वॉशिंगटन/लंदन
भारत समेत एशिया में पड़ोसी देशों के साथ चीन की बढ़ती दादागिरी को देखते हुए अमेरिका ने ड्रैगन से मुकाबले के लिए कमर कस ली है। अमेरिका अपने हजारों सैनिकों को जापान से लेकर ऑस्ट्रेलिया से तक पूरे एशिया में तैनात करने जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इंडो-पैसफिक इलाके में शीत युद्ध के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण भूराजनैतिक चुनौती है। इस तैनाती के बाद अमेरिकी सेना अपने वैश्विक दबदबे को फिर से कायम करेगी। उधर, ब्रिटेन भी अपने हजारों कमांडो स्वेज नहर के पास तैनात कर रहा है।
अमेरिका जर्मनी में तैनात अपने हजारों सैनिकों को एशिया में तैनात करने जा रहा है। ये सैनिक अमेरिका के गुआम, हवाई, अलास्का, जापान और ऑस्ट्रेलिया स्थिति सैन्य अड्डों पर तैनात किए जाएंगे। जापान के निक्केई एशियन रिव्यू की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की प्राथमिकता बदल गई है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका के रखा विशेषज्ञों का मानना था कि सोवियत संघ पर नियंत्रण रखने के लिए यूरोप में बड़ी तादाद में सेना को रखना जरूरी है।
अमेरिका के निशाने पर आया चीन
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2000 के दशक में अमेरिका का फोकस मुख्य रूप से आतंकवाद पर था और उसने इराक तथा अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ा था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने पिछले महीने अपने एक लेख में कहा था, 'चीन और रूस जैसी दो महाशक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा के लिए अमेरिकी सेना को निश्चित रूप से अग्रिम इलाके में पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से सेना को तैनात करना होगा।'
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अमेरिका जर्मनी से अपने सैनिकों संख्या 34500 से घटाकर 25 हजार करने जा रहा है। इन 9500 अमेरिकी सैनिकों को इंडो- पैसफिक इलाके में तैनात किया जाएगा या फिर उन्हें अमेरिका में स्थित सैन्य अड्डे पर भेजा जाएगा। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा, 'एशिया में अमेरिका और हमारे सहयोगी देश कोल्ड वार के बाद सबसे बड़ी भूराजनीतिक चुनौती का सामना कर रहे हैं।'
उधर, चीन लगातार अपनी सेना पर भारी खर्च कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक चीन रूस के मुकाबले तीन गुना ज्यादा पैसा रक्षा पर खर्च कर रहा है। चीन की रणनीति है कि अमेरिकी जंगी जहाजों और फाइटर जेट को अपने करीब न आने दे। इसके लिए चीन अपनी मिसाइल क्षमता को बढ़ा रहा है। साथ ही रेडार क्षमता को और ज्यादा आधुनिक बना रहा है।
अमेरिकी सेना ने बदल दी अपनी रणनीति
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी सेना के वैश्विक संचालन में तीन बदलाव आए हैं। पहला-अमेरिकी सेना का ध्यान अब यूरोप और पश्चिम एशिया से हटकर एशिया प्रशांत इलाके पर हो गया है। दूसरा-अमेरिकी सेना का जमीनी जंग की बजाय समुद्र और हवा में युद्ध पर फोकस हो गया है। तीसरा: ट्रंप प्रशासन अब अमेरिकी सेना पर होने वाले खर्च को घटाना चाहता है। अमेरिक तेल की चाहत में पश्चिम एशिया गया था लेकिन अब यह खुद उसके यहां भी पैदा होने लगा है।
चीन से निपटने के लिए अब अमेरिकी सेना एयर और समुद्र में जंग लड़ने पर अपना फोकस कर रही है। अमेरिकी सेना का मानना है कि अगर चीन से साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी या हिंद महासागर में युद्ध लड़ना पड़ा तो यह क्षमता बेहद जरूरी होगी। वर्ष 1987 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के 1,84,000 सैनिक थे लेकिन वर्ष 2018 में यह घटकर 1,31,000 हो गए। ट्रंप प्रशासन अब दक्षिण कोरिया और जापान के साथ सैनिकों को लेकर वार्ता कर रहा है।
चीन से निपटने के लिए ब्रिटेन एशिया में भेज रहा सैनिक
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के खतरे से निपटने लिए अमेरिका का करीबी सहयोगी ब्रिटेन भी एशिया में अपने सैनिक भेज रहा है। ब्रिटेन की सेना का मानना है कि एशियाई सहयोगी देशों के साथ नजदीकी संबंध रखकर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल करके और स्वेज नहर के पास और ज्यादा सैनिक तैनात करके चीन पर नकेल कसा जा सकता है। इसके लिए ब्रिटेन के तीनों ही सेनाओं के प्रमुख मंत्रियों से मिले थे। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस के खात्मे के बाद दुनिया में आर्थिक संकट, विवाद और लड़ाई बढ़ जाएगी।
ब्रिटेन के सेना प्रमुखों की बैठक में चीन के खतरे पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई। ब्रिटेन में चीन के साथ संबंधों को नए सिरे से पारिभाषित करने पर जोर दिया जा जा रहा है। इसके अलावा ताइवान के साथ संबंध को मजबूत करने जोर दिया जाएगा। इसके लिए ब्रिटेन दक्षिण कोरिया और जापान के साथ संबंध को और ज्यादा मजबूत करेगा। ब्रिटेन की शाही नौसेना ने ऐलान किया है कि वह स्थायी रूप से स्वेज नहर के पूर्व में कुछ हजार कमांडो हमेशा के लिए तैनात कर रही है। इन्हें संकट के समय कभी भी तैनात किया जा सकेगा। बता दें कि स्वेज नहर दुनिया का सबसे व्यस्त मार्ग है और चीन का बड़े पैमाने पर सामान इसी रास्ते से यूरोप जाता है।