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नई दिल्ली
भारत-चीन (India-China Conflict) के बीच सोमवार रिश्तों में आयी आंशिक सुधार के बीच भारत की सुनियोजित नीति ने काम किया। दिलचस्प बात है कि दोनों देशों ने उस दिन अपने रिश्ते में आयी तल्खी को कम करने की दिशा में हर जरूरी कदम उठाने का फैसला लिया जिस दिन दलाई लामा का जन्म दिन था। ऐसे समय जब चीन को एक सबक सिखाने के लिए एक बड़ा वर्ग दलाई लामा को भारत रत्न दिये जाने की मांग कर रहा था,उनके जन्म दिन पर चीन ने भारत के साथ 70 साल के पुराने रिश्ते का हवाला देकर इसे ठीक करने की पहल। भारत ने भी इसका सकारात्मक रिस्पांस दिया। हालांकि भारत चीन के पुराने रवैये को देखते हुए अभी पूरी तरह सतर्क मोड में रहेगा। दोनों देशों के बीच जारी तनातनी को कम करने में जिन 5 फैक्टर ने अहम भूमिका निभायी वह है-
1-भारत-चीन ने कूटनीतिक रास्ते खुले रखे
भारत ने चीन पर दबाव बनाए रखा,सीमा पर सैन्य पोजिशन को मजबूत करता रहा है लेकिन कूटनीतिक रास्ते कभी बंद नहीं किये। कूटनीतिक स्तर पर भारत ने चीन के प्रति बहुत सख्ती नहीं दिखायी। चीन ने भी इस रास्ते को खुला रखा। दोनों देशों ने पूरे तनातनी के समय भी हमेशा कहा कि वे एक दूसरे से कूटनीतिक माध्यम से संपर्क में है। 15 जून को हुए हिंसक झड़क के बाद,जिसमें दोनों देशों के जवानों की जान गयी,भी कूटनीतिक स्तर पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार इस दौरान भले एक ही बार संयुक्त सचिव स्तर पर बातचीत हुई लेकिन दोनों देशों ने आपसी संपर्क बनाए रखा जिसके बाद सोमवार को एक तरह से इस विवाद को दूर करने की दिशा में बड़ी कामयबाी मिली।
2- पीएम मोदी का लेह दौरा और साफ संदेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेह दौरा भी इस टकराव में अहम बिन्दु बना। चीन को दिया गया वह सख्त प्रतीकात्मक संदेश था। लेह जाकर चीन की विस्तारवादी पर दो टूक बात करना और कहना कि भारत किसी दबाव में आकर नहीं झुकेगा,चीन के लिए संदेश साफ था कि इस बार यहां बुलडोज करने वाली नीति नहीं चलेगी। भारत ने एक साथ राजनीतिक,कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर चीन ही नहीं पूरे विश्व को संदेश देने में कामयाबी पायी कि हालात को ठीक करने या बिगाड़ने की जिम्मेदाी अब चीन पर है। इसके बाद चीन को खासकर रूस ने समझाने में कुछ हद तक सफलता पायी कि भारत के टकराव से किसी का हित नहीं होने वाला है
3- कूटनीतिक रूप से चीन के अलग-थलग पड़ने की आशंका
चीन को सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर भी बढ़ रही थी कि ग्लोबल स्तर पर वह अलग-थलग पड़ रहा था। गलवान में हुए हिंसक झड़क के बाद भारत ने पहली बार चीन के प्रति हिचक ताेड़ी थी और वह खुलकर उसके विरुद्ध आया था। भारत अब तक इससे परहेज करता रहा था। चीन के लिए यह बात परेशानी पैदा कर सकती थी। तनाव के बीच वह इस बात को दोहराता रहा कि भारत अमेरिका के गुट का हिस्सा नहीं बने। हांगकांग का मसला भी भारत ने पहली बार उठाया। इसके बाद चीन को अहसास हुआ कि उसके लिए अभी हर जगह मोर्चा खोलना मुनासिब नहीं होगा। सोमवार को भी बातचीत के बाद चीन ने जो बयान जारी किये उसमें दोनों देशों के 70 साल पुराने संबंध का भी हवाला दिया।
4- चीन पर आर्थिक वार
भारत-चीन के बीच हाल के समय में कई मौकों पर विवाद होते रहे हैं लेकिन भारत ने इस विवाद के बीच व्यापार को नहीं लाया। लगभग पचास साल बाद जब दोनों देशों के बीच रिश्तों का सबसे खराब दौर आया तब भारत ने कहा कि कमाई और लड़ाई साथ नहीं चलेगी। 59 चाइनीज एप को बंद किये। इसके बाद चीन को मिले कई ठेके को मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत देशी कंपनियों को काम दिये गये। चीनी कंपनियों में इसे लेकर चिंता सामने आयी। चीन सरकार ने इस कदम के बाद पहली बार नरम रूख अपनाया और भारत से आग्रह किया कि व्यापार के रिश्ते को वह कमजोर नहीं करे और इसमें दोनों देशों का हित जुड़ा है।
5- दोनों देशों के लिए अभी और भी है चुनौतियां
अभी चीन एक साथ कई मोर्चे पर जूझ रहा है। भारत के साथ तनाव के बीच अमेरिका से उसके गंभीर टकराव हो रहे हैं। 12 देशों से सीमा विवाद चल रहा है। हांगकांग का मुद्दा गर्माया हुआ है। उसपर कोरोना के लिए पूरा विश्व उसे जिम्मेदार मान रहा है। इनके बीच एक और महामारी की आशंका चीन में पैदा हुई है। उधर भारत भी कोराेना के मोर्चे पर लड़ रहा है। आर्थिक संकट का सामना भारत भी कर रहा है। जानकारों के अनुसार दोनों देशों के लिए ऐसे हालात में युद्ध बहुत नुकसान कर सकते थे। इसकी समझ दोनों देशों के नेतृत्व को भी था और वे बीच का रास्ता तलाशते रहे।