02 जुलाई 2020भारत ने अब सैन्य और आर्थिक मोर्चे के अलावा चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर भी घेरना शुरू कर दिया है. भारत ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हॉन्ग कॉन्ग में चीन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू होने के बाद से पहली बार इस मुद्दे पर बयान दिया है. बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग में चीन के नए सुरक्षा कानून को लेकर लंबे समय से प्रदर्शन हो रहे हैं. इस कानून के जरिए चीन हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता खत्म करने की फिराक में है.
दुनिया भर में हॉन्ग कॉन्ग में चीन के इस कदम की आलोचना हो रही है. अब भारत ने अपने बयान में कहा है कि सभी संबंधित पक्षों को मुद्दे को उचित, गंभीर और वस्तुगत तरीके से सुलझाना चाहिए. भारत के इस बयान को चीन के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. कुछ दिन पहले ही भारत ने 59 चीनी मोबाइल ऐप बैन करके उसे आर्थिक झटका दिया था.
1997 तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा हॉन्ग कॉन्ग 'एक देश, दो व्यवस्थाएं' (वन नेशन, टू सिस्टम) के तहत चीन को सौंप दिया गया था लेकिन हॉन्ग कॉन्ग को राजनीतिक और कानूनी स्वायत्तता हासिल है. हालांकि, अब चीन हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता खत्म कर उस पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहता है. इसे लेकर हॉन्ग-कॉन्ग में खूब विरोध-प्रदर्शन हुए और दुनिया के तमाम देशों ने इसे लेकर चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया. हालांकि, भारत अब तक खामोश था.
भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि राजीव कुमार चंदर ने जेनेवा में आयोजित हुए मानवाधिकार परिषद के 44वें सत्र में बयान दिया. बयान में कहा गया है, "हॉन्ग कॉन्ग में भारतीय समुदाय की एक बड़ी आबादी बसती है जिसे देखते हुए भारत हालिया घटनाक्रमों पर करीब से नजर बनाए हुए है. हमने इन घटनाक्रमों को लेकर चिंता जाहिर करने वाले कई बयानों के बारे में सुना है. हमें उम्मीद है कि संबंधित पक्ष इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए उचित तरीके से इस मुद्दे को सुलझाएंगे."
दुनिया भर में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा के दौरान भारत की तरफ से ये बयान जारी किया गया है. ये पहली बार है जब भारत ने हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर कोई बयान जारी किया है. चीन से चल रहे सैन्य तनाव के बीच इसे भारत का चीन को कूटनीतिक जवाब भी माना जा रहा है.
इससे पहले, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भारत के चीनी ऐप्स बैन करने के कदम का समर्थन किया था और कहा था कि भारत की क्लीन ऐप वाले कदम से उसकी संप्रभुता और एकता सुरक्षित रहेगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका भी चाहता था कि भारत हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर आवाज उठाए.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 27 देशों ने चीन से हॉन्ग कॉन्ग में लाए गए नए सुरक्षा कानून पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है. ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका-जापान-भारत के गठजोड़ में भारत ही इकलौता ऐसा देश था जिसने अभी तक हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर बयान नहीं दिया था. अमेरिका, यूके, कनाडा के साथ ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन के नए कानून को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी थी.
हॉन्ग कॉन्ग के अलावा, मोदी सरकार ने ताइवान पर भी चीन की सरकार को घेरने के संकेत दे दिए हैं. ताइवान भी हॉन्ग कॉन्ग की ही तरह चीन के 'वन नेशन, टू सिस्टम' का हिस्सा है और चीन जरूरत पड़ने पर ताइवान के बलपूर्वक विलय की बात भी करता रहा है. भारत हमेशा से ताइवान को लेकर बीजिंग की 'वन चाइना पॉलिसी' को मानता रहा है और इसी वजह से ताइवान के साथ किसी भी तरह के कूटनीतिक संबंध स्थापित नहीं किए लेकिन अब ताइवान को लेकर भारत की रणनीति में भी बदलाव के संकेत मिलते दिख रहे हैं.
पिछले दिनों, ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में दो बीजेपी सांसदों ने अनाधिकारिक तौर पर हिस्सा लिया. साई इंग-वेन का चीन के खिलाफ बेहद आक्रामक रुख रहा है और उन्होंने कहा था कि वह वन नेशन टू सिस्टम की दलील के नाम पर कभी भी चीन का आधिपत्य स्वीकार नहीं करेंगी. बीजेपी सांसदों ने ताइवान की राष्ट्रपति को एक बधाई संदेश भी भेजा था. इसके बाद खबर आई कि चीनी दूतावास ने दोनों बीजेपी सांसदों से इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण भी मांगा.
इसके अलावा, भारत चीन में उइगुर मुसलमानों और तिब्बत को लेकर भी चीन को टेंशन दे सकता है. कई विश्लेषकों का कहना है कि भारत चीन से जुड़े मुद्दों पर अब तक इसलिए खामोश रहता था क्योंकि वह सीमा पर चीन के साथ टकराव नहीं बढ़ाना चाहता है. लेकिन 15 जून को गलवान घाटी में चीन से हुए संघर्ष और उसके विस्तारवादी रुख को देखते हुए भारत ने भी अब चीन की दुखती रगों पर हाथ रखना शुरू कर दिया है.