मुंबई
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से बीजेपी और शिवसेना के बीच चल रही खींचतान का अंत अलगाव के तौर पर सामने आता दिख रहा है। शिवसेना के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन वाली प्रदेश सरकार पर सहमति बनती दिख रही है। देरी है तो सिर्फ कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी की ओर से ग्रीन सिग्नल की। कांग्रेस में मंथन का दौर चल रहा है और फिलहाल दिल्ली में हो रही बैठक में इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मिल सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए शिवसेना के वर्तमान से ज्यादा इतिहास चिंता का सबब बना हुआ है।
सेक्युलरिज्म के कैंप की अगुआ रही कांग्रेस के लिए उग्र हिंदुत्व की पैरोकार शिवसेना से हाथ मिलाना ऐसा फैसला नहीं है, जिसे वह सहजता से ले सके। वजह यही कि एक तरफ उसे महाराष्ट्र में सरकार का हिस्सा बनने का ऑफर है तो दूसरी तरफ लंबे वक्त के लिए 'कम्युनल' पार्टी से हाथ मिलाने के दाग का खतरा। आइए जानते हैं, क्या हैं वे वजहें जिनके चलते कांग्रेस के खेमे में शिवसेना से दोस्ती को लेकर हिचक है...
प्रणब के बाल ठाकरे से मिलने पर खफा थीं सोनिया, इतिहास की चिंता
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2017 में आई अपनी पुस्तक 'द कोएलिशन इयर्स: 1996 to 2012’ में खुलासा किया था कि 2012 में प्रेजिडेंट इलेक्शन के वक्त उन्होंने जब शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मुलाकात की थी तो सोनिया गांधी इससे खफा थीं। भले ही तब शिवसेना के समर्थन से मुखर्जी राष्ट्रपति बने थे, लेकिन सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल उठाने समेत शिवसेना के ऐसे तमाम कदम रहे हैं, जिन पर कांग्रेस को अपने समर्थकों को जवाब देना होगा।
छिटक जाएगा अल्पसंख्यक वोट बैंक!
शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल संजय निरुपम ने भी शिवसेना के साथ हाथ मिलाने पर पार्टी को आगाह किया है। इसके अलावा कांग्रेस को लंबी राजनीति की चिंता है। वह जानती है कि एक बार शिवसेना के साथ गए तो उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक वोट जो लौटा है, वह दूर चला जाएगा। साथ ही देश की राजनीति में कांग्रेस पर 'कम्युनल' कहलाने वाली शिवसेना से हाथ मिलाने का आरोप लगेगा। इससे केंद्र में सेक्युलर गठजोड़ का उसका सपना अधूरा रह जाएगा। इस तरह से कांग्रेस को यह डर सता रहा है कि शिवसेना का 'इतिहास' उसके गले की फांस बन सकता है।
...कहीं यूपी जैसी हालत न हो जाए
यही नहीं महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सोनिया गांधी को बताया है कि अगर बीजेपी को हटाकर शिवसेना-एनसीपी को सरकार बनाने दी गई, तो नुकसान कांग्रेस का ही होगा। दोनों क्षेत्रीय दल एनसीपी और शिवसेना राज्य में जम जाएंगे और कांग्रेस की हालत उत्तर प्रदेश जैसी हो जाएगी। जिस तरह उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी का साथ देने पर कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है और कांग्रेस अब भी वहां अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही है, वैसी ही स्थिति महाराष्ट्र में भी हो जाएगी।
'केरल लॉबी' भी कर रही विरोध
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस की 'केरल लॉबी' भी शिवसेना का समर्थन करने का विरोध कर रही है। उसे डर है कि शिवसेना का समर्थन करने पर अल्पसंख्यक वोट बैंक उससे छिटक सकता है। इन सब वजहों से सोनिया गांधी शिवसेना को समर्थन देने पर फैसला नहीं ले पा रही हैं। दोपहर की बैठक के बेनतीजा रहने पर अब कांग्रेस पार्टी शाम 4 बजे दोबारा बैठक करने जा रही है।
पीडीपी-बीजेपी गठबंधन का हवाला
इस बीच कांग्रेस के साथ गठबंधन के विरोधाभास पर शिवसेना ने पीडीपी-बीजेपी गठबंधन का हवाला दिया है। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने सोमवार को कहा कि अगर बीजेपी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बना सकती है तो शिवसेना महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस के साथ क्यों नहीं?' बीजेपी का यह अहंकार कि वह विपक्ष में बैठ लेगी, लेकिन मुख्यमंत्री पद साझा नहीं करेगी। इसी अहंकार के कारण मौजूदा स्थिति उत्पन्न हुई है...अगर बीजेपी अपना वादा पूरा करने को तैयार नहीं है, तो गठबंधन में रहने का कोई मतलब नहीं है।’
शिवसेना की अपील पर सोनिया क्या लेंगी फैसला?
राउत ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से राज्य के हित में साथ आने की अपील की। कांग्रेस, एनसीपी को मतभेद भूल कर महाराष्ट्र के हित में एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ आना चाहिए। राउत ने कहा, ‘शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र के हित की रक्षा पर सहमत हैं।’ बता दें कि गठबंधन पर एनसीपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सोमवार दोपहर एनसीपी की कोर कमिटी की बैठक हुई। बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक ने कहा है कि कांग्रेस के निर्णय के बाद ही एनसीपी सरकार बनाने पर अपना फैसला लेगी। वैकल्पिक सरकार बनाना हमारी जिम्मेदारी है, जो फैसला होगा, वह कांग्रेस के साथ मिलकर होगा।