तारीख 15 अप्रैल 2024, जगह केरल का वायनाड। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा- 'इस लोकसभा चुनाव में असली लड़ाई RSS की आइडियोलॉजी और कांग्रेस के बीच है।'
तारीख 29 अप्रैल 2024, जगह बिलासपुर, छत्तीसगढ़। राहुल गांधी ने कहा- 'प्रधानमंत्री और RSS संविधान को बदलना चाहते हैं। यह लोकसभा चुनाव लोकतंत्र, संविधान, आरक्षण और गरीबों के अधिकारों की रक्षा करने का चुनाव है।'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS, जिसकी नर्सरी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं। जहां से निकले नेता देश के 10 राज्यों में मुख्यमंत्री और 16 राज्यों में राज्यपाल हैं। चुनावों में टिकट मिलना, मंत्री बनना या मुख्यमंत्री की ताजपोशी हो, आरोप लगाता है कि रिमोट कंट्रोल इसी संगठन के हाथ में है। इस लोकसभा चुनाव में भी RSS विपक्ष के निशाने पर है।
साल 1919, पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा यानी मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता को सत्ता से हटा दिया। इसका दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध किया। गुलाम भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर गए।
शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने लखनऊ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे नाम दिया गया खिलाफत आंदोलन। मकसद था- खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर दोबारा बैठाना। जल्द ही देशभर के मुसलमान इस आंदोलन से जुड़ गए।
ये वो दौर था जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका था। पंजाब में मार्शल लॉ लगा हुआ था। देशभर में रौलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए किसी को जेल में बंद करने की ब्रितानी हुकूमत की नीतियों का विरोध हो रहा था।
चार साल पहले साउथ अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। खिलाफत आंदोलन को उन्होंने एक मौके के रूप में देखा कि इसके जरिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता है।
गांधी ने एक नारा दिया- ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।’
डॉक्टरी पढ़कर नए-नए कांग्रेसी बने नागपुर के केशव बलिराम हेडगेवार को गांधी का यह फैसला सही नहीं लगा। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब 'केशव : संघ निर्माता' में लिखते हैं- 'हेडगेवार ने गांधी से कहा कि खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि देश से पहले उनका धर्म है। कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।'
हालांकि, गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी। न चाहते हुए भी हेडगेवार इस आंदोलन से जुड़े रहे और उग्र भाषण देने की वजह से अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहे।
अगस्त 1921, खिलाफत आंदोलन केरल पहुंचा। यहां के मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच झड़प हो गई, जो जल्द ही एक बड़े दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस दंगे का जिक्र करते हुए अपनी किताब 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' में लिखा- ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम राज की स्थापना करना था। तब जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिर ढहाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए।’
अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर सवाल उठाते हुए लिखा- ‘यही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश है। क्या फल मिला इस कोशिश का?’
कांग्रेस अध्यक्ष रहीं एनी बेसेंट, दंगों के बाद मालाबार गईं। उसके बाद उन्होंने एक अखबार में आर्टिकल लिखा- 'अच्छा होता अगर महात्मा गांधी मालाबार जाते। वे अपनी आंखों से उस भयावहता को देख पाते, जो उनके प्रिय भाइयों मोहम्मद अली और शौकत अली ने खड़ी की है।'
दो साल बाद यानी 1923 में नागपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कलेक्टर ने हिंदुओं की झांकियों पर रोक लगा दी। हेडगेवार को उम्मीद थी कि कांग्रेस इसके विरोध में आवाज उठाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
खिलाफत आंदोलन और मालाबार हिंसा से नाराज हेडगेवार के मन में अब हिंदुओं के लिए अलग संगठन तैयार करने का ख्याल आने लगा। तब देश में हिंदू महासभा का गठन हो चुका था। हेडगेवार के मेंटर रहे डॉ. बीएस मुंजे हिंदू महासभा के सचिव थे।
कुछ समय के लिए हेडगेवार हिंदू महासभा से जुड़े भी, लेकिन उन्हें यह संगठन रास नहीं आया। हेडगेवार का मानना था कि हिंदू महासभा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हिंदू हितों से समझौता कर लेगी।
उन दिनों नागपुर सेंट्रल प्रोविंस की राजधानी हुआ करता था। अंग्रेजों ने भारत के दूसरे हिस्सों को नापने के लिए नागपुर को जीरो माइल पॉइंट बनाया था। आज भी जीरो माइल पर एक स्तंभ और चार घोड़ों की प्रतिमाएं हैं।
तारीख 27 सितंबर 1925, उस दिन विजयादशमी थी। हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ अपने घर में एक बैठक बुलाई और कहा कि आज से हम संघ शुरू कर रहे हैं।
बैठक में हेडगेवार के साथ विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश सावरकर, डॉ. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर शामिल थे। 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार के संगठन का नामकरण हुआ- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS.
अब कहानी केशव बलिराम हेडगेवार की...
नागपुर के एक वैदिक ब्राह्मण परिवार में 1 अप्रैल 1889 को जन्मे केशव बलिराम हेडगेवार के पूर्वज आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के कंदकुर्ती गांव से थे। 1800 ई. में वे लोग नागपुर आ गए। हेडगेवार 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। आठ साल की उम्र में उन्हें चेचक हो गया था, जिसके दाग उनके चेहरे पर ताउम्र रहे।
वे 14 साल के थे, तब प्लेग से उनके माता-पिता की मौत एक ही दिन हो गई। जिसके बाद बड़े भाई महादेव ने उनकी परवरिश की।
अखाड़े में डॉ. मुंजे से मिले, बम बनाना सीखा
महादेव को अखाड़ों का शौक था। वे हेडगेवार को अपने साथ नागपुर के शिवराम गुरु अखाड़े में लेकर जाते थे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे बीएस मुंजे भी उस अखाड़े में जाते थे।
1904-05 की बात है। एक दिन मुंजे की नजर हेडगेवार पर पड़ी। दोनों के बीच बातचीत हुई और फिर वे नियमित रूप से मिलने लगे।
उन दिनों भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज था और देश में बंगाल विभाजन की गूंज थी। सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी अपनी किताब ‘संघम् शरण् गच्छामि’ में लिखते हैं- ‘मुंजे अपने घर बुलाकर हेडगेवार को बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे।’
भाषण सुनकर बाल गंगाधर तिलक के फैन हो गए हेडगेवार
1906 की बात है। कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ। अधिवेशन से लौटने के बाद बालगंगाधर तिलक ने नागपुर में एक भाषण दिया। उस वक्त हेडगेवार भी वहां मौजूद थे।
तिलक के भाषण की छाप हेडगेवार के मन पर इस कदर पड़ी कि वे केसरी और मराठा में नियमित रूप से उनके लेखों को पढ़ने लगे। उनके मन में तिलक से मिलने की ललक उठने लगी। कुछ दिनों बाद डॉ. मुंजे ने हेडगेवार को तिलक से मिलवाया।
उन दिनों क्रांतिकारी और गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक पीएस खानखोजे बांधव समाज नाम से एक छोटा सा संगठन चलाते थे। इसके दो विंग थे- एक सबके लिए और दूसरा गोपनीय। हेडगेवार गोपनीय विंग के लिए काम करते थे। इस विंग का काम हथियार जुटाना था।
वंदेमातरम् आंदोलन के चलते स्कूल से बर्खास्त किए गए
उन दिनों बांधव समाज वंदेमातरम् की मुहिम चला रहा था। हेडगेवार अपने स्कूल में इस अभियान को लीड कर रहे थे। जब अंग्रेजों को इस बात का पता चला, तो स्कूल मैनेजमेंट ने वंदेमातरम् गाने पर रोक लगा दी। शिक्षकों ने हेडगेवार को चेतावनी दी कि वे वंदेमातरम् न गाएं, लेकिन हेडगेवार नहीं माने। जिसके बाद उन्हें स्कूल से बर्खास्त कर दिया गया।
पुलिस थाने पर बम फेंका, पर अंग्रेजों की नजर से बच निकले
RSS विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा अपनी किताब बिल्डर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया में लिखते हैं- '1908 की बात है। हेडगेवार के चाचा आबाजी हेडगेवार सरकारी पुलिस इंस्पेक्टर थे। वे जिस थाने में तैनात थे, उसी थाने को हेडगेवार ने निशाना बनाकर बम फेंका।
हालांकि, वो बम थाने पर न गिरकर पास के एक तालाब में जा गिरा। ऐसा करते हुए हेडगेवार को किसी ने देखा नहीं। वे अंग्रेजों की नजर से बच निकले।’
दरअसल, हेडगेवार ने स्कूल से निकाले जाने के गुस्से में पुलिस थाने को निशाना बनाया था।
इसके बाद अमरावती के एक स्कूल से हेडगेवार ने 10वीं की परीक्षा पास की। 1910 में मुंजे की सलाह पर वे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गए। कहा जाता है कि डॉक्टरी की पढ़ाई तो बहाना था, असल में हेडगेवार को कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियां सीखनी थीं। इसीलिए मुंजे ने उन्हें कलकत्ता भेजा।
उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था। यहां वे अनुशीलन समिति से जुड़ गए। इस समिति में अरविंद घोष और विपिनचंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी शामिल थे।
डॉक्टरी की पढ़ाई करके नागपुर में व्यायामशाला खोली
1915 में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद हेडगेवार नागपुर लौट आए। उन दिनों पहले विश्व युद्ध की जंग छिड़ी हुई थी। बड़ी संख्या में भारतीय सिपाही, अंग्रेजों की तरफ से लड़ रहे थे। हेडगेवार का कहना था कि इन सिपाहियों और युवाओं को कोई यह समझाने वाला नहीं है कि वे गलत कर रहे हैं।
डॉक्टरी पढ़कर कलकत्ता से लौटे हेडगेवार ने नौकरी करने की बजाय नागपुर में एक व्यायामशाला खोली। यहां वे युवाओं को व्यायाम के साथ-साथ उनके बीच ज्वलंत मुद्दों पर डिबेट कॉम्पिटिशन कराते थे। RSS हेडक्वार्टर के नजदीक आज भी वो व्यायामशाला है।
कुछ बड़ा करना है, तो बड़े संगठन से जुड़ना होगा, फिर कांग्रेस में शामिल हो गए हेडगेवार
1910 से 1919 के बीच हेडगेवार ने कई छोटे संगठन बनाए, पर उसका कुछ खास परिणाम नहीं निकला। तब हेडगेवार ने तय किया कि नया संगठन बनाने के बजाय कांग्रेस से जुड़कर काम करना बेहतर होगा।
1919 में वे कांग्रेस के एक्टिव मेंबर बन गए। उस साल कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में उन्होंने भाग भी लिया। अगले साल यानी 1920 में हिंदूवादी नेता एलवी परांजपे ने भारत स्वयंसेवक मंडल शुरू किया। इस संगठन का काम था कांग्रेस के अधिवेशनों के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जुटाना। हेडगेवार भी इस संगठन से जुड़ गए।
इसी बीच 31 जुलाई 1920 को बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया। इसी साल नागपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होना था। तिलक को अधिवेशन की अध्यक्षता करनी थी। उनके निधन के बाद नए अध्यक्ष के लिए हेडगेवार और मुंजे पुडुचेरी गए। उन दिनों क्रांतिकारी अरविंद घोष वहीं रहते थे। दोनों ने अरविंद घोष से कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता करने का आग्रह किया, पर घोष ने इनकार कर दिया।
कांग्रेस ने हेडगेवार का प्रस्ताव ठुकरा दिया
दिसंबर 1920, सी. विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें करीब 3 हजार कार्यकर्ता, 15 हजार डेलिगेट्स और हजारों लोग शामिल हुए। परांजपे और हेडगेवार को अधिवेशन में डेलिगेट्स के रहने और खाने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी मिली थी।
उस अधिवेशन में हेडगेवार ने 'विषय नियामक समिति' का प्रस्ताव दिया, जिसे ठुकरा दिया गया। इस प्रस्ताव में हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रखी थी। कहा जाता है कि उस दिन से ही हेडगेवार, कांग्रेस की लीडरशिप से नाराज रहने लगे थे।
भाषण देने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे हेडगेवार
हेडगेवार को भाषण देना बहुत पसंद था। वे भाषण देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। 1921 में उन्होंने महाराष्ट्र के कटोल और भरतवाड़ा में भाषण दिया। इसको लेकर अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया।
सीपी भिशीकर अपनी किताब में एक किस्से का जिक्र करते हुए लिखते हैं- 'अदालत में हेडगेवार ने सरकारी वकील से पूछा- क्या वाकई संसार में ऐसा कोई कानून है, जो एक देश को दूसरे देश पर सत्ता जमाने का अधिकार देता है? यदि यह सच है कि एक देश को दूसरे देश पर अपनी सत्ता थोपने का अधिकार नहीं है, तो आप बताइए कि अंग्रेजों को हिंदुस्तान की जनता पर हुकूमत चलाने का अधिकार किसने दिया?'
जज ने हेडगेवार को 2 हजार रुपए की जमानत पर रिहा करने की बात कही, लेकिन उन्होंने जमानत राशि जमा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद हेडगेवार को एक साल जेल की सजा हई।
जुलाई 1922 में जेल से निकलने के बाद हेडगेवार के स्वागत के लिए एक सभा आयोजित की गई, जिसमें मोतीलाल नेहरू भी शामिल थे। इसी साल हेडगेवार को प्रदेश कांग्रेस का जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया। उन दिनों कांग्रेस वॉलंटियर्स के लिए हिंदुस्तानी सेवा दल चलता था। हेडगेवार को इसमें अहम जिम्मेदारी मिली, हालांकि वे अपने रोल से बहुत खुश नहीं थे।
जेल से लौटने के बाद हेडगेवार कुछ अलग करना चाहते थे। खिलाफत आंदोलन, मालाबार हिंसा और नागपुर दंगे के बाद आखिरकार 1925 में उन्होंने संघ की नींव रखी। हेडगेवार ने संघ से युवाओं को जोड़ने के लिए शाखा की शुरुआत की। शाखा यानी, ऐसी जगह जहां संघ के मेंबर्स खेल-कूद और अपनी एक्टिविटीज करते हैं।
शुरुआती दिनों में संघ की शाखा में रविवार को ट्रेनिंग और मार्च होता था, जबकि गुरुवार और रविवार को राष्ट्रीय विषयों पर चर्चा होती थी। कुछ दिनों बाद संघ की बैठकों में आने वाले युवा, हेडगेवार से पूछने लगे कि अपने संघ का नाम क्या है?
तब हेडगेवार को लगा कि संघ का नाम होना चाहिए। इसके लिए तीन नाम सुझाए गए- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल। 25 में से 20 लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुना। 17 अप्रैल 1926 को संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी, RSS कर दिया गया।
इसी साल RSS ने राम नवमी के दिन एक बड़ा कार्यक्रम किया। संघ के स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आए। ये संघ की शुरुआती यूनिफॉर्म थी।
RSS से युवाओं को जोड़ने के लिए शाखा में कबड्डी और देसी खेल शुरू किए गए। हेडगेवार शाखा में आने वाले हर बच्चे से बात करते थे। उनकी पढ़ाई और परिवार का हालचाल जानते थे। जो बच्चा शाखा में नहीं आता, हेडगेवार उसके घर जाकर मिलते और पूछते थे कि वो आज शाखा में क्यों नहीं आया। इस तरह वे उन बच्चों के परिवारों के साथ भी संबंध जोड़ते गए।
हेडगेवार स्कूली पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को सलाह देते थे कि दूसरे शहर या राज्य में पढ़ने जाओ। वहां संघ का काम करो, शाखा की शुरुआत करो। इस तरह छात्रों के जरिए नागपुर के बाहर संघ की शाखा लगने लगी।
संघ किसी आंदोलन में शामिल नहीं होगा, स्वयंसेवक चाहें तो भाग ले सकते हैं- हेडगेवार
1929 में हेडगेवार संघ के सरसंघचालक (संघ प्रमुख) बने और बालाजी हुद्दार सरकार्यवाह। सरकार्यवाह संघ में सेकेंड पोजिशन की पोस्ट होती है। अब तक 6 संघ प्रमुख हुए हैं। अभी मोहन भागवत संघ प्रमुख हैं और दत्तात्रेय होसबले सरकार्यवाह।
1930 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। तब संघ के स्वयंसेवकों ने हेडगेवार से पूछा कि आंदोलन में शामिल होना चाहिए या नहीं। कुछ स्वयंसेवकों ने संघ की ड्रेस में भगवा ध्वज लेकर आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई।
हेडगेवार ने कहा- 'आंदोलन जिस बैनर तले हो रहा है, वह ठीक है। अगर संघ की ड्रेस में या भगवा ध्वज लेकर कोई शामिल होगा, तो विवाद होगा। अंग्रेज हमारे संगठन पर रोक लगा सकते हैं, इसलिए जिसे शामिल होना है, वह व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में शामिल होगा। बतौर संगठन, RSS इस आंदोलन में भाग नहीं लेगा।'
हेडगेवार इस आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। करीब 9 महीने वे जेल में रहे। तब एलवी परांजपे को सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी गई थी।
जब गांधी ने हेडगेवार से पूछा- कांग्रेस में क्या दिक्कत थी जो आपने नया संगठन बनाया
25 दिसंबर 1934, महात्मा गांधी महाराष्ट्र के वर्धा में संघ के एक शिविर में गए। वहां उन्होंने स्वयंसेवकों से बातचीत की और संघ की प्रार्थना में शामिल हुए। उसी दौरान एक तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने वर्धा जिले के संघचालक अप्पाजी जोशी से पूछा- ये किसकी तस्वीर है?
अप्पाजी जोशी ने कहा- ये केशव बलिराम हेडगेवार हैं, संघ प्रमुख। हम इन्हें सरसंघचालक कहते हैं। गांधी जी ने हेडगेवार से मिलने की इच्छा जाहिर की और अगले दिन दोनों की मुलाकात हुई।
गांधी ने हेडगेवार से पूछा- आप कांग्रेस में थे। वहां आपने ऐसे स्वयंसेवकों का समूह क्यों नहीं तैयार किया? अलग संगठन बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या कोई आर्थिक तंगी थी?
हेडगेवार ने जवाब दिया- ‘हमारे सामने जो समस्या थी, वह पैसे की नहीं बल्कि नजरिए की थी। कांग्रेस एक राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए बनी है। कांग्रेस में नेता, कार्यकर्ताओं को दरी-चादर बिछाने वाले के रूप में देखते हैं, लेकिन संघ में स्वयंसेवक और नेता में कोई अंतर नहीं है।’
संघ के सरकार्यवाह रहे एचवी शेषाद्रि की किताब 'डॉ. हेडगेवार: द इपोक मेकर' में इस किस्से का जिक्र किया गया है।
हिंदू संस्कृति ही हिंदुस्तान का प्राण है : RSS
RSS ने अपनी वेबसाइट पर संघ के उद्देश्यों का जिक्र करते हुए लिखा है- 'हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान का प्राण है। अगर हिंदुस्तान की रक्षा करनी है, तो सबसे पहले हिंदू संस्कृति को सींचना होगा। हिंदुओं को इतना संगठित होना चाहिए कि कोई भी हमारे गौरव प्रतीकों पर आंख उठाने की हिम्मत नहीं कर सके। भारत के भाग्य को तब तक नहीं बदला जा सकता, जब तक लाखों युवा हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए अपना जीवन न्योछावर न कर दें।'
RSS यानी उन हिंदुओं का संगठन, जिनकी पुण्यभूमि भारत है
RSS विचारक एमजी वैद्य की किताब 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय' के मुताबिक राष्ट्रीय का मतलब है हिंदू, जो भारत को मातृभूमि मानता हो, भारत की संस्कृति को अपनी संस्कृति मानता हो, यहां की भूमि को पवित्र भूमि मानता हो।
स्वयंसेवक यानी वॉलंटियर्स, पर RSS के लिए स्वयंसेवक का मतलब है देशभक्त। और संघ यानी एकता। इस तरह संघ के मुताबिक RSS का मतलब है- देशभक्त हिंदुओं का संगठन।
क्या इस देशभक्त हिंदुओं के संगठन में मुसलमानों और ईसाइयों के लिए जगह है?
2 फरवरी 2024 को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा, ‘संघ की शाखा में मुस्लिम और ईसाई भी आते हैं। उन्हें दायित्व दिया जाता है और वे काम भी करते हैं।
अंग्रेज चले भी गए, तो क्या गारंटी है कि हम आजादी की रक्षा कर पाएंगे- हेडगेवार
RSS की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक डॉ. हेडगेवार अक्सर कहा करते थे- ‘अंग्रेजों के जाने के बाद भी अगर हिंदू एक मजबूत राष्ट्र के रूप में संगठित नहीं हुए, तो इस बात की क्या गारंटी है कि हम अपनी आजादी की रक्षा कर पाएंगे। एक मजबूत और एकजुट हिंदू समाज न सिर्फ देश की समृद्धि के लिए जरूरी है, बल्कि भारत के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है।’
तारीख 20 जून 1940, RSS प्रमुख केशव बलिराम हेडगेवार ने माधव सदाशिव गोलवलकर यानी गुरुजी को एक चिट पकड़ाई। इस चिट पर लिखा था- 'इससे पहले कि तुम मेरे शरीर को डॉक्टरों के हवाले करो, मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि अब से संगठन को चलाने की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी।