सुप्रीम कोर्ट ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद मामले में मोदी सरकार को बड़ी राहत देते हुए दूसरी बात क्लीन चिट दी है।cji रंजन गोगोई,जस्टिस sk कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने एकमत से इस मामले में दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा न तो वह सेब की तुलना संतरे से कर सकती है और न ही हवा में जांच का आदेश दे सकती है।ये टिप्पणी लड़ाकू विमान की कीमतों की तुलना एक ख़ाली एयरक्राफ्ट से कर रहे राहुलऔर केवल बयानों और बिना सबूत और साक्ष्य वाली मीडिया रिपोर्ट के आधार पर याचिकाओं के पेश किए जाने के संदर्भ में की गई है।सुप्रीम कोर्ट ने इस डील से जुड़े विवाद को अपनी तरफ से अंत कर दिया है। कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एकमत से पिछले 14 दिसम्बर को दिए अपने फैसले को बरकरार रखते हुए साफ कर दिया है कि इस मामले में अब न तो कोई एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है और न ही किसी तरह की जांच की।लेकिन कांग्रेस अब भी इस मुद्दे को अपने सियासी फायदे के लिए जिंदा रखना चाहती है।राहुल जस्टिस केएम जोसेफ की टिप्पणी का हवाला दे रहे हैं कि उन्होंने इस डील में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत जांच की गुंजाइश छोड़ी है और इस आधार पर कांग्रेस जेपीसी की जांच की मांग कर रही है।जबकि जस्टिस जोसेफ ने ये टिप्पणी अलग से बिना सरकार की स्वीकृति के सीबीआई के किसी मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने को लेकर की है।उन्होंने कहा कि साक्ष्य मिलने पर सीबीआई सरकार की पूर्व अनुमति से एफआईआर दर्ज कर सकती है। कोर्ट में जितनी याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई वे अब तक बिना किसी साक्ष्य के हवा में की गई है।जस्टिस जोसेफ की इस टिप्पणी केबावजुद तीनों जजों ने एकमत से फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार को पूरी तरह से क्लीन चिट दी है।वास्तव में देश की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर काफी सियासत हो चुकी है और अब देश की सुरक्षा को और बेहतर बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने फैसले के बाद अपने बयान में कहा भी है किदेश की सुरक्षा को ताक पर रख सियासी फायदे के लिए विवाद को पैदा किया गया।तमाम प्रक्रिया वायुसेना की अगुवाई वाली कमेटी की देखरेख में पूरी की गई।उन्होंने कहा कि विमान की कीमतों को लेकर कहीं भी सरकार का कोई दखल नहीं था ।कीमतें अधिकारियों ने तय की थी और ये कीमतें यूपीए सरकार की तुलना में कम थी।दरअसल राहुल गांधी और कांग्रेस राफेल एयरक्राफ्ट की कीमतों की लड़ाकू राफेल विमान की कीमतों से तुलना कर देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम करती रही और इसी पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते।कोर्ट ने तीनों जजों ने एकमत से कहा कि जहां तक राफेल विमान की कीमत का सवाल है,उपलब्ध साक्ष्य व तथ्यों से हम संतुष्ट हैं।यह कोर्ट का काम नहीं है कि वह राफेल की कीमतों का आकलन करें और कीमत तय करे।सिर्फ इसलिए कि कुछ लोगों ने शंका जताई हो,इस आधार पर कोर्ट इसका आकलन नहीं कर सकता।उपलब्ध दस्तावेज पर गौर करने और अच्छी तरह से जांच के बाद हमारा मानना है कि सेब की तुलना संतरे से नहीं हो सकती।विमान की जो कीमत बताई गई है,वह तुलनात्मक रूप से कम है।विमान में क्या लैस किया जाएगा और क्या नहीं और कीमतों में आगे क्या जोड़ा जाएगा,यह देखना उचित अथाॅरिटी का काम है। इसे लेकर विशेषज्ञों से भी जानकारी ली गई है।पीठ की तीन बड़ी टिप्पणियां,कई सरकारों ने राफेल डील पर बात की ।तब सवाल क्यों नहीं उठे।डील पर विशेषज्ञों की राय ली गई और इसके बाद ही विमान खरीद का निर्णय लिया गया।फैसला लेने की पूरी प्रक्रिया कानूनी आधार पर सही है।इसमें कहीं कोई संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम हवा में जांच के आदेश नहीं दे सकते। रिलायंस के संबंध में कोर्ट ने कहा कि औफसेट पार्टनर चुनने का अधिकार सप्लायर का है और वह उस पर निर्भर करता है कि किसे चुनता है।इसमें कोई और पहलू नहीं है।डील में किसी को फायदा पहुंचाया गया इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं ये बात कोर्ट पूर्व में कह चुका है।फैसले के बाद बीजेपी ने कहा है कि ये केवल सियासी फायदा उठाने के लिए एक ईमानदार पीएम मोदी कि छवि खराब करने का मामला नहीं है । इसे उठाने के लिए राहुल गांधी के पीछे वे ताकते खड़ी हैं जो डील हथियाने में नाकामयाब रही और इसी के चलते कांग्रेस सरकार ने इस डील को सिरे चढ़ाने के बजाय ठन्डे बस्ते में डाल दिया जबकि वायुसेना पिछले तीस सालों से लड़ाकू विमान की मांग कर रही थी।मालूम हो कि डसॉल्ट के बाद इटली की युरो फाइटर बनाने वाली कंपनी के टेंडर लगे थे।जिसे राफेल से ज्यादा कीमतों के चलते डील से हटाया गया था। कुछ लोग कांग्रेस और वामपंथी नेता और उनके समर्थक सवाल कर रहे हैं कि जब बोफोर्स की जांच हो सकती है तो इसकी क्यों नहीं।ये भी कहा जा रहा कि बोफोर्स पर सवाल उठाए गए और इसने कारगिल में अपनी क्षमता दिखाई।इसमें गौर करने वाले तथ्य ये हैं हैं कि बोफोर्स का मामला राजीव गांधी सरकार के रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने उठाते हुए इसकी जांच की मांग करते हुए अपना इस्तीफा दिया था।बोफोर्स की कीमत और उसकी क्षमता पर किसी ने भी शुरू से लेकर अंत तक कोई सवाल नहीं उठाया था।सवाल इसमें ली गई घूस को लेकर उठाए गए था।इसकी जांच राहुल के कथित मामा को घूस दिए जाने और उसमें से कुछ राशि कांग्रेस नेताओं को दिए जाने की बात सामने आने और स्वीडन में इसे लेकर बोफोर्स के चार अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद जांच करवाए जाने के आदेश कोर्ट ने दिए थे।जबकि राफेल मामले में सारी बस्ते हवा में हैं।फ़्रांस की कोर्ट में भी ये मामला उठा लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं पाया गया।वहां की एक यूनियन इस मामले को कोर्ट में ले गई थी। मदन अरोड़ा
15 नवंबर 2019