नई दिल्ली, 02 जुलाई 2020,भारत के पड़ोसी देश नेपाल में राजनीतिक घटनाक्रम काफी तेजी से बदल गया है. लगातार उठ रही इस्तीफे की मांग के बीच गुरुवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रपति से मुलाकात की, फिर आपात बैठक बुलाई. इस बैठक में नेपाल संसद के मौजूदा बजट सेशन को रद्द करने का फैसला लिया गया. अब शाम को नेपाली पीएम केपी ओली अपने देश की जनता को संबोधित करेंगे, खबर है कि वो कुछ बड़ा ऐलान कर सकते हैं.
भारत विरोध पड़ गया भारी?
गौरतलब है कि नेपाल में राजनीतिक संकट की शुरुआत तब हुई थी जब नेपाल की ओर से नया नक्शा जारी किया गया. नेपाल ने संसद में नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें उत्तराखंड के तीन गांवों को अपने देश की ज़मीन बताया गया. इस नक्शे का भारत ने पुरजोर विरोध किया, लेकिन नेपाल बाज नहीं आया और नक्शा जारी कर दिया.
इसके बाद कई मौकों पर केपी ओली को भारत विरोधी बयान देते हुए सुना गया, जिसमें कोरोना वायरस से खतरनाक वायरस भारत से आने वाला वायरस जैसा बयान या फिर भारत पर उनकी सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाना हो. हालांकि, हर मौके पर भारत ने केपी ओली के बयानों का खंडन ही किया.
प्रचंड ने संभाला मोर्चा
इस सबके बीच नेपाल का चीन के प्रति मोह बढ़ता गया और लगातार वह चीन की चाल में फंसता गया. इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड भी एक्टिव हुए और लगातार केपी ओली पर हमला तेज कर दिया. पहले उन्होंने नेपाली पीएम से ये साबित करने को कहा कि भारत ने किस तरह उनकी सरकार को अस्थिर किया, कहा कि ऐसे बयान भारत से संबंध बिगाड़ सकते हैं. इतना ही नहीं प्रचंड ने साफ कहा कि भारत नहीं बल्कि वो उनका इस्तीफा चाहते हैं.
आपको बता दें कि नेपाल में दो कम्युनिस्ट पार्टियों ने साथ में आकर सरकार बनाई थी, जिसमें एक-एक कार्यकाल के हिसाब से प्रधानमंत्री पद तय हुआ था. इस बीच जब केपी ओली से प्रधानमंत्री पद का इस्तीफा मांगा गया, तो पार्टी में भी उनके लिए विरोध शुरू हो गया और पार्टी के प्रमुख पद से इस्तीफा मांगा गया.
क्या था नक्शा विवाद?
दरअसल, कुछ वक्त पहले नेपाल सरकार ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को भी शामिल किया गया है. नेपाल कैबिनेट की बैठक में भूमि संसाधन मंत्रालय ने नेपाल का यह संशोधित नक्शा जारी किया था. इसका बैठक में मौजूद कैबिनेट सदस्यों ने समर्थन किया था.
हुआ यूं कि 8 मई को भारत ने उत्तराखंड के लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के लिए सड़क का उद्घाटन किया था. इसको लेकर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई थी. इसके बाद नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी करने का फैसला किया था और इसमें भारत के क्षेत्रों को भी अपना बताकर दिखाया है.