इतना ही नहीं साल 2022 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनावी कैंपेन को भी संभाला था। अनिल शर्मा वहीं कांग्रेस की बिहार इकाई के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने भी 3 दिन पहले पार्टी का साथ छोड़ दिया और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। अनिल शर्मा ने कांग्रेस आलाकमान से नाराजगी जाहिर करते हुए पार्टी छोड़ी है। अनिल शर्मा पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर खफा थे, जिसके बाद बिहार कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी छोड़ दी। उन्होंने साफ कहा था कि कांग्रेस में पप्पू यादव का शामिल होना सही नहीं है। अब कांग्रेस के कथनी और करनी में फर्क आ गया है। अजय कपूर बिहार के सह प्रभारी रहे और AICC के सचिव का पद संभाल चुके अजय कपूर राहुल और प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते थे, लेकिन अब वह बीजेपी के पाले में हैं। अजय कानपुर की राजनीति का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। कानपुर से अजय कपूर 3 बार विधायक रह चुके हैं। हालांकि कांग्रेस कानपुर सीट से उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारना चाहती थी, लेकिन इससे पहले ही कपूर ने पार्टी छोड़ दी और आज बीजेपी में शामिल भी हो गए। राजेश मिश्रा दिग्गज कांग्रेसी नेता माने जाने वाले राजेश मिश्रा ने पिछले महीने ही भाजपा का दामन थामा है। राजेश मिश्रा वाराणसी के सांसद रह चुके हैं और प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे हैं। राजेश मिश्रा बीते कुछ समय से लागातर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। राजेश मिश्रा ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पर निशाना साधते हुए कहा था कि जिन्हें कोई गांव में नहीं जानता कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उसे प्रदेश की कमान दे दी गई है। राजेश मिश्रा कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन ऑथोरिटी के सदस्य भी रहे हैं। मिलिंद देवड़ा महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माने जाने वाले मिलिंद देवड़ा ने भी जनवरी में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया था और एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना में शामिल हो गए थे। बता दें कि दक्षिण मुंबई से लोकसभा टिकट को लेकर लंबे समय से मिलिंद देवड़ा और अरविंद सावंत की चर्चाएं तेज थीं। इसी को लेकर मिलिंद देवड़ा पार्टी से नाराज भी चल रहे थे। मिलिंद, दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे मुरली देवड़ा के बेटे हैं। अशोक चव्हाण अशोक चव्हाण ने भी फरवरी में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कांग्रेस का ऐसा चेहरा माने जाते थे जो हर मुश्किल में पार्टी के साथ खड़े रहे। इतना ही नहीं मोदी लहर होने के बावजूद 2014 में नांदेड सीट से उन्होंने कांग्रेस को जीत भी दिलाई थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में वह नांदेड़ की अपनी सीट बीजेपी के प्रताप पाटिल के हाथों हार गए थे। संजय निरुपम महाराष्ट्र में काग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे संजय निरुपम को पार्टी ने निकाल दिया है। संजय को कांग्रेस ने अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधियों बयानों का हवाला देते हुए 6 साल के लिए पार्टी से निकाला है। इससे पहले कांग्रेस ने निरुपम का नाम स्टार प्रचारकों की लिस्ट से भी हटाया था। संजय निरुपम महाराष्ट्र में मुंबई नॉर्थ-वेस्ट सीट से टिकट नहीं मिलने को लेकर पार्टी से नाराज चल रहे थे। मुंबई नॉर्थ-वेस्ट सीट से अमोल कीर्तिकर को टिकट दिया गया है। विजेंदर सिंह विजेंदर सिंह, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी में देश का खूब नाम रोशन किया और फिर कांग्रेस का हाथ पकड़कर राजनीति में आ गए। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले विजेंदर सिंह ने कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है। विजेंदर सिंह ने 2019 का लोकसभा चुनाव दक्षिणी दिल्ली सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। बाबा सिद्दीकी महाराष्ट्र में मंत्री रह चुके बाबा सिद्दीकी ने फरवरी में कांग्रेस छोड़ी थी। बाबा सिद्धिकीस 48 सालों से कांग्रेस में थे लेकिन अब उन्होंने पार्टी छोड़ना ही मुनासिब समझा। इस्तीफा देने बाद बाबा सिद्दीकी ने कहा था कि मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं, लेकिन जैसा कहा जाता है कि कुछ बातें अनकही रहें तो अच्छा है। बाबा सिद्दीकी मुंबई में अल्पसंख्यक वर्ग के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है। विभाकर शास्त्री प्रियंका गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे विभाकर शास्त्री ने भी हाल ही में कांग्रेस को ठेंगा दिखाया है। बीते फरवरी में विभाकर शास्त्री ने कांग्रेस छोड़ी और उसी दिन बीजेपी में शामिल हो गए थे। विभाकर शास्त्री देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते हैं। बीजेपी में शामिल होने के बाद विभाकर शास्त्री ने कहा था कि इंडिया अलायंस की कोई विचारधारा नहीं है, उनका मकसद बस पीएम को हटाना है। राहुल गांधी को बताना चाहिए कि कांग्रेस की विचाधारा क्या है। आचार्य प्रमोद कृष्णम फरवरी इस साल को वह महीना है जब कांग्रेस के सबसे ज्यादा विकेट गिरे हैं। इसी माह में कांग्रेंस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। बता दें कि कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता और आध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रमोद कृष्णम को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था। आचार्य प्रमोद कृष्णम राम मंदिर को लेकर कांग्रेस के रुख से खासे नाराज थे। प्रमोद कृष्णम राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल भी हुए थे। कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद आचार्य प्रमोद कृष्णम ने अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में राहुल गांधी को टैग करते हुए लिखा था, "राम और राष्ट्र पर समझौता नहीं किया जा सकता।" रोहन गुप्ता कांग्रेस प्रवक्ता रहे रोहन गुप्ता ने मार्च में ही कांग्रेस छोड़ी है। पार्टी छोड़ने से पहले रोहन गुप्ता ने अहमदाबाद (पूर्व) लोकसभा सीट से अपनी उम्मीदवारी भी वापस ली थी। रोहन गुप्ता ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इस्तीफा भेजकर पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं पर गंभीर आरोप भी लगाए थे। अर्जुन मोढवाडिया अर्जुन मोढवाडिया गुजरात के सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली नेताओं में से एक माने जाते हैं। लेकिन पिछले महीने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा गुजरात पहुंचती, उसके पहले ही अर्जुन मोढवाडिया ने विधायकी और पार्टी, दोनों छोड़ दी थी। करीब 40 वर्षों तक पार्टी के साथ जुड़े रहे मोढवाड़िया पार्टी नेतृत्व की तरफ से राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्योता ठुकराए जाने से आहत थे। मोढवाडिया गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं। वे वर्तमान में पोरबंदर से कांग्रेस विधायक थे।
कोलकाता: पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी। बीजेपी ने सूबे की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीती थीं लेकिन ममता ने असेंबली इलेक्शन में फाइटबैक किया और जबरदस्त जीत हासिल की। ऐसे में अगर बीजेपी को अपने 400 पार के लक्ष्य को पाना है तो बंगाल में लोकसभा चुनाव में अपनी टैली को पिछली बार से भी ज्यादा बढ़ाना होगा। संदेशखाली और CAA से बीजेपी को उम्मीद संदेशखाली के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि उसे जीत के लिए ज़रूरी टॉनिक मिल गया है और पार्टी को लगता है कि उसे CAA को नोटिफाई करने का फायदा भी लोकसभा चुनाव में मिलेगा। इंडिया टीवी-CNX के ओपिनियन पोल ने लोकसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल और असम में जनता का मूड समझने की कोशिश की है। आइए, जानते हैं पश्चिम बंगाल और असम का ओपिनियन पोल क्या कहता है: क्या है बंगाल की हॉट सीट्स पर जनता का मूड? कूचबिहार: पश्चिम बंगाल की कूचबिहार लोकसभा सीट से बीजेपी के नीशीथ प्रामाणिक सांसद हैं। वह राजवंशी समुदाय से आते हैं। बीजेपी ने एक बार फिर नीशीथ पर भरोसा जताया है, जबकि टीएमसी के टिकट पर जगदीश चंद्र बर्मा बसुनिया मैदान में हैं। बीजेपी यहां लीड बरकरार रखती दिख रही है। दार्जीलिंग: दार्जीलिंग नॉर्थ बंगाल की प्रतिनिधि सीट है। यहां से बीजेपी के राजू बिस्ता सांसद हैं। यहां 17% दलित, 20% आदिवासी और 15% मुस्लिम वोटर हैं। टीएमसी ने गोपाल लामा पर दांव लगाया है लेकिन बीजेपी के राजू बिष्ट एक बार फिर चुनाव जीतते दिख रहे हैं। मालदा उत्तर: मुस्लिम वाली मालदा उत्तर सीट पर 2009 और 2014 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी लेकिन 2019 में बीजेपी ने रिजल्ट पलट दिया था। पार्टी के खगेन मुर्मू ने 75 हजार से ज्यादा वोटों से TMC को हराकर यहां भगवा लहराया था। इस बार फिर बीजेपी ने खगेन मुर्मू पर भरोसा जताया है लेकिन क्लोज फाइट में टीएमसी के प्रसून बनर्जी को लीड मिलती दिख रही है। मालदा दक्षिण: पश्चिम बंगाल की यह सीट उन दो सीटों में से एक है जिन्हें 2019 में कांग्रेस ने जीता था। 2008 के परिसीमन के बाद यह संसदीय सीट बनी थी और 2009 से अब तक कांग्रेस के अबू हासेम खान चौधरी यहां से सांसद हैं। वह 2019 में बीजेपी प्रत्याशी को 8 हजार से कम वोटों से ही हरा पाए। इस बार मुकाबला बीजेपी बनाम टीएमसी का है। बीजेपी ने श्रीरूपा मित्रा चौधरी पर दांव लगाया है जबकि टीएमसी के शहनवाज अली रहमान बढ़त बनाते दिख रहे हैं। बशीरहाट: बशीरहाट यानी संदेशखाली की सीट। बीजेपी ने 2024 के इलेक्शन प्रोजेक्ट की थीम जिस संदेशखाली को बनाया है, वो बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है। 2019 के चुनाव में इस सीट से तृणमूल की नुसरत जहां जीती थी। हालांकि शाहजहां शेख का मुद्दा इतना हाईलाइट होने के बावजूद यह सीट ममता बनर्जी की पार्टी के खाते में जाती दिख रही है। कृष्णानगर: बांग्लादेश की सीमा से लगी हुई कृष्णानगर लोकसभा सीट भी इस समय चर्चा में है। 1971 की जंग के समय पूर्वी पाकिस्तान से भारी संख्या में मतुआ शरणार्थी यहां आए थे, जिन्हें अब तक नागरिकता नहीं मिली है। CAA नोटिफाई होते ही हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हुआ है और बीजेपी के लिए यहां ये एक बड़ा प्लस प्वाइंट दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी की राजमाता अमृता राय इस बार टीएमसी की महुआ मोइत्रा को हरा सकती हैं। बेहरामपुर: दक्षिण पूर्वी बंगाल की बेहरामपुर सीट से कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी जीतते रहे हैं। वह पिछले 25 साल से बेहरामपुर के सांसद हैं। वह अपने इलाके में दबंग नेता माने जाते हैं इसलिए मोदी और दीदी की आंधी में भी अपनी सीट जीत लेते हैं। इस बार टीएमसी ने उनसे मुकाबले के लिए पूर्व क्रिकेटर युसूफ पठान को मैदान में उतारा है लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक अधीर रंजन चौधरी ये सीट फिर से जीत सकते हैं। बानगांव: बानगांव सीट पर भी मतुआ वोट का जोर रहता है। बीजेपी के शांतनु ठाकुर ने 2019 में 3 बार से जीत रही TMC को एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। ओपिनियन पोल के मुताबिक, 2024 के लोकसभा चुनावों में वह तृणमूल कांग्रेस के बिश्वजीत दास को हराकर एक बार फिर बानगांव में बीजेपी का परचम लहरा सकते हैं। डायमंड हार्बर: डायमंड हार्बर ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल के जनरल सेक्रेट्री अभिषेक बनर्जी की सीट है। अभिषेक बनर्जी 2014 से ही यहां के सांसद हैं। यह सीट तृणमूल के लिए सेफ सीट मानी जाती है और यहां 50 फीसदी से ज्यादा मुसलमान वोटर हैं। ओपिनियन पोल के मुताबिक, डायमंड हार्बर से अभिषेक बनर्जी तीसरी बार लोकसभा जा सकते हैं। तमलुक: पश्चिम बंगाल की हॉट सीटों में तमलुक का भी नाम आता है। यहां से सुवेंदु अधिकारी के भाई दिव्येंदु अधिकारी सांसद हैं। बीजेपी ने इस सीट पर अभिजीत गंगोपाध्याय पर दांव लगाया है जबकि टीएमसी ने देबांगशु भट्टाचार्य को मैदान में उतारा है। ओपिनियन पोल के मुताबिक, तमलुक की ये सीट बीजेपी को जा सकती है। कांथी: पश्चिम बंगाल की कांथी सीट काफी चर्चित रही है। यह सुवेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी की सीट है और यहां अधिकारी फैमिली की तूती बोलती है। पश्चिम बंगाल के जंगलमहल इलाके में अधिकारी परिवार ने जिसे चाहा उसे जितवाया है। अधिकारी परिवार कभी ममता के साथ था, लेकिन अब वे बीजेपी में हैं। इस बार भी ये सीट बीजेपी के खाते में जाती दिख रही है। हुगली: हुगली से बीजेपी की लॉकेट चटर्जी मौजूदा सांसद हैं। वह अपनी एग्रेसिव पॉलिटिक्स के लिए जानी जाती हैं। पहले वह बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या के मुद्दे पर सक्रिय थीं, और अभी संदेशखाली के मुद्दे पर जमकर प्रचार कर रही हैं। हुगली की ये सीट एक बार फिर बीजेपी के खाते में जा सकती है। आसनसोल: पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से तृणमूल कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा सांसद हैं। 2019 के चुनाव में बाबुल सुप्रियो बीजेपी के टिकट पर यहां से जीते थे और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था। उपचुनाव हुए तो शत्रुघ्न सिन्हा जीत गए। बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति ने यहां से भोजपुरी के सुपरस्टार पवन सिंह का टिकट दिया था लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। आसनसोल बिहार की सीमा से लगती सीट है और यहां बड़ी संख्या में बिहार से आए वोटर हैं। इस बार यहां टीएमसी के शत्रुघ्न सिन्हा को बीजेपी हरा सकती है। बर्धमान दुर्गापुर: इस सीट से बीजेपी के एसएस अहलूवालिया सांसद हैं। 2019 में TMC की ममताज संघमिता को सिर्फ 2400 वोटों के मार्जिन से हराकर वह चुनाव जीते थे। इस बार यहां बड़ा मुकाबला है। बीजेपी ने अपने दिग्गज नेता दिलीप घोष को मैदान में उतारा है जबकि टीएमसी ने कीर्ति आज़ाद को उम्मीदवार बनाया है। ओपिनियन पोल के मुताबिक, इस सीट को बीजेपी सीट सकती है। जाधवपुर: पश्चिम बंगाल की जाधवपुर सीट से 2019 में तृणमूल की मिमी चक्रवर्ती जीती थीं। मिमी चक्रवर्ती एक्ट्रेस और सिंगर हैं। बीते 15 फरवरी को उन्होंने इस्तीफा दे दिया था फिर भी जाधवपुर की ये सीट तृणमूल के खाते में जा सकती है। बीजेपी के अनिर्बान गांगुली को टीएमसी की सायोनी घोष हरा सकती हैं। कोलकाता दक्षिण: यह पश्चिम बंगाल की हाई प्रोफाइल सीट है। यहां ममता बनर्जी का अपना घर है। कोलकाता साउथ की इस सीट से 2019 के चुनाव में तृणमूल की माला रॉय जीती थीं और इस बार फिर वही टीएमसी की उम्मीदवार हैं। बीजेपी ने देबाश्री चौधरी को टिकट दिया है, लेकिन इस बार भी यह सीट टीएमसी के खाते में जाती दिख रही है। हावड़ा: पश्चिम बंगाल की हावड़ा सीट से तृणमूल के प्रसून बनर्जी सांसद हैं। प्रसून बनर्जी 3 लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं और एक बार फिर टीएमसी के उम्मीदवार हैं। इस सीट पर मुस्लिम वोटर बहुसंख्यक हैं और यहां से तृणमूल को हराना बहुत मुश्किल है। पश्चिम बंगाल में बदल गया माहौल! इंडिया टीवी-CNX ओपिनियन पोल के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में बीजेपी लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। बीजेपी जहां सूबे की 42 में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस 19 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रह सकती है। कांग्रेस इन चुनावों में एक सीट जीत सकती है जबकि लेफ्ट शायद अपना खाता भी न खोल पाए। असम में भी एनडीए मार सकता है बाजी असम की 14 लोकसभा सीटों में से बीजेपी इस बार 11 सीटों पर अपना परचम लहरा सकती है। वहीं, AGP, UPPL और AIUDF को एक-एक सीट पर जीत मिल सकती है। कांग्रेस के लिए सूबे में खाता खोलना मुश्किल हो सकता है। AGP और UPPL के बारे में बता दें कि ये दोनों ही दल NDA का हिस्सा हैं।
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने लोकसभा चुनाव के लिए बुधवार को उत्तर पूर्वी दिल्ली से पार्टी के ‘घर-घर गारंटी’ अभियान की शुरुआत की और दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘गारंटी’ लोगों को नहीं मिली, लेकिन उनकी पार्टी जो गारंटी दे रही है, उन पर वह अमल करेगी। पार्टी का यह चुनावी अभियान पांच ‘न्याय’ और 25 ‘गारंटी’ पर आधारित है। इस अभियान के तहत कांग्रेस कार्यकर्ता पांच ‘न्याय’ और 25 ‘गारंटी’ वाला कार्ड घर-घर जाकर वितरित करेंगे। पार्टी का लक्ष्य आठ करोड़ परिवारों तक पहुंचने का है। खरगे ने उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में इस अभियान की शुरुआत की। गारंटी के कार्ड घर-घर बांटेंगे-खरगे इस मौके पर उन्होंने कांग्रेस के पांच ‘न्याय’ और 25 ‘गारंटी’ का उल्लेख किया। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा, ‘‘इन गारंटी के कार्ड हमारे लोग घर-घर बांटेंगे। वह लोगों को बताएंगे कि हमारी सरकार आने के बाद हम क्या क्या काम करेंगे।’’ उन्होंने कहा ‘‘हम लोगों को गारंटी देते हैं कि हमारी सरकार हमेशा गरीबों के साथ रहेगी और गरीबों के लिए काम करेगी।’’ कांग्रेस अध्यक्ष ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय की प्रमुख योजनाओं और कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकारों में देश की जनता को फायदा हुआ है। मोदी की गारंटी लोगों को नहीं मिली-खरगे उन्होंने कहा, ‘‘मोदी जी अपनी गारंटी की बात करते हैं, लेकिन उनकी गारंटी कामयाब नहीं हुई। उनकी गारंटी लोगों को नहीं मिली। उन्होंने हर साल दो करोड़ नौकरियों की बात की, लेकिन लोगों को नौकरी नहीं मिली। उन्होंने 15-15 लाख रुपये देने का वादा किया, लेकिन यह गारंटी भी पूरी नहीं।’’ खरगे ने आरोप लगाया कि किसानों से किए वादे भी मोदी सरकार ने पूरे नहीं किए। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणापत्र पांच न्याय – ‘हिस्सेदारी न्याय’, ‘किसान न्याय’, ‘नारी न्याय’, ‘श्रमिक न्याय’ और ‘युवा न्याय’- पर आधारित होगा। यह पांच अप्रैल को जारी किया जाएगा। आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा खत्म करेंगे पार्टी ने ‘युवा न्याय’ के तहत जिन पांच गारंटी की बात की है उनमें 30 लाख सरकारी नौकरियां देने और युवाओं को एक साल के लिए प्रशिक्षुता कार्यक्रम के तहत एक लाख रुपये देने का वादा शामिल है। पार्टी ने ‘हिस्सेदारी न्याय’ के तहत जाति आधारित जनगणना कराने और आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा खत्म करने की ‘गारंटी’ दी है। उसने ‘किसान न्याय’ के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने, कर्ज माफी आयोग के गठन तथा ‘जीएसटी’ मुक्त खेती का वादा किया है। कांग्रेस ने ‘श्रमिक न्याय’ के तहत मजदूरों को स्वास्थ्य का अधिकार देने, न्यूनतम मजूदरी 400 रुपये प्रतिदिन सुनिश्चित करने और शहरी रोजगार गारंटी का वादा किया है। उसने ‘नारी न्याय’ के अंतर्गत ‘महालक्ष्मी’ गारंटी के तहत गरीब परिवारों की महिलाओं को एक-एक लाख रुपये प्रति वर्ष देने समेत कई वादे किए हैं।
नई दिल्ली कांग्रेस में इस समय प्रवक्ता बनाम प्रवक्ता वाला सीन हो गया है। पिछले दिन संजय झा ने कांग्रेस के ही मनीष तिवारी के साथ मिलकर एक कॉलम लिखा था। उस पर अजय माकन ने कहा कि संजय झा को अपनी परेशानियों को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के कंसल्टेटिव ग्रुप के उस सदस्य के साथ साझा करना चाहिए, जिसके साथ मिलकर उन्होंने पेपर में एक कॉलम लिखा था। उनका सीधा इशारा मनीष तिवारी की ओर था, जिनके साथ संजय झा ने कॉलम लिखा था। इस पर मनीष तिवारी ने अजय माकन पर हमला बोला है। मनीष तिवारी ने कहा है कि अजय माकन के लिए संजय झा ने अपना प्रमोशन छोड़ दिया। उन्होंने ये भी कहा कि जब 2014 में प्रवक्ता के पद के लिए चेहरा चुना जा रहा था तो उनका खुद का अनुभव किसी ने नहीं देखा। साथ ही कहा कि अगर उन्होंने संजय झा के साथ मिलकर कोई कॉलम लिखा है तो इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह संजय झा के निजी विचारों से भी सहमत हैं। मनमोहन सिंह और राहुल भी हैं कंसल्टेटिव ग्रुप में झा की टिप्पणी पर कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन ने रविवार को हाल ही में बने कंसल्टेटिव ग्रुप की बात की, जिसमें पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी हैं। उन्होंने कहा था कि किसी झगड़े को सुलझाने के लिए और सलाह के लिए उस पैनल के पास जाएं। 'सूचना और प्रसारण मंत्री होने के बावजूद कम आंका' अजय माकन की टिप्पणी की बेहद घटिया मानते हुए तिवारी ने कहा कि संजय झा कांग्रेस के लिए टीवी पर 2011 के अन्ना आंदोलन के वक्त से ही बोल रहे हैं। उन्हें आधिकारिक रूप से मीडिया प्लेटफॉर्म जनवरी 2014 में दिया गया, जब अजय माकन ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन थे। मार्च 2015 में उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया, जब मुझे सिर्फ एक मीडिया पैनलिस्ट बनाया गया, बजाय इसके कि मैं 2014 तक सूचना और प्रसारण मंत्री था। तिवारी ने कहा कि कम्युनिकेशन विभाग के अगले चेयरमैन ने संजय झा को प्रमोट किया और अगर मैंने उनके साथ मोदी सरकार की आलोचना वाले एक-दो पीस लिखे हैं तो इसके लिए मेरी निंदा करना सही नहीं है। उनके साथ लिखने का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि मैं उनके निजी विचारों से सहमत हूं। बता दें कि कम्युनिकेश विभाग के मौजूदा चेयरमैन रणदीप सुरजेवाला हैं, जिन्हें इस पद पर 2015 में नियुक्त किया गया था।
अहमदाबाद गुजरात में आगामी राज्यसभा चुनावों से पहले कांग्रेसी खेमे में हलचल मची हुई है। एकतरफ बीजेपी कथित तौर पर विधायकों की तोड़फोड़ में लगी है तो वहीं गुजरात कांग्रेस को अंदरूनी पॉलिटिक्स का नुकसान भी हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे राहुल गांधी की पसंद के तीन नेताओं की तिकड़ी की वजह से बाकी नेताओं में असंतोष है, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। बीजेपी ने कांग्रेस में जारी अंदरूनी कलह का फायदा उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य में कोरोना वायरस संक्रमण की गंभीर स्थिति के बीच 'भगवा मॉडल' सरकार पर उठने वाली उंगलियों से फोकस शिफ्ट करने में मदद मिल गई। इसके साथ ही नवंबर में होने वाले आगामी निकाय चुनावों से पहले राज्यसभा चुनावों का इस्तेमाल भी करने का मौका मिल गया। युवा वफादार नेताओं को आगे बढ़ाने का दांव पड़ा उल्टा? गुजरात में ये तीन नेता प्रदेश कांग्रेस समिति चीफ अमित चावड़ा (43), कांग्रेस विधानसभा दल (सीएलपी) नेता परेश धनानी (43), ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के गुजरात इन्चार्ज राजीव साटव (45) हैं। राहुल गांधी ने 'लाइटवेट' वफादार नेताओं को आगे बढ़ने के उद्देश्य से इन तीनों को महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी दी थी। गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद तत्कालीन पीसीसी चीफ भरतसिंह सोलंकी ने इस्तीफा दे दिया था। वहीं सीएलपी नेता शक्ति सिंह गोहिल अपनी सीट से हार गए थे। ऐसे में राहुल गांधी को चावड़ा और धनानी को नियुक्त करने का मौका मिल गया। लेकिन सिद्धार्थ पटेल, नरेश रावल, कुंवरजी बावलिया और अर्जुन मोढवाडिया जैसे सीनियर नेताओं की भी उपेक्षा की गई।
अहमदाबाद गुजरात कांग्रेस को अपने विधायकों से इस्तीफे के रूप में एक के बाद झटके मिल रहे हैं लेकिन फिर भी इससे पार्टी के हौसले पस्त नहीं हुए है। गुजरात कांग्रेस का दावा है कि राज्यसभा चुनाव में उसकी दो सीटें आएंगी और इसके लिए उसे सिर्फ एक वोट की दरकार है। हालांकि यह कैसे मुमकिन है इसके बारे में पार्टी ने बताने ने इनकार कर दिया है। लिखें गुजरात मामले के कांग्रेस इनचार्ज राजीव साटव ने बताया, 'हमें दूसरी सीट निकालने के लिए सिर्फ एक वोट की जरूरत है। हम नंबर पर चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि यह हमारी रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने 2017 राज्यसभा में अहमद पटेल केस का उदाहरण दिया और यह भी कहा कि हम संख्याबल पर काम कर रहे हैं और बेकार नहीं बैठे हैं।' कांग्रेस ने रिजॉर्ट में भेजे अपने विधायक 2017 में गुजरात विधानसभा में 77 सीटें जीती थीं लेकिन अब पार्टी की स्ट्रेंथ घटकर 65 रह गई है। मार्च से अब तक 8 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। राज्यसभा चुनाव होने तक कांग्रेस ने अपने बाकी विधायकों को अंबाजी, वडोदरा और राजकोट भेज दिया है। दूसरी सीट के लिए कांग्रेस की राह कठिन कांग्रेस ने शक्ति सिंह गोहिल और भरत सिंह सोलंकी को राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में उतारा है। पहली वरीयता के आधार पर गोहिल को वोट मिलेंगे लेकिन लेकिन दूसरी सीट के लिए कांग्रेस की राह कठिन हो गई है क्योंकि बीजेपी ने नरहारी अमीन को मैदान में उतारा है। राजीव शुक्ला ने वापस ले लिया था नाम दूसरी सीट के लिए कांग्रेस की सारी रणनीति अब भरत सिंह सोलंकी की पैंतरेबाजी और उनके पिता माधव सिंह सोलंकी की अच्छी छवि पर निर्भर करती है, जो पूर्व सीएम भी हैं। शुरुआत में कांग्रेस ने राजीव शुक्ला को उतारा था लेकिन फिर राज्य कांग्रेस के विरोध के चलते उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था। इसके बाद पार्टी ने सोलंकी को उतारा है। गुजरात विधानसभा में अब कुल 172 सदस्य हैं और 10 सीटें खाली हैं। बता दें कि गुजरात की 4 सीटों पर 19 जून को राज्यसभा चुनाव होने हैं। इनमें से तीन सीटें फिलहाल बीजेपी के पास हैं जबकि एक कांग्रेस के खाते में। विधायकों के इस्तीफों से बीजेपी को फायदा राज्यसभा 4 सीटों के लिए बीजेपी के तीन और कांग्रेस के दो उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। अब तक के गणित के लिहाज से बीजेपी सिर्फ दो सीटें ही जीत सकती थी लेकिन कांग्रेस के 3 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब अब चौथी सीट पर भी बीजेपी का पलड़ा भारी होता दिख रहा है। कांग्रेस अब अपने विधायकों की बदौलत से अभी एक सीट ही निकालती दिख रही है। यानी शक्ति सिंह और भरत सिंह में से एक की बलि तय है। राज्यसभा चुनाव के लिए ये हैं उम्मीदवार नियमों के अनुसार, गुजरात राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए एक उम्मीदवार को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट (STV) के तहत 37 वोट की दरकार है। बीजेपी के पास अभी 103 विधायक हैं जबकि राज्यसभा के लिए उसने अभय भारद्वाज, रमीलाबेन बारा और नरहारी अमीन को उम्मीदवार बनाया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने शक्ति सिंह गोहिल और भरत सिंह सोलंकी को उम्मीदवार है।
नई दिल्ली, 25 मई 2020,2014 में आम चुनावों के बाद जब पहली बार मोदी सरकार बनी तो कमोबेश विपक्ष की एक मौजूदगी नजर आती थी. लेकिन 5 सालों बाद 2019 में जब दोबारा मोदी सरकार बनी तो उम्मीद नजर आती थी. लेकिन जब पांच सालों बाद मोदी सरकार दोबारा बनी तो विपक्ष और कमजोर ही हुआ. बीजेपी ने 2019 के चुनावों में अकेले तीन सौ के आंकड़ों को पार किया और 303 सीटों पर जीत का परचम लहराया. यही वजह रही कि मोदी सरकार ने इसका भरपूर फायदा उठाया और दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही ताबड़तोड़ कई बड़े फैसले लिए. मोदी के नेतृत्व और अमित शाह की रणनीति ऐसी रही कि राज्यसभा में संख्या कम होने के बाद भी कई अहम बिल पास करवाए. एक लाइन में कहें तो हिंदुस्तान में विपक्ष की स्थिति बेहद खराब है. और यह देश के लोकतंत्र के लिए किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं है. ऐसा नहीं है कि विपक्ष खड़ा होने की कोशिश नहीं कर रहा है. विपक्षी एकजुटता की कोशिश तो कई हुई हैं लेकिन राजनेताओं की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा उसे अंजाम तक पहुंचने नहीं दे रही है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस जनता का विश्वास जीतने की कई जुगत करता है लेकिन हर बार उनके हाथ निराशा ही लगती है. कांग्रेस ने कोशिश तो की लेकिन सफल नहीं रही सोनिया से लेकर राहुल और प्रियंका तक कांग्रेस ने अपने सारे चमकदार चेहरे मैदान में उतार दिए लेकिन मोदी लहर को रोकने में सभी नाकामयाब रहे. राहुल गांधी ने कई मौकों पर मोदी सरकार को घेरने और अपनी छवि चमकाने की कोशिश की लेकिन मेहनत सफल नहीं हुई. 30 मई को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे होने जा रहे हैं. लेकिन पिछले 12 महीनों पर नजर डालें तो विपक्ष का एक भी ऐसा आंदोलन नजर नहीं आता जिसे जनसमर्थन हासिल हुआ हो. सीएए और एनआरसी को लेकर लोगों में गुस्सा जरूर नजर आया लेकिन विपक्ष उन मुद्दों पर भी खुलकर सामने आने से बचने की कोशिश करता ही नजर आया. विपक्ष की एक बड़ी परेशानी यह भी है विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि जो भी क्षत्रप थे वे या तो अपने गढ़ संभालने में लगे हैं या फिर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. पिछले एक साल में विपक्ष के कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हुए. इसके अलावा प्रांतीय दलों की स्थिति भी बहुत कमजोर हो चलीहै. यूपी में सपा-बसपा हो या बिहार में आरजेडी-जेडीयू सभी की हालत एक जैसी ही है. टीएमसी, टीडीपी, बीजेडी, एआईडीएमके जैसी पार्टियां जो कभी केंद्र को आंखें दिखाया करती थीं वे भी राज्यों तक ही सीमित होकर रह गई हैं. यही वजह है कि राज्यों में चुनाव से पहले गठबंधन की चर्चा तेज हो जाती है. ये बड़े चेहरे अपना राज्य संभालने में ही फंसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के बाहर कदम रखने की कोशिश की थी. लेकिन पंजाब, हरियाणा में मिली हार, दिल्ली में कम होते वोटों के अंतर और कोरोना संकट ने अरविंद केजरीवाल को दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया. यही वजह है कि महागठंधन के मंच पर कई बार शिरकत कर चुके केजरीवाल का रुख पलटा-पलटा नजर आ रहा है. इसी तरह ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों को लेकर परेशान हैं. राज्य में बीजेपी की बढ़ती ताकत उन्हें केंद्र तक पहुंचने नहीं दे रही है. फिलहाल वह अपना राज्य बचाने में जुटी हुई हैं. इसी तरह शरद पवार जैसा बड़ा चेहरा अपनी खिचड़ी सरकार को बनाए रखने में फंसे हुए हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस को एक साथ तो कर लिया लेकिन कई मुद्दों पर दोनों पार्टियों के मत अलग-अलग रहते हैं. केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी मजबूत है बीजेपी लोकसभा चुनावों के बाद चार राज्यों (महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली और हरियाणा) में विधानसभा चुनाव हुए. इनमें से महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा लेकिन हरियाणा में बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही. महाराष्ट्र में भी बीजेपी सबसे बड़ा दल रही लेकिन विपक्ष में बैठना पड़ा. एमपी और कर्नाटक दो ऐसे राज्य हैं जहां लोकसभा से पहले बीजेपी चुनाव हार गई थी लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के दोबारा आते ही दोनों राज्यों में बीजेपी ने सत्ता वापस हासिल कर ली. इसी वजह से ब्रांड मोदी में लोगों का विश्वास और मजबूत हो जाता है.
मुंबई महाराष्‍ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने के बाद ऐसा लग रहा है कि वहां की राजनीति में अभी कुछ और चौंकाने वाले घटनाएं हो सकती हैं। ऐसी खबर है कि करीब एक दर्जन बीजेपी एमएलए और महाराष्‍ट्र से राज्‍यसभा के एक सांसद बीजेपी छोड़कर सत्‍तारूढ़ गठबंधन की पार्टियों में आना चाहते हैं। इस सिलसिले में उनकी गठबंधन के नेताओं से बातचीत भी चल रही है। इन संभावित दलबदलुओं में अधिकांश वे बीजेपीए एमएलए हैं जो विधानसभा चुनावों से ऐन पहले एनसीपी और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। एक सूत्र ने इकनॉमिक टाइम्‍स को बताया कि इनके अलावा दूसरे कुछ असंतुष्‍ट बीजेपी विधायक हैं। एक बीजेपी राज्‍य सभा एमपी समेत इन सभी ने सत्‍तारूढ़ गठबंधन के नेताओं को संकेत दे दिया है कि वे अपनी विधानसभा सदस्‍यता से इस्‍तीफा देकर आने वाले उपचुनावों में गठबंधन में शामिल पार्टियों के उम्‍मीदवारों के तौर पर चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं। बीजेपी में शामिल होने वाले कई एनसीपी और कांग्रेस एमएलए शिक्षा व्‍यवसाय और चीनी मिल सेक्‍टर से जुड़े थे और उन्‍हें बीजेपी शासन की सख्‍ती का सामना करना पड़ रहा था। बीजेपी खुद कर चुकी है ऐसा' सत्‍तारूढ़ गठबंधन के एक नेता का कहना था, 'बीजेपी नेतृत्‍व पहले ही ऐसे उदाहरण प्रस्‍तुत कर चुका है जहां उन्‍होंने विभिन्‍न राज्‍यों के एमएलए और राज्‍य सभा में विपक्ष के सांसदों को इस्‍तीफा दिलाकर उपचुनावों में अपना उम्‍मीदवार बनाया था। इन उदाहरणों से प्रेरित होकर करीब एक दर्जन बीजेपी एमएलए और एक राज्‍य सभा एमपी हमसे संपर्क में हैं। वे बीजेपी से इस्‍तीफा देकर उपचुनाव लड़ने को तैयार हैं। उनकी भविष्‍य की रणनीति पर हम गंभीरता से विचार कर रहे हैं।' एक दूसरे नेता ने कहा, 'वे लोग हमारे नेतृत्‍व के हरी झंडी दिखाने का इंतजार कर रहे हैं। महाराष्‍ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद यह मुद्दा जोर पकड़ सकता है।' अधिकांश एनसीपी में आने को इच्छुक पाला बदलने के इच्‍छुक इन विधायकों में से अधिकांश एनसीपी को जॉइन करना चाहते हैं। कुछ दूसरे कांग्रेस और बाकी लोग शिवसेना में शामिल होने की इच्‍छा जता रहे हैं। इन विधायकों ने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में गठबंधन स‍हयोगियों को हराकर जीत हासिल की थी। उन्‍हें लगता है कि अगर गठबंधन के सभी सहयोगियों के वोट उन्‍हें मिल जाएं तो उनके पास उपचुनाव जीतने का अच्‍छा मौका है। बीजेपी को भी पता है असलियत इन नेताओं में से एक ने इस ओर इशारा किया कि उद्धव ठाकरे सरकार ने बीजेपी के वॉकआउट और 169 विधायकों के समर्थन से विश्‍वास मत जीता है। उनका कहना था, 'हमारे बीजेपी में कुछ गुप्‍त सहयोगी हैं। यही कारण है कि देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी ने विश्‍वास मत और अध्‍यक्ष के चुनाव के दौरान अपनी ताकत दिखाने से परहेज करते हुए अपना उम्‍मीदवार हटा लिया था।' गोवा की बीजेपी सरकार पर भी नजर संयोग से इसी समय महाराष्‍ट्र बीजेपी के उन नेताओं ने 'मोहभंग' होने का ऐलान किया और साथ पार्टी बदलने की धमकी दी है जिन्‍हें चुनाव में टिकट नहीं मिला था। उधर शिवसेना नेता संजय राउत ने भी हाल ही में कहा था कि उनकी पार्टी गोवा में बीजेपी सरकार को गिराने के मिशन में लगी हुई है।
मुंबई मुंबई के धारावी में करीब 400 शिवसेना कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है। यह शिवसेना के लिए बड़ा झटका है। बताया जा रहा है कि ये सभी कार्यकर्ता शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने से खासे नाराज हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि शिवसेना ने भ्रष्ट और विरोधी दलों से हाथ मिलाया है। बीजेपी में शामिल होने वाले एक कार्यकर्ता रमेश नाडार ने बताया कि पार्टी के 400 कार्यकर्ताओं ने बीजेपी जॉइन की है क्योंकि शिवसेना के भ्रष्ट और हिंदू विरोधी दलों से हाथ मिलाने से वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं ने शिवसेना पर सिर्फ सरकार बनाने के लिए महाविकास आघाड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया। लोगों से कैसे नजरें मिलाएंगे नाडार ने यह भी बताया कि कई और कार्यकर्ता भी हैं जो शिवसेना से नाराज हैं। उनका कहना है कि पिछले सात साल से वे एनसीपी और कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहे थे। चुनाव के दौरान उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर वोट मांगे थे लेकिन अब वे उनसे कैसे चेहरा मिला पाएंगे जिनसे उन्होंने ईमानदार सरकार बनाने के लिए वोट मांगे थे। उद्धव ठाकरे ने मीटिंग कर विकास कार्यों का किया समीक्षण
मुंबई अपने फेसबुक पोस्ट से महाराष्ट्र की राजनीति में खलबली मचाने वाली बीजेपी नेता और राज्य की पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे ने अब ट्विटर पर हंगामा खड़ा दिया है। पंकजा ने अपने ट्विटर बायो में से पार्टी का नाम हटा दिया है। इसके बाद पहले से चल रहीं अटकलों ने और तेजी पकड़ ली है। इस बीच शिवसेना ने भी यह कहकर सस्पेंस बढ़ा दिया है कि कई नेता उसके संपर्क में हैं। बता दें कि पंकजा ने एक फेसबुक पोस्ट में यह लिखा था कि वह आठ से 10 दिन में यह तय करेंगी कि उन्हें कौन से रास्ते जाना है। पंकजा की तरह ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी ट्विटर पर अपने बायो से पार्टी का नाम हटाया था, जिसके बाद उनको लेकर भी तरह-तरह की अटकलों का सिलसिला जारी है। पहले फेसबुक पर बवाल, अब ट्विटर में बदलाव पंकजा के पोस्ट के बाद से उनकी नाराजगी को जगजाहिर माना जा रहा था। इसके बाद सवाल उठ रहा था कि क्या वह देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ अपना गुस्सा खुलकर जाहिर करेंगी? सूत्र बताते हैं कि वरिष्ठ नेताओं के सामने अपनी समस्या रखते वक्त पंकजा का सारा गुस्सा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ रहा है। इस बीच उन्होंने पहले फेसबुक पोस्ट कर जल्द ही बड़ा फैसला करने की बात कही तो ट्विटर पर बायो से पार्टी का नाम ही हटा दिया है। ऐसे में अफवाहों और अटकलों ने और भी रफ्तार पकड़ ली है। 8-10 दिन चिंतन करना है' फेसबुक पोस्ट में पंकजा ने कहा था, 'बदले राजनीतिक परिवेश में अपनी ताकत को समझना जरूरी है। मुझे 8-10 दिन तक कुछ चिंतन करना है और मैं 12 दिसंबर को आप सभी से मुलाकात करूंगी। यह हमारे नेता गोपीनाथ मुंडे जी का जन्मदिन है। मैं अगले 8-10 दिन में मैं यह तय कर लूंगी कि मुझे आगे क्या करना है और कौन से रास्ते पर जाना है।' बता दें कि पंकजा मुंडे को चुनाव में परली विधानसभा सीट चचेरे भाई धनंजय मुंडे से हार का सामना करना पड़ा था। पंकजा के शिवसेना में जाने की अटकलें पंकजा मुंडे को इस बार विधानसभा चुनाव में अपने चचेरे भाई और एनसीपी उम्मीदवार धनंजय मुंडे के हाथों हार का सामना करना पड़ा। उनके समर्थक उनकी हार के लिए देवेंद्र फडणवीस को जिम्मेदार ठहराते हैं कि उन्हें जानबूझकर हरवाया गया। एनसीपी के अजित पवार की 'कुछ दिन की बगावत' के समय धनंजय मुंडे भी शुरुआत में उनके साथ थे, इससे पंकजा के समर्थकों का शक और गहरा हुआ है। पंकजा मुंडे ने सार्वजनिक तौर पर फडणवीस के खिलाफ तो कुछ नहीं बोला है लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने अपनी बात रखते हुए उनकी आलोचना जरूर की है। अब ऐसी अटकलें हैं कि वह शिवसेना जॉइन कर सकती हैं। उद्धव ठाकरे के सीएम बनने पर पंकजा ने ट्वीट कर उनकी तारीफ की थी और शुभकामनाएं दी थी। इन अटकलों को सोमवार को तब और बल मिला जब संजय राउत ने कहा कि कई नेता शिवसेना के संपर्क में हैं। राउत से पूछा गया था कि क्या पंकजा मुंडे शिवसेना में शामिल होने जा रही हैं।
नई दिल्ली, 29 नवंबर 2019,शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस ने साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार तो बना ली लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से कोई नहीं था. यही नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी शपथ ग्रहण समारोह से दूरी बनाए रखी. वहीं, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार के शपथ ग्रहण में विपक्षी दलों के कई दिग्गज एक मंच पर दिखे थे. कांग्रेस के मन में शिवसेना को लेकर एक दूरी है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने के लिए शुभकामना पत्र तो भेजा लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में तीनों शामिल नहीं हुए. उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार फिर विपक्ष की एकता उद्धव के शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर देखने को मिल सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शपथग्रहण का न्योता अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को भी भेजा गया था. लेकिन दोनों ही नेताओं ने झटका दे दिया. कहीं ये सेक्यूलर छवि बचाने के लिए तो नहीं किया गया सोनिया ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन को सही ठहराते हुए अपने शुभकामना पत्र में लिखा कि उन्हें उम्मीद है कि महाराष्ट्र की नई सरकार जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेगी. सोनिया ने पत्र में लिखा है कि देश का राजनीतिक वातावरण जहरीला हो गया है. इकॉनोमी बिखर चुकी है. किसान परेशान हैं. इसलिए मुझे उम्मीद है कि ये गठबंधन लोगों की भलाई के लिए काम करेगी. आदित्य ठाकरे ने खुद सोनिया को न्योता दिया था, लेकिन वे शपथ ग्रहण में नहीं आईं. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और राहुल गांधी ने भी उद्धव ठाकरे को बधाई पत्र भेजा. दोनों ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न हो पाने पर खेद जताया. साथ ही ठाकरे को नई जिम्मेदारी की बधाई दी. गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के शिखर नेतृत्व को शपथ में बुलाने के लिए बेटे आदित्य को खुद सोनिया, मनमोहन और राहुल को आमंत्रित करने के लिए गुरूवार को दिल्ली भेजा था. कुमारस्वामी के मंच पर दिखी थी विपक्षी ताकत 23 मई 2018 को कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के दौरान मंच पर विपक्षी एकजुटता की तस्वीर देखने को मिली थी. मंच पर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, कुमारस्वामी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बसपा प्रमुख मायवती और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी नजर आए थे.
देहरादून उत्तराखंड की पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए गुरुवार को हो रही मतगणना के बाद भारतीय जनता पार्टी के खाते में जीत आई। बीजेपी की चंद्रा पंत ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की अंजू लुंठी को करीब 3,267 मतों से हराया। बता दें कि पिथौरागढ़ में कांग्रेस बनाम बीजेपी की कड़ी लड़ाई है। मैदान में उतरीं चंद्रा पंत, त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल में मंत्री रहे प्रकाश पंत की पत्नी हैं। ें प्रकाश पंत का इस वर्ष बीमारी के चलते निधन हो गया था, जिसके बाद यह सीट खाली हो गई थी। उनके सामने कांग्रेस की अंजू हैं। बता दें कि चंद्रा और अंजू दोनों ही पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं । उत्तराखंड की राजनीति के लिए रिजल्ट अहम इस सीट पर वोट 25 नवंबर को डाले गए थे जब 47.48 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था। विधानसभा में जबरदस्त बहुमत के साथ सत्तासीन बीजेपी की जहां इस सीट पर प्रतिष्ठा दांव पर है, वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने भी अपनी संख्या को बढ़ाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यह सीट उत्तराखंड की सियासत के लिए बेहद अहम है। चंद्रा पंत के समर्थन में बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ ही स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी जनसभाएं कर लोगों से पार्टी प्रत्याशी के लिए वोट मांगे थे। कांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने पिथौरागढ़ में बाजी अपने पक्ष में करने के लिए जमकर प्रचार किया था।
15 नवंबर 2019, महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर सस्पेंस खत्म होता नजर आ रहा है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने कहा कि सरकार गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जो भी सरकार बनेगी वह पांच साल तक चलेगी. इस बीच शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं ने कल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात का समय मांगा है. हालांकि, तीन पार्टियों के नेताओं ने यह समय किसानों के मसले पर बात करने के लिए मांगा है.
रांची, 14 नवंबर 2019, महाराष्ट्र के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को झारखंड में झटका लगा है. झारखंड में 19 सालों तक भाजपा के साथ चली ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) से गठबंधन टूट गया है. अब बीजेपी झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में अकेले उतरेगी. 53 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी बीजेपी बाकी 27 सीटों पर भी अपना उम्मीदवार उतारेगी. वहीं एक निर्दलीय उम्मीदवार का पार्टी समर्थन करेगी. बता दें कि बीजेपी और आजसू के बीच सीट बंटवारे पर बात नहीं बन पा रही थी, जिसके बाद पार्टी ने गुरुवार को फैसला लिया कि झारखंड में अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगे. भाजपा ने राज्य की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 53 प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुकी है, जबकि आजसू ने भी 12 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. आजसू से अलग होने वाली भारतीय जनता पार्टी झारखंड में अकेले नजर आ रही है. यही कारण है कि इस चुनाव में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) पूरी तरह बिखरा नजर आ रहा है. बिहार में भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहा जनता दल (युनाइटेड) जहां अकेले चुनावी मैदान में उतर गया है, वहीं राजग की घटक लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भी सीट बंटवारे से नाराज होकर 50 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. जद (यू) ने चुनाव की घोषणा से पहले ही झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. जद (यू) के वरिष्ठ नेता प्रवीण सिंह कहते हैं कि जद (यू) यहां मजबूती के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. उनका कहना है कि जद (यू) झारखंड बनने के बाद भी कई सीटों पर विजयी हो चुकी है केंद्र सरकार में भाजपा की भागीदार बनी लोजपा ने झारखंड में 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया है. झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में मतदान होना है. नतीजे 23 दिसंबर को आएंगे. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में 37 सीटें पाने वाली भाजपा ने बाद में झारखंड विकास मोर्चा (झामुमो) से अलग होकर विलय करने वाले 6 विधायकों के सहारे पहली बार बहुमत की सरकार बनाई थी. वर्ष 2000 में गठित हुए इस राज्य में रघुवर 10 पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं.
रांची, 12 नवंबर 2019, झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं. इस बीच झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने गठबंधन तोड़ने के संकेत दिए हैं. बीजेपी की सहयोगी पार्टी आजसू ने 12 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. जिन 12 सीटों पर आजसू ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें से 4 विधानसभा सीटों पर रविवार को बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी थी. ये चारों सीटें हैं सिमरिया, सिंदरी, मांडू और चक्रधरपुर. सीटों को लेकर फंसा पेच चक्रधरपुर विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ के नाम की घोषणा की है लेकिन सोमवार को आजसू ने चक्रधरपुर से भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया. सूत्रों की मानें तो आजसू ने बीजेपी से 19 सीटों की मांग की थी. बीजेपी को संदेश दिया था कि उसे कम से कम 14 सीटें चाहिए लेकिन बीजेपी 9 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है. इसी कारण सोमवार को आजसू ने अपने 12 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी. इनमें 4 सीटें ऐसी हैं जिन पर रविवार को बीजेपी अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. जरमुंडी सीट पर मतभेद दूसरी तरफ झारखंड में एनडीए की एक और सहयोगी पार्टी एलजेपी ने झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी से 6 सीटों की मांग की थी. एलजेपी ने जिन 6 विधानसभा सीटों की मांग की थी उनमें जरमुंडी, नाला, हुसैनाबाद, बड़कागांव, लातेहार और पांकी के नाम हैं. सूत्रों की मानें तो एलजेपी ने बीजेपी के सामने प्रस्ताव रखा था कि उसे इस बार शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट की जगह उसके प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र प्रधान की जरमुंडी विधानसभा सीट दी जाए. बीजेपी ने एलजेपी के प्रस्ताव को एक सिरे से नकार दिया है. बीजेपी ने अपनी 52 उम्मीदवारों की पहली सूची में जरमुंडी विधानसभा से भी उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है. बीजेपी के इस रुख के बाद एलजेपी ने घोषणा की है कि वह झारखंड की 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बातचीत के सारे दरवाजे बंद 2014 में झारखंड विधानसभा चुनाव बीजेपी, आजसू और एलजेपी ने मिलकर लड़ा था. तब बीजेपी ने 72 सीटों पर, आजसू ने 8 सीटों पर और एलजेपी ने एक सीट पर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने 37 सीटों पर, आजसू ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी और एलजेपी हार गई थी. बाद में बीजेपी ने झारखंड विकास मोर्चा के 8 में से 6 विधायकों को तोड़कर पार्टी में शामिल कराया था. उसके बाद भी बीजेपी और आजसू ने पूरे पांच साल सरकार चलाई. बता दें, झारखंड में पांच चरणों में चुनाव होने हैं. पहले चरण के लिए 30 नवंबर को मतदान होना है और 23 दिसंबर को नतीजे आएंगे. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, आजसू ने चक्रधरपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ के खिलाफ उम्मीदवार उतार कर बातचीत के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं. अब बीजेपी और आजसू के बीच गठबंधन की संभावनाएं लगभग समाप्त हो गई हैं.
दिल्ली/मुंबई, 12 नवंबर 2019,महाराष्ट्र में सियासी घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. सरकार गठन को लेकर हो रही देरी पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया है. एनसीपी नेता शरद पवार ने कहा कि हम कांग्रेस से बात कर रहे हैं. इस बीच दिल्ली से आज कांग्रेस को कोई नेता मुंबई नहीं जाएगा. यह फैसला शरद पवार और अहमद पटेल के बीच हुई बातचीत के बाद लिया गया. एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा कि सरकार में देरी को लेकर मैं कांग्रेस से बात करूंगा. हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी के बैठक के सवाल पर शरद पवार ने कहा कि कैसी बैठक? मुझे नहीं पता. वहीं, अजित पवार ने कहा कि कांग्रेस विधायकों का समर्थन पत्र अभी हमें नहीं मिला है. इसलिए हमें रात 8.30 तक विधायकों की लिस्ट देने में समस्या आ सकती है. कांग्रेस पर अजित पवार ने फोड़ा ठीकरा अजित पवार ने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा, सामूहिक रूप से लिया जाएगा, इसलिए हम कल कांग्रेस की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे थे, लेकिन उनकी तरफ से कुछ फैसला नहीं आया. हम अकेले इस पर फैसला नहीं कर सकते. कोई गलतफहमी नहीं है, हमने एक साथ चुनाव लड़ा और हम साथ हैं. मुंबई नहीं जाएंगे कांग्रेसी नेता इस बीच कांग्रेस ने दिल्ली से अपने नेताओं को मुंबई नहीं भेजने का फैसला किया है. इस फैसले से पहले शरद पवार और अहमद पटेल की बात हुई. मुंबई में महाराष्ट्र कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के बीच आज बैठक होने वाली थी. इसके लिए केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे और अहमद पटेल को मुंबई जाना था, लेकिन ऐन वक्त पर यह कार्यक्रम कैंसिल कर दिया गया है.
मुंबई महाराष्ट्र में चल रहे नाटकीय सियासी घटनाक्रम ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी की 30 साल की दोस्ती तोड़ने वाली शिवसेना को अजीब संकट में फंसा दिया है। एनसीपी चीफ शरद पवार के साथ बैठक और सोनिया को फोन लगाने के बाद भी उद्धव सोमवार को तय समय में राज्यपाल को दोनों दलों के समर्थन की चिट्ठी नहीं सौंप पाए। अब सारी नजरें शरद पवार पर टिकी हैं। राज्यपाल ने एनसीपी को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया है। उसे आज रात 8:30 बजे तक समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपना है। इस पूरे सियासी नाटक में शिवसेना अजीबोगरीब स्थिति में है। एनसीपी के साथ गठबंधन पर न तो वह सीएम की कुर्सी की जिद छोड़ सकती है, न ही उसके सामने बीजेपी के पास लौटने का सम्मानजनक विकल्प बचा है। गवर्नर का न्योता मिलते ही ऐक्शन में NCP दरअसल, विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी-शिवसेना में सीएम पद को लेकर हुई नोकझोंक का खेल एनसीपी अब तक आराम से देख रही थी। लेकिन अब उसके पास अपनी बिसात बिछाने का मौका आ गया है और आज से वह ऐक्शन मूड में दिखेगी। सोमवार शाम में एनसीपी के लिए उसके नेता अजीत पवार के पास राजभवन से सरकार गठन के लिए कॉल आया, जिसके बाद उन्होंने गवर्नर बीएस कोश्यारी से मुलाकात की थी। जब अजीत पवार राजभवन से बाहर निकले तो उनके हाथ में एक पत्र था, जिसमें राज्यपाल ने उनकी पार्टी (एनसीपी) से सूबे नई सरकार गठन के बारे में पूछा है। एनसीपी को राजभवन से 24 घंटे का समय मिला है। ऐसे में एनसीपी के पास आज शाम तक अपने पत्ते खोलने का सही समय है। हालांकि एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, 'अभी हम यह दावा नहीं कर रहे कि एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस का साथ चाहिए।' उन्होंने कहा, 'मैं अभी यह नहीं कह सकता कि शिवसेना हमारी तरफ सपॉर्ट का हाथ आगे बढ़ाएगी।' 'शिवसेना के पास अब भी है मौका' हालांकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी (AICC) के महासचिव अविनाश पांडे ने कहा कि हमें लगता है कि अभी तक राजभवन ने शिवसेना के दावे को खारिज नहीं किया है। वहां से बस समर्थन पत्र देने के लिए मांगी गई मोहलत को आगे नहीं बढ़ाया है। हमारे विचार में, शिवसेना का दावा अभी भी मान्य है और जैसे ही शिवसेना समर्थन के कागजात लेकर वहां पहुंचेगी तो राज्यपाल उसे मना नहीं करेंगे। वैसे अब तक महाराष्ट्र में जो घटनाक्रम हुआ है उससे साफ है कि सूबे में नई सरकार शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नए गठबंधन में ही बनने जा रही है। अभी तक भले ही इस नए गठबंधन की कोई रूपरेखा तय नहीं हुई है लेकिन तीनों ही पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि वे जल्दी ही नए गठबंधन पर आम सहमति बना लेंगे। गठबंधन की शर्तों पर फंसा है पेच? कांग्रेस के महासचिव अविनाश पांडे ने शिवसेना को सरकार गठन के लिए समर्थन देने की बात पर सोमवार को कहा था, 'अभी हमें लगता है कि शिवसेना को सरकार बनाने के लिए सपॉर्ट करने का निर्णय लेने से पहले हमें इस पर थोड़े और मंथन की जरूरत है। खासतौर से गठबंधन की नियम व शर्तों को लेकर।' हालांकि पांडे ने यह कहकर नई सरकार की उम्मीद भी बढ़ाई कि हमें पूरी उम्मीद है कि हम शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की नई सरकार बनाएंगे। हमने उनके प्रस्ताव को नामंजूर नहीं किया है। सोमवार शाम में शिवसेना के युवा नेता आदित्य ठाकरे, पार्टी के विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे राजभवन पहुंचे थे, जहां दोनों नेता राज्यपाल कोश्यारी को नई सरकार के लिए अपना समर्थन पत्र देने गए थे। इस मौके पर आदित्य ठाकरे ने साफ किया कि पार्टी के पास सरकार गठन के लिए जरूरी विधायकों का सपॉर्ट है लेकिन उन्हें कुछ और समय चाहिए। हालांकि ठाकरे यहां गवर्नर के पास विधायकों का समर्थन पत्र पेश नहीं कर पाए और कोश्यारी ने उनके द्वारा मांगे गए और समय की मांग को खारिज कर दिया।
नई दिल्ली/मुंबई महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर आखिरी दौर की जद्दोजहद जारी है। जहां एक तरफ मुंबई में एनसीपी और शिवसेना की ताबड़तोड़ बैठकें चल रही हैं। वहीं दिल्ली में कांग्रेस ने भी वर्किंग कमिटी की बैठक के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं की बैठक चल रही है। इस बीच खबर है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठकारे ने सोनिया गांधी से फोन पर बात कर सरकार बनाने के लिए समर्थन मांगा है, जबकि सोनिया ने विधायकों से बात कर फैसला लेने की बात कही है। बता दें कि शिवसेना को सरकार बनानी है तो बहुत जल्द इस संबंध में फैसला लेना होगा। राज्यपाल ने सरकार बनाने का दावा करने के लिए शिवसेना को आज शाम 7:30 तक का समय दिया है। कांग्रेस की बैठक आ सकती है बड़ी खबर कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी सीनियर नेताओं के साथ बैठक कर रही हैं। बैठक में पार्टी के सीनियर नेता एके एंटनी, अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील शिंदे समेत कई अन्य नेता मौजूद हैं। इस बैठक के बाद यह तय हो जाएगा कि कांग्रेस महाराष्ट्र में शिवसेना का समर्थन करेगी या नहीं। उद्धव-सोनिया की बातचीत टीवी रिपोर्ट्स की मानें तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बात की है। यह भी खबर है कि ठाकरे ने सोनिया गांधी से महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए समर्थन मांगा है। वहीं सोनिया गांधी ने विधायकों से बात कर अपना फैसला लेने की बात कही है। पदों को लेकर यह है चर्चा चर्चा है कि यदि तीनों पार्टियों के बीच साथ चलने को लेकर सहमति बनती है तो अगली चर्चा सरकार के स्वरूप को लेकर होगी। खबर है कि सरकार में चार महत्वपूर्ण पद हैं, इसमें सीएम, डेप्युटी सीएम, विधानसभा स्पीकर और गृहमंत्री का पद शामिल है। सूत्रों का कहना है कि शिवसेना पांच साल के लिए सीएम पद संभालेगी, एनसीपी डेप्युटी सीएम पद लेगी, वहीं कांग्रेस विधानसभा स्पीकर का पद ले सकती है। कांग्रेस विधायक शिवसेना के साथ सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी से बातचीत में सभी 44 विधायकों ने शिवसेना को समर्थन देने की वकालत की है। इन विधायकों ने कहा है कि यदि राज्य में स्थायी सरकार बनानी है तो बाहर से समर्थन देने की जगह सरकार में शामिल होना जरूरी है। जल्द लेना होगा फैसला शिवसेना को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राज्यपाल ने आज शाम 7:30 तक का समय दिया है। यदि इस समय तक शिवसेना की तरफ से कोई फैसला नहीं होता है तो इसकी पूरी संभावना है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को यह फैसला जल्द लेना होगा कि वह शिवसेना का समर्थन करना चाहती है या नहीं।
मुंबई महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से बीजेपी और शिवसेना के बीच चल रही खींचतान का अंत अलगाव के तौर पर सामने आता दिख रहा है। शिवसेना के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन वाली प्रदेश सरकार पर सहमति बनती दिख रही है। देरी है तो सिर्फ कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी की ओर से ग्रीन सिग्नल की। कांग्रेस में मंथन का दौर चल रहा है और फिलहाल दिल्ली में हो रही बैठक में इस यक्ष प्रश्‍न का उत्‍तर मिल सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए शिवसेना के वर्तमान से ज्यादा इतिहास चिंता का सबब बना हुआ है। सेक्युलरिज्म के कैंप की अगुआ रही कांग्रेस के लिए उग्र हिंदुत्व की पैरोकार शिवसेना से हाथ मिलाना ऐसा फैसला नहीं है, जिसे वह सहजता से ले सके। वजह यही कि एक तरफ उसे महाराष्ट्र में सरकार का हिस्सा बनने का ऑफर है तो दूसरी तरफ लंबे वक्त के लिए 'कम्युनल' पार्टी से हाथ मिलाने के दाग का खतरा। आइए जानते हैं, क्या हैं वे वजहें जिनके चलते कांग्रेस के खेमे में शिवसेना से दोस्ती को लेकर हिचक है... प्रणब के बाल ठाकरे से मिलने पर खफा थीं सोनिया, इतिहास की चिंता पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2017 में आई अपनी पुस्तक 'द कोएलिशन इयर्स: 1996 to 2012’ में खुलासा किया था कि 2012 में प्रेजिडेंट इलेक्शन के वक्त उन्होंने जब शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मुलाकात की थी तो सोनिया गांधी इससे खफा थीं। भले ही तब शिवसेना के समर्थन से मुखर्जी राष्ट्रपति बने थे, लेकिन सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल उठाने समेत शिवसेना के ऐसे तमाम कदम रहे हैं, जिन पर कांग्रेस को अपने समर्थकों को जवाब देना होगा। छिटक जाएगा अल्पसंख्यक वोट बैंक! शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल संजय निरुपम ने भी शिवसेना के साथ हाथ मिलाने पर पार्टी को आगाह किया है। इसके अलावा कांग्रेस को लंबी राजनीति की चिंता है। वह जानती है कि एक बार शिवसेना के साथ गए तो उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक वोट जो लौटा है, वह दूर चला जाएगा। साथ ही देश की राजनीति में कांग्रेस पर 'कम्युनल' कहलाने वाली शिवसेना से हाथ मिलाने का आरोप लगेगा। इससे केंद्र में सेक्युलर गठजोड़ का उसका सपना अधूरा रह जाएगा। इस तरह से कांग्रेस को यह डर सता रहा है कि शिवसेना का 'इतिहास' उसके गले की फांस बन सकता है। ...कहीं यूपी जैसी हालत न हो जाए यही नहीं महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सोनिया गांधी को बताया है कि अगर बीजेपी को हटाकर शिवसेना-एनसीपी को सरकार बनाने दी गई, तो नुकसान कांग्रेस का ही होगा। दोनों क्षेत्रीय दल एनसीपी और शिवसेना राज्य में जम जाएंगे और कांग्रेस की हालत उत्तर प्रदेश जैसी हो जाएगी। जिस तरह उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी का साथ देने पर कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है और कांग्रेस अब भी वहां अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही है, वैसी ही स्थिति महाराष्ट्र में भी हो जाएगी। 'केरल लॉबी' भी कर रही विरोध राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक कांग्रेस की 'केरल लॉबी' भी शिवसेना का समर्थन करने का विरोध कर रही है। उसे डर है कि शिवसेना का समर्थन करने पर अल्‍पसंख्‍यक वोट बैंक उससे छिटक सकता है। इन सब वजहों से सोनिया गांधी शिवसेना को समर्थन देने पर फैसला नहीं ले पा रही हैं। दोपहर की बैठक के बेनतीजा रहने पर अब कांग्रेस पार्टी शाम 4 बजे दोबारा बैठक करने जा रही है। पीडीपी-बीजेपी गठबंधन का हवाला इस बीच कांग्रेस के साथ गठबंधन के विरोधाभास पर शिवसेना ने पीडीपी-बीजेपी गठबंधन का हवाला दिया है। शिवसेना के प्रवक्‍ता संजय राउत ने सोमवार को कहा कि अगर बीजेपी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बना सकती है तो शिवसेना महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस के साथ क्यों नहीं?' बीजेपी का यह अहंकार कि वह विपक्ष में बैठ लेगी, लेकिन मुख्यमंत्री पद साझा नहीं करेगी। इसी अहंकार के कारण मौजूदा स्थिति उत्पन्न हुई है...अगर बीजेपी अपना वादा पूरा करने को तैयार नहीं है, तो गठबंधन में रहने का कोई मतलब नहीं है।’ शिवसेना की अपील पर सोनिया क्या लेंगी फैसला? राउत ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से राज्य के हित में साथ आने की अपील की। कांग्रेस, एनसीपी को मतभेद भूल कर महाराष्ट्र के हित में एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ आना चाहिए। राउत ने कहा, ‘शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र के हित की रक्षा पर सहमत हैं।’ बता दें कि गठबंधन पर एनसीपी ने अभी तक अपने पत्‍ते नहीं खोले हैं। सोमवार दोपहर एनसीपी की कोर कमिटी की बैठक हुई। बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक ने कहा है कि कांग्रेस के निर्णय के बाद ही एनसीपी सरकार बनाने पर अपना फैसला लेगी। वैकल्पिक सरकार बनाना हमारी जिम्मेदारी है, जो फैसला होगा, वह कांग्रेस के साथ मिलकर होगा।
मुंबई, महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर हलचल तेज हो गई है. एक तरफ बैठकों को दौर चल रहा है तो दूसरी ओर नेताओं की बयानबाजी भी चल रही है. मुंबई कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने राज्य में तेजी से बदलते समीकरणों पर बयान दिया है, उन्होंने कहा है कि अगर कांग्रेस पार्टी शिवसेना के साथ सरकार में शामिल होती है, तो ये विनाशकारी साबित होगा जो कभी नहीं होना चाहिए. कांग्रेस के खिलाफ बगावती रुख अख्तियार करने वाले नेता संजय निरूपम ने रविवार को कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी राज्यपाल के न्योते के बाद भी सरकार बनाने में सफल नहीं रहती है, तो राज्यपाल को दूसरे बड़े गठबंधन एनसीपी-कांग्रेस को न्योता देना होगा. लेकिन उन्हें इसे नकारना पड़ेगा, क्योंकि उनके पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है. संजय निरूपम ने कहा कि ऐसे में कांग्रेस-एनसीपी को शिवसेना का समर्थन लेना पड़ सकता है, जो कि एक विनाशकारी कदम होगा. जो कभी नहीं होना चाहिए. आपको बता दें कि महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के बीच बात ना बनती देख लगातार राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं. शिवसेना की ओर से कांग्रेस और एनसीपी के लिए सॉफ्ट बयान दिए जा रहे हैं, वहीं कांग्रेस विधायकों ने भी आलाकमान से मांग की है कि उन्हें शिवसेना के साथ सरकार में शामिल हो जाना चाहिए. लेकिन इसपर किसी तरह का अंतिम फैसला बाकी है. रविवार को ही शिवसेना नेता संजय राउत ने बयान दिया था कि कांग्रेस राज्य की दुश्मन नहीं है, उनसे शिवसेना का राजनीतिक विरोध है लेकिन कांग्रेस से उनकी दुश्मनी नहीं है.
मुंबई महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर सियासी पारा चरम पर है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के अलावा बीजेपी के बैठकों का दौर जारी है। इस बीच, शिवसेना नेता संजय राउत के एक ट्वीट से संकेत मिल रहे हैं उनकी पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के संग सरकार बनाने की तैयारी कर चुकी है। सरकार गठन के लिए गहमागहमी बढ़ी दरअसल, बीजेपी द्वारा रविवार को राज्य में सरकार बनाने से इनकार करने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवसेना से सरकार बनाने को लेकर पूछा था। राज्यपाल ने आज शाम साढ़े 7 बजे तक का वक्त शिवसेना को जवाब देने के लिए दिया है। इसके बाद से राज्य में सियासी गहमागहमी चरम पर है। एनसीपी और कांग्रेस संभावित सरकार को लेकर अपने बड़े नेताओं संग बैठक कर रही है। बीजेपी भी राज्य में आगे के प्लान को लेकर योजना बनाने में जुटी हुई है। शिवसेना ने दे दिए संकेत इस बीच, राउत के एक ट्वीट से संकेत मिल रहे हैं राज्य में शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। राउत ने ट्वीट कर लिखा है, 'रास्ते की परवाह करूंगा तो मंजिल बुरा मान जाएगी।' तो शिवसेना+एनसीपी+कांग्रेस की सरकार! राजनीतिक विश्लेषक राउत के इस ट्वीट को सरकार गठन से जोड़कर देख रहे हैं। बता दें कि विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 56 सीटें जीती हैं। एनसीपी के पास 54 और कांग्रेस के पास 44 सीटें हैं। अगर ये तीनों दल मिलकर सरकार बनाते हैं तो आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार हो सकता है। 288 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत आंकड़ा 145 का है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को मिलाकर 154 विधायक होते हैं जो बुहमत के आंकड़े से 9 अधिक है।
नई दिल्ली/मुंबई महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर अब सारी नजरें कांग्रेस की तरफ मुड़ गई हैं। राज्य में सरकार के गठन में हिस्सा बनने या नहीं बनने को लेकर कांग्रेस में महामंथन का दौर चल रहा है। शाम 4 बजे कांग्रेस एकबार फिर बैठक करेगी। इस बीच, एनसीपी ने साफ किया है कि वह कांग्रेस की बैठक के बाद ही कोई अंतिम फैसला लेगी। एनसीपी ने साथ ही साफ किया कि वह शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर तैयार है। कांग्रेस करेगी 4 बजे दूसरी बैठक इससे पहले आज कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में वरिष्ठ नेताओं की पहले दौर की बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस बैठक के बाद कांग्रेस ने एक और दौर की मीटिंग करने का फैसला किया है। बैठक में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुलाया गया है और उनके साथ बातचीत करके ही कोई फैसला लिया जाएगा। कांग्रेस ने महाराष्ट्र के सीनियर नेताओं को बुलाया बता दें कि सोनिया गांधी संग बैठक में खड़गे के अलावा ए के एंटनी, केसी वेणुगोपाल और अहमद पटेल भी शामिल थे। खड़गे ने बताया कि शाम 4 बजे दूसरे दौर की बैठक होगी। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के सीनियर नेताओं की राय लेकर ही कांग्रेस पार्टी कोई फैसला करेगी। बता दें कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज्य में 44 सीटों जीती थीं। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के 37 विधायक शिवसेना को समर्थन देने की मंशा पार्टी को जता चुके हैं। उधर, एनसीपी में भी बैठकों का दौर जारी है। एनसीपी नेता नवाब मलिक ने पार्टी की बैठक के बाद कहा कि उनकी पार्टी शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर तैयार है। उन्होंने कहा, 'जबतक कांग्रेस कोई निर्णय नहीं करती है तबतक उनकी पार्टी कोई फैसला नहीं करेगी।' उन्होंने कहा कि शरद पवार ने कहा था कि जो भी निर्णय लेंगे हम कांग्रेस से बात करके लेंगे। हमने विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ा था। मलिक ने कहा कि यह सच है कि विधायकों का मत सरकार बनाने को लेकर है। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि हमारा और कांग्रेस का एक निर्णय हो। शिवसेना के साथ बातचीत का दौरा शुरू है। शिवसेना के मंत्री ने केंद्र की सरकार से इस्तीफा दे दिया है और यह तय हो गया है कि शिवसेना एनडीए से बाहर निकलने वाली है।'
नई दिल्ली झारखंड चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी गई है। पहली लिस्ट में पार्टी ने 52 उम्मीदवारों का ऐलान किया है। लिस्ट में सबसे बड़ा नाम सीएम रघुवर दास का है। सीएम जमशेदपुर ईस्ट से चुनाव लड़ेंगे। वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्षमण गिलुवा को चक्रधरपुर से टिकट दिया गया है। बता दें कि राज्य की कुल 81 सीटों पर पांच चरण में मतदान होना है, जबकि वोटिंग के नतीजे 23 दिसंबर को आएंगे। इस दौरान पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि 5 साल पहले झारखंड को भ्रष्टाचार और अस्थायित्व के लिए जाना जाता था। लेकिन रघुवर दास के नेतृत्व में राज्य को स्थायित्व और विकास के लिए जाना जाता है। उनके नेतृत्व में राज्य में भ्रष्टचार बेहद नीचे चला गया और राज्य विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'झारखंड में बहुत ही सकारात्मक सहयोग का वातावरण देखने को मिलता है।समाज के सभी वर्गों का समर्थन रघुवर दास को मिल रहा है। पिछले पांच सालों में भाजपा की सरकार के कारण चेंज देखने को मिला है, इसीलिए लोगों का समर्थन उभर के आया है नड्डा ने कहा, 'पीएम मोदी के नेतृत्व में बहुत से विषय जो लंबे समय से रुके हुए थे चाहे वे अनुच्छेद 370 हो, जीएसटी हो, ट्रिपल तलाक हो, उनको निर्णायक मोड़ पर ले जाने का काम हुआ है' पांच चरणों में होगा चुनाव जेपी नड्डा ने कहा कि झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व में और पीएम मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व में सभी सरकारी योजनाओं के माध्यम से झारखंड की तस्वीर और तकदीर बदली है। इस कारण झारखंड में बीजेपी बहुत अच्छे से सरकार बनाएंगी ऐसा हमारा विश्वास है।
मुंबई महाराष्ट्र में किसकी सरकार? यह एक ऐसा सवाल है जो 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सबके जेहन में तैर रहा है। गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की ओर से सरकार बनाने का निमंत्रण पर बीजेपी अब तक फैसला नहीं कर पाई है, लेकिन गठबंधन के सहयोगी शिवसेना ने अपना दावा ठोक दिया है। उद्धव ठाकरे के खास और पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा कि अगर कोई सरकार बनाने को तैयार नहीं है तो शिवसेना जिम्मा ले सकती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शिवसेना ने इस मद्देनजर पार्टी की मीटिंग भी बुलाई है। इसमें आदित्य ठाकरे भी हिस्सा लेंगे। इस बीच मिलिंद देवड़ा ने भी राज्यपाल से कांग्रेस-एनसीपी को सरकार बनाने के लिए न्योदा देने की अपील की है। उन्होंने रविवार को अपने एक ट्वीट में लिखा, 'बीजेपी-शिवसेना ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया है, ऐसे में महाराष्ट्र के राज्यपाल को प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े गठबंधन एनसीपी-कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।' राउत बोले, कांग्रेस दुश्मन नहीं इससे पहले शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में रविवार को एक बार फिर एनसीपी चीफ शरद पवार की तारीफ की है, जो एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना दोस्ती का संकेत दे रही है। सामना में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि (सरकार बनाने में) प्रदेश के बड़े नेता शरद पवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के भी कई विधायक सोनिया गांधी से मिले और उनसे महाराष्ट्र का फैसला महाराष्ट्र को सौंपने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस महाराष्ट्र की दुश्मन नहीं है। सभी दलों में कुछ मुद्दों पर मतभेद होते हैं। डराने वाली पार्टी खौफजदा' राउत ने कहा कि महाराष्ट्र का एकमुखी स्वर है कि दोबारा बीजेपी का सीएम न हो। इसके अलावा रविवार को अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राउत ने कहा कि कांग्रेस महाराष्ट्र की दुश्मन नहीं है। सभी दलों में कुछ मुद्दों पर मतभेद होते हैं। एनसीपी नेताओं पर सीबीआई की कार्रवाई को लेकर बीजेपी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पांच साल तक औरों को डराकर शासन चलाने वाली पार्टी आज खुद खौफजदा है। उसे डराकर भी समर्थन नहीं मिला। उन्होंने कहा कि ऐसा जब होता है तब एक बात माननी चाहिए कि हिटलर मर गया है और गुलामी की छाया हट गई है। बीजेपी को बताया हिटलर सेना ने कहा, 'महाराष्ट्र का एकमुखी स्वर है कि बदले की, टांग खींचने की और गुलामी की राजनीति को खत्म करना है।' सामना के संपादकीय में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि सीएम देवेंद्र फडणवीस को नरेंद्र मोदी ने आशीर्वाद दिया कि वे दोबारा प्रदेश के सीएम बनेंगे लेकिन 15 दिनों के बाद भी वह शपथ नहीं ले सके। राउत ने कहा कि शिवसेना सीएम से बात करने को तैयार नहीं है और यह (बीजेपी की) सबसे बड़ी हार है। उन्होंने कहा कि चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी को नतीजे घोषित होने के 24 घंटे के भीतर सरकार बनाने का दावा पेश करना चाहिए था लेकिन 15 दिनों बाद भी उसने ऐसा नहीं किया। सदन का गणित महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव बीजेपी-शिवसेना महायुति और कांग्रेस-एनसीपी महागठबंधन ने मिलकर लड़ा था। मतदान 21 अक्टूबर को और मतों की गणना 24 अक्टूबर को हुई थी। चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 105 सीटें, शिवसेना ने 56 सीट, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत हासिल की। चुनाव नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद और सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर बीजेपी और शिवसेना के बीच विवाद हो गया। इसके चलते किसी ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया, क्योंकि बहुत के 145 विधायक किसी के पास नहीं थे।
मुंबई महाराष्ट्र का दंगल लगातार दिलचस्प होता जा रहा है। एक ओर जहां बीजेपी और शिवसेना एक-दूसरे पर अलग-अलग तरह के आरोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गवर्नर भगत सिंह कोश्‍यारी ने शनिवार शाम को बीजेपी से पूछा है कि क्या वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने की इच्छा और क्षमता रखती है? देवेंद्र फडणवीस ने शुक्रवार को ही मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा दे दिया था। राजभवन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, गवर्नर ने फडणवीस से पूछा है कि क्या उनकी पार्टी (बीजेपी) राज्य में सरकार बनाने की इच्छा और क्षमता रखती है? चूंकि अभी तक किसी भी पार्टी ने राज्य में सरकार बनाने का दावा नहीं किया है, ऐसे में गवर्नर ने राज्य में नई सरकार की संभावनाएं खोजने का फैसला लिया है। फडणवीस से जुड़े सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि गवर्नर की तरफ से उन्हें पत्र मिल गया है। इससे पहले शिवसेना ने दावा किया था कि लोकसभा चुनावों से पहले दोनों गठबंधन सहयोगियों ने अगले कार्यकाल में ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की साझेदारी का फैसला किया था। इस्तीफा देने के बाद शिवसेना के दावों को खारिज करते हुए फडणवीस ने जोर देकर कहा था कि 'मेरी मौजूदगी में' दोनों दलों द्वारा मुख्यमंत्री पद की साझेदारी को लेकर कोई समझौता नहीं किया गया था। फडणवीस ने दावा किया था कि उन्होंने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से गतिरोध तोड़ने के लिए फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन, 'उद्धव जी ने मेरा फोन नहीं उठाया।' शिवसेना को सता रहा खरीद-फरोख्त का डर वहीं, शिवसेना को अपने विधायकों के खरीद फरोख्‍त का भी डर है। खरीद फरोख्त के डर से शिवसेना ने अपने विधायकों को बांद्रा के रंगशारदा होटल से माध आइलैंड के किसी रिजॉर्ट में 15 नवंबर तक शिफ्ट कर दिया है। इसी तरह कांग्रेस ने भी अपने विधायकों को जयपुर के एक रिजॉर्ट में बीजेपी की खरीद-फरोख्त से डरते हुए शिफ्ट कर दिया है। सरकार गठन पर बना है गतिरोध गौरतलब है कि महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के एक पखवाड़े बाद भी सरकार गठन पर कोई सहमति नहीं बनी है। बीजेपी और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर रस्साकशी के कारण उनके पास संयुक्त रूप से 161 विधायकों के साथ बहुमत से अधिक का आंकड़ा होने के बावजूद सरकार गठन पर गतिरोध बना हुआ है। महाराष्ट्र में 288 सदस्यीय सदन में बहुमत का आंकड़ा 145 है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 105 सीट, शिवसेना ने 56, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीट जीती हैं।
08 नवंबर 2019, अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कल यानी शनिवार को बड़ी बैठक बुलाई है. जानकारी के मुताबिक शनिवार सुबह 10:30 बजे बीजेपी के सभी बड़े नेताओं की बैठक होगी. इस बैठक में अमित शाह समेत सभी बड़े नेता शामिल होंगे. बता दें कि शनिवार की सुबह 10:30 बजे सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले पर फैसला सुनाएगा.
नई दिल्ली 8 नवंबर 2016 को देश में हुई नोटबंदी के बाद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने लगातार केंद्र और नरेंद्र मोदी सरकार पर यह हमला जारी रखा कि देश में कैश का संकट गहराया हुआ है। कई राजनीतिक दल नोटबंदी के बाद हुई सख्ती को लेकर हमेशा यह कहते दिखे कि अब राजनीतिक फंड जुटाना मुश्किल हो रहा है। इस सबके बीच कांग्रेस ने कांग्रेस ने इस साल के हुए लोकसभा चुनावों में 820 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। कांग्रेस का यह चुनावी खर्च पिछली बार हुए आम चुनावों की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक है। 2014 में कांग्रेस ने 516 करोड़ रुपये आम चुनावों में अपने चुनाव प्रचार के लिए खर्च किए थे। लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव भी हुए थे। कांग्रेस की ओर से इन चुनावों का खर्च भी इसमें ही शामिल है। 2014 के आम चुनावों में तब बीजेपी ने कांग्रेस से कहीं ज्यादा 714 करोड़ रुपये अपने चुनावी अभियान पर बहाए थे। हालांकि अभी 2019 चुनावों में बीजेपी द्वारा खर्च की गई रकम का ब्योरा देना अभी बाकी है। चुनाव के दौरान खर्च हुए रुपयों का विवरण देते हुए कांग्रेस ने 31 अक्टूबर को चुनाव आयोग को जो ब्योरा दिया है, उसके मुताबिक पार्टी ने अपने कोर प्रचार के लिए 626.3 करोड़ रुपये और करीब 193.9 करोड़ रुपये की राशि अपने उम्मीदवारों पर खर्च की। कांग्रेस पार्टी ने चुनावों की घोषणा से लेकर चुनाव खत्म होने तक कुल 856 करोड़ रुपये खर्च किए। बता दें कि चुनावों के दौरान मई में कांग्रेस की सोशल मीडिया हेड दिव्या स्पंदना ने बयान दिया था, 'हमारे पास पैसा ही नहीं है।' उल्लेखनीय है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने चुनावों के मद्देनजर अपने कोर प्रचार पर जो 636.36 करोड़ रुपये की राशि खर्च की थी, उसमें 573 करोड़ रुपये का भुगतान पार्टी ने चेक द्वारा किया, जबकि 14.33 करोड़ रुपये का भुगतान कैश में किया गया। केंद्रीय पार्टी मुख्यालय ने मीडिया पब्लिसिटी और विज्ञापनों पर कुल 356 करोड़ रुपये व्यय किए। इसके अलावा करीब 47 करोड़ रुपये पोस्टर्स और चुनाव संबंधी अन्य सामग्रियों पर खर्च किए गए। 86.6 करोड़ रुपये अपने स्टार प्रचारकों के यात्रा खर्च पर भी खर्च किए गए। इसके अलावा कांग्रेस ने 40 करोड़ छत्तीसगढ़ और ओडिशा में और उत्तर प्रदेश में 36 करोड़, महाराष्ट्र में 18 करोड़, पश्चिम बंगाल में करीब 15 करोड़ और 13 करोड़ केरल में भी खर्चे, जहां से उसके तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के अलावा अन्य राष्ट्रीय पार्टियों ने भी चुनाव आयोग में अपने-अपने चुनाव खर्च के ब्योरे का विवरण सौंपा है। इनमें तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने 83.6 करोड़, बीएसपी ने 55.4 करोड़, एनसीपी ने 72.3 करोड़ और सीपीएम ने 73.1 करोड़ रुपये खर्च किए।nbt
मुंबई महाराष्ट्र में सरकार बनाने की डेडलाइन खत्म होने के कुछ घंटों पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। एक तरफ शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने मीटिंग के बाद विधायकों को होटल में शिफ्ट कर दिया है तो बीजेपी के नेता भी गवर्नर से मिले हैं। सूबे में सरकार गठन को लेकर अगले कुछ घंटे अहम हो सकते हैं। इस बीच ठाकरे परिवार के निवास स्थान 'मातोश्री' में शिवसेना विधायकों की उद्धव ठाकरे के साथ अहम बैठक हुई। मीटिंग के बाद शिवसेना विधायकों को रंग शारदा होटल शिफ्ट गया है। पार्टी का कहना है कि उसके विधायकों की खरीद-फरोख्त की जा सकती है। पार्टी यह आशंका अपने मुखपत्र सामना में भी जता चुकी है। लिखें गवर्नर से मिलने के बाद बीजेपी के प्रदेश चंद्रकांत पाटील ने एक बार फिर से गठबंधन सरकार बनने की बात दोहराई। उन्होंने कहा, 'इस चुनाव में महाराष्ट्र की जनता ने बीते 5 साल तक सरकार चलाने वाले बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया है। उस जनादेश के आधार पर अब तक सरकार बननी चाहिए थी, यह सभी नागरिकों की इच्छा है। उसमें समय जा रहा है, ऐसे में इस पर कानूनी दृष्टि से चर्चा करने के लिए हम राज्यपाल महोदय से मिले। हमने उन्हें राज्य की स्थिति से अवगत कराया।' शिवसेना को विधायकों के टूटने का डर? इस बीच विधायकों को लेकर शिवसेना कितनी सचेत है, इसका संकेत उद्धव ठाकरे के साथ मीटिंग में मिला। शिवसेना विधायकों को फोन स्विच ऑफ करने के निर्देश दिए गए और उनके मोबाइल मीटिंग हॉल से बाहर जमा करा दिए गए। हमारे सहयोगी टाइम्स नाउ के मुताबिक, शिवसेना की मीटिंग में सभी विधायकों ने 50-50 फॉर्म्युले पर बरकरार रहने की बात कही। सभी विधायकों ने पार्टी की सीएम पद को लेकर की जा रही मांग का भी पुरजोर समर्थन किया है। विधायक बोले, अगले दो दिन होटल में डेरा मातोश्री में पार्टी चीफ उद्धव ठाकरे से मुलाकात के बाद शिवसेना विधायक गुलाबराव पाटिल ने कहा, 'हम (शिवसेना विधायक) अगले दो दिन होटल रंग शारदा में रहेंगे। हम वहीं करेंगे जो उद्धव ठाकरे कहेंगे। शिवसेना की बैठक में सरकार गठन पर कोई भी फैसला लेने के लिए पार्टी मुखिया उद्धव ठाकरे को अधिकृत किया गया है। ढाई-ढाई साल सीएम पद पर अड़ी शिवसेना शिवसेना की मांग है कि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री का पद बीजेपी और शिवसेना को दिया जाए। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी सीएम पद को लेकर झुकने नहीं वाली है। वहीं, बीजेपी किसी भी कीमत पर सीएम पद शिवसेना को देने को तैयार नहीं है। बीजेपी के कई नेताओं ने गुरुवार को भी कहा कि सीएम बीजेपी का ही बनेगा। 'देवेंद्र फडणवीस भी हैं शिवसैनिक' बीजेपी के नेता सुधीर मुनगंटीवार ने एकबार फिर से कहा है कि बीजेपी शिवसेना को साथ रखेगी। उन्होंने कहा, 'हम एक स्थिर और मजबूत सरकार चलाना चाहते हैं। हम शिवसेना के साथ सरकार बनाना चाहते हैं। उद्धव जी ने खुद ही पहले भी कहा है कि देवेंद्र फडणवीस जी खुद एक शिवसैनिक हैं।' मुनगंटीवार से जब पूछा गया कि क्या बीजेपी अल्पमत की सरकार बनाने जा रही है तो उन्होंने कहा कि अभी ऐसा कोई प्लान नहीं है। गडकरी के CM बनने की चर्चाओं पर बोले मुनगंटीवार एक सुगबुगाहट यह भी है कि नितिन गडकरी भी सीएम बन सकते हैं। इसपर सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि नितिन गडकरी राज्य की राजनीति में नहीं आएंगे। बीजेपी के नेता गुरुवार को ही राज्यपाल से मिलने वाले हैं। इस बारे में मुनगंटीवार ने कहा कि बीजेपी आज सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करेगी। गडकरी बोले- मैं दिल्ली में हूं, महाराष्ट्र आने का सवाल ही नहीं सीएम बनने के सवाल पर खुद नितिन गडकरी ने कहा, 'मैं अब दिल्ली में हूं और मेरे महाराष्ट्र में आने का सवाल ही नहीं है।' नितिन गडकरी ने यह भी कहा कि सीएम बीजेपी का ही बनेगा और इसके लिए शिवसेना से बातचीत चल रही है। गडकरी ने उम्मीद जताई है कि दोनों पार्टियां मिलकर जल्द ही फैसला लेंगी और जल्द ही सरकार बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी के पास 105 विधायक हैं। बीजेपी की तरफ से स्पष्ट है कि देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री बनेंगे। राउत फिर बोले, शिवसेना का होगा CM गुरुवार सुबह मीडिया से बात करते हुए शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, 'मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा। जिसके पास बहुमत है, वह सरकार बनाएगा। विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा। हमारे विधायकों के बारे में अफवाह फैलाई जा रही है।' उधर शिवसेना विधायकों को रिजॉर्ट में शिफ्ट करने की बात पर संजय राउत ने कहा, 'हमें ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, हमारे विधायक अपने संकल्प और पार्टी के लिए प्रतिबद्ध हैं। जो लोग इस तरह की अफवाहें फैला रहे हैं उन्हें पहले अपने विधायकों की चिंता करनी चाहिए।' 14 दिन से सरकार गठन पर बना है गतिरोध आपको बता दें कि महाराष्ट्र में 2014 में गठित हुई विधानसभा का शनिवार को आखिरी दिन है लेकिन अब तक नई सरकार के गठन को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी है। शिवसेना भले ही बीजेपी को धमकी दे रही है कि वह दूसरे विकल्पों पर विचार कर सकती है लेकिन उसने अब तक किसी भी दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाया है। इसके अलावा बीजेपी भी अब तक सरकार गठन को लेकर पूरी तरह सक्रिय नहीं दिखी है। एक तरह से सूबे की सभी 4 प्रमुख पार्टियां बीजेपी, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी सरकार गठन पर ठहरी हुई दिखती हैं।
नई दिल्ली, 06 नवंबर 2019,चुनावी सीजन में दल-बदल भारतीय राजनीति की पुरानी परंपरा है. लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, सुविधानुसार नेताओं का पाला बदलना आम बात नजर आती है. हाल में महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी इसकी झलक देखने को मिली. खासकर, महाराष्ट्र में विपक्षी कांग्रेस और एनसीपी के नेता बड़़ी संख्या में बीजेपी और शिवसेना के पाले में आए. हालांकि, जब नतीजे सामने आए तो बीजेपी को ऐसे नेताओं को लाना भारी पड़ता भी दिखाई दिया. महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 288 में 200 से ज्यादा सीटों पर जीत की उम्मीद थी. लेकिन जब नतीजे आए तो दोनों दल 161 सीटों तक सिमट गए. यहां तक कि पंकजा मुंडे समेत कई मंत्री भी चुनाव हार गए. शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले ने सितंबर में एनसीपी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था. बीजेपी के टिकट भोसले ने चुनाव भी लड़ा और 1 लाख से ज्यादा मतों से हार का मुंह देखना पड़ा. उपचुनाव में भी दिखा असर सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं, उपचुनाव में भी बीजेपी के ऐसे नेताओं का हार का सामना करना पड़ा, जो चुनाव से ठीक पहले उसके पाले में आए. गुजरात विधानसभा उपचुनाव में राधनपुर सीट से अल्पेश ठाकोर ने चुनाव लड़ा और उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी. ठाकोर ने कांग्रेस छोड़कर जुलाई में बीजेपी ज्वाइन की थी. सिर्फ दूसरे दलों से आए नेता ही बीजेपी पर भारी नहीं पड़े, बल्कि नए चेहरों को मौका देना भी उसके पक्ष में नहीं गया है. नए चेहरों पर दांव हुए फेल हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कई नए और स्टार चेहरों को मौका दिया, लेकिन वो कमाल नहीं कर पाए. पहलवान बबीता फोगाट और योगेश्वर दत्त को बीजेपी ने मैदान में उतारा, लेकिन दोनों बाजी हार गए. महाराष्ट्र और हरियाणा में प्रत्याशित नतीजे न मिलने का एक फैक्टर बाहरी नेताओं को एंट्री देना भी माना जा रहा है. बीजेपी कार्यकर्ताओं में यह भावना है कि पार्टी और संगठन के वफादारों को किनारे कर बाहरी लोगों को चुनाव में उतारने की कीमत चुकानी पड़ती है. महाराष्ट्र में भी कई जगह ऐसा देखने को मिला है, जहां बीजेपी के पुराने नेताओं की जगह दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिए गए और बीजेपी के उन नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर जीत दर्ज की. ऐसे बागी उम्मीदवार भी बीजेपी के ग्राफ में गिरावट की बड़ी वजह बने. झारखंड में भी पंरपरा जारी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में भी यह परंपरा देखने को मिल रही है. हाल ही में 23 अक्टूबर को भानु प्रताप शाही बीजेपी में शामिल हुए हैं. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और निर्दलीय विधायक भानु प्रताप 130 करोड़ के घोटाले में आरोपी हैं. सीबीआई की चार्जशीट में भी उनका नाम है. घोटाले के अलावा भी भानु प्रताप के खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं दूसरे दलों के नेता और विधायक भी बीजेपी में आ रहे हैं और इस ट्रेंड से संघ भी चिंतित बताया जाता है. आरएसएस में इस बात की चर्चा है कि यह परंपरा खत्म होनी चाहिए, क्योंकि दीर्घावधि में इसके नकारात्मक असर देखने को मिल सकते हैं.aajtak
मुंबई/ नई दिल्ली, 01 नवंबर 2019,महाराष्ट्र में शिवसेना को समर्थन देने के मुद्दे पर कांग्रेस बंट गई है. शुक्रवार को महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. राज्य इकाई के नेताओं का मानना है कि सरकार बनाने के लिए पार्टी को शिवसेना का समर्थन करना चाहिए, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व जल्दबाजी में फैसला लेना नहीं चाहती. समर्थन पर वे एनसीपी के फैसले का भी इंतजार कर रहे हैं. वहीं सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस विपक्ष में बैठने को तैयार है. इससे साफ है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ के दम पर सरकार नहीं बनाएगी और विपक्ष में ही बैठना उचित समझ रही है. बता दें कि इससे पहले ऐसी खबरें आ रही थीं कि महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं की सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं हो पाई.बताया गया कि नेता बिना मिले ही मुंबई लौट गए. लेकिन अब 10 जनपथ पर नेताओं की सोनिया से मुलाकात जारी है.बैठक में महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण, बालासाहेब थोरट, मणिरॉव ठाकरे और पृथ्वीराज चौहान मौजूद हैं. शिवसेना के अरमानों पर पानी फेरा! कांग्रेस अगर विपक्ष में बैठती है तो इससे वह शिवसेना के अरमानों पर भी पानी फेर देगी. बता दें कि शुक्रवार को ही शिवसेना ने कहा कि महाराष्ट्र का सीएम शिवसेना का ही होगा. मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बीजेपी से जारी खींचतान के बीच शिवसेना बड़े ही अरमानों के साथ एनसीपी और कांग्रेस की ओर देख रही थी. शिवसेना को आस है कि वह एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से वह सरकार बना लेगी. लेकिन अब जब कांग्रेस विपक्ष में बैठने को तैयार है तो इससे साफ है कि शिवसेना की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है. राउत बोले- मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा शिवसेना बीजेपी को 50-50 फॉर्मूले की याद दिलाई रही है और बीजेपी इसपर राजी नहीं है. वहीं शिवसेना भी पीछे नहीं हट रही है और लगातार बयानबाजी कर रही है. शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि लिखकर ले लीजिए, मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा. इसके अलावा उन्होंने ट्वीट के जरिए भी बिना नाम लिए बीजेपी पर निशाना साधा. संजय राउत का ये बयान तब आया है जब गुरुवार को उन्होंने NCP प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की थी. ये है सीटों का गणित 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत के लिए 145 सीट चाहिए. शिवसेना के 56 और एनसीपी के 54 विधायक हैं. यानी कुल 110 विधायक ही होते हैं जो बहुमत के मैजिक नंबर से 35 कम है. ऐसे में उन्हें कांग्रेस के 44 विधायकों के समर्थन की जरुरत होती. लेकिन अब जब कांग्रेस विपक्ष में बैठने को तैयार है तो शिवसेना के लिए बिना बीजेपी के सरकार बनाना बेहद मुश्किल होगा. सरकार बनाने को लेकर बीजेपी आश्वस्त वहीं विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त है. बीजेपी ने शपथ ग्रहण समारोह के लिए मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम को बुक भी कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने स्टेडियम को 5 नवंबर के लिए बुक किया है. भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) से इजाजत के बाद स्टेडियम शपथ ग्रहण के लिए बीजेपी को मिल सकेगा.
चंडीगढ़ हरियाणा में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने मनोहर लाल खट्टर ने दिवाली के मौके पर राजधानी चंडीगढ़ में शपथ ली। उनके अलावा जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला ने डेप्युटी सीएम की शपथ ली है। बीजेपी और जेजेपी की इस मिलीजुली सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा भी पहुंचे और लोकतंत्र की खूबसूरत तस्वीर पेश की। हालांकि, जाते-जाते वह जेजेपी से नाराजगी भी जता गए। उन्होंने बीजेपी को जेजेपी के समर्थन को जनादेश का अपमान बताया। हुड्डा का कहना था, 'यह गठबंधन 'वोट किसी का, सपॉर्ट किसी को' के आधार पर बना है। यह सरकार स्‍वार्थ पर आधारित है। जेजेपी ने जनादेश का अपमान किया है। हमारी पार्टी में हुए बदलावों के बाद हमारे पास कम समय बचा था। अगर ये बदलाव पहले हो गए होते तो नतीजे इनसे अलग होते।' गौरतलब है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में हरियाणा में बीजेपी को 40 सीटें मिली थीं, वहीं कांग्रेस महज 31 सीटें ही पा सकी। लेकिन बड़ा उलटफेर किया दुष्‍यंत चौटाला की जेजेपी ने जिसे 10 सीटें मिली थीं। बहुमत के लिए जरूरी 46 सीटों का आंकड़ा पाने में जेजेपी की अहम भूमिका को देखते हुए हुड्डा ने भी उनकी ओर हाथ बढ़ाया था लेकिन दुष्‍यंत ने बीजेपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया। बादल ने की तारीफ पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने बीजेपी और जेजेपी द्वारा हरियाणा के जनता के जनादेश का सम्मान करते हुए हाथ मिलाने के कदम की सराहना की। बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को शुभकामनाएं देते हुए अकाली दल के संरक्षक और पांच बार के पूर्व मुख्यमंत्री बादल ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि दोनों पार्टियां गरीबों के कल्याण व सामाजिक सौहार्द के लिए काम करेंगी। खट्टर ने शपथ लेने से पहले मीडिया से कहा, 'मेरी सरकार पारदर्शी होगी।' 'खट्टर बोले-पारदर्शी होगी सरकार' 65 वर्षीय खट्टर दूसरे कार्यकाल में भी 1 नवंबर 1966 को बने राज्य की सरकार के मुखिया होंगे। बीजेपी विधायक दल की शनिवार को हुई बैठक में खट्टर को नेता चुना गया। वह हरियाणा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। खट्टर ने शपथ लेने से पहले मीडिया से कहा, 'मेरी सरकार पारदर्शी होगी।'
रांची, 26 अक्टूबर 2019,हरियाणा के चुनाव नतीजों ने झारखंड में भाजपा को 'अलर्ट मोड' में ला दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल झारखंड विकास मोर्च (झाविमो) के 6 विधायकों को तोड़कर किसी तरह सरकार बनाने में सफल रही भाजपा इस बार किसी भी हाल में बहुमत के आंकड़े को छूना चाहती है. भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य के विधानसभा चुनाव प्रभारी ओम माथुर को इस मोर्चे पर बीते अगस्त से ही लगा रखा है. झारखंड में इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भले ही 14 में से 12 सीटें राजग को मिलीं, मगर पार्टी विधानसभा चुनाव को लेकर किसी तरह के मुगालते में नहीं है. पार्टी का मानना है कि हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर स्वीप करने के बाद भी जब विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिल पाया तो फिर झारखंड को लेकर भी 'अति आत्मविश्वास' का शिकार होना ठीक नहीं. भाजपा में चुनाव प्रबंधन से जुड़े एक नेता ने आईएएनएस से कहा, 'भाजपा इस मामले में खुशनसीब है कि उसे कोई न कोई चुनाव नतीजा आगे के लिए, समय रहते रेड अलर्ट कर देता है, जिससे आगे की रणनीतिक चूकों को दूर करने में मदद मिलती है. हरियाणा के चुनाव नतीजे देखकर पार्टी 'फुलप्रूफ प्लान' पर काम कर रही है. इसे धरातल पर उतारने के लिए संगठन के ऐसे मंझे हुए नेताओं की टीम उतारी जाएगी, जिन्हें झारखंड के मिजाज की बारीक समझ होगी. दरअसल, झारखंड को लेकर भाजपा की चिंता इसलिए है, क्योंकि पिछली बार 81 में से सिर्फ 37 सीटें मिलीं थीं. तब बहुमत के लिए भाजपा को मुख्य विपक्षी दल झाविमो के 6 विधायकों को तोड़ना पड़ा था. इसके बाद बहुमत के लिए जरूरी 41 के मुकाबले भाजपा के पास 43 विधायक हुए थे. राज्यपाल ने दो तिहाई से अधिक विधायकों के भाजपा में आने के कारण उनके विलय को मंजूरी दी थी. पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर 2014 की तरह फिर भाजपा की गाड़ी बहुमत से दूर खड़ी हो गई तो पिछली बार की तरह जोड़तोड़ की राजनीति के लिए मजबूर होना पड़ेगा, ऐसे में पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंककर बहुमत लाने की कोशिश में है. सूत्र बताते हैं कि झारखंड में पहली बार बनाए गए गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुबर दास से कहा गया है कि वह किसी भी कीमत पर असंतुष्ट नेताओं को मनाकर एकजुट रखें. चुनाव में भीतरघात हर संभव तरह से रोकें. पार्टी हरियाणा की तरह झारखंड में टिकट वितरण में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती. हरियाणा में टिकट कटने से नाराज हुए कई नेताओं ने जिस तरह से बागी के रूप में चुनाव लड़कर जीत दर्ज की, उससे भाजपा झारखंड में जनाधार वाले नेताओं को नाराज करने का जोखिम बिल्कुल मोल लेना नहीं चाहती.
नई दिल्ली कांग्रेस पार्टी अगले कुछ महीनों में सांगठिनक बदलावों को अंजाम देने की तैयारी में जुटी है। पार्टी के अंदरखाने इस बात को लेकर घोर उहापोह की स्थिति है कि क्या इस बार के फेरबदल का प्रमुख पहलू पीढ़ीगत बदलाव होने जा रहा है? अगर ऐसा होता है तो सोनिया गांधी की नजर के नीचे सेंट्रल पार्टी यूनिट के पदाधिकारी पहली बार बदले जाएंगे। सोनिया ने अपने बेटे राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष पद सौंपने के दो साल बाद हाल ही में 'अंतरिम अध्यक्ष' पद का जिम्मा संभाला है। राहुल ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की बुरी हार की जिम्मेदारी लेकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी के अंदर गहरी पकड़ रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि फेरबदल की चर्चा हो रही है और जल्द ही निर्णय लिया जा सकता है। एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने कहा, 'फेरबदल बड़ा हो सकता है, लेकिन बहुत बड़ा होने की संभावना नहीं है। फिलहाल कोई निर्णय नहीं हुआ है।' अटकलों का दौर कांग्रेस नेताओं के कानों तक जैसे-जैसे फेरबदल की बात पहुंच रही है, वैसे-वैसे इसके पैमाने को लेकर अटकलें तेज हो रही हैं। चूंकि संगठन में बदलाव लगातार दो लोकसभा चुनावों में जबर्दस्त हार और राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद होने वाले हैं, इसलिए कई नेताओं को लग रहा है कि इस बार बड़े पैमाने पर उठा-पटक होगी। नई पीढ़ी vs पुराने दिग्गज कांग्रेस में 'नई पीढ़ी बनाम पुराने दिग्गज' की बहस राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद से ही चल रही है। अब यह चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है कि क्या ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (एआईसीसी) और राज्यों के संगठनों में नए खून को महत्व दिया जाएगा? राहुल गांधी ने तमाम मिन्नतों के बाद भी अध्यक्ष पद पर बने रहने से इनकार कर दिया तो सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष का पद स्वीकार करना पड़ा। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस को फुलटाइम प्रेजिडेंट कब मिलेगा? घटेगा अध्यक्ष पद का कार्यकाल? इस बात की भी जबर्दस्त चर्चा है कि एआईसीसी संगठन का कार्यकाल छोटा करने के उस फैसले पर भी विचार कर सकती है जो कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) ने 2018 में लिया था। ऐसा हुआ तो पार्टी प्रमुख का कार्यकाल पांच साल से घटकर तीन साल का रह जाएगा। हालांकि, सीडब्ल्यूसी का वह फैसला कागजों तक ही सीमित है और इसे कभी लागू नहीं किया जा सका। अध्यक्ष पद पर राहुल की वापसी की अटकलें वैसे तो माना जा रहा है कि सोनिया गांधी अगले वर्ष दिल्ली एवं कुछ राज्यों की विधानसभा चुनावों तक पार्टी के शीर्ष पद पर बनी रहेंगी, लेकिन उसके बाद नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाएगा। संकेत यह भी हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर वापसी कर सकते हैं। गांधी परिवार तो इस पर कुछ भी बोलने से बच रहा है, लेकिन पार्टी के प्रभावी नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर इसकी मांग करनी शुरू कर दी है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा, 'हमारे कार्यकर्ताओं का जबर्दस्त दबाव है कि राहुल वापसी करें। इस मुद्दे पर सब एकमत हैं।'
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर 2019,बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने सोमवार को नागपुर में कहा कि वह बाबा साहेब की तरह बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगी. नागपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने इसका ऐलान किया. उन्होंने कहा कि सही समय पर इसका फैसला करेंगी. मायावती ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने अपने देहांत से कुछ वक्त पहले अपना धर्म परिवर्तन कराया था. आप लोग मेरे धर्म परिवर्तन के बारे में भी सोचते होंगे. मैं भी बौद्ध धर्म की अनुयायी बनने के लिए दीक्षा अवश्य लूंगी लेकिन यह तब होगा जब इसका सही समय आ जाए. 'संघ प्रमुख की बात से सहमत नहीं' मायावती ने रैली में यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की बात से सहमत नहीं हैं कि भारत एक हिंदू राष्ट्र था. मायावती ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने सेकुलरिज्म के आधार पर संविधान की रचना की थी. मायावती नागपुर में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीएसपी उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार कर रही हैं. यहां 21 अक्टूबर को मतदान है और वोटों की गिनती 24 अक्टूबर को होगी. बीजेपी, कांग्रेस पर निशाना मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गलत नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आई है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी नौकरियों में दलित और आदिवासियों को प्रमोशन से वंचित करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने एक दूसरे से साठगांठ की है. मायावती ने कहा कि मौजूदा सरकार ने दलित और आदिवासियों के लिए बने कानून को निष्प्रभावी करने का काम किया है.
प्रतापगढ़ प्रियंका गांधी के सक्रिय होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को एक के बाद एक झटकों का सिलसिला जारी है। प्रतापगढ़ में पूर्व सांसद और गांधी परिवार की करीबी मानी जाने वाली रत्ना सिंह ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। खास बात यह है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इसे कांग्रेस के लिए बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि प्रतापगढ़ विधानसभा सीट पर 21 अक्टूबर को उपचुनाव है। प्रतापगढ़ की पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता राजकुमारी रत्ना सिंह ने अपने समर्थकों के साथ मंगलवार को सीएम योगी की उपस्थिति में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की। प्रतापगढ़ के गड़वारा में सीएम योगी एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे। चुनावी जनसभा के मंच से ही रत्ना सिंह के बीजेपी में शामिल होने की घोषणा की गई। इस मौके पर उनके पुत्र भुवन्यु सिंह भी मौजूद रहे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रतापगढ़ विधानसभा उपचुनाव में सहयोगी अपना दल के प्रत्याशी राजकुमार के समर्थन में यहां चुनावी सभा की। इससे पहले रत्ना सिंह के बीजेपी में शामिल होने का कार्यक्रम लखनऊ में था, लेकिन इस बीच विधानसभा उपचुनाव की सरगर्मी बढ़ने से इस कार्यक्रम में बदलाव किया गया। कांग्रेस के गढ़ में बड़ी सेंधमारी रत्ना सिंह के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने को पार्टी के गढ़ में बड़ी सेंध माना जा रहा है। अमेठी-सुलतानपुर, प्रतापगढ़ और रायबरेली बेल्ट कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही है। लोकसभा चुनाव से लेकर पिछले कुछ महीनों के दौरान अमेठी से संजय सिंह और रायबरेली से दिनेश सिंह के बाद अब प्रतापगढ़ से रत्ना सिंह बीजेपी के पाले में आ गई हैं। ये तीनों ही नेता गांधी परिवार के खासमखास थे। वहीं, रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह की भी बीजेपी से करीबी की चर्चा है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर विधानसभा में हुई चर्चा में शामिल होने वाली अदिति इकलौती कांग्रेस विधायक थीं। इसके ठीक बाद उनकी सुरक्षा वाई कैटिगरी की कर दी गई थी। गांधी परिवार से रत्ना सिंह का करीबी रिश्ता राजकुमारी रत्ना सिंह पूर्व विदेश मंत्री और काला कांकर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले स्वर्गीय राजा दिनेश सिंह की पुत्री हैं। दिनेश सिंह प्रतापगढ़ से चार बार और उनकी पुत्री रत्ना सिंह तीन बार 1996, 1999 और 2009 में सांसद रह चुकी हैं। रत्ना सिंह का परिवार शुरू से ही कांग्रेसी रहा है। इनके परिवार में रामपाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे। पिता राजा दिनेश सिंह कांग्रेस की सरकार में विदेश मंत्री रहे। वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बहुत करीबी थे। इसके चलते नेहरू-गांधी परिवार उनको बहुत महत्व देता था।
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर 2019,लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव प्रचार में उतर गए हैं. रविवार को राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान का आगाज किया. राहुल ने महाराष्ट्र के कई इलाकों में ताबड़तोड़ जनसभाएं कीं. इस दौरान राहुल ने मोदी सरकार और बीजेपी को घेरने के लिए अपने भाषणों में राफेल से लेकर नीरव मोदी और गब्बर सिंह टैक्स का जिक्र किया. यानी जिन मुद्दों को राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के खिलाफ हथियार बनाया, उन्हीं का ज्रिक मौजूदा विधानसभा में भी राहुल ने किया. राहुल गांधी ने प्रचार के पहले ही दिन महाराष्ट्र के लातूर, चांदवली और धारावी में जनसभाएं कीं. राहुल ने अपनी पहली रैली में ही नोटबंदी और बैंक घोटालों का जिक्र किया. राहुल ने कहा, 'मोदी बोलते थे कि नोटबंदी से भला नहीं हुआ तो मुझे फांसी दे देना. मगर नोटबंदी से किसका फायदा हुआ, नीरव मोदी तो भाग गया.' राहुल ने कहा, 'नवंबर 2016 में नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. ऑटोमोबाइल से टेक्सटाइल तक और हीरा से लेकर छोटे व्यवसायों तक का बुरा हाल है. सिर्फ महाराष्ट्र में 2,000 से ज्यादा फैक्टरियां बंद हो गई हैं, वहीं नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे 'चोर' लूटकर देश से फरार हो गए. कहां गए अच्छे दिन? राहुल गांधी ने कहा, 'आप देश में कहीं भी जाइए, लोग सिर्फ बेरोजगारी, कृषिभूमि संकट और अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं..,अच्छे दिन का वादा किया गया था, वह कहां गया? नहीं आया न! नोटबंदी के बाद कोई नहीं जानता कितना काला धन बरामद हुआ, मगर गरीब और बहुत से ईमानदार लोग परेशान हुए. किसानों को कुछ नहीं, उद्योगपतियों को राहत राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि किसान लगातार परेशान हैं और उधर सरकार ने बीते कुछ सालों में लगभग 15 बड़े उद्योगपतियों के 5.50 लाख करोड़ के कर्ज माफ कर दिए. राहुल ने कहा कि सरकार ने पिछले महीने टैक्स में छूट देकर बड़े उद्योगपतियों को 1.45 करोड़ रुपये का दिवाली गिफ्ट दिया, लेकिन किसानों को कोई छूट नहीं दी गई. राफेल और चौकीदार चोर है की गूंज राहुल गांधी की सभा में राफेल विमान और चौकीदार चोर है की गूंज भी सुनाई दी. कांदीवली की रैली में जब राहुल गांधी ने राफेल विमान डील में चोरी का आरोप लगाया तो चौकीदार चोर है का नारा भी सुनाई दिया. ये तमाम मुद्दे वो हैं जो राहुल गांधी की तरफ से पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी जोर-शोर से उठाए गए थे. राहुल गांधी को यकीन था कि इन मुद्दों पर जनता बीजेपी को सबक सिखाएगी और कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी. लेकिन 23 मई को जब लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे आए पूरी तस्वीर ही बदल गई और जनता ने बीजेपी को और अधिक सीटें जिताकर मोदी सरकार की जबरदस्त वापसी पर मुहर लगा दी. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस 2014 के नतीजों तक ही सीमित रह गई. यानी लगातार दो लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने कांग्रेस को सिरे से नकार दिया और राहुल गांधी द्वारा उठाए तमाम मुद्दे फेल हो गए. अब राहुल गांधी ने फिर उन्हीं मुद्दों को उठाया है. जबकि बीजेपी कश्मीर से धारा 370 हटाने और तीन तलाक पर कानून बनाने जैसे बड़े मुद्दों के सहारे चुनाव में उतर रही है. राहुल गांधी कह रहे हैं कि नोटबंदी, रोजगार और घोटालों जैसे ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और चर्चा करने के बजाय, सरकार लोगों को यह दिखाने में व्यस्त है कि भारतीय चंद्रयान रॉकेट को कैसे चंद्रमा पर भेजा गया. साथ ही राहुल का कहना है कि जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद 370, पाकिस्तान, चीन, जापान, कोरिया वगैरह पर बात की जा रही है, लेकिन याद रखिए कि ये रॉकेट लाखों भूखों के पेट भरने में मदद नहीं करेगा.
भोपाल मध्य प्रदेश की अपनी ही सरकार पर कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के हमले के बाद बीजेपी ने उन्हें पार्टी छोड़ने की सलाह दी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सूबे की कमलनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि अभी किसानों की कर्जमाफी का वादा पूरा नहीं हो सका है। हमने 2 लाख रुपये तक के कर्ज वाले किसानों को लोन माफी का वादा किया था, लेकिन 50,000 रुपये तक के कर्ज ही माफ किए जा सके हैं। सिंधिया ने कहा था कि हमने अपने वादे पर पूरी तरह से अमल नहीं किया है और वादा पूरा करना चाहिए। इस मामले में अब बीजेपी ने भी दखल देते हुए कहा है कि सिंधिया ने अपने बयान से कमलनाथ को आईना दिखाने का काम किया है। सिंधिया की टिप्पणी को लेकर राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा, 'यदि कांग्रेस की सरकार की ओर से वादाखिलाफी से सिंधिया परेशान हैं तो फिर उन्हें पार्टी छोड़ देनी चाहिए। सिंधिया ने सही कहा कि कांग्रेस ने वादा किया था वह सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर ही कर्ज माफ कर देगी।' इस बीच कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और सीएम कमलनाथ के बीच ट्विटर पर आवारा पशुओं को लेकर जारी किए गए बयान पर बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने हमला बोलते हुए कांग्रेस को ही आवारा पार्टी बता दिया। उन्होंने कहा, 'असल में कांग्रेस आवारा पार्टी है।'
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर कांग्रेस पार्टी पर हमलावर हो गए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी है, उसका सफाया हो गया है और अब उसे कैल्शियम का इंजेक्शन देकर भी नहीं बचाया जा सकता। ओवसी 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘देश के राजनीतिक नक्शे से कांग्रेस का सफाया हो चुका है। अब उसे ‘कैल्शियम का इंजेक्शन’ देकर भी जिंदा नहीं किया जा सकता।’ यहां ओवैसी ने दावा किया कि कांग्रेस के कई टॉप लीडरों ने महाराष्ट्र और हरियाणा के महत्वपूर्ण चुनावों को नजरअंदाज किया है। बता दें कि ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने इस साल हुए लोकसभा चुनाव में प्रकाश आंबेडकर की पार्टी भारिपा बहुजन महासंघ और वंचित बहुजन अगाड़ी (VBA) के साथ गठबंधन किया था और एक सीट ही मिली। वहीं 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने दो सीटें जीतीं।
लखनऊ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी हाल में यूपी कांग्रेस के कुछ नेताओं के पार्टी लाइन से अलग राह पकड़ने से नाखुश हैं। यही वजह है कि अब वह पार्टी को फिर से एकजुट करने के लिए लखनऊ में ही डेरा जमाने की तैयारी में हैं। बताया जा रहा है कि इसके लिए प्रियंका गांधी लखनऊ में आवास तलाश रही हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चुनावी रणनीति बनाने और संगठन मजबूत करने के साथ ही लखनऊ में रहकर प्रियंका राज्य में ज्यादा समय भी बिताना चाहती हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी के लिए आवास की तलाश लखनऊ में जोरों पर है। एक विकल्प पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल का लखनऊ में गोखले मार्ग स्थित घर है। 2 अक्टूबर को प्रियंका जब लखनऊ गई थीं तो एयरपोर्ट से सीधे गोखले मार्ग ही गई थीं ताकि घर देख सकें। नए नेताओं पर अब फोकस करेगी कांग्रेस आमतौर पर प्रियंका या गांधी परिवार के दूसरे सदस्य रायबरेली में ठहरते हैं, लेकिन पार्टी नेताओं का कहना है कि लखनऊ में घर होने से प्रियंका और पार्टी, दोनों को सहूलियत होगी। उधर, प्रियंका ने अब निर्देश दिया है कि पार्टी दूसरे दलों के नेताओं को अपने साथ जोड़ने के बजाय नए लोगों को राजनीति में लाने पर फोकस करेगी। इसके पीछे यह सोच बताई गई है कि निहित स्वार्थों के कारण पार्टी में आने वालों का स्वागत करने के बजाय विचारधारा के स्तर पर विस्तार किया जाए। पार्टी लाइन से अलग तो होगी कार्रवाई उधर, पार्टी लाइन से अलग राह पकड़ने वाले नेताओं के खिलाफ प्रियंका ने कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है। कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि प्रियंका के कहने पर अदिति को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। यूपी सरकार की ओर से 2 अक्टूबर को बुलाए गए विधानसभा के विशेष अधिवेशन में रायबरेली से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह के जाने के बाद प्रियंका ने यह निर्देश दिया। कांग्रेस ने अपने विधायकों को इस अधिवेशन से दूर रखा था। अदिति ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निष्क्रिय किए जाने का भी समर्थन किया था। अदिति सिंह पर नहीं किया जा रहा विचार सूत्रों ने बताया कि उन्हें अदिति की बीजेपी से नजदीकी बढ़ने की जानकारी थी और इसी वजह से प्रदेश कांग्रेस कमिटी की नई टीम बनाते समय उनके नाम पर विचार नहीं किया गया था। नई पीसीसी का ऐलान अभी नहीं किया गया है। रमाकांत यादव ने भी छोड़ दी है पार्टी इस बीच, पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश कद्दावर नेता रमाकांत यादव ने पार्टी छोड़ दी है। आजमगढ़ में सक्रिय रहे और भदोही से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रमाकांत यादव ने रविवार को समाजवादी पार्टी में वापसी कर ली। एसपी में उनके जाने की चाहत भांपकर कांग्रेस ने उन्हें पिछले हफ्ते पार्टी से बाहर कर दिया था।
05 अक्टूबर 2019, हरियाणा के बाद गुजरात में भी कांग्रेस को झटका लगा है. गुजरात कांग्रेस के नेता बदरुद्दीन शेख ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है. बता दें शनिवार को हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए 21 अक्टूबर को वोटिंग होनी है. 24 अक्टूबर को नतीजे जारी कर दिए जाएंगे. चुनाव करीब आते ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं. अशोक तंवर टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी आलाकमान से नाराज चल रहे थे. उन्होंने पांच करोड़ रुपये में टिकट बेचे जाने का भी आरोप लगाया था. शनिवार को तंवर ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. अशोक तंवर ने अपने ट्विटर अकाउंट से इस्तीफा देने की जानकारी दी. वहीं महाराष्ट्र में भी पार्टी के दिग्गज नेता संजय निरुपम कांग्रेस को बगी तेवर दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी को अपना वनवास खत्म करना चाहिए और एक बार फिर से पार्टी का अध्यक्ष पद संभालना चाहिए. संजय निरुपम ने मिलिंद देवड़ा पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि मिलिंद देवड़ा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और इसलिए वह पार्टी की नीतियों के खिलाफ जा रहे हैं.
लखनऊ हरियाणा और मुंबई के बाद यूपी कांग्रेस में भी हलचल तेज हो गई है। गांधी जयंती के मौके पर यूपी विधानसभा के विशेष सत्र में कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद भी विधायक अदिति सिंह ने इसमें शामिल होकर सबको हैरान कर दिया था। इसके एक दिन बाद उन्हें Y+ सुरक्षा मिलते ही उनके पार्टी छोड़ने की चर्चा भी तेज हो गई है। वहीं यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और यूपी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता अनु टंडन के भी पैदल मार्च में भी शामिल न होने से सवाल उठ रहे हैं। बता दें कि जिस दिन यूपी का विशेष विधानसभा सत्र आयोजित किया गया, उसी दिन लखनऊ में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी योगी सरकार के खिलाफ पैदल मार्च कर रही थीं। अदिति सिंह पैदल मार्च से नदारद रहीं और विधानसभा सत्र में शामिल होकर विकास के मुद्दे पर बात कही। यही नहीं उन्होंने योगी सरकार की कुछ योजनाओं की भी तारीफ की। अदिति को मिली वाई श्रेणी की सुरक्षा सत्र के बाद अदिति सिंह ने सीएम योगी आदित्यनाथ से उनके कमरे में भी मुलाकात की, इससे उनके बीजेपी में जाने की चर्चा और तेज हो गई। गुरुवार को अदिति को वाई प्लस सुरक्षा भी मिल गई। यह पहली बार नहीं था जब अदिति ने पार्टी लाइन से अलग जाकर कदम उठाया हो। इससे पहले भी उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म किए जाने पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन किया था। पैदल यात्रा में राज बब्बर भी शामिल नहीं हुए अदिति के अलावा कांग्रेस की पैदल यात्रा से यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की अनुपस्थिति ने भी लोगों का ध्यान खींचा। सत्ता के गलियारे में भी तरह-तरह की कयासबाजी शुरू होने लगी। हालांकि यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने स्पष्ट किया है कि राज बब्बर के 2 अक्टूबर के दिन विदेश में होने की वजह से वह इस यात्रा में शामिल नहीं हो सके। वहीं अनु टंडन भी अपने क्षेत्र के कार्यक्रम में व्यस्त थीं। इस वजह से वह इस पदयात्रा में शामिल नहीं हो सकीं। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष पद की लड़ाई तेज इसके पीछे दूसरी वजह यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष पद बताया जा रहा है। चर्चा है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बड़े बदलाव की दिशा में तैयारी कर रही है और इसके बाबत ही नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश भी शुरू हो गई है। इसके लिए कांग्रेस विधायक अजय कुमार लल्लू और पूर्व सांसद जितिन प्रसाद के नाम सामने आ रहे हैं। खास बात यह है कि यही दोनों नेता कांग्रेस की पैदल यात्रा के दौरान संघर्ष करते नजर आए थे। दोनों ही नेता अध्यक्ष पद के दावेदार माने जा रहे हैं। अजय कुमार लल्लू और जितिन प्रसाद के नाम की चर्चा सोनभद्र नरसंहार के बाद प्रियंका गांधी के दौरे के पीछे कुशीनगर से विधायक अजय कुमार लल्लू की बड़ी भूमिका मानी जाती है। पिछले दिनों अजय कुमार लल्लू का नाम अध्यक्ष पद के लिए बिल्कुल तय माना जा रहा था लेकिन ऐन मौके पर पार्टी के हाई कमान ने फैसले पर रोक लगा दी थी। इस दौरान जितिन प्रसाद का नाम भी सामने आने लगा। उनके नाम का प्रदेश अध्यक्ष पद की दावेदारी में पहले भी चल चुका है। वह पार्टी का ब्राह्मण चेहरा भी माने जाते हैं। निरुपम बोले- ऐसे बर्बाद हो जाएंगी कांग्रेस उधर हरियाणा के बाद मुंबई कांग्रेस में बगावत के सुर तेज हो गए हैं। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके संजय निरुपम ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा है कि पार्टी के अंदर सिस्टमैटिक फॉल्ट हो गया है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो कांग्रेस तबाह हो जाएगी। बता दें कि मुंबई में टिकट बंटवारे को लेकर संजय निरुपम नाराज चल रहे हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार न करने का भी फैसला किया है।
मुंबई/चंडीगढ़ दो राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बगावत से जूझ रही है। पहले हरियाणा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने टिकटों में खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया और अब महाराष्ट्र में संजय निरुपम ने बागी तेवर दिखाते हुए प्रचार न करने का ऐलान किया है। महाराष्ट्र में गुरुवार को जारी कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट के बाद निरुपम ने ट्वीट कर कहा कि शायद पार्टी को अब उनकी सेवाओं की जरूरत नहीं रह गई है। वहीं हरियाणा में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने आरोप लगाया है कि हरियाणा कांग्रेस अब हुड्डा कांग्रेस हो गई है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को अच्छे उम्मीदवार तलाशने में परेशानी हो रही है। गुरुवार को कांग्रेस की जारी उम्मीदवारों की लिस्ट से इसका संकेत मिलता है। इसमें पार्टी की ओर से ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया गया, जो दो दिन पहले तक बीजेपी में जाने को तैयार थे। हालांकि इससे पार्टी काडर को धक्का लगा है। उनका कहना है कि पार्टी को उनकी वफादारी का सम्मान करते हुए मिसाल पेश करनी चाहिए थी। मुंबई कांग्रेस के प्रमुख संजय निरूपम ने भी ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की ओर से नेता विपक्ष रहे राधाकृष्ण विखे पाटिल समेत कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दो उम्मीदवारों को टिकट मिलने से काडर हैरान कांग्रेस ने गुरुवार को जो 20 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की उसमें अकालकोट से सिद्दाराम म्हात्रे और मलाड वेस्ट से असलम शेख के नामों को लेकर हैरानी जताई जा रही है। ये दोनों बीजेपी में शामिल होने के लिए उससे बातचीत कर रहे थे। उन्हें 30 सितंबर को मुंबई में बीजेपी में शामिल होना था, लेकिन बीजेपी के अंदर इन विधायकों को लेकर नाराजगी के चलते ऐसा नहीं हो सका। बीजेपी से मायूसी हाथ लगने के तुरंत बाद इन विधायकों को अपनी पार्टी से टिकट मिलने में समय नहीं लगा, जबकि कांग्रेस में सबको पता था कि दोनों बीजेपी में जाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस के फैसले से पार्टी काडर को लगा धक्का कांग्रेस के इस फैसले को लेकर पार्टी के नेताओं को धक्का लगा है। कुछ नेताओं ने कहा कि पार्टी को एक मिसाल तय करनी चाहिए और वफादारी का सम्मान होना चाहिए। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, 'कांग्रेस और बीजेपी में यही अंतर है। क्या बीजेपी किसी ऐसे नेता को टिकट देती, जो दो दिन पहले तक प्रतिद्वंद्वी दल में जाने की कोशिश कर रहे थे। पार्टी को वफादारी का सम्मान करना चाहिए।' 'जब आगे बढ़ने का मौका तो पार्टी के लिए काम क्यों करें' उनका कहना था कि कांग्रेस की मुंबई यूनिट के सामने एक मुश्किल चुनौती है। लोकसभा चुनाव के डेटा से पता चलता है कि कांग्रेस के तीन मौजूदा विधायकों की सीटें ही सुरक्षित हैं, जबकि शहर में 26 विधानसभा सीटें हैं। सुरक्षित सीटों में मुम्बादेबी से अमीन पटेल, धारावी से वर्षा गायकवाड़ और चांदीविली से नसीम खान हैं। कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा कि पार्टी वर्षों से समान उम्मीदवारों को दोहरा रही है। उनका कहना था, 'जब युवाओं को पार्टी में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलेगा तो वे पार्टी के लिए कार्य क्यों करेंगे।' संजय निरुपम ने प्रचार से किया इनकार मुंबई कांग्रेस के प्रमुख संजय निरुपम ने भी बागी रुख अपना लिया है। उन्होंने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, 'ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी को अब मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं है। मैंने विधानसभा चुनाव के लिए मुंबई में केवल एक नाम की सिफारिश की थी। मैंने सुना है कि उस नाम को भी अस्वीकार कर दिया गया है। मैंने नेतृत्व को पहले बता दिया था कि ऐसी स्थिति होने पर मैं चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लूंगा। यह मेरा अंतिम फैसला है।' अपने करीबी के लिए टिकट चाहते थे निरुपम सूत्रों ने कहा कि निरुपम मुंबई में वर्सोवा सीट से रईस लश्कारिया के लिए टिकट चाहते थे। हालांकि, पार्टी ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया। निरुपम के करीबी लोगों ने बताया कि उनकी अभी पार्टी छोड़ने की योजना नहीं है, लेकिन वह कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं करेंगे। तंवर बोले- हरियाणा कांग्रेस हो गई है हुड्डा कांग्रेस बता दें कि इससे पहले बुधवार को हरियाणा में टिकट बंटवारे को लेकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने समर्थकों के साथ दिल्ली में प्रदर्शन किया था। तंवर का आरोप है कि कांग्रेस ने पुराने लोगों को नजरअंदाज करके नए शामिल होने वाले लोगों को टिकट दिया जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने 5 करोड़ रुपये टिकट बेचने का भी आरोप लगाया है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर ने विधानसभा चुनाव में टिकट बांटने में अपने गुट की अनदेखी से नाराज होकर पार्टी की सभी कमिटियों से इस्तीफा दे दिया है। तंवर का आरोप- युवा पीढ़ी की अनदेखी तंवर ने कहा कि टिकट वितरण में युवा पीढ़ी की पूरी तरह से अनदेखी की गई है। कई-कई बार हारे हुए लोगों को टिकट दिया गया है। जीतने का दम रखने वाले प्रत्याशियों को गुटबाजी की भेंट चढ़ा दिया गया। उन्होंने कहा कि टिकट बंटवारे के बाद लगता है कि हरियाणा कांग्रेस अब हुड्डा कांग्रेस हो गई है। इसलिए उन्होंने कांग्रेस हाईकमान को पत्र लिखकर उनको सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करने को कहा है। वह कांग्रेस में केवल साधारण कार्यकर्ता बनकर काम करेंगे।
मुंबई,देश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई. बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे. सूत्रों के हवाले से खबर है कि महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी और शिवसेना गठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा तय हो चुका है. शिवसेना को 124 सीटें मिल सकती हैं. इस बीच खबर यह भी है कि आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव लड़ेंगे. आदित्य ठाकरे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र हैं और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पौत्र हैं. वर्तमान में वह शिवसेना की युवा शाखा, युवा सेना के प्रमुख हैं. इधर, भाजपा के शीर्ष नेता लगातार जोर दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज्य की कमान संभालेंगे लेकिन भाजपा की सहयोगी शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को इस पद के लिए दावेदार के रूप में पेश करना चाहते हैं. बताया जा रहा है कि शिवसेना कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो सकती है बशर्ते आदित्य ठाकरे को उप मुख्यमंत्री पद दिया जाए. यह सर्वविदित है कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना में गठबंधन सिर्फ इसलिए देरी से हुआ था, क्योंकि शिवसेना महाराष्ट्र चुनाव में अस्थाई सीट बंटवारे के लिए भाजपा से आश्वासन चाहती थी. बता दें कि 21 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और शिवसेना ने सीटों के बंटवारे को लेकर समझौते का औपचारिक ऐलान नहीं किया है लेकिन सूत्रों के अनुसार शिवसेना को भाजपा ने 124 सीटों पर मना लिया है ऐसे में यह साफ हो गया है कि शिवसेना अगर 124 सीटों पर विधानसभा में उतरती है तो भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की 288 विधानसभा सीटों में से 146 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. वहीं, शेष सीटों पर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) जैसे गठबंधन के छोटे दल चुनाव लड़ सकते हैं. बता दें कि 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के पास 122 सीटें हैं, वहीं शिवसेना के पास 63 सीटें हैं. महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुनाव 21 अक्टूबर को होंगे और नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
मुंबई, 30 सितंबर 2019,महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. पार्टी चीफ राज ठाकरे ने सोमवार को बताया है कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है. सोमवार को मुंबई में पार्टी नेताओं के साथ मीटिंग के बाद राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और चुनाव लड़ने की घोषणा की. राज ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए कहा कि हम लड़ेंगे और जीतेंगे. हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि मनसे कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सूत्रों के मुताबिक, मनसे करीब 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. ये भी बताया जा रहा है कि मनसे जल्द ही प्रत्याशियों की सूची जारी कर सकती है. नामांकन की आखिरी तारीख 4 अक्टूबर है, लिहाजा मनसे की सूची जल्द ही सामने आ सकती है. रविवार को आई थी कांग्रेस की पहली लिस्ट मनसे ने यह ऐलान कांग्रेस की पहली सूची के बाद किया है, जो कि सियासी चर्चाओं के लिहाज से काफी अहम है. दरअसल, दो महीने पहले ही राज ठाकरे ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद गठबंधन की संभावनाओं पर भी हर तरफ चर्चा की गई. लेकिन दो हफ्ते पहले जब कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने 125-125 सीटों पर लड़ने का ऐलान किया तो मनसे से जुड़ी चर्चाओं का रुख बदल गया. दोनों सहयोगी दलों में से फिलहाल कांग्रेस ने ही 51 प्रत्याशियों की एक सूची जारी की है. एनसीपी ने अभी तक अपना कोई भी उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. ऐसे में माना जा सकता है कि अब नामांकन की आखिरी तारीख (4 अक्टूबर) से ऐन पहले राज ठाकरे ने विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही गठबंधन की चर्चाओं पर लगभग विराम लगा दिया है. हालांकि, राज ठाकरे किस फॉर्मूले के साथ चुनाव में उतरेंगे, यह जानकारी अभी नहीं है. बता दें कि राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 2014 में करीब सवा दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ा था. पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और वह महज एक सीट (जुनार) जीत पाई थी.
देहरादून, 29 सितंबर 2019,उत्तराखंड में बीजेपी ने 40 सदस्यों को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते पार्टी से बाहर कर दिया है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक यह खबर सामने आई है. पार्टी ने कार्यकर्ता से लेकर मंत्री पद तक के सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. पार्टी ने नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी और उत्तरकाशी इकाई के कई सदस्यों को निकाल दिया है. उत्तराखंड बीजेपी द्वारा निकाले गए सदस्यों में खीम सिंह (मंडल महामंत्री, रामगढ़), लाखन नेगी (पूर्व ब्लॉक प्रमुख), जगत मर्तोलिया (जिला मीडिया प्रभारी), हरीश सिंह (पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ पदाधिकारी), राजेंद्र सिंह (युवा मोर्चा मंडल अध्यक्ष), कल्पना बोरा (प्रदेश मंत्री, महिला मोर्चा), मोहन सिंह रावत (जिला मंत्री) जैसे नेताओं के नाम मौजूद हैं. इसके अलावा पार्टी ने कई कार्यकर्ताओं को भी निकाला है. निकाले गए कार्यकर्ताओं के नाम भवान सिंह, रवि नयाल, हरेंद्र सिंह दरम्वाल, भुवन चंद्र पांडे, सुशीला देवी, प्रमिला उनियाल, अनोर सिंह, सिद्धार्थ राणा, उर्मिला पुंडीर, सरिता रौतेला, नरेंद्र रावत, नरेंद्र सिंह और ताजवीर खाती हैं.
लखनऊ देश के विभिन्न राज्यों में 21 अक्टूबर को विधानसभा के लिए उपचुनाव होना है। कई राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है। ऐसे में सभी पार्टियां जोर- शोर से उपचुनाव में बड़ी जीत के लिए जुटी हैं। बीजेपी ने भी अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। पार्टी ने अलग-अलग राज्यों में 32 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। लखनऊ देश के विभिन्न राज्यों में 21 अक्टूबर को विधानसभा के लिए उपचुनाव होना है। कई राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है। ऐसे में सभी पार्टियां जोर- शोर से उपचुनाव में बड़ी जीत के लिए जुटी हैं। बीजेपी ने भी अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। पार्टी ने अलग-अलग राज्यों में 32 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। बीजेपी की तरफ से जारी इस सूची में असम से 4 उम्मीदवार, बिहार से 1, छत्तीसगढ़ से 1, हिमाचल प्रदेश से 2, केरल से 5, मध्य प्रदेश, मेघायल और ओडिशा से 1-1 उम्मीदवार शामिल हैं। इसके अलावा पंजाब और राजस्थान से भी एक-एक उम्मीदवार हैं। सर्वाधिक 10 उम्मीदवार यूपी से हैं। इसके अलावा दो सिक्किम और एक तेलंगाना से प्रत्याशी का नाम सामने आया है।
DMK ने सीपीआई समेत 3 पार्टियों को 40 करोड़ का चंदा दिया नई दिल्ली, 26 सितंबर 2019, लोकसभा चुनाव में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) की ओर से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सिस्ट (सीपीएम) और गोनगू नाडु डेमोक्रेटिक पार्टी (केएनडीपी) को चंदे के रूप में करोड़ों रुपये देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. डीएमके की ओर से चुनाव आयोग को दिए ब्यौरे के मुताबिक, पार्टी ने सीपीआई को 15 करोड़, सीपीएम को 10 करोड़ रुपये चुनाव लड़ने के लिए दिए थे. इसके अलावा डीएमके ने गोनगू नाडु डेमोक्रेटिक पार्टी को 15 करोड़ रुपये चंदे के रूप में दिए थे. चुनाव आयोग को 14 अगस्त को दाखिल किए गए अपने हलफनामे में डीएके ने खुलासा किया है कि उनकी पार्टी ने 3 पार्टियों को कुल 40 करोड़ का चंदा दिया है. इन दोनों पार्टी के नेताओं ने आर्थिक मदद मिलने की बात दबी जुबान में मान ली है. हालांकि, चुनाव आयोग की निगाह में बड़ी पार्टियों का अपनी गठबंधन में सहयोगी छोटी पार्टियों को चुनावी मदद के लिए चंदा देना कोई अजूबा नहीं है. वामपंथी पार्टियों के लिए ये उनके कथित साम्यवादी उसूलों के खिलाफ जरूर है, जिसमें ये पूंजीवाद की मुखालफत करते हुए चुनाव खर्च घटाने की वकालत करते रहे हैं. संसद में ये पार्टियां अपनी सीटों का दो अंकों का आंकड़ा भले ना हासिल कर पाई, लेकिन करोड़ों का चंदा लेने में तो आगे आगे रहीं.aajtak
नई दिल्ली कश्मीर से आर्टिकल-370 और 35-ए हटाए जाने के बाद पूरे देश में पैदा हुए एक नए भावनात्मक माहौल का फायदा बीजेपी आने वाले विधानसभा चुनावों में भी उठाने की तैयारी में है। बीजेपी इस मुद्दे को लेकर जन जागरण अभियान शुरू करने जा रही है, जिसकी शुरुआत 25 सितंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से होगी। विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता को इस अभियान का संयोजक बनाया गया है। 15 दिनों तक दिल्ली में चलाया जाएगा अभियान गुप्ता ने शनिवार को प्रदेश कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि ऐतिहासिक भूल का ऐतिहासिक सुधार, इस मूलमंत्र पर आधारित यह जन जागरण अभियान पूरी दिल्ली में अगले 15 दिनों तक चलाया जाएगा, जिसकी शुरुआत और पहली सभा का आयोजन आगामी 25 सितंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में होगा। लोगों को कश्मीर के हालात के बारे में बताया जाएगा इस सभा को बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा सम्बोधित करेंगे। एक राष्ट्र, एक संविधान के आदर्श पर आधारित इस कार्यक्रम में एक प्रदर्शनी और 10 मिनट की विडियो के जरिए लोगों को कश्मीर के ताजा हालात के बारे में बताया जाएगा। 25 सितंबर के कार्यक्रम के बाद दिल्ली के सभी जिलों में इस मुद्दे पर जन जागरण सभाओं का आयोजन किया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के नेता दिल्ली की जनता से सीधा संवाद करेंगे। गुप्ता ने कहा कि जनजागरण अभियान के माध्यम से कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को खत्म किए जाने के पीछे मोदी सरकार की भावना से दिल्ली की जनता को अवगत कराया जाएगा। बीजेपी की ओर से कश्मीर पर पूरे देश में जागरुकता अभियान इसी प्रकार का एक जनसंपर्क अभियान पूरे देश में चल रहा है, जिसकी शुरुआत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन के साथ मिलकर की हे। जन जागरण अभियान के तहत जिला स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर दिल्ली को लोगों को बताया जाएगा कि केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से कश्मीर के लोगों और पूरे देश को कितना लाभ होने वाला है।
नई दिल्ली, 21 जुलाई 2019, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के राज्यसभा सदस्य डी राजा को पार्टी का महासचिव बनाया गया है. उन्होंने निवर्तमान महासचिव एस सुधाकर रेड्डी का स्थान लिया है. उनके महासचिव बनने की पुष्टि खुद एस सुधाकर रेड्डी ने की है. एस सुधाकर रेड्डी ने बताया कि राज्यसभा सदस्य डी राजा को CPI का महासचिव चुना गया है. शनिवार को ही डी राजा के महासचिव बनने की पुष्टि हो गई थी. राष्ट्रीय परिषद ने बैठक में पहले ही डी राजा को महासचिव बनाए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. जिसके बाद ऐलान की औपचारिकता भर रह गई थी. बता दें कि हाल ही में हुए 2019 लोकसभा चुनाव में CPI को करारी हार का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद पार्टी के महासचिव रेड्डी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफे की वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि स्वास्थ्य कारणों ने इस्तीफे दे रहा हूं. CPI के एक नेता ने बताया कि 18 से 20 जुलाई तक आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लोकसभा चुनाव परिणाम की राज्यवार समीक्षा की गई. इसी दौरान नए महासचिव के चुनाव के मुख्य एजेंडे पर भी बात हुई. उन्होंने पार्टी की कार्यकारिणी द्वारा रेड्डी का इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने की पुष्टि करते हुए बताया कि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उन्हें पार्टी के दायित्वों से सेवानिवृत्ति दी गई है.
नई दिल्ली, 20 जून 2019, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया. राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में मोदी सरकार 2.0 के एजेंडे को देश के सामने रखा. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण को प्रेरित करने वाला नहीं बताया. हालांकि इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मोबाइल फोन पर लगे रहने और बात करने के मुद्दे ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी. इस पर अब आनंद शर्मा ने सफाई दी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान फोन का इस्तेमाल और बात करते हुए देखा गया था. इस पर आनंद शर्मा ने कहा कि ये सभी गलत आरोप हैं, उन्होंने पूरा भाषण बड़े ही ध्यान से सुना. आनंद शर्मा ने कहा कि अभिभाषण में कुछ हिंदी के शब्द ऐसे थे, जिन्हें राहुल गांधी समझ नहीं पा रहे थे. इसलिए वह लगातार उन शब्दों के बारे में पूछ रहे थे. अभिभाषण के वक्त मैं उनके साथ ही था. यहां वीडियो में देखें आनंद शर्मा की प्रेस कॉन्फ्रेंस गौरतलब है कि गुरुवार को राहुल गांधी को अभिभाषण के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए देखा गया. जिस पर सोशल मीडिया पर उन्हें काफी ट्रोल किया जा रहा था. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि भाषण में बेरोजगारी के मुद्दे पर कोई भी बात नहीं की गई है. आनंद शर्मा बोले कि देश में बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़ रहा है. मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में जो वादे किए थे उन्हें पूरा नहीं किया गया है. जिनका जिक्र राष्ट्रपति के अभिभाषण में नहीं किया गया है. आपको बता दें कि राष्ट्रपति ने अपने करीब एक घंटे के भाषण में मोदी सरकार के एजेंडे को देश के सामने रखा. इस दौरान उन्होंने विकास, न्यू इंडिया, सरकार के कामकाज पर फोकस किया. राष्ट्रपति ने अपने भाषण में राफेल विमान का भी जिक्र किया था, जिस पर राहुल गांधी ने कहा था कि वह अपनी बात पर अडिग हैं, वह अब भी मानते हैं कि राफेल विमान सौदे में चोरी हुई थी.
नई दिल्ली, 18 जून 2019, लोकसभा चुनाव में करारी पराजय झेलने के बाद लगता है कि कांग्रेस हौसला भी हार गई है. इसी का नतीजा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तमाम मान-मनौव्वल के बावजूद अध्यक्ष पद से इस्तीफे को लेकर अडिग हैं. राहुल का विकल्प कांग्रेस अभी तलाश नहीं सकी है, जबकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ने पहले से बड़ी जीत दर्ज कर सत्ता में वापसी की है. शाह के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद बीजेपी कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को बना दिया गया है. इस तरह से बीजेपी के पास अब दो-दो अध्यक्ष हो गए हैं और कांग्रेस के पास एक भी नहीं है. ऐसे में सवाल है कि इतनी लचर तैयारी के साथ बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस कैसे करेगी? 6 महीने तक रहेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली में सोमवार को बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में जेपी नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया गया. हालांकि अमित शाह ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि अमित शाह अगले 6 महीने तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे. अमित शाह के साथ मिलकर ही जेपी नड्डा पार्टी का काम काज देखेंगे. विधानसभा चुनाव तक अध्यक्ष बने रहने की मांग दरअसल बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में अमित शाह ने कहा कि उनके पास केंद्रीय गृह मंत्रालय की भी जिम्मेदारी है. इसलिए पार्टी अध्यक्ष का पद किसी अन्य व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, क्योंकि पार्टी को पर्याप्त समय देने में असमर्थ रहेंगे. इसी के बाद जेपी नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष की कमान दी गई है. हालांकि बोर्ड के सदस्यों ने अमित शाह से तब तक अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया जब तक बीजेपी सदस्यता अभियान और आगामी विधानसभा चुनाव समाप्त नहीं हो जाता. पार्टी नेता बोले- राहुल नहीं तो कोई और नहीं वहीं, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया तो पार्टी में हंगामा मच गया. कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने राहुल को पद पर बने रहने और इस्तीफा वापस लेने के लिए कई बार मनाया, लेकिन वह अपने फैसले पर पूरी तरह से कायम है. जबकि पार्टी नेता लगातार यह कह रहे हैं कि राहुल नहीं तो कोई और नहीं. राहुल की जगह कौन, अब तक फैसला नहीं राहुल के इस्तीफा दिए हुए करीब एक महीना होने जा रहा है. कांग्रेस के सीडब्ल्यूसी की कई बैठकें होने के बाद भी राहुल की जगह अध्यक्ष पद के लिए किसी दूसरे नेता की तलाश पूरी नहीं हो सकी है. जबकि कांग्रेस के सीनियर नेताओं की बैठक में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा गया था जिसको इन दोनों नेताओं ने निजी कारण बताते हुए ठुकरा दिया था. इसके अलावा अध्यक्ष के लिए कई नाम और भी मीडिया में आए थे, लेकिन किसी पर अभी मुहर नहीं लग सकी है. आज नहीं तो कल, राहुल ही अध्यक्ष! इसका नतीजा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ पिछले दिनों हुई अनौपचारिक बैठक के बाद पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे, हैं और रहेंगे. हमें इसे लेकर कोई संदेह नहीं है. इसका मतलब साफ है कि आज नहीं तो कल राहुल ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहेंगे. फिलहाल कांग्रेस बिना अध्यक्ष के चल रही है.
लखनऊ 'जिस सेना का सेनापति कन्फ्यूज होता है, वह सेना हार ही जाती है महाराज। हमारे सेनापति आखिर तक यह तय नहीं कर पाए कि कार्यकर्ताओं को लड़ाना है या पैराशूट प्रत्याशियों को। यही कन्फ्यूजन पार्टी की इस बुरी हार का कारण बना। पार्टी की मजबूती के लिए अब प्रयोग बंद कीजिए।' शुक्रवार को लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के दौरान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने ऐसे ही खरी-खरी सुनाई। ज्‍योतिरादित्‍य के साथ जहां प्रभारी सचिव रोहित चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर मौजूद थे, वहीं पार्टी के कई वरिष्‍ठ नेताओं ने इस बैठक से किनारा कर लिया। हालांकि, राज बब्बर भी पश्चिमी यूपी की फतेहपुर सीट से पार्टी के प्रत्याशी थे और उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। 30 जून तक सभी राज्यों के प्रभारियों को समीक्षा रिपोर्ट एआईसीसी को सौंपनी है। इस बैठक से जो बड़े कांग्रेस नेता गायब रहे, उनमें जितिन प्रसाद, इमरान मसूद, सलमान खुर्शीद और श्री प्रकाश जायसवाल शामिल हैं। कई कांग्रेस नेताओं ने दावा किया कि दिल्‍ली-एनसीआर के नजदीक के प्रत्‍याशियों को दिल्‍ली में एक अन्‍य मीटिंग में हिस्‍सा लेना था, इसलिए वे नहीं आए हैं। इस बैठक में भाग लेने वाले 28 प्रत्‍याशियों में से एक ने कहा, 'अनुपस्थित रहने वाले बड़े नेताओं के साथ पार्टी अलग व्‍यवहार क्‍यों करती है। लखनऊ दिल्‍ली से दूर नहीं है। हम भी दिल्‍ली जा सकते थे।' बैठक के बाद ज्‍योतिरादित्‍य ने ट्वीट कर कहा, 'कार्यकर्ताओं की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव जीतने के लिए संगठन को मजबूत करना बेहद आवश्यक है।' एक-दूसरे पर फोड़ा हार का ठीकरा दोपहर 11:30 बजे से शुरू हुई बैठक शाम साढ़े पांच बजे तक चली। इस दौरान प्रभारी महासचिव और प्रभारी सचिव ने प्रत्याशियों और पार्टी नेताओं से बात की। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कई नेताओं ने पार्टी नेतृत्व तक को नहीं बख्शा। अधिकतर प्रत्याशियों ने हार का कारण बताते हुए कहा कि उनके यहां पार्टी का संगठन था ही नहीं। जहां संगठन था, वहां मदद नहीं की गई। जिला और शहर अध्यक्षों का कहना था कि प्रत्याशी ने चुनाव के दौरान संगठन को तवज्जो ही नहीं दी। इसके बाद भी वह पार्टी के नाते प्रचार में लगे रहे। यही अनदेखी हार का कारण बनी। बैठक से निकलकर बरेली के प्रत्याशी रहे प्रवीण सिंह ने मीडिया के सामने कहा कि संगठन कमजोर रहा। मिसरिख से प्रत्याशी रहीं मंजरी राही ने आरोप लगाया कि जो संगठन में हैं, उनकी सोच कांग्रेसी नहीं है। बहराइच की प्रत्याशी सावित्री बाई फुले ने भी हार का कारण संगठन का कमजोर होना बताया। पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के हिस्से में यूपी की 39 लोकसभा सीटें आती हैं। पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और पार्टी यहां कोई सीट नहीं जीत पाई। हालांकि, कांग्रेस का प्रदर्शन पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी ठीक नहीं रहा। रायबरेली छोड़ कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की परंपरागत अमेठी सीट भी हार गई। ज्योतिरादित्य पश्चिमी यूपी की 39 में 14 सीटों की समीक्षा पिछले दिनों दिल्ली में कर चुके हैं। बाकी 25 सीटों की समीक्षा के लिए कांग्रेस नेताओं, प्रत्याशी, जिला और शहर अध्यक्षों के साथ लोकसभा को-ऑर्डिनेटरों को भी लखनऊ बुलाया गया था। इस दौरान धौरहरा से जितिन प्रसाद और सीतापुर से कैसरजहां को छोड़ कर बाकी सभी 23 प्रत्याशी मौजूद रहे।
नई दिल्ली, 14 जून 2019,मनमोहन सिंह का शुक्रवार (14 जून) को राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म हो गया. वह असम से लगातार पांचवीं बार राज्यसभा सदस्य बने थे. 15 जून 2013 से छह साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद फिलहाल उनकी संसदीय राजनीतिक पर ब्रेक लग गया है. असम में पर्याप्त विधायक न होने के कारण कांग्रेस इस हैसियत में नहीं रही कि उन्हें फिर से राज्यसभा भेज सके. असम में खाली हुई दो राज्यसभा सीटों पर इसी साल मई में चुनाव हुए थे, जिसमें सत्ताधारी बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए अपने उम्मीदवार जिताने में सफल रहे. इसमें मनमोहन सिंह की भी सीट शामिल रही. असम की दो राज्यसभा सीटों में एक बीजेपी और दूसरी सीट सहयोगी असम गण परिषद (अगप) के खाते में गई. कांग्रेस सूत्र बता रहे हैं कि अभी यह नहीं मान लेना चाहिए कि मनमोहन सिंह का संसदीय करियर खत्म हो गया. आगामी समय में राज्यसभा चुनाव का मौका आने पर पार्टी उन्हें किसी ऐसे राज्य से उच्चसदन में भेज सकती है, जहां पार्टी के विधायकों की संख्या पर्याप्त हो. हालांकि इसके लिए डॉ. मनमोहन सिंह को इंतजार करना पड़ेगा. मनमोहन सिंह का कार्यकाल ऐसे वक्त पर खत्म हुआ है, जबकि तीन दिन बाद ही 17 जून से संसद का बजट सत्र शुरू होने जा रहा है. ऐसे में मनमोहन सिंह संसद में भाषण नहीं दे पाएंगे. कब मिल सकता है मौका मनमोहन सिंह के बयानों को आज भी मीडिया में गंभीरता से लेता है. संसद में भी उनका भाषण पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होता है. सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस उन्हें उच्च सदन में आगे भेजने की तैयारी में है. मगर इसके लिए मनमोहन सिंह को अप्रैल, 2020 तक इंतजार करना पड़ सकता है. जब हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, झारखंड, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश से राज्य सभा की करीब 55 सीटें खाली होने वाली है. राजस्थान में पार्टी सत्ता में है. ऐसे में कांग्रेस उन्हें 2020 में राजस्थान या अन्य किसी राज्य से उच्चसदन भेजने की कोशिश करेगी, जहां से जीत पक्की होगी. यह भी कहा जा रहा है कि इससे पहले तमिलनाडु आदि राज्यों में राज्यसभा चुनाव के दौरान अन्य दल भी मनमोहन सिंह के सम्मान में कांग्रेस को एक सीट दे सकते हैं. बता दें कि मनमोहन सिंह पहली बार असम से ही 1991 में चुन कर राज्यसभा पहुंचे थे. इसके बाद लगातार वह 1995, 2001, 2007 में असम से ही उच्च सदन पहुंचते रहे. हालांकि 1999 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव में भी वह उतरे थे, मगर बीजेपी नेता विजय कुमार मल्होत्रा से हार गए थे. 2013 में जब कांग्रेस की तरुण गोगोई सरकार थी, तब वह लगातार पांचवी बार राज्यसभा सदस्य बने थे. मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर का नाम असम की राजधानी दिसपुर की वोटर लिस्ट में दर्ज है.
नई दिल्ली, 14 जून 2019, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चेयरमैन रोहित मनचंदा ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको पर लिफ्ट से धक्का देने का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की है. रोहित का कहना है कि वो चाको के स्वागत के लिए दिल्ली प्रदेश की दूसरे तल पर लिफ्ट के बाहर खड़े थे, लेकिन बकौल रोहित चाको ने उन्हें धक्के मारकर हटा दिया और कहा कि आप कांग्रेस कार्यालय में नहीं आ सकते. रोहित मनचंदा ने पीसी चाको के तत्काल इस्तीफे की मांग की और चाको की शिकायत शीला दीक्षित से करने की बात कही. रोहित का आरोप है कि चाको के नेतृत्व में दिल्ली में सारे चुनाव कांग्रेस हारी ऐसे में जब राहुल गांधी इस्तीफे की बात करते हैं तो पीसी चाको को भी इस्तीफा दे देना चाहिए. इस बाबत उन्होंने 6 जून को सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी बनाया था. हालांकि पीसी चाकू से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने इस घटना को ही नकार दिया और कहा कि जिसने आपको बताया है उससे जाकर पूछिए दिल्ली में कांग्रेस की करारी हार गौरतलब है कि दिल्ली में लोकसभा की सातों सीटों पर कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गए, हालांकि विधानसभा वार कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही. देश में लोकसभा चुनाव हारने के बाद जहां पर राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की, वहीं पर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ऑफिस में रह-रहकर कार्यकर्ताओं का गुस्सा शीर्ष नेतृत्व के लिए वक्त वक्त पर झलकता है.
नई दिल्ली, 13 जून 2019, लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत और सरकार के गठन के बाद भारतीय जनता पार्टी अपने अगले मिशन में जुट गई है. केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) अध्यक्ष अमित शाह आज पार्टी की राज्य इकाईयों के साथ बैठक कर रहे हैं और वह पार्टी में होने वाले संगठन के चुनाव पर मंथन करेंगे. इस बैठक में सभी राज्यों के प्रमुख, महामंत्री और राज्य प्रभारी शामिल हो रहे हैं. बैठक में इस बात पर भी नज़र रहेगी कि बीजेपी का अगला अध्यक्ष कौन बनेगा. क्योंकि अमित शाह अब सरकार में गृह मंत्री हैं और बीजेपी हमेशा एक व्यक्ति एक पद की नीति पर चलती रही है. सवाल है कि क्या अमित शाह पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ेंगे या फिर दोनों पदों को साथ रखेंगे. साथ ही उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी मंथन होना है. क्योंकि यूपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय और बिहार के नित्यानंद राय अब मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं. इसलिए एक व्यक्ति एक पद वाला नियम यहां भी लागू हो सकता है. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव की वजह से पिछले साल सितंबर, 2018 में होने वाले पार्टी के चुनाव टाल दिए गए थे. तब पार्टी ने तय किया था कि पद पर रहने वाले सभी लोग चुनाव नतीजों तक अपना काम जारी रखेंगे. इसको लेकर एक प्रस्ताव पास किया गया था. सत्ता में आने के बाद भी बीजेपी अपने विस्तार की ओर कदम बढ़ा रही है. इस बैठक में बीजेपी के सदस्यता अभियान की रूप रेखा तय की जाएगी. सदस्यता अभियान के बाद ही सभी राज्यों में संगठन चुनाव होंगे. इसके लिए अमित शाह ने अलग से 18 जून को महासचिवों की बैठक बुलाई है. जिसमें सभी महासचिवों को सदस्यता अभियान की ज़िम्मेदारी दी जाएगी, साथ ही अगली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तारीख और स्थान तय किया जाएगा. बैठक में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी मंथन होगा. महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. सूत्रों की मानें तो चुनाव की वजह से इन राज्यों के संगठन चुनाव भी टाले जा सकते हैं.
नई दिल्ली, 12 जून 2019, लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी की 'सुनामी'' में कांग्रेस को मिली करारी हार ने पार्टी नेताओं को अंदर तक हिलाकर रख दिया है. राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस न लेने पर अड़े रहने की स्थिति में पार्टी के वरिष्ठ नेता एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के मॉडल को अंतिम रूप दे रहे हैं. राहुल के विकल्प के लिए बुधवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी की अध्यक्षता में बैठक हो रही है. इसमें सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर प्रियंका गांधी और अशोक गहलोत सहित कई नाम शामिल हैं. जिनमें से किसी एक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. दरअसल कांग्रेस में नए कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति कर पार्टी राहुल गांधी के कंधों से काम के कुछ बोझ को कम कर सकेगी. इसके अलावा कार्यकारी अध्यक्ष जहां दिन-प्रतिदिन के काम पर फोकस रखेंगे तो वहीं राहुल गांधी पार्टी का कायाकल्प करने की कोशिशों और बड़े लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. यही वजह है कि राहुल के नए उत्तराधिकारी के नाम को लेकर पार्टी में लगातार मंथन हो रहा है. सचिन पायलट कांग्रेस को करीबी से देखने वालों के अनुसार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर सचिन पायलट का नाम सबसे आगे है. पायलट मुखर वक्ता और जमीन से जुड़े हुए नेता के तौर पर जाने जाते हैं. वह 41 साल के हैं और युवाओं को पार्टी से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इसके अलावा उन्हें कांग्रेस के वफादार के तौर पर भी जाना जाता है और पार्टी के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय राजेश पायलट के बेटा हैं. बता दें कि 2013 में कांग्रेस को राजस्थान में मिली करारी हार के बाद पार्टी को दोबारा से खड़ा करने के लिए सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजस्थान भेजा गया था. पायलट की पांच साल की मेहनत का नतीजा था कि 2018 के विधानसभा चुनाव में उनके चेहरे के सहारे कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की, लेकिन पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद का ताज अशोक गहलोत के सिर सजा दिया और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया. सचिन पायलट को राहुल का करीबी माना जाता है. ऐसे में उनकी कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति होती है तो वह पार्टी के कायाकल्प में अहम रोल अदा कर सकते हैं. अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम भी कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में है. राहुल गांधी के लिए गहलोत उतना ही विश्वासपात्र हैं जितना सोनिया गांधी के लिए अहमद पटेल रहे हैं. कांग्रेस में गहलोत की स्वीकार्यता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह, कमलनाथ और अशोक चव्हाण जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ उनका जबरदस्त तालमेल है. गहलोत को एक हार्डकोर संगठन मैन के रूप में देखा जाता है. एक मुख्यमंत्री और सांसद होने के अलावा, गहलोत ने कई पदों पर कार्य किया है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव से लेकर संगठन महासचिव में अपना योगदान दिया है. गहलोत 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रभारी थे, जहां बीजेपी को जीतने में कांग्रेस ने नाको चने चबवा दिए थे. इसके अलावा पिछले साल कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया काम नाम भी है. सिंधिया का बहुत बड़ा राजनीतिक कद नहीं है, ऐसे में गांधी-नेहरू परिवार के लिए उपयुक्त और फिट बैठ सकते हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव में उनका जिस तरह से प्रदर्शन रहा है, उसे देखते हुए उनकी राह में मुश्किल हो सकती है. सिंधिया यूपी के प्रभारी थे, जहां पार्टी ने काफी खराब प्रदर्शन किया और खुद भी गुना सीट पर हार गए हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के गुटबाजी का एक केंद्र माने जाते हैं. कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से कोई हाई कमान के करीब जाता दिखेगा तो दूसरा गुट उसकी राह में रोड़ा अटकाएगा. प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम रेस में है, गांधी-नेहरू परिवार के लिहाज से यह नाम एकदम सही विकल्प है. ऐसे में कांग्रेस के नेता दूसरे गांधी के हाथों में कमान दिए जाने का स्वागत कर सकते हैं. प्रियंका गांधी में बहुत कुछ है. वह युवा हैं और कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ती हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि हाजिर जवाबी हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में कोई खास प्रभाव नहीं दिखा सकी हैं. प्रियंका ज्यादातर अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में ही सक्रिय रही हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या वह एक पूर्णकालिक राजनेता बनने की इच्छुक होंगी? प्रियंका गांधी की राह में दूसरी बाधा यह है कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ आर्थिक अपराध के मामले चल रहे हैं. इन सारे आरोपों को लेकर बीजेपी वाड्रा के बहाने गांधी परिवार को घेरते रही है. ऐसे में क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस की कमान संभालेंगी.इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रियंका को अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ हैं. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर इन चार नामों के अलावा भी कई नाम हैं. इनमें जयराम रमेश, अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और दिग्विजय सिंह शामिल हैं. ऐसे पार्टी एक कार्यकारी अध्यक्ष का चुनाव करने का फैसला करती है तो किसे चुना जाएगा? यह देखा जाना दिलचस्प होगा.
नई दिल्ली बीजेपी को मिली बंपर जीत ने राजनीतिक पंडितों को अपने 'समीकरणों' पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। बीजेपी ने भी इस जीत के लिए कई नए कदम उठाए। बीजेपी ने इस बार राज्यवार इलाकों पर ध्यान दिया और मजबूत पकड़ बनाई। बीजेपी शुरू से ही इस रणनीति पर काम कर रही थी कि राज्य के स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो केंद्र में बड़ी जीत मिल सकती है। पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी गैर-कांग्रेसी सरकार को इतना बड़ा जनादेश मिला हो। बीजेपी की यह जीत इंदिरा गांधी की 1971 की जीत के लगभग बराबर है। बीजेपी ने 13 राज्यों में खुद के दम पर और तीन राज्यों (यूपी, महाराष्ट्र और बिहार) में सहयोगियों दम पर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट हासिल किए हैं। जैसी जीत बीजेपी को मिली है, वैसी जीत अब तक इतिहास में सिर्फ तीन बार देखने को मिली। 1971 में, जब कांग्रेस को 12 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और पार्टी 518 में से 352 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहीं। 1980 में, इंदिरा कांग्रेस ने 542 में से 353 सीटें हासिल की और 13 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए थे। इसके बाद 1984 में, जब राजीव गांधी के नेतृत्व में आज तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस 404 सीटों पर विजयी रही थी और 17 राज्यों में उसे 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। अब स्थिति काफी उलट नजर आ रही है। बीजेपी इस बड़ी जीत के साथ अपने अब तक के राजनीतिक शीर्ष पर है, वहीं कांग्रेस की हालत 1990 की बीजेपी जैसी हो गई है। जिन क्षेत्रीय दलों ने 1990 से 2014 तक काफी दबदबा कायम किया, अब संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उनके पुराने समीकरण अब काम करते नजर नहीं आ रहे हैं। बीजेपी के लिए जादू बीजेपी को 2019 में पूरे देश से समर्थन मिला। ऐसा समर्थन कांग्रेस को 1984 में मिला था, जबकि उस दौरान बीजेपी महज 2 सीट जीत पाई थी। पार्टी को 6 राज्यों में 10% वोट मिला था, जो इस बात का इशारा था कि यदि पार्टी मेहनत करे तो इन राज्यों में होने वाले चुनाव में उसे बढ़त मिल सकती है। 1989 में बीजेपी को पहला बड़ा टर्निंग पॉइंट मिला और पार्टी को देश भर में 85 सीटें मिलीं। राज्यों पर ध्यान देते हुए देश में बड़ा समर्थन हासिल करने का फॉर्म्युला बीजेपी को तभी मिला था। पार्टी ने 1993 में नारा भी दिया था, 'आज चार प्रदेश, कल सारा देश'। उस दौरान बीजेपी को एमपी, यूपी, राजस्थान और हिमाचल में जीत हासिल की थी। क्षेत्रीय अपेक्षाएं इसमें अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन अब अपने खात्मे पर आ गया है। दोनों पार्टियां वोटरों पर अपनी पकड़ खत्म कर चुकी हैं। महागठबंधन का पहला प्रयोग लालू प्रसाद यादव ने बिहार में किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 39 प्रतिशत वोट मिले, जिसमें बीजेपी को 30 प्रतिशत, एलजेपी 6% और आरएलएसपी को 3% वोट मिले। यूपी को 28 प्रतिशत वोट मिले, जिसमें आरजेडी को 20 प्रतिशत और कांग्रेस को 8 प्रतिशत वोट मिले। उस चुनाव में जेडीयू अकेले मैदान में उतरी थी और 16 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। लालू यहां थोड़े आगे निकले और अपने साथ जेडीयू को मिलाकर वोट प्रतिशत के मामले में एनडीए से आगे हो गई। इस फॉर्म्यूले ने 2015 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त काम किया और आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस के महागठबंधन में 243 में से 178 पर जीत दर्ज की है। एनडीए ने 30 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 58 सीटें जीतीं। 2019 के चुनाव ने इन सभी समीकरणों को हिलाकर रख दिया और क्षेत्रीय पार्टियों को अलग हटकर रणनीति पर विचार करने को मजबूर कर दिया। सबसे पुरानी पार्टी के लिए संदेश हालांकि 2019 में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं हैं, जो 2014 में जीती 44 सीटों से ज्यादा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में गुजर रही है। 2014 की तरह 2019 में भी कांग्रेस का वोट शेयर 19.5% के आसपास ही रहा। हालांकि देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस देश भर के कई राज्यों में खाता भी नहीं खोल पाई। कांग्रेस को 52 सीटों में से सबसे ज्यादा 31 सीटें केरल, पंजाब और तमिलनाडु से मिली हैं। इन्हीं तीन राज्यों ने कांग्रेस को 50 सीटों का आंकड़ा पार करने में मदद दी। इसके अलावा तेलंगाना में कांग्रेस को 2014 में 2 और 2019 में 3 सीटें मिली हैं, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 2 सीटें मिली हैं। 2018 में कांग्रेस ने एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीते थे। कांग्रेस को जीत के बावजूद कांग्रेस और बीजेपी का वोट प्रतिशत लगभग बराबर था। 1989 से 2014 तक कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे राज्यों और केंद्र में सत्ता के करीब रही है।
गुवाहाटी इसे राष्ट्रीय राजनीति में पूर्वोत्तर की दस्तक कहा जा सकता है। देश के इस सुदूर हिस्से की नैशनल पीपल्स पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है। पूर्व लोकसभा स्पीकर पी.ए. संगमा ने इस पार्टी की स्थापना की थी। शुक्रवार को चुनाव आयोग ने पार्टी के मुखिया कोनराड संगमा को राष्ट्रीय दल की मान्यता का प्रमाण पत्र सौंपा। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के चलते एनपीपी ने राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए जरूरी शर्तों को पूरा किया था। इसके साथ ही नैशनल पीपल्स पार्टी पूर्वोत्तर भारत का ऐसा पहला दल बन गई है, जिसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है। 2013 में पीए संगमा ने इसका गठन किया था। फिलहाल यह पार्टी मेघालय में सत्ता में है और संगमा के बेटे कोनराड संगमा सीएम हैं। अब तक एनपीपी को मेघालय, नगालैंड और मणिपुर में राज्य स्तरीय दल का दर्जा प्राप्त था। अरुणाचल प्रदेश में 5 सीटें जीतने के बाद उसे वहां भी राज्य स्तरीय दल का दर्जा मिल गया था। इसके साथ ही उसे राष्ट्रीय दल का दर्जा भी मिल गया। असल में किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिलने के लिए जरूरी होता है कि वह 4 राज्यों में राज्य स्तरीय दल हो। ऐसे में अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड में राज्य स्तरीय दल बनने के साथ ही पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्रदान कर दिया गया। पार्टी को मिली इस सफलता पर खुशी जताते कोनराड संगमा ने ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, 'यह बहुत भावुकता क्षण है कि पीए संगमा द्वारा स्थापित पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है। यह सिर्फ एनपीपी के लिए ही गौरव की बात नहीं है बल्कि समूचे पूर्वोत्तर के लिए एक उपलब्धि है।'
नई दिल्ली, 06 जून 2019,अमित शाह के गृह मंत्री बन जाने के बाद बीजेपी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा, इसपर सभी की नजरे हैं. बीजेपी में लागू एक व्यक्ति- एक पद के सिद्धांत के कारण अमित शाह का अध्यक्ष बने रहना तब तक संभव नहीं है, जब तक कि बीजेपी के संविधान में संशोधन न हो जाए. बीजेपी के सूत्र बता रहे हैं कि अगले महीने तक अध्यक्ष पद पर चुनाव हो जाएगा. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर शाह पद पर बने भी रह सकते हैं. बीजेपी के संविधान की बात करें तो कम से कम पचास प्रतिशत से अधिक प्रदेश संगठनों के चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है. इससे पहले 2016 में हुए संगठन के चुनाव में अमित शाह तीन साल के लिए अध्यक्ष बने थे, बाद में लोकसभा चुनाव के कारण उन्हें एक साल का विस्तार मिला था. अब फिर से चुनाव की बारी है. पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि साल के आखिर में तीन प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में या तो पार्टी इन चुनावों तक किसी को कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है या फिर अगले कुछ महीनों के भीतर राज्यों में कार्यकारिणी का चुनाव कराकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी पार्टी सर्वसम्मति से मनोनयन कर सकती है. माना जा रहा है कि अगर पार्टी ने कुछ ही महीनों के बाद होने जा रहे तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किसी का नाम फिलहाल कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर आगे बढ़ाया तो यह संकेत होगा कि आगे उसे ही पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमान दी जाएगी. आखिर 11 करोड़ से अधिक सदस्यों वाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी का संगठन कैसे चलता है, कैसे होता है राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव. जानिए बीजेपी के संविधान के हवाले से इन सवालों का जवाब. ऐसे बनते हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष बीजेपी के संविधान में धारा 19 के तहत राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था है. चुनाव एक निर्वाचक मंडल की ओर से होगा. जिसमें राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषदों के वर्णित सदस्य होंगे. चुनाव राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निर्धारित नियमों के अनुसार होगा. राष्ट्रीय अध्यक्ष वही होगा, जो कम से कम चार अवधियों तक सक्रिय सदस्य रहने के साथ न्यूनतम 15 वर्ष तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहा हो. निर्वाचक मंडल में से कुल 20 सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव रखेंगे. शर्त है कि यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम पांच प्रदेशों से भी आना जरूरी है. जहा राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों. कार्यकाल धारा 21 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति तीन-तीन वर्ष के दो कार्यकाल तक ही अध्यक्ष रह सकता है. प्रत्येक कार्यकारिणी, परिषद, समिति और उसके पदाधिकारियों तथा सदस्यों के लिए भी तीन वर्ष की अवधि तय की गई है. सदस्यता की शर्तें उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए. दूसरे राजनीतिक दल से जुड़ाव नहीं होना चाहिए. निर्धारित शुल्क देने के बाद छह साल तक सदस्यता प्रभावी रहेगी.एक से अधिक स्थानों पर कोई सदस्य नहीं बन सकता. सदस्यों से प्राप्त शुल्क का हर तीन साल बाद कई इकाइयों में बंटवारा होता है. कुल शुल्क का राष्ट्रीय इकाई को 10 प्रतिशत, प्रदेश को 15, जिला को 25 और मंडल को 50 प्रतिशत हिस्सा जाता है. कौन होता है सक्रिय सदस्य पार्टी का सक्रिय सदस्य उसे माना जाएगा, जिसे पार्टी का सदस्य बने कम से कम तीन वर्ष का समय हो गया हो. सक्रिय सदस्यों के लिए आवेदन पत्र के साथ सौ रुपये पार्टी कोष में जमा करना जरूरी है. उसे पार्टी के आंदोलनात्मक कार्यक्रमों में भी शामिल होना होगा. मंडल समिति या उससे ऊपर किसी समिति का चुनाव लड़ने या सदस्य बनने का हक सिर्फ सक्रिय सदस्य को ही होगा. बीजेपी का संगठनात्मक ढांचा बीजेपी का पूरा संगठन राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर तक तकरीबन सात भागों में बंटा है. राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी, प्रदेश स्तर पर प्रदेश परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी होतीं हैं. इसके बाद क्षेत्रीय समितियां, जिला समितियां, मंडल समितियां होती हैं. फिर ग्राम और शहरी केंद्र होते हैं और स्थानीय समितियों का भी गठन होता है. स्थानीय समिति पांच हजार से कम की जनसंख्या पर गठित होती है. क्या है राष्ट्रीय परिषद इसमें पार्टी के संसद सदस्यों में से 10 प्रतिशत सदस्य चुने जाते हैं, जिनकी संख्या दस से कम न हो. यदि संसद सदस्यों की कुल संख्या दस से कम हो तो सभी चुने जाएंगे. परिषद में पार्टी के सभी भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेशों के अध्यक्ष, लोकसभा, राज्यसभा में पार्टी के नेता, सभी प्रदेशों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में पार्टी नेता सदस्य होंगे. इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से अधिक से अधिक 40 सदस्य नामांकित किए जा सकते हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी सदस्य भी इसमें शामिल होते हैं. विभिन्न मोर्चो और प्रकोष्ठों के अध्यक्ष और संयोजक भी सदस्य होते हैं. सभी को 100 रुपये का सदस्यता शुल्क देना पड़ता है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अध्यक्ष तथा अधिक से अधिक 120 सदस्य होंगे. जिनमें कम से कम 40 महिलाएं और 12 अनुसूचित जाति-जनजाति के सदस्य होंगे, जो अध्यक्ष मनोनीत करेंगे. अध्यक्ष की ओर से राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों में से अधिकतम 13 उपाध्यक्ष, नौ महामंत्री, एक महामंत्री (संगठन), अधिक से अधिक 15 मंत्री और एक कोषाध्यक्ष मनोनीत किया जाता है. कार्यकारिणी के सदस्य वे व्यक्त होंगे जो कम से कम तीन अवधियों तक सक्रिय सदस्य होंगे. विशेष हालात में राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिकतम 15 सदस्यों को इससे छूट दे सकते हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी कार्यसमिति में कम से कम 25 प्रतिशत नए सदस्यों को स्थान देंगे. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्यों की संख्या 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी. राष्ट्रीय, प्रादेशिक तथा जिलास्तरो पर पूर्णकालिक कार्यकर्ता को ही महामंत्री(संगठन) के पद पर नियुक्त किया जाएगा. पद मुक्त होने के दो साल बाद ही वह किसी भी चुनाव में भाग लेने के लिए अर्ह होंगे. संसदीय बोर्ड पार्टी की संसदीय गतिविधियों के संचालन और समन्वय के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी एक संसदीय बोर्ड का गठन करती है. संसदीय बोर्ड ही इससे जुड़े नियम बनाता है. पार्टी अध्यक्ष के अतिरिक्त इसमें दस सदस्य होते है. इसमें से एक सदस्य संसद में पार्टी का नेता होगा. राष्ट्रीय अध्यक्ष बोर्ड के प्रमुख होते हैं.अध्यक्ष पार्टी के महामंत्रियों में से एक को संसदीय बोर्ड का सचिव नियुक्त करता है. संसदीय बोर्ड को मंत्रिमंडल गठन पर मार्गदर्शन करने, विधानमंडल और संसदीय दल की गतिविधियों की निगरानी करने, अनुशासन भंग के मामले मे विचार करने का अधिकार होगा. केंद्रीय चुनाव समिति राष्ट्रीय कार्यकारिणी केंद्रीय चुनाव समिति का गठन करेगी. जिसमें संसदीय बोर्ड के सदस्यों के अलावा समिति के लिए निर्वाचित आठ सदस्य होंगे. महिला मोर्चा की अध्यक्ष पदेन सदस्य होंगी. यह समिति संसद और विधानमंडलो के लिए उम्मीदवारों के चयन को अंतिम रूप देती है. चुनाव अभियानों का भी संचालन करती है. पूर्ण और विशेष अधिवेशन बीजेपी के संविधान के मुताबिक पार्टी का पूर्ण अधिवेशन एक सत्र में एक बार होगा. अध्यक्ष की अध्यक्षता में होने वाले अधिवेशन में राष्ट्रीय, प्रदेश परिषद के सभी सदस्य, संसद सदस्य, विधायक शामिल होंगे. पार्टी का विशेष अधिवेशन तब होगा जब राष्ट्रीय कार्यकारिणी ऐसा निश्चत करे. राष्ट्रीय परिषद के कम से कम एक तिहाई सदस्य अनुरोध करें.. पूर्ण या विशेष अधिवेशन में लिए गए निर्णय पार्टी की सभी इकाइयों और सदस्यों पर लागू होंगे. प्रदेश चुनाव समिति प्रदेश कार्यकारिणी आवश्यक नियम बनाकर प्रदेश चुनाव समिति का गठन करेगी. जिसमें सदस्यों की अधिकतम 15 संख्या होगी. यह समिति प्रदेश से संसद और विधानमंडल उम्मीदवारों के नाम केंद्रीय चुनाव समिति को प्रस्तावित करेगी. स्थानीय सहकारी समितियों के भी उम्मीदवारों का चयन करेगी. कैसे होता है संविधान संशोधन संविधान में संशोधन, परिवर्तन सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की ओर से ही किया जा सकता है. हालांकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भी संशोधन करने का अधिकार है, जिसे पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के आगामी सम्मेलन में पुष्टि के लिए रखा जाएगा. यह संशोधन राष्ट्रीय परिषद से पुष्टि के पर्व भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा निर्धारित तिथि से लागू किया जा सकता है. बीजेपी में तीन श्रेणियों के प्रदेश बीजेपी ने संगठन के लिहाज से प्रदेशों को तीन श्रेणियों में बांटा है. तीन या उससे कम लोकसभा सीटों वाले प्रदेश को श्रेणी 1 में रखा गया है. इसी तरह चार से 20 लोकसभा सीट वाले प्रदेश श्रेणी 2 और 21 से अधिक लोकसभा सीट वाले प्रदेश श्रेणी 3 में हैं.
नई दिल्ली, 05 जून 2019,बिहार में जारी राजनीतिक हलचल के बीच पटना के चौक चौराहों पर पुरानी चर्चा एक बार फिर जिंदा हो उठी है कि क्या बीजेपी और जेडीयू के बीच एक बार फिर से सियासी तलाक होने वाला है? क्या अक्टूबर-नवंबर 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश और बीजेपी की राहें जुदा होने वाली हैं? 30 मई से लेकर अब तक रोजाना कुछ न कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिससे नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच की दूरी बढ़ती ही दिख रही है. इस घटनाक्रम में नीतीश को आरजेडी की ओर से बार-बार किया जा रहा इशारा शामिल है. सोमवार यानी कि 3 जून को आरजेडी के सीनियर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह आगे आए और नीतीश को महागठबंधन में शामिल होने का न्यौता दिया. पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरजेडी के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा बिहार में हालात अब ऐसे बन गए हैं कि सबको एकजुट होना होगा और नीतीश को भी वापस हमारे महागठबंधन में आ जाना चाहिए. आरजेडी के उदार चेहरों में शामिल रघुवंश प्रसाद ने कहा कि अगर बीजेपी को हटाना है तो सभी गैर भाजपा दल साथ आएं, उन्होंने कहा कि सभी का मतलब निश्चित रूप से नीतीश भी हैं. पत्रकारों ने लगे हाथ रघुवंश प्रसाद को तेजस्वी यादव की वो बात याद दिलाई, जहां तेजस्वी अक्सर कहते थे कि नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन के सारे रास्ते बंद हैं. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. रघुवंश प्रसाद ने कहा कि तेजस्वी ने क्या स्टाम्प पेपर पर लिखकर दिया था कि नीतीश कुमार नहीं आ सकते? रघुवंश को आरजेडी का उदार चेहरा माना जाता है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि पार्टी ने जानबूझकर उन्हें आगे किया है. ताकि नीतीश को वापस लाया जा सके. जेडीयू के नेता और नीतीश कुमार रघुवंश प्रसाद के इस ऑफर पर चर्चा ही कर रहे थे कि कुछ घंटे-बीतते-बीतते बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी का एक बड़ा बयान आया. राबड़ी ने नीतीश कुमार को स्पष्ट ऑफर दिया और कहा कि अगर वो महागठबंधन में आते हैं तो उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी. राबड़ी के बाद आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी भी नीतीश के लिए एक ऑफर लेकर आए. उन्होंने नीतीश का गुणगान किया और कह कि भगवान ने नीतीश कुमार को सेकुलर चेहरा बनने का एक और मौका दिया है. एक मौका पहले महागठबंधन में मिला था जिसे उन्होंने एनडीए में फिर जाकर गंवा दिया. नीतीश कुमार को जहां आरजेडी से बार-बार पुचकार मिल रही है वहीं बीजेपी से उनकी दूरी बढ़ती ही जा रही है. अपने सांसदों को मोदी कैबिनेट में ताजपोशी कराने के लिए 30 मई को दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार खाली हाथ लौटे. लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी 17 में से 16 सीटें जीती थीं. नीतीश कुमार ने इसका जवाब 2 जून को दिया जब उन्होंने बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार किया. नीतीश के मंत्रिमंडल में 8 नए मंत्री शामिल हुए लेकिन बीजेपी के एक भी विधायक को जगह नहीं मिली. नीतीश और बीजेपी के बीच रिश्तों में तो खटास चल रही रही थी, तभी बिहार में इफ्तार का सीजन आ गया. बीजेपी और जेडीयू दोनों ने अपनी अपनी इफ्तार पार्टियां दी, लेकिन न तो नीतीश बीजेपी के इफ्तार पार्टी में गए और न ही नीतीश के इफ्तार में सुशील मोदी आए. हां, नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की इफ्तार पार्टी में जरूर पहुंचे थे. इस पार्टी में बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी पहुंचे. इस इफ्तार पार्टी की एक तस्वीर बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों को और भी कड़वा कर गई. अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले गिरिराज सिंह ने इस तस्वीर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पर फलाहार का आयोजन करते और सुंदर सुदंर फोटो आते? अपने कर्म-धर्म में हम पिछड़ क्यों जाते और दिखावा में आगे रहते हैं. गिरिराज सिंह की इस टिप्पणी ने आग में घी का काम किया. उनकी इस टिप्पणी पर जेडीयू के नेता सिरे से उबल पड़े. खुद नीतीश ने कहा कि वो खबरों में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं. जेडीयू प्रवक्ता संजय कुमार सिंह ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा बयान कोई मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति ही दे सकता है. आरजेडी द्वारा नीतीश को लुभाने की ये कवायद अभी लंबी चलने वाली है. बीजेपी बिहार में बैकफुट पर है. अमित शाह ने गिरिराज को फटकार लगाई है और कहा है कि ऐसे बयानों से परहेज करें. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो नीतीश कुमार भले ही बीजेपी के लिए जरूरी नहीं हो, लेकिन वे एनडीए के खेमे के ऐसे सेकुलर चेहरे हैं जिसे बीजेपी की सख्त जरूरत रहती है. वहीं आरजेडी के लिए नीतीश कुमार वो नेता हैं जो पार्टी को एक बार फिर बिहार की सत्ता में साझीदार बना सकते हैं.
नई दिल्ली/लखनऊ लोकसभा चुनाव में दावों के उलट करारी हार झेलने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के टूटने की चर्चाएं हैं। मायावती की ओर से कार्यकर्ताओं को 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले लड़ने की तैयारी के निर्देश के बाद यह कयास लग रहे हैं। इसके साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों में यह चर्चा भी चल रही है कि यदि गठबंधन में दोनों दलों का यह हाल हुआ है तो फिर माया का अकेले लड़ने का फैसला कितना फायदेमंद हो सकता है। माया ने दिए गठबंधन तोड़ने के संकेत: बीएसपी वर्कर्स को 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले लड़ने की तैयारी करने का मायावती ने निर्देश दिया है। इससे स्पष्ट है कि वह भविष्य में गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि आमतौर पर बीएसपी उपचुनाव में नहीं उतरती है और उसने अकेले लड़ने का फैसला लिया है तो साफ है कि वह अकेले जाना चाहती हैं। सियासी राह अकेले चल पाएगा हाथी?: इस बात का जवाब शायद में है। लोकसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और यूपी में एसपी-बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन को उम्मीदों के मुताबिक सीटें नहीं मिल सकी हैं। तीनों दलों ने सूबे की 78 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 15 पर ही जीत मिल सकी। एसपी के खाते में महज 5 सीटें ही गईं, जबकि बीएसपी को 10 सीटें मिली हैं। राष्ट्रीय लोकदल का एक बार फिर से 2014 की ही तरह सूपड़ा साफ हो गया है। हालांकि बीएसपी को 2014 के मुकाबले 10 सीटों पर सफलता मिली है, लेकिन यह उसकी उम्मीदों से कम है। मायावती को कम से कम 20 सीटों पर जीत की उम्मीद थी। मायावती को लगता है कि इन 10 सीटों पर जीत की वजह उनके परंपरागत वोटरों का बीएसपी के साथ बने रहना है, जबकि एसपी के समर्थक वर्ग ने गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट नहीं डाला। बीएसपी को 19.3% वोट मिले, जबकि एसपी को 17.93% वोट मिले थे। बीएसपी का बड़ा है दायरा: समाजवादी पार्टी और अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के मुकाबले बीएसपी का दायरा खासा बड़ा है। बीएसपी का वोट बैंक उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब में भी है, जहां बड़ा दलित वोट बैंक है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में भी बीएसपी का आधार है, जहां उसने इस बार के विधानसभा चुनावों में दो सीटें हासिल की थीं। ऐसे में बीएसपी अब अपने दम पर अपने दायरे को बढ़ाने और मजबूत करने पर फोकस कर सकती है। क्या गठबंधन तोड़ देंगी माया: पिछले साल दलितों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाते हुए मायावती ने विरोध में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था। फिलहाल वह राज्यसभा और लोकसभा में से किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। 2020 में यदि वह एक बार फिर राज्यसभा जाना चाहती हैं तो उन्हें एसपी और आरएलडी के समर्थन के अलावा कांग्रेस से भी सपोर्ट की जरूरत होगी। ऐसी स्थिति में देखना होगा कि वह क्या फैसला लेती हैं।
अमेठी, 03 जून 2019, अमेठी सीट से स्मृति ईरानी के हाथों राहुल गांधी की हार के बाद कांग्रेस और सपा-बसपा के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है. कांग्रेस के अपने आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेठी में राहुल गांधी के चुनाव में सपा और बीएसपी ने अपेक्षित सहयोग नहीं किया. उल्टे सपा-बसपा के लोग बीजेपी को मदद करते नजर आए. सूत्रों के मुताबिक, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के दो सचिव केएल शर्मा और जुबेर खान हार की वजह जानने के लिए अमेठी पहुंचे थे. इन दोनों ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में खुलासा किया है सपा और बसपा का न तो सहयोग मिला और ना ही उनका वोट ट्रांसफर हो पाया. उल्टे सपा के कई नेता या तो स्मृति ईरानी के साथ दिखे या फिर चुपचाप घर बैठ गए. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है सपा में पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति के बेटे अनिल प्रजापति स्मृति ईरानी का प्रचार करते देखे गए, जबकि रिपोर्ट में गौरीगंज के समाजवादी पार्टी के विधायक पर भी राहुल को मदद नहीं करने का आरोप लगाया है. इन कारणों में यह भी बताया गया है कि कांग्रेस के चुनाव प्रचार में न तो सपा और बसपा के नेता दिखे, न उन्होंने कहीं साझा प्रचार किया, ना ही कहीं मंच पर दिखाई दिए. स्थानीय नेताओं के मुताबिक, यह मामला सिर्फ असहयोग का नहीं रहा बल्कि सपा और बसपा के वोट बीजेपी को चले गए. इस खुलास के बाद भी कांग्रेस खुलकर यह बोलना नहीं चाहती क्योंकि वह यह नहीं जताना चाहती कि राहुल गांधी सपा और बसपा के समर्थन के बगैर जीत नहीं सकते. बहरहाल राहुल गांधी की हार के बाद कांग्रेस के नेता मायूस हैं और गुस्से में भी हैं. लेकिन फिलहाल चुप हैं. कौन हैं केएल शर्मा और जुबेर खान केएल शर्मा एआईसीसी में सचिव है और रायबरेली में सोनिया गांधी के कार्यालय प्रतिनिधि के तौर पर काम देखते हैं. जबकि जुबेर खान राजस्थान के अलवर से विधायक रहे हैं. इन्हीं दोनों ने तीन दिनों तक अमेठी में बैठकर हार के कारणों की समीक्षा की है.
नई दिल्ली लोकसभा चुनाव में 303 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से दोबारा केंद्र की सत्ता पर काबिज होने वाली बीजेपी के लिए यह आंकड़ा उत्साह बढ़ाने वाला है। पार्टी को 90 ‘अल्पसंख्यक बहुल' जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक सीटें हासिल हुई हैं। इसके जरिए उसने अल्पसंख्यक विरोधी पार्टी बताने वाले विपक्ष के दावों को एक तरह से खारिज किया है। इन अल्पसंख्यक बहुल जिलों की पहचान 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने की थी। अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी अधिक होने के साथ ही इन जिलों में सामाजिक-आर्थिक एवं मूलभूत सुविधाओं के संकेतक राष्ट्रीय औसत से कम हैं। ऐसे 79 निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी ने अधिकतम 41 सीटें जीती जो 2014 के मुकाबले सात सीट ज्यादा थी। कांग्रेस के हिस्से आई सीटें लगभग आधी हो गईं और 2014 में जहां 12 सीटें थीं, वहीं अब महज छह रह गईं। एक विश्लेषक ने दावा किया कि मुस्लिमों ने इस बार किसी एक पार्टी या एक उम्मीदवार के पक्ष में सामूहिक रूप से मतदान नहीं किया। वहीं दूसरी तरफ 27 मुस्लिम उम्मीदवारों ने हाल में संपन्न चुनावों में जीत हासिल की। हालांकि बीजेपी की ओर से उतारे गए छह में से केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली। जीतने वाले मुस्लिम सांसदों में तृणमूल कांग्रेस के पांच, कांग्रेस के चार, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के तीन-तीन, एआईएमआईएम के दो, एलजेपी, एनसीपी, सीपीएम एवं एआईयूडीएफ के एक-एक सदस्य शामिल हैं। बंगाल के अल्पसंख्यक बहुल जिलों में बड़ी सफलता विपक्षी दल अल्पसंख्यकों के लिए कुछ खास नहीं करने और उन पर हमलों को बढ़ावा एवं सहयोग देने का आरोप बीजेपी पर लगाते रहे हैं। देश के 130 करोड़ लोगों में लगभग 14.2 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अल्पसंख्यक बहुल जिलों में बीजेपी को सबसे अधिक लाभ पश्चिम बंगाल में मिला जहां 18 ऐसी सीटें हैं। उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज में मुस्लिमों की आबादी 49 प्रतिशत है, जहां बीजेपी के देबश्री चौधरी को जीत मिली। 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले जिलों में भी जीत मालदा में मालदा उत्तर सीट पर पार्टी के खगेन मुर्मु ने तृणमूल की मौसम नूर को 84,288 मतों के अंतर से हराया। यहां 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। कूचबिहार सीट पर बीजेपी के नीसिथ प्रमाणिक ने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी से बेहतर प्रदर्शन किया। इसके अलावा जलपाईगुड़ी, उत्तर दिनाजपुर जिले के बालुरघाट, बांकुरा में बिष्णुपुर लोकसभा सीट, हुगली सीट, वर्द्धमान-दुर्गापुर सीट पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।
नई दिल्ली, 28 मई 2019,लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है. नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की तैयारी शुरू हो चुकी है. इसके साथ ही राजनीतिक कयास लगाए जाने लगे हैं कि मोदी सरकार की नई कैबिनेट में किन पुराने चेहरों का कद बढ़ेगा और किन नेताओं की इस बार छुट्टी होगी. इस फेहरिश्त में 6 नाम ऐसे हैं, जिनके पिछले काम को देखकर लगता है कि इस बार उनका प्रमोशन होना लाजमी है. पीयूष गोयल मोदी सरकार की नई कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का कद बढ़ सकता है. 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो पीयूष गोयल को कोयला-पावर एंड न्यू रिन्यूएबल एनर्जी का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी मिली थी. देश में लगातार हो रही ट्रेन दुर्घटना के चलते सुरेश प्रभु के हाथों से रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी लेकर पीयूष गोयल को सौंपी गई थी. यही नहीं अरुण जेटली अपने इलाज के लिए विदेश में थे तो वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी भी पीयूष गोयल के कंधों पर थी, जिसके चलते उन्होंने इस साल का केंद्रीय बजट भी पेश किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पीयूष गोयल काफी भरोसेमंद और करीबी माने जाते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी सरकार की नई कैबिनेट में पीयूष गोयल का प्रमोशन हो सकता है. जनरल वी. के. सिंह जनरल वीके सिंह दूसरी बार गाजियाबाद सीट से जीतकर संसद पहुंचने में सफल रहे. सेना के जनरल के पद से रिटायर होने के बाद वीके सिंह ने 2014 के चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ज्वाइन किया और रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे और मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री बनाए गए थे. राज्यमंत्री रहते हुए वीके सिंह ने बेहतर काम किए थे, इनमें यमन में आईएस आतंकियों के चंगुल में फंसे सैकड़ों भारतीयों को सही सलामत वापस लाने का मामला हो या फिर इराक में आतंकियों के हाथ मारे गए 39 भारतीयों के अवशेष को उनके परिवार तक पहुंचाने का काम हो. ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार मोदी सरकार की नई कैबिनेट में वीके सिंह का कद बढ़ सकता है. धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी के दिग्गज नेताओं में धर्मेंद्र प्रधान का नाम आता है. 2014 में बनी मोदी सरकार में धर्मेंद्र प्रधान पेट्रोलियम मंत्रालय का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी दी गई थी. उज्जवला योजना के तहत देश के गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस कनेक्शन दिए गए. इस योजना के तहत 7 करोड़ लोगों को मुफ्त में गैस कनेक्शन दिए गए. इस योजना का बीजेपी को जबरदस्त फायदा मिला और मोदी सरकार की वापसी में इस योजना की अहम भूमिका मानी जा रही है. इसके अलावा ओडिशा में पार्टी का ग्राफ बढ़ाने में अहम भूमिका रही है. ऐसे में मोदी सरकार की नई कैबिनेट में धर्मेंद्र प्रधान का कद बढ़ाया जा सकता है. राज्यवर्धन सिंह राठौर राज्यवर्धन सिंह राठौर 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा और चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और मोदी सरकार में केंद्रीय खेल राज्यमंत्री बने. इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. स्मृति ईरानी से सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी वापस लेकर राज्यवर्धन सिंह राठौर को स्वतंत्र प्रभार के रूप में सौंपी गई थी. राठौर दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं, ऐसे में मोदी सरकार में अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. बाबुल सुप्रियो पश्चिम बंगाल के आसनसोल सीट से दूसरी बार चुनाव जीतने वाले बाबुल सुप्रियो का कद इस बार बढ़ सकता है. बंगाल में बीजेपी जिस तरह से 42 में से 18 सीटें जीतने में कामयाब रही है. ऐसे में सुप्रियो का कद बढ़ना लाजमी है, क्योंकि डेढ़ साल के बाद ही बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में पार्टी राज्य में ममता से सत्ता छीनने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. हालांकि बाबुल सुप्रियो 2014 में मोदी सरकार में राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. जयंत सिन्हा जयंत सिन्हा हजारीबाग सीट से दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. जयंत को राजनीति उनके पिता यशवंत सिन्हा से विरासत में मिली है. 2014 में पहली बार जयंत सिन्हा संसद पहुंचे तो उन्हें केंद्र की मोदी सरकार में राज्य वित्त मंत्री का दर्जा मिला. इसके बाद जब कैबिनेट में फेर-बदल हुआ तो उन्हें राज्य नागरिक उड्यन मंत्रायल का पद दिया गया. हालांकि उनके पिता यशवंत सिन्हा मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाते रहे, लेकिन जयंत ने बीजेपी का दामन नहीं छोड़ा. माना जा रहा है कि इस बार मोदी कैबिनेट में उनका प्रमोशन हो सकता है.
लखनऊ राष्ट्रीय पार्टी की पहचान बचाने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा ) ने पूरे देश में चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार बसपा को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के तौर पर तगड़ा झटका लगा। यूपी को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में बसपा की गिनी चुनी सीटों के सिवा कहीं भी जमानत तक नहीं बची। यही नहीं कई राज्यों में बसपा को मिले वोटों से ज्यादा उस सीट पर 'नोटा' की संख्या रही। हालांकि पंजाब और मध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर बसपा ने अच्छा प्रदर्शन भी किया। बसपा प्रमुख मायावती ने दक्षिण भारत समेत सभी राज्यों में जमकर प्रचार किया था। राजस्थान और मध्य प्रदेश में बसपा ने कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रखा है। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी होने के नाते अनुमान लगाया जाता है कि अच्छे कामों के चलते चुनावों में उसका प्रदर्शन बेहतर होगा। लेकिन यहां पर कांग्रेस से लेकर बसपा के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। बसपा ने राजस्थान में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जमानत गंवा दी। यही नहीं इन 20 में से 10 सीटें तो ऐसी हैं, जहां पर बसपा से ज्यादा लोगों ने नोटा को वोट दिया। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी बसपा ने कांग्रेस को समर्थन दिया हुआ है लेकिन यहां पर भी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार अपनी जमानत गंवा बैठे। जम्मू कश्मीर में बसपा ने जम्मू और ऊधमपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी उतारा था। पार्टी की दोनों जगह जमानत जब्त हो गई। जम्मू में जहां बसपा प्रत्याशी को 14 हजार, वहीं ऊधमपुर लोकसभा सीट पर 16 हजार वोट मिले। बिहार में भी सभी सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई। हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों में मंडी सीट को छोड़कर सभी जगह बसपा से ज्यादा नोटा को वोट मिला। कर्नाटक और तमिलनाडु समेत केरल में भी पार्टी की जमानत जब्त हो गई। पंजाब की तीन सीटों पर बेहतर प्रदर्शन बसपा को सबसे बड़ी सफलता उत्तर प्रदेश में ही मिली। हालांकि यूपी के बाद पार्टी ने पंजाब की तीन सीटों पर बेहतर लड़ाई लड़ी। बसपा संस्थापक कांशीराम के गृह राज्य पंजाब के आनदंपुर साहिब में पार्टी ने डेढ़ लाख वोट पाए और कुल पड़े मत का तकरीबन 14 फीसदी वोट यहां पर बसपा को मिला। इसी तरह से बसपा ने होशियारपुर में भी सवा लाख से ज्यादा वोट पाकर तकरीबन 13 फीसदी वोटों में सेंधमारी की। पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा पंजाब की जलांधर लोकसभा सीट पर रहा। यहां पार्टी बीस फीसदी वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रही और दो लाख से ज्यादा वोट पाए। महाराष्ट्र में जिन सीटों पर बसपा ने चुनाव लड़ा वहां पर भी जमानत जब्त हो गई जबकि मुंबई शहर की सात में से छह सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बसपा की जमानत तो जब्त ही हुई बल्कि नोटा से भी कम वोट मिले।
नई दिल्‍ली लोकसभा चुनाव 2014 की तुलना में इस साल हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी की लोकसभा सीटें 282 से बढ़कर 303 हो गई हैं। दिलचस्‍प बात यह है कि बढ़ी हुई इन 21 सीटों में से लगभग आधी (10) सुरक्षित सीटें (एससी/एसटी) हैं। इससे पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का जनाधार दलितों और आदिवासियों के बीच बढ़ा है। सुरक्षित सीटों के विश्‍लेषण से पता चलता है कि इन चुनावों में बीजेपी ने 131 सुरक्षित सीटों में से 77 पर जीत हासिल की है, 2014 में यह आंकड़ा 67 था। यह इस लिहाज से अहम है क्‍योंकि ये नतीजे उस आम धारणा के विपरीत हैं जिसके अनुसार माना जाता है कि बीजेपी और दलितों व आदिवासियों के बीच बनती नहीं है। असलियत यह है कि इस बार एससी और एसटी सीटों पर बीजेपी के उम्‍मीदवारों की संख्‍या बढ़ी है वहीं कांग्रेस ने इन क्षेत्रों में अपनी तीन सीटें खोई हैं। कांग्रेस का जनाधार घटा हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में कांग्रेस की सीटों में मामूली सुधार हुआ है, वे 44 से 52 हुई हैं लेकिन उसे इस बार महज 9 सुरक्षित सीटों पर कामयाबी मिली, जबकि 2014 में वह 12 ऐसी सीटों पर विजयी हुई थी। बीएसपी को भी हुआ नुकसान 2014 के चुनावों से पहले उत्‍तर प्रदेश की 17 एससी सीटों में से अधिकतर मायावती की अगुआई वाली बीएसपी के खाते में जाती थीं। लेकिन उन्‍हें इस बार महज 2 सीटें मिली हैं। दलित विचारधारा आधारित यह पार्टी दूसरे प्रदेशों की सुरक्षित सीटों पर तो अपना खाता तक नहीं खोल पाई। जहां तक कुल 84 एससी सीटों की बात है, इस बार बीजेपी को पिछली बार की 40 सीटों की तुलना में 46 सीटें मिली हैं। इनमें यूपी से (14), पश्चिम बंगाल से (5), कर्नाटक से (5), मध्‍य प्रदेश से (4) और राजस्‍थान से (4) सीटें मिली हैं। बीजेपी की सीटों में हुई बढ़त इसी तरह बीजेपी की अनुसूचित जनजाति या एसटी सीटों में भी 2014 की तुलना में बढ़ोतरी हुई है। इस साल उसे पिछले चुनावों की 27 सीटों के मुकाबले 31 सीटें हासिल हुई हैं। बीजेपी के बाद दूसरा नंबर कांग्रेस का है लेकिन उसकी सीटें बीजेपी की तुलना में काफी कम हैं। कुछ राज्‍यों में बीजेपी ने सभी सुरक्षित सीटें अपने नाम कर ली हैं। इनमें मध्‍य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्‍थान और गुजरात शामिल हैं। वाईएसआर कांग्रेस ने भी आंध्र प्रदेश में सभी 4 एससी सीट और इकलौती एसटी सीट पर विजय दर्ज की। देश में 84 सीटें एससी और 47 एसटी के लिए रिजर्व देश के 27 राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एससी/एसटी की जनसंख्‍या के आधार पर इनके लिए सीटें रिजर्व या सुरक्षित होती हैं। इन सीटों पर केवल रिजर्व कैटिगरी के ही उम्‍मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं, जबकि वोट देने का अधिकार सभी वर्ग के मतदाताओं को होता है। हालांकि, एससी/एसटी कैंडिडेट देश में किसी भी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। 2008 के परिसीमन आयोग के मुताबिक इस समय देश में 412 सीटें सामान्‍य, 84 एससी और 47 एसटी के लिए रिजर्व हैं।
नई दिल्ली, 25 मई 2019,लोकसभा चुनाव 2019 को कई चीजों के लिए याद किया जाएगा. चाहे बात बयानबाजी की हो या एक दूसरे पर हमले के लिए नारेबाजी का प्रयोग करना. इस दौरान कुछ चीजें ऐसी भी थीं जो कैमरे की निगाहों से दूर रहीं, लेकिन नतीजों पर उसका सबसे ज्यादा असर हुआ. आइए एक बार उन सभी मुद्दों पर नजर दौड़ाते हैं. 'मोदी है तो मुमकिन है' यह नारा यूं ही सफल नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे की मेहनत और रणनीति कुछ ऐसी रही जिसने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अभेद्य बना दिया. कार्यकर्ताओं के साथ ही प्रयोग कैसे साबित हुआ गेम चेंजर! बीजेपी ने चुपचाप अपने कार्यकर्ताओं को एक काम दिया था और वो काम था मतदान के दिन सुबह 10 बजे के पहले पूरे परिवार का वोट डलवा देना. यह बीजेपी के अपने उस 'ए' ग्रेड के बूथ प्रबंधन का जिम्मा था जहां बीजेपी हमेशा जीतती रही है. इसके तहत बीजेपी ने अपने बूथों पर भारी मतदान की रणनीति बनाई थी और वह उसमें सफल रही. कैसे कार्यकर्ताओं ने जलपान के पहले परिवार के मतदान को बनाया मूल मंत्र प्रदेश के 1 लाख 37 हजार बूथ, जहां बीजेपी का संगठन है उसमें साठ हजार बूथ बीजेपी के ए ग्रेड के बूथ हैं. जहां बीजेपी ने 'जलपान से पहले कार्यकर्ता परिवार का मतदान' का अभियान सफल बनाया. बीजेपी का दूसरा बड़ा कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के योजनाओं से लाभान्वित परिवारों तक पहुंचने का था. प्रत्येक बीजेपी के कार्यकर्ता को 5 लाभार्थियों तक पहुंचने का टारगेट दिया गया था, जिसे बढ़ाकर बीजेपी ने 20 किया और अपने चुनाव प्रचार के पहले बीजेपी ने यह टारगेट पूरा कर लिया यानी बीजेपी का हर कार्यकर्ता किसी न किसी लाभार्थी के घर पहुंचा और मोदी की योजनाओं के नाम पर सीधे वोट मांगे. बीजेपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल जिन्हें उत्तर प्रदेश में बीजेपी संगठन का चाणक्य कहा जाता है उन्होंने बीजेपी के एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं से संवाद किया और फीडबैक लिया और यही रणनीति बीजेपी को यूपी में 50 फीसदी से ज्यादा वोट दिलाने सफल रही. जब उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बन रहा था तभी अमित शाह ने 51 फीसदी वोट का टारगेट तय किया था जिसे पूरा करना आसान नहीं था क्योंकि बीजेपी को 2014 में 43 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. इस बार 7 फीसदी वोट बढ़ाना किसी सपने के सच होने जैसा है. कैसे धराशाई हुआ महागठबंधन? यूपी बीजेपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने आज तक को बताया कि 53 सीटों पर बीजेपी का जीतना तय था 27 सीटों पर कड़ा मुकाबला था और ऐसी सीटों पर ही हमारे प्रबंधन, कार्यकर्ताओं के जोश और उत्साह ने बहुत मदद पहुंचाई. प्रधानमंत्री की योजनाएं और अमित शाह के प्रबंधन कुशलता जमीन पर उतरी और जमीन पर बने माहौल ने हमारे चुनाव प्रचार को धार दिया जिसकी वजह से महागठबंधन ऊपर तो भारी दिखता रहा लेकिन नीचे से उसकी जमीन खिसकती रही.
नई दिल्ली, 23 मई 2019,लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों की तस्वीर अब लगभग साफ हो गई है. एक बार फिर नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. मोदी नाम की सुनामी इतनी तेज है कि देश के कई हिस्सों में भारतीय जनता पार्टी ने क्लीन स्वीप कर दिया है. चोट भले ही कांग्रेस को पहुंची है, लेकिन इस सुनामी में सबसे ज्यादा दर्द क्षत्रपों को हुआ है. क्योंकि बीजेपी ने इस बार वहां वार किया है, जहां टीएमसी, बीजेडी, एनसीपी, सपा, बसपा मजबूत थे और मोदी नाम की आंधी ने इनके किले को ढेर कर दिया है. पहली बार दीदी के घर में घुसपैठ अमित शाह ने वादा किया था कि इस बार बीजेपी बंगाल में 23+ सीटें लाएगी. अभी तक जो रुझान/नतीजे सामने आए हैं, वो इसी की गवाही दे रहे हैं. दोपहर 12 बजे तक बंगाल की कुल 42 सीटों में से भाजपा 17 पर बढ़त बनाए हुए है और टीएमसी 24 सीटों पर आगे है. 2014 में ममता बनर्जी की पार्टी 35+ सीटों पर कब्जा जमाए हुई थी. ना सिर्फ सीटें बल्कि वोट शेयर के मामले में भी बीजेपी ने बड़ी बढ़त बनाई है. बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच आरपार की लड़ाई हुई, हिंसा भी हुई. टीएमसी की सरकार की ओर से बीजेपी के कई नेताओं के हेलिकॉप्टर को भी रोक दिया. नवीन बाबू के गढ़ में मोदी की सेंध ओडिशा में एकछत्र राज चलाने वाले नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी इस बार मोदी की आंधी में साफ हो गई. 21 सीटों वाले राज्य में बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और सात सीटों पर आगे चल रही है. बीजेडी 14 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. ओडिशा में बीजेडी का एकछत्र राज माना जाता है, लेकिन विधानसभा में तो उनका जादू चला लेकिन लोकसभा में बीजेपी ने अपनी ताकत बढ़ाई. दो लड़कों के बाद बुआ-बबुआ की उखाड़ी जड़ें उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ मायावती और अखिलेश यादव साथ आए थे. 25 साल की दुश्मनी भुलाई, एक साथ कई सभाएं की, प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा लेकिन सबकुछ धरा का धरा रह गया. ना जाति का जोर चला, ना ही किसी और तरह की कोशिश काम आई. बीजेपी के काम आया तो सिर्फ नरेंद्र मोदी का नाम. यूपी में बीजेपी 55 सीटों पर आगे चल रही है, तो वहीं महागठबंधन सिर्फ 24 सीटों पर ही जीत हासिल करने की कगार पर है. यानी चुनाव से पहले जो दावे किए जा रहे थे, वो पूरी तरह फेल रहे. हालांकि, बीजेपी को थोड़ा नुकसान तो हुआ है वह 73 के नंबर से 55 पर आ गई है. लेकिन जो गठबंधन दावा कर रहा था, वैसा बड़ी चोट नहीं लग पाई. नहीं काम आया शरद पवार का दांव विपक्षी नेताओं में शरद पवार ही ऐसे कद के नेता थे, जो अपने दांव पेच से मोदी को टक्कर दे सकते थे. लेकिन महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस की जोड़ी को मुंह की खानी पड़ी. कुल 48 सीटों वाले राज्य में बीजेपी-शिवसेना की जोड़ी 44 सीटें जीतती हुई दिखाई दे रही है. यानी जिन शरद पवार को प्रधानमंत्री पद की रेस में माना जाता था वो अपने ही किले को बचाने में नाकाम रहे हैं. केजरीवाल का और भी बुरा हाल आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनाव से पहले दावे कर रहे थे कि वह 7 सीटों पर जीतने वाले हैं. उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कही थी, लेकिन वो नहीं हो सका. सात सीटों पर अभी तक जो रुझान आए हैं, उनमें ‘आप’ तीसरे नंबर पर दिख रही है. एक तरफ से अरविंद केजरीवाल, दिल्ली-पंजाब-हरियाणा-गोवा में गठबंधन की बात कर रहे थे और जब नतीजे सामने आए तो सारे अरमान धुल गए. बिहार में बहार है! बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राजद यानी लालू यादव की पार्टी का मोदी की सुनामी में कुछ पता ही नहीं चला. चुनाव से पहले राजद ने एनडीए के ही कुछ दलों को तोड़ और कांग्रेस को साथ लाकर, महागठबंधन बनाया. पांच पार्टियों वाला ये गठबंधन, 40 में से सिर्फ 2 सीट पर लटकता दिखाई दे रहा है. जो तेजस्वी यादव लगातार लालू यादव के नाम पर वोट मांग रहे थे, लेकिन पूरा खेल ही पलट गया. एक तरफ से पहले ही उनकी पार्टी में रार चल रही थी, उनके भाई तेज प्रताप यादव लगातार धमकियां दे रहे थे. लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों की बिजली अब उनपर कहर बनकर टूटी है
नई दिल्ली, 23 मई 2019, लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के लिए कुल 542 सीटों पर मतगणना चल रही है. बीजेपी की अगुवाई वाली NDA को 336 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है, तो यूपीए 100 सीटों तक सिमटी दिख रही है. कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए से ज्यादा अन्य दलों को सीटें मिलती दिख रही हैं. अन्य दलों के उम्मीदवार 106 सीटों पर आगे चल रहे हैं. भले ही ये अभी रुझान हैं, मगर यह तय हो चुका है कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत से सरकार बनाने जा रही है. इस लोकसभा चुनाव में मोदी पहले से भी ज्यादा मजबूत नेता बनकर उभरे हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव के इन रुझानों से कई बड़े संकेत और संदेश निकल रहे हैं. जानिए क्या हैं ये संदेश. 1- लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नरेंद्र मोदी पहले से अधिक मजबूत प्रधानमंत्री बनकर उभरेंगे. नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी तीसरे ऐसे नेता हैं जो पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा वापसी कर रहे हैं. 2- ...मोदी हैं तो मुमकिन है, अबकी बार, फिर मोदी सरकार, बीजेपी तीन सौ के पार, आएगा तो मोदी ही, मैं भी चौकीदार,....लोकसभा चुनाव की कैंपेनिंग के दौरान उछाले गए ये सभी नारे सच साबित हो रहे हैं. लोगों ने इन नारों में यकीन दिखाया. 3- इस लोकसभा चुनाव में अमित शाह सबसे बड़ी कहानी बनकर उभरे हैं. उनके बूथ प्रबंधन ने सबको हैरान करके रख दिया है. 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' महज एक स्लोगन भर नहीं रहा, बल्कि राजनीति के विद्यार्थियों के लिए यह एक अध्ययन का विषय हो गया है. 4- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को आत्ममंथन कर खुद को नए सिरे से तैयार करने की जरूरत पड़ेगी. राजनीति की जमीन पर उनकी लव-पॉलिटिक्स कहीं नहीं ठहरी. 5- यूपी में बुआ-बबुआ महागठबंधन की बहुत अधिक चर्चा रही, फिर भी यह फेल साबित होता दिख रहा है. हालांकि इस गठबंधन के फेल होने की अटकलें पहले से लग रहीं थी. लोकसभा चुनाव के रुझान देखें तो सपा-बसपा और रालोद का महागठबंधन 30 का आंकड़ा भी पार करता नहीं दिख रहा है. 6- कांग्रेस महासचिव के तौर पर राजनीति में उतरने वालीं प्रियंका गांधी का उत्तर प्रदेश में जादू नहीं चला. उन्हें अब अगली बार के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है. जबकि प्रियंका गांधी को चुनाव में ट्रंप कार्ड माना जा रहा था. 7- दिल्ली के रुझान बता रहे हैं कि बीजेपी 7- 0 के साथ क्लीन स्वीप करने जा रही है. चुनाव से पहले तमाम कोशिशों के बावजूद आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन भी नहीं हो सका, सभी सातों सीटें बीजेपी को जा रहीं हैं. 8- पश्चिम बंगाल में 'ममता बनाम मोदी' की प्रतिष्ठापरक लड़ाई में बीजेपी ने दबदबा कायम किया है. बीजेपी इस राज्य में दमदार प्रर्दशन कर सबको हैरान कर दिया है. 9- बिहार में लालू यादव के वारिस तेजस्वी यादव में संभावनाएं देखी जा रहीं थीं, नीतीश-मोदी की जोड़ी के आगे राजद, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों का गठबंधन पूरी तरह फेल साबित हुआ है. दिलचस्प बात है कि लालू की बेटी मीसा भारती पाटलिपुत्र सीट से आगे चल रहीं हैं. 10- मोदी लहर एक बार फिर तमिलनाडु में चेन्नई के समुद्र तट को नहीं छू पाई. तमिलनाडु में बीजेपी इस बार अच्छे प्रदर्शन का सपना संजोई थी, मगर पूरे देश में लहर क्या सुनामी होने के बावजूद तमिलनाडु में असर नहीं दिखा. यहां सत्ताधारी एआईएडीएमके पर डीएमके भारी पड़ी दिख रही. 11- लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड के आगे विपक्ष के आरोप असरहीन दिखा. भगवाधारी प्रत्याशियों का दबदबा देखने को मिला. साध्वी निरंजन ज्योति, साक्षी महराज भी चुनाव मैदान में दबदबा कायम करते दिखे. 12- सेंसेक्स में उछाल जारी है. पहली बार सेंसेक्स 40 हजार अंकों के पार गया है. बाजार और उद्योग ने भी रुझान को सकारात्मक लेते हुए स्थिरता के संकेत दिए हैं.
नई दिल्‍ली 2019 के लोकसभा खत्म हो चुके हैं. काउंटिंग 23 मई को होगी और उसी दिन नतीजे आएंगे. इससे पहले एग्जिट पोल्स ने सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (BJP) को कमबैक के संकेत दिए हैं. जिससे के बाद दूसरे राजनीतिक दल ईवीएम को लेकर फिर मुखर हो गए हैं. बिहार, हरियाणा और यूपी में ईवीएम से छेड़छाड़, ईवीएम बदलने जैसी घटनाओं की खबरें भी आ रही हैं. पर क्या ऐसा हो सकता है? क्या चुनाव आयोग वोटिंग के बाद ईवीएम के रखरखाव में वाकई में लापरवाही होती है? वोट पड़ने और काउंटिंग के बीच कहां-कहां जाती है EVM एक ईवीएम तीन यूनिट से मिलकर बनती है. पहली कंट्रोल यूनिट, दूसरी बैलट यूनिट और तीसरी VVPAT. कंट्रोल और बैलट यूनिट 5 मीटर लंबी केबल से जुड़ी होती हैं. कंट्रोल यूनिट बूथ में मतदान अधिकारी के पास रखी होती है जबकि बैलेटिंग यूनिट वोटिंग मशीन के अंदर होती है जिसका इस्तेमाल वोटर करता है. इसी के पास होती है VVPAT यूनिट. ईवीएम में छेड़छाड़ को लेकर पहले भी कई सवाल उठ चुके हैं जिसमें चुनाव आयोग ने साफ किया है कि टेंपरिंग संभव नहीं है. फिर राजनीतिक दल इस चीज को मानने को तैयार नहीं. चुनावी मौसम में ईवीएम का रोना फिर शुरू हो जाता है. लेकिन चुनाव आयोग की मानें तो ईवीएम पूरी तरह से चिप से बनी होती है और इसे किसी भी तरीके से टेंपर नहीं किया जा सकता है. Close बदन दबाने के बाद काम नहीं करती EVM एक बूथ में चुनाव होने के बाद मतदान अधिकारी ईवीएम की 'Close' बटन दबा देता है. 'Close' बटन दबाने के बाद ईवीएम पूरी तरह से बंद हो जाती है और इसके बाद कोई बटन काम नहीं करती है. यह बटन दबाते ही ईवीएम की स्क्रीन पर पोलिंग क्लोज टाइमिंग और पड़ने वाले टोटल वोट काउंट हो जाते हैं. इसके बाद पीठासीन अधिकारी तीनों यूनिट को अलग कर देते हैं. पार्टियों के प्रत्याशियों के सामने सील होती है ईवीएम हालिया लोकसभा चुनाव में पीठासीन अधिकारी रहे संतोष कुमार सक्सेना बताते हैं कि, वोटिंग के बाद मशीन को कैरिंग बैग में डाल दिया जाता है. प्रेक्षक अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी, एसपी, सहायक रिटर्निंग ऑफिसर, अनुविभागीय अधिकारी, पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने ईवीएम को सील किया जाता है. तीनों मशीनों पर पोलिंग बूथ का एड्रेस और पीठासीन अधिकारी के दस्तखत होते हैं. इस दौरान हर पार्टी के 2-2 एजेंट मौजूद होते हैं. इसमें एक मुख्य एजेंट और दूसरा रिलीवर होता है. किसी भी पोलिंग बूथ पर एक पीठासीन अधिकारी और तीन मतदान अधिकारी होते हैं. सघन सुरक्षा घेरे में होती है ईवीएम मध्यप्रदेश के कटनी जिले के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी डॉ. पंकज जैन ने बताया कि वोटिंग के बाद चुनाव आयोग के दिशानिर्देश का पालन कर ईवीएम को सघन सुरक्षा घेरे में स्ट्रांग रूम तय लाया जाता है. बूथ से लेकर स्ट्रांग रूम तक पहुंचने में ईवीएम की सुरक्षा में पैरामिलिट्री फोर्स, पीएसी के जवान और लोकल पुलिस होती है. इनके साथ कार्यपालिक मजिस्ट्रेट और चुनाव अधिकारी भी होते हैं. स्ट्रांग रूम से पहले ईवीएम एकत्रित करने के लिए विधान सभा के अनुसार सेंटर बनाए जाते हैं. जहां पर चुनाव अधिकारी अपने-अपने बूथ की ईवीएम जमा करते हैं.' परींदा भी नहीं मार सकता पर ईवीएम सुरक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले एडीएम प्रशासन डॉ. राकेश कुमार पटेल का कहना है कि, 'ईवीएम में किसी तरीके से छेड़छाड़ संभव नहीं है. ईवीएम को सघन सुरक्षा में पोलिंग बूथ से स्ट्रांग रूम तक लाया जाता है. स्ट्रांग रूम में ऑब्जर्वर, अभ्यर्थियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ रिटर्निंग ऑफिसर और सहायक रिटर्निंग ऑफिसर की मौजूदगी में मशीनों सील कर दिया जाता है. जिस कमरे में ईवीएम रखी जाती है. उसके दरवाजे पर डबल लॉक लगाने के बाद एक 6 इंच की दीवार भी बनाई जाती है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान वीडियोग्राफी भी की जाती है. अगर कोई ताला तोड़कर उस कमरे में घुसने की कोशिश भी करेगा तो सबसे पहले दीवार को तोड़ना पड़ेगा. दीवार टूटने से पता चल जाएगा कि किसी ने स्ट्रांग रूम में घुसने की कोशिश की है. इतना ही नहीं स्ट्रांग रूम के आसपास इतनी कड़ी सुरक्षा होती है कि कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है, इंसान तो दूर की बात है.' तीन लेयर में जवान चौथी में सीसीटीवी एडीएम पटेल के अनुसार स्ट्रांग रूम के बाहर तीन लेयर की सुरक्षा होती है. पहले लेयर में पैरामिलिट्री फोर्स, पीएसी के जवान और फिर राज्य पुलिस के जवान तैनात होतै हैं. ये जवान 24 घंटे अलग-अलग शिफ्ट में ड्यूटी देते हैं. स्ट्रांग रूम के एरिया को एक तरह छावनी बना दिया जाता है. जवान यहां तंबू लगाकर रहते हैं और ड्यूटी देते हैं. इतना ही नहीं प्रत्याशी को किसी भी प्रकार की कोई शंका न हो ऐसे में उनके प्रतिनिधियों के रहने के लिए भी तंबू-टेंट की व्यवस्था जिला निर्वाचन आयोग की ओर से की जाती है. इसके अलावा स्ट्रांग रूम के बाहर सीवीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं जिनकी मॉनिटरिंग के लिए अलग से रूम में गार्ड्स तैनात रहते हैं. पावर बैकअप की भी व्यवस्था होती है.' कैसे अलॉट होती हैं ईवीएम वोटिंग के एकदिन पहले पीठासीन अधिकारियों को EVM अलॉट होती हैं. इसके लिए बाकायदा पूरी एक प्रक्रिया है. किस बूथ के लिए कौन-सी कंट्रोल यूनिट, बैलट यूनिट (EVM) और कौन-सी VVPAT जारी होगी. उसकी पूरी डिटेल सूची तैयार की जाती है. यह सूची चुनाव अधिकारी, प्रत्याशी को पहले ही दे दी जाती है. साथ ही चुनाव आयोग से हर बूथ के लिए एक्सट्रा ईवीएम भी अलॉट होती हैं ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी में इन्हें बदला जा सके. इन मशीनों की डिटेल भी बाकायदा उस लिस्ट में होती है
लखनऊ लोकसभा चुनाव के लिए सभी चरणों का मतदान समाप्त हो चुका है और सीटों के लिहाज से सबसे अहम स्थान रखने वाले उत्तर प्रदेश में वोटिंग का ट्रेंड इस बार भी 2014 के पिछले लोकसभा चुनावों के जैसा ही रहा। यहां पश्चिमी यूपी में इस बार भी मतदान प्रतिशत पूर्वांचल से अधिक रहा। यूपी की राजनीति के दो प्रमुख गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी यूपी और पूर्वी यूपी में वोटर्स ने बूथों तक पहुंचने के लिए 2014 की तरह ही ट्रेंड दिखाया। प्रदेश में हर गुजरते चरण के बाद मतदान प्रतिशत कम होता गया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में पहले 3 चरण के मतदान में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। चौथे चरण से वोटिंग ग्राफ घटता चला गया और सातवें चरण में कुछ ऊपर चढ़ा। पहले चरण में 64 प्रतिशत मतदान हर चरण के अनुसार बात करें तो पहले चरण में 64 प्रतिशत मतदान, दूसरे चरण में 62 प्रतिशत, तीसरे में 61 प्रतिशत, चौथे में 59 प्रतिशत, पांचवें चरण में 58 प्रतिशत और छठें चरण में 54 फीसदी मतदान देखने को मिला। सातवें और अंतिम चरण में पूर्वांचल की 13 सीटों पर मतदान हुआ, जिसमें वाराणसी और गोरखपुर जैसी वीआईपी सीटें शामिल हैं। अंतिम चरण में मतदान 57 फीसदी हुआ। 2014 में हुए आम चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालने पर भी यही ट्रेंड नजर आता है। पिछले चुनाव में पहले चरण में 66 प्रतिशत मतदान, दूसरे चरण में 62 प्रतिशत, तीसरे में 61 प्रतिशत, चौथे में 58 प्रतिशत, पांचवें चरण में 57 प्रतिशत, छठे चरण में 54.5 प्रतिशत, सातवें चरण में 54.9 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसके अलावा 2017 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में भी वोटिंग का यही ट्रेंड देखने को मिला था। राज्य के चुनावों में भी पश्चिम से पूरब की तरफ बढ़ने पर मतदान प्रतिशत में कमी देखने को मिली थी।
मुंबई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर अलग-अलग राय है। शरद पवार को लगता है कि वोटिंग मशीन के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है, लेकिन अजित पवार का कहना है कि ईवीएम मशीन में अगर छेड़छाड़ किया जा सकता था तो भाजपा पांच राज्यों में चुनाव नहीं हारती। गौरतलब है कि पिछले महीने शरद पवार ने कई विरोधी दलों को लेकर मुंबई में ही प्रेंस कॉन्फ्रेंस की जिसमें पवार, चंद्रबाबू नायडू समेत अन्य दलों के नेताओं ने ईवीएम पर संदेह व्यक्त किया था। बुधवार को शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने अपने चाचा के बयान के विपरीत बयान दिया है। अजित पवार ने कहा, ''कई लोगों को ईवीएम पर संदेह है। उन्हें लगता है कि इसके साथ छेड़छाड़ की जा सकती है, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। मुझे ऐसा नहीं लगता है, लेकिन ये लोग ऐसा कहते रहते हैं। अगर ऐसा होता, तो वे (बीजेपी) 5 राज्यों में चुनाव नहीं हारते।' यह पहली बार नहीं हुआ है कि जब उन्होंने ईवीएम का बचाव किया है। पिछले साल 30 अक्टूबर को नागपुर में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, अजित पवार ने कहा था कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से इन मशीनों पर पूरा भरोसा है। पिछले साल नवंबर और दिसंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हुए थे। भाजपा ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा दी थी और अन्य दो राज्यों में भी अपनी छाप छोड़ने में असफल रही।
नई दिल्ली, 16 मई 2019, पश्चिम बंगाल में अमित शाह के रोड शो पर हमले और चुनावी हिंसा को लेकर शिवसेना ने सूबे की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी पर जबरदस्त प्रहार किया है. पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा के लिए ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराते हुए शिवसेना ने उनको कड़ी नसीहत भी दी है. केंद्र और महाराष्ट्र सरकार में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने ममता बनर्जी को घेरते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में हिंसा के लिए आखिरकार कौन जिम्मेदार है? शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने भरतीय जनता पार्टी के नेताओं के हेलिकॉप्टर को उतरने से रोका, तो संघर्ष शुरू हो गया. शिवसेना ने पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा की भी निंदा की. इसके बाद अमित शाह को अपना रोड शो बीच में ही रोकना पड़ा था. शिवसेना ने सामना के संपादकीय में लिखा कि ममता बनर्जी जल्दी गुस्सा हो जाती हैं, लेकिन एक राजनेता को दिमाग ठंडा और जुबानी मीठी रखनी चाहिए. शिवसेना ने कोलकाता में रोड शो के दौरान अमित शाह पर हुए हमले की भी कड़ी निंदा की गई. शिवसेना ने सामना में कहा कि ममता बनर्जी की सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई थी. लिहाजा उनकी जीत या हार का फैसला भी लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए बाधा पैदा करके चुनाव नहीं जीतेंगी. शिवसेना ने सामना के संपादकीय में लिखा कि अमित शाह को इजाजत नहीं देने के फैसले का बचाव करते हुए ममता बनर्जी ने दलील दी थी कि अमित शाह भगवान नहीं हैं, जो उनको रोका नहीं जा सकता है. इस पर तंज कसते शिवसेना ने कहा कि अमित शाह भगवान नहीं हैं, लेकिन ममता बनर्जी भी साध्वी नहीं हैं. बंगाल ने वाम मोर्चे के शासन में हिंसा देखने को मिली थी और अब वैसी ही हिंसा ममता बनर्जी सरकार में देखने को मिल रही है. इसके चलते सूबे में कानून और व्यवस्था तहस नहस हो गई है. शिवसेना का मानना है कि पश्चिम बंगाल सीमावर्ती राज्य होने के चलते बेहद संवेदनशील है. यहां पर हिंसा और अशांति बेहद चिंताजनक है. शिवसेना ने हिंदू और मुसलमानों के बीच पैदा हुए तनाव और बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भी ममता सरकार पर जमकर बरसी. पार्टी ने सामना के संपादकीय में कहा कि पश्चिम बंगाल में हिंदू और मुस्लिमों के बीच तनाव है. तृणमूल कांग्रेस सरकार ने ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोट देने का अधिकार दिया. ममता बनर्जी 'जय श्री राम' के नारे का विरोध कर रही हैं और कह रही हैं कि हम 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम्' कहेंगे. शिवसेना ने सवाल किया कि क्या पश्चिम बंगाल के मुसलमान वंदे मातरम कहेंगे? शिवसेना ने कहा कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के चलते ममता बनर्जी की छवि को भी नुकसान पहुंचा है. आपको बता दें कि शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के जरिए हमेशा राजनीतिक दलों को निशाने पर लेती रहती है. शिवसेना महाराष्ट्र और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार चला रही है, हालांकि कई बार वह बीजेपी को भी निशाने पर ले चुकी है. शिवसेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी कई बार कठघरे में खड़ा कर चुकी है.
कोलकाता भले ही पूरे देश में लोकसभा चुनाव कमोबेश शांतिपूर्ण ही निपटने की ओर हैं, लेकिन भद्रलोक कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में आखिरी दौर की वोटिंग की वोटिंग से पहले हिंसा का तांडव देखने को मिल रहा है। मंगलवार को बीजेपी चीफ अमित शाह के रोड शो के दौरान फैली हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने प्रचार के टाइम को ही लगभग एक दिन कम करते हुए गुरुवार रात 10 बजे तक सीमित करने का फैसला लिया, जबकि कैंपेन शुक्रवार शाम 5 बजे तक चलना था। इस बीच गुरुवार को भी दोनों दलों के बीच घमासान चरम पर है। एक तरफ पीएम मोदी ने ममता को दमदम में शाम को होने वाली अपनी रैली को रोकने की चुनौती दी है तो दीदी ने कहा कि उन्हें विद्यासागर की मूर्ति को लेकर झूठ बोलने पर उठक-बैठक करनी चाहिए। आखिरी राउंड में कम सीटों के लिए बड़ी जंग लोकसभा चुनाव के आखिरी राउंड में 59 सीटों पर वोटिंग होनी है, जिनमें से 9 सीटें पश्चिम बंगाल की हैं। भले ही सीटों की संख्या कम है, लेकिन यहां वोटों के लिए प्रतिस्पर्धा बेहद कड़ी है। वजह यह है कि इन सीटों पर परंपरागत रूप से टीएमसी मजबूत रही है और इस बार उसे बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है। इसके चलते दोनों दलों के बीच जुबानी जंग कई जगहों पर हिंसक झड़पों तक में तब्दील होती दिखी है। मंगलवार को हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने बुधवार को प्रचार का समय कम किए जाने की घोषणा करते हुए कहा कि सूबे में भय और नफरत का वातावरण है। वोटिंग वाले इलाकों में भय का माहौल है। लास्ट राउंड में दमदम, बारासात, बसीरहाट, जयनगर, मथुरापुर, डायमंड हार्बर, जाधवपुर, कोलकाता साउथ, कोलकाता नॉर्थ सीटों पर मतदान होगा। तृणमूल कांग्रेस के लिए बड़ी लड़ाई आखिरी चरण में जिन 9 सीटों पर मतदान होना, वे सभी तृणमूल कांग्रेस का गढ़ मानी जाती हैं। टीएमसी ने 2014 में इन सभी सीटों पर विजय हासिल की थी। इनमें से भी जाधवपुर और साउथ कोलकाता सीट तो ममता बनर्जी का गढ़ मानी जाती हैं। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत यहीं से की थी। बनर्जी ने 1984 में जाधवपुर लोकसभा सीट से सीपीएम के दिग्गज नेता और पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को मात दी थी। यह उनकी अब तक की सबसे चर्चित चुनावी जीत थी। इसके बाद उन्होंने साउथ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना शुरू किया और वहां से लगातार 6 बार सांसद रहीं। डायमंड हार्बर सीट भी खासी चर्चा में है क्योंकि यहां से ममता बनर्जी के भतीजे चुनावी समर में हैं। बीजेपी के लिए बंगाल में बड़ा अवसर 2014 के आम चुनाव में बीजेपी इन 9 लोकसभा सीटों में से 2 पर दूसरे नंबर पर रही थी। कोलकाता नॉर्थ और कोलकाता साउथ लोकसभा सीट पर बीजेपी की बढ़त सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस के लिए नुकसान है। साउथ कोलकाता सीट की ही बात करें तो तृणमूल कांग्रेस को यहां वोट शेयर में 20.24% का नुकसान उठाना पड़ा था, जबकि बीजेपी को 21.33 फीसदी के इजाफे के साथ 25.28 पर्सेंट वोट मिले थे। इसी तरह उत्तर कोलकाता लोकसभा सीट पर भी तृणमूल का वोट शेयर घटकर 35.94 प्रतिशत पर आ गया, जबकि बीजेपी को 25.88% वोट मिले थे। दमदम सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, इसके अलावा बांग्लादेश सीमा से लगी बसीरहाट सीट पर अधिक मुस्लिम जनसंख्या, गोतस्करी और अवैध घुसपैठ के मुद्दे बीजेपी को मदद कर सकते हैं। रैलियां जितनी बड़ी, टकराव उतना ज्यादा? पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में बीजेपी ने अपने दिग्गज नेताओं को चुनाव कैंपेन में उतारा है। पीएम नरेंद्र मोदी दमदम, बसीरहाट, मथुरापुर और डायमंड हार्बर सीट पर रैलियां कर रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी चीफ अमित शाह बारासात, जयनगर और कोलकाता नॉर्थ सीट पर कैंपेन के लिए उतरे हैं। इस तरह बीजेपी की टॉप लीडरशिप बंगाल की लगभग सभी सीटों को कवर कर रही है। पीएम मोदी ने यहां हर चरण में औसतन दो रैलियां की है। इसके अलावा यूपी के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ और स्मृति इरानी भी क्रमश: 3 और 5 रैलियां करने वाले हैं। बीजेपी की ओर से कैंपेन को हाई प्रोफाइल बनाने की वजह से टीएमसी भी यहां प्रचार को लेकर तीखे तेवरों में है और स्थिति हिंसा में तब्दील हो जा रही है।
नई दिल्ली, 14 मई 2019,उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अब सातवें और आखिरी चरण में है. इस चरण में यूपी की 13 लोकसभा सीटें है, जहां 19 मई को मतदान होंगे. ये सभी सीटें पूर्वांचल इलाके की हैं और इनकी जिम्मेदारी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के कंधों पर है. लेकिन प्रियंका गांधी पूर्वांचल को छोड़कर मध्य प्रदेश पंजाब में पार्टी को जिताने के लिए पसीना बहा रही हैं. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि पूर्वांचल में कांग्रेस इस अत्मविश्वास से लबरेज है कि वो चुनावी जंग फतह कर रही है या फिर पूरी तरह से उसने आत्मसमर्पण कर दिया है. आखिरी चरण में उत्तर प्रदेश की महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चन्दौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट पर 19 मई को मतदान होने हैं. इन सीटों पर चुनाव प्रचार का अंतिम दिन शुक्रवार यानी 17 मई को है. इस तरह चुनाव प्रचार के लिए महज तीन दिन का समय बाकी है. ऐसे में प्रियंका गांधी अगर चुनावी कैम्पेन में पूर्वांचल में उतरती है तो अगले तीन दिनों में 13 सीटें कैसे कवर कर पाएंगी? पूर्वांचल की जिन 13 सीटों पर चुनाव हैं, 2014 में ये सभी सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने बड़ी मजबूती के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. सपा प्रमुख अखिलेश और बसपा अध्यक्ष मायावती लगातार पूर्वांचल में संयुक्त जनसभाएं कर रहे हैं. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ भी इन सीटों पर चुनाव प्रचार तेज कर दिए हैं. पिछले दो दिन से पीएम इन इलाके की सीटों पर प्रचार कर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी अभी तक यूपी के आखिरी चरण की सीटों पर चुनावी प्रचार में अभी तक नहीं उतरे हैं. जबकि कांग्रेस कई सीटों पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ रही है. प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं और इन सीटों को जिताने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. इसके बावजूद चुनाव प्रचार में नजर न आना सवाल खड़ा कर रहा है. जबकि प्रियंका गांधी ने राजनीति में एंट्री की थी तो माना जा रहा था कि प्रियंका गांधी पूर्वांचल में पार्टी को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगी. प्रियंका गांधी पूर्वांचल में अपने उम्मीदवारों को छोड़कर सोमवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन, रतलाम और इंदौर में रोड शो और जनसभाएं करके कांग्रेस उम्मीदवार को जिताने के लिए पसीना बहा रही है. इतना ही नहीं मंगलवार को प्रियंका गांधी पंजाब में प्रचार के लिए उतरी हैं. हालांकि माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी बुधवार को वाराणसी और गुरुवार को मिर्जापुर में कार्यक्रम प्रस्तावित हैं. गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी अभियान की शुरूआत प्रयागराज से काशी के लिए किया था. इस दौरान उन्होंने पूर्वांचल की कई सीटों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर फोकस किया था. प्रियंका इस दौरे के बाद वाराणसी अभी तक नहीं गई हैं.
लखनऊ यूपी में लोकसभा चुनाव अब सातवें और आखिरी चरण की ओर बढ़ चुका है। इस चरण की 13 सीटें यूपी से लेकर दिल्ली तक पक्ष-विपक्ष का सिक्का तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी। एसपी-बीएसपी को इस चरण में बीजेपी की चुनौती से पहले बागियों से जूझना पड़ रहा है। कुछ पाला बदलकर दूसरे दलों से उम्मीदवार हैं तो कुछ उदासीन पड़े हुए हैं। यह वह चरण हैं जहां गठबंधन को जीत के लिए कोर वोटरों से आगे भी हिस्सेदारी बढ़ानी पड़ेगी। मोदी लहर में हुए पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस चरण का अधिकतर सीटों पर एसपी-बीएसपी अलग-अलग अपना झंडा गाड़ती रही हैं। धुर जातीय गणित पर लड़ी जाने वाली इन सीटों पर दोनों ही पार्टियों के साथ आने से उनके रणनीतिकारों की जीत की उम्मीद और बढ़ गई है। लेकिन, समस्या अपने ही है। नजीर के तौर पर देवरिया सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार नियाज अहमद ही गठबंधन के लिए चुनौती बने हुए हैं। नियाज पिछली बार यहां बीएसपी से उम्मीदवार थे। घोसी सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार बालकृष्ण चौहान भी बीएसपी से गए हैं। चंदौली में गठबंधन का खेल बिगाड़ रहीं कांग्रेस उम्मीदवार शिवकन्या कुशवाहा मायावती के खास रहे बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी हैं। पिछली बार वह गाजीपुर से एसपी की उम्मीदवार थीं। रार्बट्सगंज से बीजेपी उम्मीदवार पकौड़ी लाल पिछली बार एसपी के उम्मीदवार थे। बिना मैदान में उतरे भी बढ़ा रहे मुसीबत गठबंधन के लिए उनकी ही पार्टी के कई चेहरे बिना चुनाव लड़े भी मुसीबत बन रहे हैं। चंदौली से आखिरी वक्त तक एसपी से एक बड़े सवर्ण चेहरे को टिकट मिलने की चर्चा थी। लेकिन, बाजी लगी दूसरे के हाथ। सूत्रों का कहना है कि चंदौली ही नहीं गाजीपुर तक उनकी उदासीनता एसपी को नुकसान कर सकती है। अखिलेश के धुर विरोधियों में शुमार अफजाल अंसारी की बीएसपी से गाजीपुर में उम्मीदवारी को लेकर भी एसपी में असमंजस की स्थिति है। इसे दूर करने के लिए अखिलेश को खुद गाजीपुर रैली करनी पड़ी। बलिया सीट जो समाजवादियों का गढ़ रही है, वहां भी एसपी के उम्मीदवार चयन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। महराजगंज से अपनी बहन तनुश्री त्रिपाठी के लिए एसपी से टिकट मांगने वाले निर्दलीय विधायक अमन मणि त्रिपाठी इस समय कांग्रेस की रैलियों में दिख रहे हैं। उपचुनाव में गोरखपुर में बीजेपी की जीत का सिलसिला तोड़ने वाले प्रवीण निषाद बीजेपीई हो चुके हैं। केवल अंकगणित से नहीं चलेगा काम! सीधी लड़ाई में एक-एक वोट के हिसाब वाले चुनाव में आखिरी चरण में महज अंकगणित के भरोसे रहना गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। इस चरण की 13 सीटों में 8 सीटों पर बीजेपी को 2014 में एसपी-बीएसपी के कुल वोटों से अधिक वोट मिले थे। इसमें मीरजापुर, कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, सलेमपुर, बांसगांव, रार्बट्सगंज और वाराणसी शामिल है। बलिया और घोसी सीट पर भी बीजेपी व एसपी-बीएसपी के कुल वोटों में मामूली ही अंतर था। हालांकि, उपचुनाव में गोरखपुर सीट जीतकर गठबंधन अंकगणित की ताकत दिखा चुका है। लेकिन, आम चुनाव में फैक्टर, मुद्दे और माहौल अलग हैं। इसलिए, यहां जीत के लिए यादव, दलित, मुस्लिम से आगे भी वोटरों को जोड़ने पर ही बात बनेगी।
संगरूर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रचार अभियान की शुरुआत की। केजरीवाल के चुनाव प्रचार के पहले ही दिन स्थानीय प्रदर्शनकारियों ने उन्हें काले झंडे दिखाए। केजरीवाल संगरूर से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भगवंत मान के लिए प्रचार करने के लिए यहां पहुंचे थे। राज्य को मादक पदार्थों के नाम पर बदनाम करने के लिए प्रदर्शनकारियों ने केजरीवाल के खिलाफ नारे लगाए और उन्हें वापस जाने को कहा। केजरीवाल के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले गुरिंदर सिंह ने कहा,‘पिछले लोकसभा चुनाव में केजरीवाल ने पंजाब को यह कहकर बदनाम किया था कि यह ‘मादक पदार्थों का स्वर्ग है’ और ‘यहां के युवा नशे के आदी हैं’। बाद में, उन्होंने पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से उनके खिलाफ मादक पदार्थों के कारोबार में संलिप्त होने के आरोप लगाने को लेकर बिना शर्त माफी मांगी थी।' शुक्रवार तक पंजाब में ही रहेंगे केजरीवाल उसने कहा, 'मजीठिया से माफी मांगने के बजाए उन्हें पंजाब के लोगों से बार-बार और लगातार झूठ बोलने के लिए माफी मांगनी चाहिए थी।' मजीठिया शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल के बहनोई हैं और पिछली राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। आम आदमी पार्टी के संगठन पदाधिकारियों के अनुसार अरविंद केजरीवाल शुक्रवार तक पंजाब में चुनाव प्रचार करेंगे। लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होना है।
नई दिल्ली, 12 मई 2019,छठे चरण का मतदान खत्म होते ही यूपी कांग्रेस को झटका लगा है. यूपी के भदोही की कांग्रेस जिलाध्यक्ष नीलम मिश्रा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. नीलम मिश्रा ने प्रियंका गांधी पर अपमानित करने का भी आरोप लगाया है. नीलम मिश्रा ने कहा 'लोकसभा टिकट बाहरी और बीजेपी से आए रमाकांत यादव को दिया गया. यह हमारे लिए बहुत बड़ा आघात था. मैंने मीटिंग में प्रियंका गांधी से इस बारे में बातचीत की, लेकिन वह नाराज हो गईं और मुझे अमानित किया.' भदोही में छठे चरण में वोटिंग हुई. यहां से कांग्रेस ने रमाकांत यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी की तरफ से रमेश बिंद और बीएसपी ने रंगनाश मिश्रा को भदोही से टिकट दिया है. रमाकांत यादव को चुनाव आयोग का नोटिस भी मिल चुका है. चुनाव आयोग ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जनता को बताने के लिए कहा था, जिसके लिए उम्मीदवारों को छोटे या बड़े अखबारों में इसे प्रकाशित करवाना था, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार रमाकांत यादव ने इसकी अनदेखी की थी. मामले को गंभीरता से लेते हुए जिला निर्वाचन आयोग ने यादव को नोटिस भेजा था.
नई दिल्ली, 13 मई 2019,लोकसभा चुनाव में छह दौर का मतदान पूरा हो गया है. रविवार को सात राज्यों की 59 सीटों पर मतदान हुआ. राजधानी दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर भी इस दौर में ही मतदान कराया गया, जहां वोटिंग प्रतिशत 2014 के मुकाबले काफी कम रहा. पिछले चुनाव में दिल्ली के 65.1 फीसदी मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया था, जबकि इस बार यह घटकर 60 फीसदी रह गया है. चुनावी विश्लेषण में यह माना जाता है कि ज्यादा वोटिंग सत्ता के विरोध का प्रतीक होती है. तो ऐसे में दिल्ली की कम वोटिंग के क्या मायने हैं ये समझना भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक जो परंपरा रही है, उसके तहत दिल्ली की लोकसभा सीटें जिस पार्टी को मिलती हैं, उसी पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिलता रहा है. हालांकि, दिल्ली में 60 प्रतिशत वोटिंग भले ही 2014 से कम है, लेकिन उससे पहले हुए लोकसभा चुनावों की वोटिंग का ट्रेंड देखा जाए तो आंकड़े थोड़ा हैरान करने वाले हैं. 1977 से लेकर 2009 तक ऐसे तीन ही मौके आए हैं जब दिल्ली में वोटिंग प्रतिशत 60 पार कर पाया हो. साल 1977 में यहां सबसे ज्यादा 71.3 फीसदी वोटिंग हुई थी. इसके बाद 1980 में 64.9 और 1984 में 64.5 फीसदी वोटिंग हुई. यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था. लेकिन 1989 से लेकर 2009 तक हुए सात लोकसभा चुनावों में एक बार भी वोटिंग प्रतिशत 60 का आंकड़ा नहीं छू पाया. कई बार तो यह 50 फीसदी भी नहीं पहुंच सका. अब तक यह रहा वोटिंग प्रतिशत 1989- 54.3% 1991- 48.5% 1996- 50.6% 1998- 51.3% 1999- 43.5% 2004- 47.1% 2009- 51.9% इसके बाद दिल्ली में अन्ना आंदोलन हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. लोकपाल आंदोलन के बीच कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा नजर आया. जिसका नतीजा ये हुआ कि 2014 में दिल्ली की जनता ने 65 फीसदी मतदान किया और सातों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई. हालांकि, दिल्ली से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि कम वोटिंग प्रतिशत में भी यहां की जनता एक चुनाव में किसी एक पार्टी को ही प्रमुखता से चुनती रही है. मसलन, 2009 में सभी सात सीटें कांग्रेस को मिलीं, 2004 में कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं, 1999 में बीजेपी को सातों सीट मिलीं, 1998 में बीजेपी को 6 सीटें मिलीं. इससे पहले भी कभी ऐसे चुनाव नतीजे नहीं आए, जिसमें कांग्रेस या बीजेपी दोनों में आधी-आधी सीटें बंट गई हों. यहां तक कि 1989 में तो बीजेपी महज 26 फीसदी पाकर भी चार सीट जीत गई और कांग्रेस 43 फीसदी वोटर लेकर भी 2 सीटों पर ही जीत सकी. जबकि एक सीट जनता दल को मिली थी. पीएम नरेंद्र मोदी भले ही 2014 में सत्ता विरोधी लहर की बात करते हुए 2019 में सत्ता समर्थन लहर का दावा कर रहे हों, लेकिन आकंड़ों पर गौर किया जाए तो दिल्ली के मतदाता कम वोट करके भी किसी एक पार्टी को ही बहुमत देते रहे हैं. aajtak
नई दिल्ली रविवार को लोकसभा चुनाव के 59 सीटों पर वोटिंग समाप्त होने के साथ ही अबतक 543 सीटों में से 89% पर यानी 484 सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो वोटिंग आमतौर शांतिपूर्ण ही रही। उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कुछ जगहों ईवीएम में खराबी की शिकायतें जरूर आईं। हालांकि अगर अभी तक हुए 6 चरणों की वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो यह फेज दर फेज घटी ही है। पहले फेज में सबसे ज्यादा वोट पड़े तो छठे फेज में सबसे कम। इसबार भी बंगाल में सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या 2019 में 2014 में हुए 66.4% वोटिंग का रेकॉर्ड टूट पाएगा? छठे चरण में 63.49% वोटिंग हुई है। हालांकि चुनाव आयोग ने कहा है कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ भी सकता है। पश्चिम बंगाल में रेकॉर्ड 80.35% से वोटिंग हुई है। दिल्ली में करीब 60% मत पड़े जो 2014 में 65% की तुलना में कम है। यूपी के 14 लोकसभा क्षेत्रों में 54.74% जबकि बिहार की 8 सीटों पर 59.29% वोटिंग हुई। हरियाणा के सभी 10 सीटों पर एक ही चरण में वोटिंग हुई और कुल 68.34% मत पड़े। झारखंड में 4 लोकसभा सीट में 64.50% और मध्य प्रदेश की 8 सीटों पर 64.76% वोटिंग हुई। 17वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव में हर चरण की वोटिंग के मतदान प्रतिशत घटता गया है। लोकसभा चुनाव का पहला चरण 11 अप्रैल को शुरू हुआ था। तो क्या वोटरों का उत्साह पिछले चुनाव की तुलना में घट रहा है? विशेषज्ञों का भी अनुमान था कि इस साल चुनाव में सबसे ज्यादा वोटिंग प्रतिशत देखने को मिल सकता है। अगर वोटिंग टर्नआउट की बात करें तो आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, कर्नाटक में 1962 के बाद सबसे ज्यादा वोटिंग हुई है। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की स्टडी के अनुसार छत्तीसगढ़ में 15 साल में सबसे ज्यादा और महाराष्ट्र में 30 साल में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई है। सातवें और अंतिम चरण में वोटिंग प्रतिशत से यह पता चलेगा कि क्या 2019 में 2014 के वोट पर्सेंट का रेकॉर्ड टूटेगा या नहीं?
भोपाल भीषण गर्मी और तेज धूप के बाद भी देश का दिल कहे जाने वाले मध्‍य प्रदेश में रविवार को 80 लाख वोटर घरों से निकले और वोट देकर लोकतंत्र के महापर्व लोकसभा चुनाव में हिस्‍सा लिया। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पोलिंग का आंकड़ा करीब 8 प्रतिशत बढ़कर करीब 65 फीसदी हो गया। सबसे ज्‍यादा 74 फीसदी वोटिंग राजगढ़ में हुई वहीं साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर और दिग्विजय सिंह के कारण हॉट सीट बनी भोपाल में अब तक के सारे रेकॉर्ड टूट गए और यहां पर 65.7 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। भोपाल लोकसभा सीट पर बीजेपी की फायर ब्रैंड नेता साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह के बीच चुनावी जंग ने भीषण गर्मी में भोपाल का राजनीतिक तापमान डबल कर दिया। हालत यह हो गई कि इस बार मोदी लहर से भी 8 फीसदी ज्‍यादा लोगों ने वोट दिया। मतदान के इस बढ़े से माना जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच कांटे की टक्‍कर होने के आसार हैं। मोदी-राहुल गांधी ने नहीं किया प्रचार भोपाल में मतदान की यह हालत तब है जब न तो पीएम मोदी ने और न ही कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने भोपाल में चुनाव प्रचार किया है। दिग्‍गी और साध्‍वी के बीच इस चुनावी जंग के परिणाम पर अब पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। चुनाव प्रचार के दौरान दिग्विजय सिंह ने भोपाल के विकास पर जोर दिया उधर, साध्‍वी ने भी बाद के दिनों में भोपाल को बेहतर बनाने का आपना खाका पेश किया। विकास के मुद्दे से इतर पूरे प्रचार के दौरान हिंदुत्‍व का मुद्दा छाया रहा। प्रज्ञा ठाकुर ने इस चुनाव 'धर्म युद्ध' करार दिया और कहा कि उन्‍हें 'बाबरी मस्जिद को गिराने में सहयोग करने पर गर्व है।' वहीं दिग्विजय सिंह ने चुनाव प्रचार के दौरान कई मंदिरों का दौरा किया और कंप्‍यूटर बाबा के नेतृत्‍व में सैकड़ों साधुओं ने 'हठ योग' किया। इसके जरिए दिग्विजय ने प्रज्ञा ठाकुर के हिंदुत्‍व के दांव को कुंद करने की कोशिश की। साध्‍वी बनाम दिग्‍गी की जंग का असर मतदान पर साध्‍वी बनाम दिग्‍गी की इस जंग का असर मतदान पर भी साफ नजर आया। मतदान केंद्रों पर रविवार को सुबह सात बजे से ही लंबी-लंबी लाइनें देखी गईं। दोपहर एक बजे तक 35 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर लिया था जबकि उस समय तापमान 40.7 डिग्री सेल्सियस था। भोपाल मध्‍य और भोपाल उत्‍तर में मतदान थोड़ा धीमा रहा लेकिन बाद में इसमें तेजी आई। बेरासिया और सेहोर विधानसभा सीटों पर क्रमश: 77 और 76 फीसदी मतदान हुआ। हालांकि भोपाल में मतदान के बाद भगवा ब्रिगेड को एक बुरी खबर भी मिली। बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले गोविंदपुरा इलाके में मात्र 59.8% फीसदी मतदान हुआ। विधानसभा चुनाव में भोपाल दक्षिण-पश्चिम और भोपाल मध्‍य में कांग्रेस को जीत मिली थी और यहां पर क्रमश: 59.4% और 59.3% फीसदी मतदान हुआ। माना जा रहा है कि भोपाल में इतनी ज्‍यादा वोटिंग होने के पीछे वजह यह रही कि दोनों ही पक्षों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी और मतदाताओं को वोटिंग केंद्रों तक लेकर आए। ग्रामीण और उपनगरीय इलाके में जमकर मतदान राजनी‍तिक विश्‍लेषक आरएस तिवारी के मुताबिक इस बार के चुनाव में चुनाव आयोग ने भी काफी प्रयास किया जिसका असर मतदान के प्रतिशत पर साफ नजर आया। बता दें कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भोपाल में 44.69 प्रतिशत और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 57.79 प्रतिशत मतदान हुआ था। रविवार को भोपाल के ग्रामीण और उपनगरीय इलाके में जमकर मतदान हुआ।
आजमगढ़/फूलपुर उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 53 पर वोटिंग हो चुकी है और रविवार को हो रहे छठे चरण में प्रदेश की 14 सीटों पर मतदान जारी है, जिसमें से 13 पर 2014 के चुनाव में बीजेपी ने झंडा लहराया था। एकमात्र सीट आजमगढ़ की थी, जो समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के कब्जे में आई थी। इस बार आजमगढ़ की सीट से मुलायम की विरासत को बचाने के लिए उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में उतरे हैं। आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी- बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर अखिलेश चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने बीजेपी के प्रत्याशी और भोजपुरी फिल्मों के ऐक्टर दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ताल ठोक रहे हैं। अखिलेश पूर्वांचल के इस बेल्ट में अपनी पोजिशन मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस ने इस सीट से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। वहीं फूलपुर सीट पर भी भारतीय जनता पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उपचुनाव में यह सीट गंवाने के बाद इस बार बीजेपी ने कुर्मी बहुल इस सीट पर केशरी देवी पटेल पर दांव खेला है। कांग्रेस ने भी यहां पर पंकज पटेल को टिकट देकर कुर्मी कार्ड खेला है। वहीं बीएसपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही समाजवादी पार्टी ने पंधारी यादव को मैदान में उतारा है। बात अगर संतकबीरनगर लोकसभा सीट की करें तो यहां मुकाबला त्रिकोणीय है। सांसद और विधायक के बीच मारपीट की घटना से सुर्खियों में आई इस सीट पर बीजेपी ने शरद त्रिपाठी का टिकट काटकर प्रवीण निषाद को कैंडिडेट बनाया है। निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद के बेटे प्रवीण ने गोरखपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इस बार वह पाला बदलकर चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला गठबंधन की तरफ से बीएसपी के प्रत्याशी भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी तथा कांग्रेस के भालचंद्र यादव से है।
नई दिल्ली लोकसभा चुनाव का सफर दिल्ली तक पहुंच गया है। रविवार को 7 राज्यों की 59 सीटों में से दिल्ली की सात सीटों पर भी वोटिंग होगी। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव ने दिल्ली के राजनीतिक समीकरण को कांग्रेस के खिलाफ कर दिया और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस राजधानी में अपनी खोई जमीन को फिर से पाने के लिए पूरी जोर लगा रही है। 2015 में एकतरफा जीत हासिल करते हुए दिल्ली में सरकार बनाने वाली AAP धीरे-धीरे अपनी चमक खो रही है, जबकि बीजेपी को ऐंटी-पार्टी वोटों के AAP और कांग्रेस में संभावित बंटवारे में फायदा दिख रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के बीच आखिरी वक्त तक गठबंधन को लेकर बातचीत चली लेकिन आखिरकार कोशिश नाकाम हो गई और कांग्रेस ने अपने दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतार दिया। कांग्रेस की तरफ से खुद पूर्व मुख्यमंत्री और दिल्ली कांग्रेस प्रमुख शीला दीक्षित, अजय माकन, महाबल मिश्रा और जेपी अग्रवाल मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने भी राघव चड्ढा और आतिशी जैसे अपने लोकप्रिय चेहरों को चुनाव मैदा में उतारा जिन्हें राजधानी के सरकारी स्कूलों की सूरत 'बदलने' का श्रेय दिया जाता है। इनके अलावा दिलीप पांडे को भी AAP ने मैदान में उतारा है। 2014 में दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी ने हर्ष वर्धन और मनोज तिवारी समेत अपने 5 मौजूदा सांसदों पर दांव खेला है। पार्टी को उम्मीद है कि मोदी की लोकप्रियता और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पैदा हुई राष्ट्रवाद की लहर उसके पक्ष में काम करेगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में हुई सीलिंग पार्टी की चिंता बढ़ा रही है। AAP- कांग्रेस वोट शेयर बीजेपी ने दिल्ली में पिछली बार 46 प्रतिशत वोटों पर कब्जा किया था, जबकि AAP को 33 प्रतिशत और कांग्रेस को 15 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, 2015 में आम आदमी पार्टी ने 54 प्रतिशत वोटों पर कब्जा किया था। प्रेक्षकों का कहना है कि केजरीवाल की पार्टी और कांग्रेस का वोटर बेस एक ही है, जिनमें मुस्लिम, अनधिकृत कॉलोनियों के रहने वाले और मिडल क्लास का फ्लोटिंग सेक्शन शामिल है। कांग्रेस ने जहां वोटरों से अपील की है कि वे केजरीवाल पर भरोसा नहीं करें बल्कि शीला दीक्षित के विकास मॉडल में विश्वास जताएं, वहीं आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का आरोप लगा रही है। हालांकि, लग रहा है कि कांग्रेस अपनी खोई जमीन में से कुछ को वापस पा रही है। नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के बाबरपुर के रहने वाले एक राशन दुकानदार मुस्तफा कहते हैं, 'मैंने AAP को वोट दिया था क्योंकि केजरीवाल ने बहुत सारी बातों का वादा किया था, लेकिन हमारे इलाके में पिछली बार अगर कोई विकास का काम हुआ तो वह शीला दीक्षित के दौर में हुआ था।' विकास पर बहस दिल्ली में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने अपने प्रचार में मुख्य तौर पर शीला दीक्षित के 15 सालों के कार्यकाल में हुए विकास को जोर-शोर से उठाया। दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी सरकारी स्कूलों में सुधार और मोहल्ला क्लीनिक, बिजली-पानी के सस्ते होने का श्रेय ले रही है। साउथ दिल्ली की एक अनधिकृत कॉलोनी दक्षिणपुरी की लता देवी कहती हैं, 'हमारा बिजली-पानी का बिल काफी कम हो गया है और उन्होंने हमारे स्कूलों को बेहतर बनाया है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि AAP ने काम किया है।' हालांकि, साउथ दिल्ली के ही फ्रेंड्स कॉलोनी के बिजनसमैन सुनील कपूर की राय इससे जुदा है। वह कहते हैं, 'मौजूदा सरकार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं किया। हर जाड़ों में स्मॉग एक मुद्दा बन जाता है और जैसे ही जाड़ा खत्म होता है, लोग इसे भूल जाते हैं।' सीलिंग एक बड़ा मुद्दा नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने पर व्यापारी समुदाय पर असर पड़ा था। लेकिन अब यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं है कि बीजेपी को इससे नुकसान हो। हालांकि, सीलिंग एक बड़ा मुद्दा जरूर है। कोर्ट के आदेश पर लाजपत नगर, करोल बाग और साउथ एक्सटेंशन जैसे पॉप्युलर ट्रेडिंग हबों में कई दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सीलिंग हुई। इसे लेकर बीजेपी को व्यापारी वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। लाजपत नगर में कपड़ों के कारोबारी सागर कपूर कहते हैं, 'छोटे और मध्यम श्रेणी के कारोबारी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए क्योंकि दुकान ही उनकी आजीविका का साधन था। उनमें बहुत असंतोष है।' बीजेपी को परंपरागत रूप से ट्रेडर और बिजनस कम्यूनिटी का समर्थन मिलता रहा है, लेकिन सीलिंग के मुद्दे पर पार्टी बैकफुट पर नजर आती दिख रही है। कांग्रेस के अजय माकन को नई दिल्ली में बीजेपी की मौजूदा सांसद मीनाक्षी लेखी पर बढ़त दिख रही है जो ऐंटी-इन्कंबेंसी के साथ-साथ 'पहुंच से बाहर' रहने वाली नेता की अपनी छवि से जूझ रही हैं।
लखनऊ बीजेपी का गढ़ समझे जाने वाले पूर्वी उत्‍तर प्रदेश की 27 लोकसभा सीटों पर अगले दो चरणों में 12 और 19 मई को मतदान होना है। इन 27 सीटों पर समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान है। अखिलेश अपने ओबीसी वोटों को मायावती की पार्टी बीएसपी के पक्ष में दिलवा पाएंगे या नहीं, यह यक्ष प्रश्‍न बना हुआ है। मायावती ने 27 में से 17 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार खड़े किए हैं और इनमें से ज्‍यादातर सीटों पर मुकाबला बीजेपी बनाम महागठबंधन होने जा रहा है। विश्‍लेषकों के मुताबिक इन दोनों चरणों में अखिलेश यादव को न केवल अपने लोगों को बीएसपी को वोट करने के लिए उत्‍साहित करना होगा बल्कि दशकों पुरानी दलित और ओबीसी शत्रुता को खत्‍म कराना होगा। इन 17 सीटों पर बीएसपी के प्रत्‍याशियों की जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि अखिलेश यादव अपने परंपरागत वोटों को कितना ट्रांसफर करा पाते हैं। ग्रामीण सीटों पर बीएसपी, शहरी पर एसपी अंतिम दो चरणों की 27 सीटों में से ग्रामीण सीटों पर बीएसपी लड़ रही है, वहीं शहरी सीटों पर एसपी ने अपने प्रत्‍याशी उतारे हैं। अखिलेश यादव अपनी जाति के लोगों का वोट बीएसपी को दिलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। जातिगत भावनाओं को मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव बार-बार लोगों को यह याद दिला रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद किस तरह से उनके सीएम आवास से हटने पर यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने पूरे घर को पवित्र करने के लिए गंगाजल से धुलवाया था। अखिलेश यह भी याद दिला रहे हैं कि योगी ने कहा था कि अगर संविधान नहीं होता तो वह भैंस चरा रहे होते। इस बीच चुनावी नारों और प्रतिकों के बीच एसपी चीफ ने अपने वॉर रूम में गतिविधि को बढ़ा दिया है। वह हर संसदीय क्षेत्र की प्रतिदिन की रिपोर्ट पर नजर रख रहे हैं। अखिलेश ने एक बड़ा सा कार्यालय बनाया है जो उन्‍हें बताता है कि किस जिले में प्रत्‍याशी को अतिरिक्‍त लोगों और अन्‍य संसाधनों की जरूरत है। अखिलेश ने विज्ञापन देने से परहेज किया एसपी अध्‍यक्ष ने टीवी और समाचार पत्रों में इस बार गठबंधन के लिए विज्ञापन देने से परहेज किया है और वह अपने समर्थकों तक सीधी पहुंच के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही नहीं जो लोग गठबंधन को जीत दिलाने में हीलाहवाली दिखा रहे हैं, उन्‍हें चेतावनी दी गई है कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। खलीलाबाद में अखिलेश ने रैली की और वहां कांग्रेस प्रत्‍याशी भालचंद्र यादव का समर्थन कर रहे पार्टी के नेताओं को अपने मंच से ही चेतावनी दी। मायावती के अनुरोध पर अखिलेश ने भदोही में जनसभा की जहां से बीएसपी के उम्‍मीदवार रंगनाथ मिश्रा चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर कांग्रेस ने आजमगढ़ के चर्चित यादव नेता रमाकांत को टिकट दिया है। अखिलेश जानते हैं कि बीएसपी चीफ ने जो गठबंधन के लिए किया है, उसका बदला उन्‍हें चुकाना होगा। माया ने अपनी पुरानी दुश्‍मनी को भुलाकर अपना पूरा जोर एसपी को दलित वोटों के ट्रांसफर पर लगा दिया है। यही नहीं कई साल बाद पहली बार मायावती ने मुलायम सिंह के लिए प्रचार किया और उनकी तारीफ की थी।

Top News