जयपुर, 08 मई 2020, देश में बड़ी संख्या में मजदूर गांव लौट रहे हैं. शहरों में आर्थिक मंदी के बाद गांव में बेरोजगारी का बड़ा संकट खड़ा हो सकता है. राजस्थान में मई के पहले सप्ताह में ही 5 लाख 70 हजार मजदूरों ने मनरेगा में अपना रजिस्टर्ड करवाया है. 21 अप्रैल के बाद से अब तक राजस्थान में 17 लाख लोगों ने मनरेगा के तहत काम मांगा है.
गांव की ओर मजदूरों का पलायन
चारों ओर से मजदूर गांव की तरफ पलायन कर रहे हैं और गांव में कोई रोजगार धंधा नहीं है, इसलिए अब तक का सहारा मनरेगा बचा है. जयपुर के वाटिका में मनरेगा में काम कर रही महिलाएं कह रही हैं कि सरकार आटा चावल तो दे रही है, मगर चाय, चीनी और साबुन कहां से आएगा, इसके लिए तो पैसे चाहिए. जैसे ही सुना कि मनरेगा का काम शुरू हो रहा है मिट्टी ढोने चली आई हूं. कम से कम अब घर का चूल्हा तो चलेगा.
इसी तरह से दूसरी महिलाएं भी कहती हैं कि घर में कोई कमाने वाला नहीं है. बेटा मजदूरी करता था, लेकिन अब बंद है. अनाज किसी को मिलता है तो किसी को नहीं मिलता है, मगर अब मनरेगा का काम शुरू हो गया है तो कम से कम घर तो चलेगा.
मनरेगा के नियमों में भारी छूट
लॉकडाउन 3.0 में राजस्थान में मनरेगा में 26000 परिवारों के 77000 लोगों ने मजदूरी के लिए अपना नाम रजिस्टर करवाया है. शहरों में मजदूरी की खराब हालत को देखते हुए राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मनरेगा के नियमों में भारी छूट दी है. अब अपने घर का काम करने वाला व्यक्ति भी मनरेगा के तहत मजदूरी ले सकता है.
दरअसल, राजस्थान में भीषण अकाल आया था तब अकाल राहत के काम इसी तरह से शुरू किए गए थे, जो बाद में चलकर देश में नरेगा और फिर मनरेगा के नाम से जाने जाना लगा. कहते हैं कि 2008 की मंदी में हिंदुस्तान अगर खड़ा रह पाया तो यह मनरेगा की बदौलत ही हुआ था. आज एक बार फिर से लोग मनरेगा की तरफ देख रहे हैं.
हालांकि, इसकी वजह से उद्योग जगत के लोग चिंतित हैं. इनका मानना है कि मनरेगा की वजह से शहरों में मजदूर नहीं मिलेंगे तो उत्पादन प्रभावित होगा, इसलिए यह भी मांग कर रहे हैं कि मनरेगा को उद्योगों से जोड़ा जाए.