दिल्ली,‘मोदी न अपने लिए जन्मा है, न अपने लिए जिया है। मोदी आपके लिए खप रहा है। न मोदी का कोई वारिस है। वारिस हैं तो आप, देश की 140 करोड़ जनता।’ नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के करतारनगर में 18 मई को PM नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैली कर BJP सरकार के काम गिनाए थे।
भीषण गर्मी के बावजूद PM को सुनने वालों से मैदान भरा था। यहीं मिली विमला कहती हैं, 'हम तो BJP को वोट देते रहे हैं और आगे भी देंगे। मोदी जी जैसा नेता होना मुश्किल है, जिसने राम मंदिर बनवा दिया। हां, मोदी जी से शिकायत भी है। वे दूसरे देशों में जा रहे हैं, कभी हमारी कॉलोनी में भी आकर देखें कि यहां हमारा क्या हाल है।'
दिल्ली के लाजपत नगर में रहने वाली कुलविंदर कौर की राय विमला से अलग है। वे कहती हैं, 'मुद्दे पर कोई आता ही नहीं, सब बेवजह की बड़ी- बड़ी बातें करते हैं। डिक्टेटरशिप आ गई है। कोई बोलने नहीं देता। जो बोलता है, उसे चुप करा देते हैं।' बगल में खड़ी कमलजीत कौर कहती हैं, 'राइट टु स्पीच होना चाहिए। जो बोल रहा है, वो पकड़ा जा रहा है।'
दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर 25 मई को वोटिंग होनी है।
1. दिल्ली में पिछली बार मुकाबला त्रिकोणीय था और हार-जीत का फर्क दोगुने से ज्यादा था। इस बार विपक्ष एकजुट है। इससे हार-जीत के अंतर में फर्क जरूर आएगा, लेकिन नतीजा बदलता नहीं दिख रहा।
2. करप्शन केस में फंसे CM अरविंद केजरीवाल समेत AAP के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी का फायदा AAP से ज्यादा BJP को मिलता दिख रहा है। राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ हुई बदसलूकी के बाद AAP के खिलाफ माहौल बन रहा है, जिसका पार्टी को नुकसान होगा।
3. BJP सांसदों के टिकट कटने को लेकर AAP एंटी इनकम्बेंसी का मुद्दा उठा रही है। हालांकि, इसका असर जमीन पर नहीं दिख रहा। इससे ये मैसेज जरूर जा रहा कि BJP जीते हुए कैंडिडेट को भी जनता की खातिर बदल सकती है।
BJP का 6 नए चेहरों पर दांव, AAP ने चुनाव में विधायक उतारे
दिल्ली में BJP ने 2014 और 2019 में क्लीन स्वीप किया था। इसके बावजूद पार्टी ने जीत दिलाने वाले 6 कैंडिडेट को इस बार टिकट नहीं दिया। नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से सिर्फ मनोज तिवारी ही ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन पर पार्टी ने फिर भरोसा जताया है। बाकी 6 नए कैंडिडेट्स उतारे हैं। इनमें से 3 पूर्व मेयर और एक विधायक हैं।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं। 4 सीट पर AAP ने कैंडिडेट उतारे हैं, जबकि 3 सीट पर कांग्रेस ने उम्मीदवार खड़े किए हैं। AAP ने तीन विधायकों के साथ ही एक पूर्व विधायक को टिकट दिया है। कांग्रेस ने दो सीटों पर पूर्व सांसद और एक सीट पर युवा चेहरे के तौर पर कन्हैया कुमार को उतारा है।
अब वोटों का समीकरण समझिए
2019 के लोकसभा चुनाव में BJP का वोट शेयर 57% से ज्यादा था। कांग्रेस को 22.5% और AAP को 18.1% वोट मिले थे। हार-जीत का सबसे ज्यादा फर्क वेस्ट दिल्ली में था। यहां जीतने वाले BJP कैंडिडेट प्रवेश वर्मा को 60.05% और हारने वाले कांग्रेस कैंडिडेट महाबल मिश्रा को 20% वोट मिले थे।
2019 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट पर हार-जीत का अंतर सबसे कम रहा। यहां जीतने वाले BJP कैंडिडेट डॉ. हर्षवर्धन को 44.60% वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार जेपी अग्रवाल का वोट शेयर 29.67% था।
सवाल: AAP-कांग्रेस का गठबंधन कितना मजबूत है?
जवाब: सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप सिंह कहते हैं, 'गठबंधन से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। जनता स्प्लिट वोटिंग का पैटर्न जितनी अच्छी तरह जानती है, उतने अच्छे से राजनीतिक पार्टियां भी नहीं जानतीं। उन्हें पता है कि राज्य के लिए किसे चुनना है और देश के लिए किसे।'
वे आगे कहते हैं, 'आम आदमी पार्टी को टेक्निकली राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर जनता उसे राष्ट्रीय पार्टी नहीं मानती। पंजाब और दिल्ली दोनों जगह विधानसभा चुनाव में पार्टी बहुमत के साथ आती है, लेकिन लोकसभा चुनाव में फिसड्डी साबित होती है।'
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज, यानी CSDS के को-डायरेक्टर और पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रो. संजय कुमार डेटा के जरिए इसे समझाते हैं। वे कहते हैं, 'पिछली बार मुकाबला त्रिकोणीय था, लेकिन इस बार बाइपोलर हो गया है। इसके बावजूद गठबंधन बहुत कमजोर है। पिछली बार कांग्रेस और AAP के वोट मिला दें, तो भी BJP के बराबर नहीं पहुंच रहे।'
संजय आगे कहते हैं, 'इसे ऐसे समझिए कि वोटरों में एक हिस्सा सबसे मजबूत पार्टी को सिर्फ इसलिए वोट देता है ताकि वोट बर्बाद न हो। इस बार विकल्प मिलने के बाद ऐसा वोटर स्विंग करेगा, इसलिए BJP को मिलने वाले वोट शेयर में कुछ कमी आ सकती है।'
सवाल: BJP ने अपने 6 कैंडिडेट बदल दिए, क्या एंटी इनकम्बेंसी का डर था?
जवाब: पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रो. संजय कुमार कहते हैं, 'जितना बड़ा चुनाव, पार्टी का उतना ज्यादा महत्व। PM मोदी का भी फैक्टर है और बड़ी संख्या में लोग उनके नाम पर ही वोट करेंगे।’
वे आगे कहते हैं, ‘देखिए विधानसभा चुनाव में लोग कुछ हद तक लोकल कैंडिडेट देखते हैं। पंचायत और निकाय चुनाव में वोटिंग इसी आधार पर होती है, लेकिन लोकसभा में नहीं होती। लिहाजा, नए कैंडिडेट लाने के पीछे एंटी इनकम्बेंसी का फैक्टर तो कहीं नहीं दिखता। चुनाव लोकल कैंडिडेट के नाम पर नहीं, बल्कि PM मोदी के नाम पर हो रहा है।'
सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप सिंह इसे BJP का सुपर मैनेजमेंट बताते हैं। वे कहते हैं,‘दिल्ली में अपने कैंडिडेट बदलकर BJP ने मैसेज दे दिया कि वो जनभावना का सम्मान करती है। उसके लिए कैंडिडेट से ऊपर जनता है। वो जनता की खातिर पुराने जीते हुए कैंडिडेट को भी बदल सकती है।'
प्रो. संजय का भी यही मानना है। वे कहते हैं, 'कैंडिडेट्स बदलना मोदी की छवि को और मजबूत करता है। इससे साफ मैसेज जाता है कि BJP के लिए जनता ही सबसे ऊपर है।'
CSDS की ग्राउंड पर रिसर्च के हवाले से वे बताते हैं, ‘2014 में BJP को मिले वोट में से एक चौथाई वोट PM मोदी के नाम पर मिले थे। 2019 में ये आंकड़ा एक तिहाई था। विधानसभा चुनाव में ये आंकड़ा थोड़ा कम हो जाता है, क्योंकि वहां लोकल पार्टियां और फैक्टर भी आ जाते हैं।'
सवाल: इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या है?
जवाब: प्रो. संजय कुमार कहते हैं, 'BJP भ्रष्टाचार के मुद्दे पर AAP को घेर रही है। वहीं, AAP और कांग्रेस का गठबंधन लोकतंत्र पर खतरा और फ्रीडम ऑफ स्पीच के मुद्दे पर BJP को घेर रहा है। AAP इसके साथ ही अपनी योजनाएं भी जनता के बीच लेकर जा रही है।'
सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप सिंह भी इस बात से सहमत हैं। वे कहते हैं, 'BJP दिल्ली ही नहीं, पूरे देश का चुनाव भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ रही है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जिस तरह से दूसरी पार्टियां साथ आईं, उसके BJP ने उन सभी पार्टियों को एक बाड़े में लाकर खड़ा कर दिया।'
वे आगे कहते हैं, ‘देखिए भारतीय राजनीति में और खासतौर पर इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में परसेप्शन की बहुत अहमियत है। PM ईमानदार हैं, केजरीवाल की गिरफ्तारी से ये परसेप्शन और मजबूत हुआ है। PM मोदी कहते आए हैं कि भ्रष्टाचारियों को नहीं छोड़ूंगा। केजरीवाल की गिरफ्तारी से ये साबित हो गया है।’
सवाल: CM अरविंद केजरीवाल के जेल से छूटने का कितना और क्या असर होगा?
जवाब: इंडियन एक्सप्रेस की पूर्व एडिटर और कॉलमिस्ट नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘चुनाव के दौरान सिटिंग CM को बिना चार्जशीट और बिना कन्विक्शन के जेल में डाल देना लोगों को अच्छा तो नहीं लगा। ये चुनाव से पहले कर सकते थे या बाद में भी कर सकते थे।'
'जेल से छूटने के बाद केजरीवाल की शुरुआती 2-3 रैली में भीड़ भी इकट्ठा हुई और मोमेंटम भी बनने लगा था, लेकिन फिर स्वाति मालीवाल का मुद्दा आ गया। अब देखना होगा कि पब्लिक इसे कैसे लेती है।’
वे आगे कहती हैं, ‘अरविंद केजरीवाल के जेल जाने पर सिंपैथी थी, लेकिन अब स्वाति मालीवाल के आरोप के बाद ये देखना है कि पुलिस क्या सबूत इकट्ठे करती है। चुनाव के दिन तक इस मुद्दे पर डेवलपमेंट होगा, इसलिए अभी कुछ कहना मुश्किल होगा।'
'लोग AAP को विक्टिम की तरह देखते हैं या फिर लिकर स्कैम और स्वाति मालीवाल केस से केजरीवाल पर भरोसा खो देते हैं, ये देखने वाली बात होगी।
सवाल: दिल्ली की सातों सीटों पर हवा का रुख किस तरफ है?
जवाब: सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप सिंह इसका एक लाइन में जवाब देते हुए कहते हैं, 'चुनाव बिल्कुल एकतरफा है। पिछले दो चुनावों में वोटों का गैप इतना ज्यादा था कि उसे पाटना मुश्किल है। AAP ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था।'
'उसी आंदोलन का नतीजा था कि कांग्रेस सत्ता से गई और अरविंद केजरीवाल की पार्टी काबिज हुई। अब दोनों पार्टियां हाथ मिला रही हैं। ये हार का डर है और जनता इसे खूब समझती है, इसलिए गठबंधन से कम ही असर पड़ेगा।'
प्रो. संजय कुमार भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं, ’गठबंधन की वजह से कुछ पर्सेंट वोट स्विंग होंगे, जिसका असर BJP के वोट शेयर पर पड़ सकता है।’ हालांकि, गठबंधन से किसी तरह की चुनौती की बात से वे भी इनकार करते हैं।
वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट नीरजा चौधरी का कहना है, ‘मुकाबला तो कड़ा होगा, ये दिखता है। हालांकि, जीत-हार के बारे में अभी कहना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि दिल्ली में रोज कुछ नया घटनाक्रम हो रहा है।’