महागठबंधन के साथियों को छोड़ सियासी राह में अकेले चल पाएगा मायावती का हाथी?

नई दिल्ली/लखनऊ लोकसभा चुनाव में दावों के उलट करारी हार झेलने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के टूटने की चर्चाएं हैं। मायावती की ओर से कार्यकर्ताओं को 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले लड़ने की तैयारी के निर्देश के बाद यह कयास लग रहे हैं। इसके साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों में यह चर्चा भी चल रही है कि यदि गठबंधन में दोनों दलों का यह हाल हुआ है तो फिर माया का अकेले लड़ने का फैसला कितना फायदेमंद हो सकता है। माया ने दिए गठबंधन तोड़ने के संकेत: बीएसपी वर्कर्स को 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले लड़ने की तैयारी करने का मायावती ने निर्देश दिया है। इससे स्पष्ट है कि वह भविष्य में गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि आमतौर पर बीएसपी उपचुनाव में नहीं उतरती है और उसने अकेले लड़ने का फैसला लिया है तो साफ है कि वह अकेले जाना चाहती हैं। सियासी राह अकेले चल पाएगा हाथी?: इस बात का जवाब शायद में है। लोकसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और यूपी में एसपी-बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन को उम्मीदों के मुताबिक सीटें नहीं मिल सकी हैं। तीनों दलों ने सूबे की 78 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 15 पर ही जीत मिल सकी। एसपी के खाते में महज 5 सीटें ही गईं, जबकि बीएसपी को 10 सीटें मिली हैं। राष्ट्रीय लोकदल का एक बार फिर से 2014 की ही तरह सूपड़ा साफ हो गया है। हालांकि बीएसपी को 2014 के मुकाबले 10 सीटों पर सफलता मिली है, लेकिन यह उसकी उम्मीदों से कम है। मायावती को कम से कम 20 सीटों पर जीत की उम्मीद थी। मायावती को लगता है कि इन 10 सीटों पर जीत की वजह उनके परंपरागत वोटरों का बीएसपी के साथ बने रहना है, जबकि एसपी के समर्थक वर्ग ने गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट नहीं डाला। बीएसपी को 19.3% वोट मिले, जबकि एसपी को 17.93% वोट मिले थे। बीएसपी का बड़ा है दायरा: समाजवादी पार्टी और अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के मुकाबले बीएसपी का दायरा खासा बड़ा है। बीएसपी का वोट बैंक उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब में भी है, जहां बड़ा दलित वोट बैंक है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में भी बीएसपी का आधार है, जहां उसने इस बार के विधानसभा चुनावों में दो सीटें हासिल की थीं। ऐसे में बीएसपी अब अपने दम पर अपने दायरे को बढ़ाने और मजबूत करने पर फोकस कर सकती है। क्या गठबंधन तोड़ देंगी माया: पिछले साल दलितों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाते हुए मायावती ने विरोध में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था। फिलहाल वह राज्यसभा और लोकसभा में से किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। 2020 में यदि वह एक बार फिर राज्यसभा जाना चाहती हैं तो उन्हें एसपी और आरएलडी के समर्थन के अलावा कांग्रेस से भी सपोर्ट की जरूरत होगी। ऐसी स्थिति में देखना होगा कि वह क्या फैसला लेती हैं।

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