चंडीगढ़, 11 जून 2020, ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के मौके पर सिख धर्म की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त के प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह के जरिए खलिस्तान को लेकर दिए गए एक विवादित बयान के बाद पंजाब के आरएसएस और हिंदू नेताओं में फिर से खौफ पसर गया है. डर इसलिए है क्योंकि उनके बयान से खालिस्तानी आतंकवादियों के हौसले फिर से बुलंद हो रहे हैं.
प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस का आतंकी गुरपटवंत सिंह पन्नू ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान को लेकर लोगों को फोन कर डरा रहा है. पाकिस्तान की आईएसआई से मिल रही मदद से यह आतंकवादी दूसरे खालिस्तानी संगठनों के साथ मिलकर पंजाब में शांति भंग करने की फिराक में है. पंजाब के आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के नेता इसलिए भी डरे हुए हैं क्योंकि खालिस्तानी आतंकवादी इससे पहले दर्जनभर धार्मिक नेताओं, जिनमें ज्यादातर हिंदू और आरएसएस के नेता शामिल हैं, को अपना निशाना बना चुके हैं.
इन नेताओं की हत्याओं की जांच करने वाली एनआईए ने खुलासा किया था कि यह सभी हत्याएं पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई ने खालिस्तानी आतंकवादियों की मदद से करवाई थी. दरअसल, वह पंजाब में बीजेपी और आरएसएस के प्रसार और हिन्दू-सिख एकता के खिलाफ माहौल बनाना चाहती है ताकि पंजाब में हिंदू-सिखों के बीच मतभेद पैदा हो और वह सिखों को बरगला कर आतंक के जिन्न को फिर से पैदा कर सकें.
सीधे तौर पर भयभीत नहीं
हालांकि पंजाब के आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के नेता आईएसआई और खालिस्तानी आतंकवादियों से सीधे तौर पर भयभीत नहीं है. लेकिन उनका मानना है कि अकाल तख्त प्रमुख के खालिस्तान संबंधी बयान से कट्टरवाद और आतंकवाद को हवा मिल रही है. इस मसले पर जब पंजाब के खालिस्तानी समर्थक नेताओं की बात की गई तो सामने आया कि उनको आरएसएस से ज्यादा राष्ट्रीय सिख संगत से दिक्कत है.
दरअसल कट्टरवादी सिख मानते हैं कि राष्ट्रीय सिख संगत सिखों को बांटने का काम कर रही है. इन कट्टरवादी नेताओं का मानना है कि उन्हें आरएसएस से नहीं बल्कि उसकी सिख शाखाओं से आपत्ति है. आरएसएस की सिख शाखा राष्ट्रीय सिख संगत के अस्तित्व में आने के बाद ही कट्टरवादी खालिस्तानी संगठनों के निशाने पर रही है. अकाल तख्त प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इससे पहले कहा था कि आरएसएस भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है और जो देश के हित में नहीं है क्योंकि भारत में कई दूसरे धर्मों के लोग भी रहते हैं.
अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध
हरप्रीत सिंह इससे पहले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध भी कर चुके हैं. साल 2004 में अकाल तख्त ने राष्ट्रीय सिख संगत के खिलाफ फतवा जारी करते हुए सिखों को आरएसएस और राष्ट्रीय सिख संगत से दूर रहने की हिदायत दी थी और कहा था कि राष्ट्रीय सिख संगत सिख धर्म के खिलाफ है. राष्ट्रीय सिख संगत के खिलाफ अकाल तख्त का फतवा जारी होने के बाद बब्बर खालसा से सम्बद्ध खालिस्तानी आतंकवादियों ने साल 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत के तत्कालीन अध्यक्ष रुलदा सिंह की पटियाला में गोली मारकर हत्या कर दी थी.
कट्टरवादी सिख संगठनों का मानना है कि आरएसएस सिख धर्म को हिंदू धर्म से जोड़ने की बात करती है जबकि सिख धर्म एक अलग धर्म है. अकाल तख्त ने साल 2017 में राष्ट्रीय सिख संगत के जरिए गुरु गोविंद सिंह के 350वें जन्मोत्सव के मौके पर आयोजित किए गए एक कार्यक्रम का विरोध करते हुए आयोजन को सिखों के धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी बताया था. वहीं साल 2019 में अकाल तख्त में राष्ट्रीय सिख संगत पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
अकाली दल और बीजेपी के बीच बढ़ती दूरियां
दरअसल, पिछले कुछ अरसे से भारतीय जनता पार्टी और पंजाब में उसकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के रिश्तों में कई बातों को लेकर खटास पैदा हो रही है. उसका एक बड़ा कारण अकाल तख्त प्रमुखों के जरिए आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी को लेकर दिए गए विरोधी बयान भी है. हालांकि अकाली दल अकाल तख्त और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को स्वतंत्र संस्थाएं बताता है लेकिन इन पर हमेशा बादल परिवार का दबदबा रहता आया है.
बीजेपी और अकाली दल के बीच पैदा हो रही दीवार का दूसरा बड़ा कारण शिरोमणि अकाली दल का गिरता राजनीतिक ग्राफ है. पंजाब में दो बार अकाली दल के साथ सरकार बनाती आई भारतीय जनता पार्टी अब पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है. यही कारण है कि साल 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी गुपचुप पंजाब में अपनी पैठ बढ़ा रही है. पार्टी की पकड़ मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राज्य के गांवों में अपनी शाखाएं बढ़ा रहा है. इससे खालिस्तानी संगठनों की परेशानी बढ़ गई है.
अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी भविष्य में अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे या फिर गठबंधन में यह फिलहाल तय नहीं है. लेकिन पंजाब में आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी का विस्तार आईएसआई, अकाल तख्त और खालिस्तानी संगठनों को रास नहीं आ रहा. जबकि सच्चाई यह है कि पंजाब के लोग आतंकवाद फैलाने वाले खालिस्तान के मुद्दे को नकार चुके हैं.