हनुमानगढ़


हनुमानगढ़, 24 अप्रैल। खनिजों की सुरक्षा और अवैध खनन पर प्रभावी नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देशों की अनुपालना में जिले में अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई की गई है। मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंस में खनिजों के महत्व को देखते हुए वैध खनन को प्रोत्साहित करने और अवैध खनन पर पूर्णतः रोक लगाने की आवश्यकता पर बल दिया गया था। मुख्यमंत्री द्वारा सभी जिला कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों तथा खान, वन एवं परिवहन विभाग के अधिकारियों को समन्वित प्रयासों के साथ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए है। इन निर्देशों की पालना में जिला कलेक्टर के नेतृत्व में जिला स्तरीय खनिज विकास, पर्यावरण संरक्षण एवं अवैध खनन निगरानी समिति की बैठक आयोजित की गई। अभी तक खान विभाग द्वारा जिले के रावतसर, पल्लू, नोहर, भादरा और पीलीबंगा खनिज क्षेत्रों में विशेष अभियान चलाया गया। इस अभियान के दौरान खनिज जिप्सम के 5 प्रकरण दर्ज कर 4.26 लाख रुपए शास्ति वसूली गई। ईंट मिट्टी के अवैध परिवहन के 5 प्रकरणों में 1.33 लाख रुपए की शास्ति वसूली गई। मैसनरी स्टोन के 2 प्रकरण दर्ज कर 2.34 लाख रुपये की शास्ति वसूली गई। कुल मिलाकर 12 प्रकरणों में 194.60 मीट्रिक टन खनिज जब्त किए गए तथा 7.94 लाख रुपए की राशि शास्ति स्वरूप वसूली गई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, अवैध खनन के विरुद्ध यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।
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बॉलीवुड के बीते जमाने के स्टार जीतेंद्र आज 82 साल के हो गए। तकरीबन चार दशक लंबे करियर में जीतेंद्र ने 'तोहफा', 'हिम्मतवाला', 'कारवां', 'परिचय', 'मवाली' समेत कई हिट फिल्मों में काम किया है। अपने अनोखे डांसिंग स्टाइल की वजह से लोग उन्हें जंपिंग जैक बुलाते थे। जीतेंद्र ने करीब 121 हिट फिल्में दीं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कभी बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड नहीं मिला। कभी 8 साल में 60 फिल्मों में काम करने वाले जीतेंद्र तकरीबन 23 साल पहले एक्टिंग छोड़ चुके हैं। 2001 में उन्हें फिल्म ‘कुछ तो है’ में देखा गया था। इसके बाद वो कुछ टीवी सीरियलों और वेब सीरीज में चंद मिनट के लिए ही नजर आए हैं। एक इंटरव्यू में जीतेंद्र ने तो ये तक कहा था कि उन्हें याद ही नहीं है कि वे कभी एक्टर थे। वैसे, एक्टिंग के अलावा जीतेंद्र ने प्रोडक्शन हाउस से भी मोटी कमाई की, लेकिन फिल्में प्रोड्यूस करते हुए जीतेंद्र दो बार दिवालिया भी हो गए थे। जीतेंद्र ने तब भी हार नहीं मानी और आज उनकी संपत्ति 1512 करोड़ रुपए है। जन्मदिन के मौके पर जानते हैं जीतेंद्र की लाइफ के कुछ दिलचस्प किस्से… राजेश खन्ना थे जीतेंद्र के क्लासमेट जीतेंद्र का जन्म 7 अप्रैल 1942 को अमृतसर (पंजाब) में हुआ था। उनका असली नाम रवि कपूर है। जीतेंद्र के पिता अमरनाथ फिल्म इंडस्ट्री में नकली ज्वेलरी सप्लाई करने का काम करते थे, इसलिए पूरी फैमिली अमृतसर से मुंबई आकर बस गई थी। जीतेंद्र की शुरुआती पढ़ाई सेंट सेबेस्टियन गोअन हाई स्कूल, मुंबई में हुई थी। इसी स्कूल में उनके साथ राजेश खन्ना भी पढ़ते थे और दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। जीतेंद्र ने आगे की पढ़ाई मुंबई के सिद्धार्थ कॉलेज से पूरी की। ज्वेलरी सप्लाई करते-करते बने बॉडी डबल जीतेंद्र जब बड़े हुए तो अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाने लगे। इसी सिलसिले में एक दिन वे फिल्ममेकर वी शांताराम से मिले। फिर अक्सर ज्वेलरी सप्लाई के सिलसिले में जीतेंद्र का शांताराम की फिल्म कंपनी में आना-जाना लगा रहता था। इसी दौरान उनके मन में हीरो बनने की इच्छा जाग गई। उन्होंने वी शांताराम से किसी फिल्म की शूटिंग देखने की इच्छा जताई। शांताराम ने कहा-सिर्फ शूटिंग देखने से काम नहीं चलेगा। काम करोगे? जीतेंद्र ने तुरंत हामी भर दी। फिल्म 'नवरंग' की शूटिंग के दौरान जीतेंद्र को छोटे-मोटे काम मिल जाया करते थे। लेकिन एक दिन ऐसा आया जब जीतेंद्र की किस्मत चमक गई। ये किस्सा उन्होंने खुद 'द कपिल शर्मा शो' के दौरान सुनाया था। जब कपिल शर्मा ने उनसे पूछा था कि क्या आप स्ट्रगल के दिनों में हीरोइन के बॉडी डबल बने थे? इस पर जीतेंद्र ने कहा था, हां, मैं फिल्म 'सेहरा' की शूटिंग के दौरान जूनियर आर्टिस्ट था। मुझे शांताराम जी की चमचागिरी करनी पड़ती थी, मैं उस वक्त कुछ भी करने को तैयार था। तो एक दिन बीकानेर में शूटिंग के वक्त हीरोइन संध्या जी की कोई बॉडी डबल नहीं मिल रही थी। शांताराम जी ने मुझे संध्या जी का बॉडी डबल बना दिया और इस तरह मेरी फिल्मों में एंट्री हुई। पहली फिल्म की फीस थी 100 रु. शुरुआत में जीतेंद्र को काम तो मिला लेकिन छह महीने तक कोई फीस नहीं मिली। उनसे वी. शांताराम ने वादा किया था कि जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर उन्हें हर महीने 105 रु. दिए जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर जब वी.शांताराम ने जीतेंद्र को 1964 में फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' से ब्रेक दिया और तब अपनी पहली फिल्म की फीस के तौर पर जीतेंद्र को 100 रु. मिले। 'गीत गाया पत्थरों ने' से जीतेंद्र को ब्रेक तो मिला, लेकिन फिल्म फ्लॉप रही। ऐसे में जीतेंद्र को फिर छोटे-मोटे रोल करके गुजारा करना पड़ा। हालांकि, उनके मन में अब भी सोलो लीडिंग स्टार बनने की तमन्ना थी। 1967 में रिलीज हुई ‘फर्ज’ जीतेंद्र के करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई, लेकिन बतौर लीड स्टार फिल्म इंडस्ट्री में जमना उनके लिए आसान नहीं था। सोलो लीड हीरो बनाने से पहले डायरेक्टर ने रखी जीतेंद्र के सामने शर्त एक बार फिल्ममेकर सुबोध मुखर्जी ने जीतेंद्र से कहा कि वो उन्हें लेकर एक सोलो हीरो फिल्म बनाना चाहते हैं। जीतेंद्र खुश हो गए, लेकिन तभी सुबोध ने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा- मैं फिल्म तभी बनाऊंगा, जब हेमा मालिनी इस फिल्म में काम करेंगी। दरअसल, उस दौर में हेमा मालिनी का स्टारडम किसी मेल सुपरस्टार से कम नहीं था। हेमा जिस फिल्म में होती थीं, उसके सफल होने की गारंटी 100% रहती थी। जीतेंद्र भी ये बात भांप गए कि अगर हेमा उनकी हीरोइन बन जाएं तो उनकी भी नैया पार लग जाएगी और वो भी बतौर हीरो स्थापित हो जाएंगे। मगर ये इतना आसान नहीं था। उस समय हेमा के करियर के फैसले उनकी मां जया चक्रवर्ती लेती थीं। जब जीतेंद्र ने उन्हें फिल्म के बारे में बताया तो उन्होंने मना कर दिया। जीतेंद्र उनके पीछे पड़ गए और कहा-आपकी बेटी अगर मेरे साथ फिल्म कर लेगी तो मेरा करियर बन जाएगा। आखिरकार जया मान गईं। जीतेंद्र ने ये बात सुबोध मुखर्जी को बताई और उन्होंने झट से हेमा को फिल्म में साइन कर लिया। हेमा को साइन करके डायरेक्टर ने जीतेंद्र को किया फिल्म से बाहर आगे मामले में ट्विस्ट तब आया जब सुबोध मुखर्जी ने फिल्म में जीतेंद्र के बजाए शशि कपूर को हीरो के तौर पर साइन कर लिया। ये बात जानकर जीतेंद्र के पैरों तले जमीन खिसक गई, जब उन्होंने सुबोध से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, 'फिल्म के प्रोड्यूसर और फाइनेंसर ने कहा है कि जब हीरोइन हेमा मालिनी है तो हीरो भी बड़ा कास्ट करो, जीतेंद्र को लेने की क्या जरूरत। इसलिए मैंने शशि कपूर के साथ फिल्म अनाउंस कर दी।' जीतेंद्र ने जब सुबोध से कहा कि हेमा मेरी वजह से फिल्म में आई हैं तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि हम यहां बिजनेस करने बैठे हैं। जीतेंद्र इस बात से मायूस हो गए लेकिन इसी दौरान एल.वी प्रसाद ने उन्हें फिल्म 'जीने की राह' का ऑफर दिया। ये फिल्म सुपरहिट हो गई और जीतेंद्र चमक गए जबकि हेमा और शशि कपूर स्टारर फिल्म 'अभिनेत्री' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। हेमा की मां जीतेंद्र से करवाना चाहती थीं बेटी की शादी जब जीतेंद्र बड़े स्टार बन गए तो हेमा की मां जया चक्रवर्ती को वे अपनी बेटी के लिए परफेक्ट लगे। जया, हेमा की उनसे शादी करवाना चाहती थीं। दरअसल, तब हेमा का अफेयर धर्मेंद्र से चल रहा था और संजीव कुमार भी हेमा से शादी का प्रस्ताव उनके घरवालों के सामने रख चुके थे। हेमा की मां को न संजीव कुमार पसंद थे और न ही धर्मेंद्र। वे नहीं चाहती थीं कि हेमा की इन दोनों में से किसी स्टार से शादी हो जबकि जीतेंद्र उन्हें बेटी के लिए पसंद थे। जया चक्रवर्ती ने बेटी हेमा की शादी जीतेंद्र से फिक्स कर दी थी और चेन्नई में दोनों सात फेरे भी लेने वाले थे। तभी धर्मेंद्र शादी के मंडप में जीतेंद्र की गर्लफ्रेंड शोभा को लेकर पहुंच गए और हेमा से उनकी शादी तुड़वा दी थी। इसके कुछ साल बाद जीतेंद्र ने 1974 में गर्लफ्रेंड शोभा से लव मैरिज कर ली थी। श्रीदेवी के साथ हर फिल्म में काम करना चाहते थे जीतेंद्र 1983 में जीतेंद्र ने फिल्म 'हिम्मतवाला' में श्रीदेवी के साथ पहली बार काम किया था। दोनों की जोड़ी को काफी पसंद किया गया। यही वजह है कि एक दौर ऐसा आया जब जीतेंद्र हर फिल्म में केवल श्रीदेवी के साथ ही काम करना चाहते थे। शक्ति कपूर ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'जीतेंद्र को 'हिम्मतवाला' में श्रीदेवी का काम इतना पसंद आया था कि उन्होंने डायरेक्टर राघवेंद्र से कहा कि वे अपनी सभी फिल्मों में उनके अपोजिट केवल श्रीदेवी को बतौर हीरोइन साइन करें।' यही वजह थी कि 'हिम्मतवाला' के बाद राघवेंद्र राव ने जब 'जानी दोस्त' (1983), 'जस्टिस चौधरी' (1983), 'तोहफा' (1984), 'सुहागन' (1986), 'धर्माधिकारी' (1986) और 'दिल लगाके देखो' (1988) फिल्में बनाईं तो उन्होंने इनमें श्रीदेवी को ही लिया। जीतेंद्र को रेखा ने दी थी श्रीदेवी के साथ काम करने की सलाह एक इंटरव्यू में जीतेंद्र ने फिल्म 'हिम्मतवाला' में श्रीदेवी के साथ काम करने के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा था, 'श्रीदेवी के साथ काम करने की सलाह मुझे रेखा ने दी थी। एक दिन मैं और रेखा, श्रीदेवी की कोई तेलुगु फिल्म देख रहे थे। रेखा ने मुझसे कहा, 'तुम्हें श्रीदेवी के साथ जरूर काम करना चाहिए। उस वक्त रेखा के पास 'हिम्मतवाला' के लिए डेट्स नहीं थी। वे फिल्म में काम करने से मना कर चुकी थीं। ऐसे में मैंने राघवेंद्र राव को श्रीदेवी को कास्ट करने का सुझाव दिया और वे मान गए। इस तरह 'हिम्मतवाला' में श्रीदेवी की एंट्री हुई। श्रीदेवी का डांस में कोई मुकाबला नहीं था। जब 'हिम्मतवाला' की शूटिंग के दौरान डांस मास्टर हमें स्टेप्स सिखाते थे तो श्रीदेवी केवल दो रिहर्सल में ही स्टेप्स सीख जाती थीं और मैं कई बार प्रैक्टिस करता था लेकिन वे भी मेरे साथ तब तक रिहर्सल करती थीं, जब तक मैं अपना डांस स्टेप परफेक्ट तरीके से न कर लूं।' 8 साल में 60 फिल्मों में काम किया 1975 के आसपास जब जीतेंद्र को बतौर हीरो फिल्में मिलना बंद हो गईं तो उनकी फाइनेंशियल कंडीशन काफी खराब हो गई थी। इसके बाद जीतेंद्र दूसरी बार तब दिवालिया हुए जब उन्होंने फिल्म प्रोड्यूस करने के बारे में सोचा। 1982 में उन्होंने फिल्म 'दीदार-ए-यार' बनाई जो कि फ्लॉप साबित हुई। इससे जीतेंद्र को काफी नुकसान हुआ। खराब आर्थिक स्थिति से उबरने के लिए जीतेंद्र ने 8 साल में 60 फिल्मों में काम किया। जीतेंद्र के इतनी फिल्में करने पर लोग उन्हें इनसिक्योर एक्टर तक कहने लगे थे, लेकिन जीतेंद्र को इसमें कुछ गलत नहीं लगता। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैंने 8 साल में लगातार 60 फिल्में इसलिए कीं, क्योंकि ये सच है कि 1980 के दौर में मैं काफी इनसिक्योर था। मैं गोरेगांव की चॉल से उठा व्यक्ति हूं। मैंने वो समय देखा है, जब मेरे घर में पंखा लगा था तो पूरी चॉल के लोग उसे देखने के लिए आए थे। मैंने बुरा दौर करीब से देखा है, इसलिए मैं पागलों की तरह काम करता था।' मैं जॉबलैस हूं' जीतेंद्र 23 साल से फिल्मों से दूर हैं, लेकिन इसके बावजूद वे 1512 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अपने प्रोडक्शन हाउस बालाजी टेलीफिल्म्स, ऑल्ट बालाजी और बालाजी मोशन पिक्चर के जरिए उनकी सालाना कमाई 300 करोड़ रु. तक है। जीतेंद्र ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था, '20 से ज्यादा साल हो गए, मैं जॉबलैस एक्टर हूं। मैंने अपना एक रुपया नहीं कमाया है। शोभा (पत्नी) और एकता (बेटी) सब काम संभालती हैं। मेरा योगदान केवल इतना है कि मैंने उस पैसे को सही जगह इन्वेस्ट किया है जो कि उन्होंने कमाया है और वो सारे इन्वेस्टमेंट मेरे लिए फायदेमंद साबित हुए हैं।' शराब-सिगरेट को 22 साल से हाथ नहीं लगाया जीतेंद्र ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे पहले खूब सिगरेट और शराब पीते थे, लेकिन 22 साल पहले ये सब छोड़ चुके हैं। जीतेंद्र ने कहा था-जवानी के दिनों में मैंने अपनी हेल्थ के साथ जितने खिलवाड़ करने थे, सब कर चुका। लेकिन जब मैं 60 साल का हुआ तो मैंने ये सब छोड़ दिया। लोग मुझे इस उम्र में भी फिट होने पर कॉम्प्लीमेंट देते हैं तो मैं उन्हें भी ये सब छोड़ने की सलाह देता हूं। आज के दौर में मुझे सलमान खान और ऋतिक रोशन की फिटनेस बहुत अच्छी लगती है।
9 फिल्‍में और दांव पर 600 करोड़, अक्षय-अजय देवगन के लिए ईद पर सलमान का रिकॉर्ड तोड़ पाना लगभग नामुमकिन!
‘बिग बॉस देख रहे हैं’: गृह मंत्रालय के चप्पे-चप्पे पर अब तीसरी आंख से नजर
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राजस्थान


जयपुर: पिछले दिनों जब राज्य सरकार ने अंग्रेजी मीडियम की सरकारी स्कूलों पर समीक्षा करने के लिए मंत्रिमंडलीय कमेटी का गठन किया तो स्कूलों को बंद किए जाने के सवाल उठने लगे। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शासन में सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूलों का संचालन शुरु किया गया था। पूर्ववर्ती सरकार के इस फैसले पर समीक्षा के लिए कमेटी बनाई गई तो कांग्रेसी नेताओं ने विरोध शुरू कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई नेताओं ने कहा कि भजनलाल सरकार बच्चों के भविष्य को बर्बाद करना चाहती है। स्कूलें बंद करने का विचार करना ही बच्चों के भविष्य के खिलाफ है। गहलोत के इस बयान के बाद सरकार के मंत्री जोगाराम पटेल ने पलटवार किया है। पटेल ने कहा कि सभी स्कूलों को बंद नहीं कर रहे हैं। समीक्षा से वस्तु स्थिति आएगी सामने कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने कहा कि सरकार इंग्लिश मीडियम की सभी स्कूलों को बंद नहीं करने जा रही है लेकिन इस पर समीक्षा करना जरूरी है। समीक्षा से सरकारी अंग्रेजी मीडियम की स्कूलों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी। पटेल ने कहा कि अधिकतर स्कूलों में केवल इंग्लिश मीडियम के बोर्ड लगाए गए हैं। योग्य टीचर और पाठ्य सामग्री को लेकर कई तरह की शिकायतें सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि जिन स्कूलों की स्थिति सही है, उन्हें बरकरार रखा जाएगा। कई स्कूलें ऐसी भी हैं जहां पर दक्ष शिक्षकों की व्यवस्था नहीं है। वहां अंग्रेजी मीडियम की पढ़ाई सही तरीके से नहीं हो रही है। ऐसी स्कूलों पर केवल अंग्रेजी मीडियम का बोर्ड लगाना उचित नहीं है। केवल राजनैतिक लाभ के लिए लगा दिए बोर्ड पटेल ने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने कई फैसले राजनैतिक लाभ के लिए लिये थे। यह किसी से छिपा नहीं है। इंग्लिश मीडियम स्कूलें भी बिना किसी तैयारी के खोल दी गई। कांग्रेस ने इस बात का बिल्कुल ध्यान रखा कि अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढाई का स्तर और गुणवत्ता भी सुधारनी है। कई स्कूलें ऐसी भी हैं जहां स्टूडेंट्स का एडमिशन भी नहीं हो रहा है। वहां अभिभावक खुद चाहते हैं कि उन्हें हिंदी मीडियम स्कूल चाहिए। इन्हीं को देखते हुए सरकार ने समीक्षा के लिए कमेटी बनाई है।
राजस्थान: इंग्लिश मीडियम स्कूल बंद होंगे ? संसदीय कार्य मंत्री ने बताया भजनलाल सरकार का प्लान
जयपुर में 'PM मोदी के खिलाफ कैंपेन', बीजेपी IT सेल के संयोजक दिलीप सिंह राव ने किया बड़ा खुलासा
सुखदेव सिंह की हत्या लॉरेंस बिश्नोई ने कराई थी! राज शेखावत के दावे ने फिर मचाई खलबली, एनकाउंटर पर रखा 1 करोड़ से ज्यादा का इनाम
बागी राजेंद्र भांबू को BJP ने उपचुनाव में दिया टिकट

बहुत कुछ


प्रयागराज/महाकुंभनगर: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 आस्था, भक्ति और संस्कृति का अद्वितीय संगम बन चुका है। इस भव्य आयोजन में देश-विदेश से श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब उमड़ रहा है। हर किसी के मन में आस्था की ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है। सभी संगम में पुण्य की डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना कर रहे हैं। इस दौरान विदेशी तीर्थयात्री भी महाकुंभ की अद्भुत व्यवस्था से अभिभूत नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा किए गए बेहतरीन प्रबंधों की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की है। महाकुंभ में शिरकत करने पहुंचे विदेशी श्रद्धालु भी यहां की व्यवस्था से काफी प्रभावित हैं। अमेरिका के हवाई से आए एक श्रद्धालु ने कहा कि यह कल्पना से परे है कि इतने अधिक लोग एक साथ एकत्रित होकर आस्था के इस महासंगम में शामिल हुए हैं। इतनी विशाल संख्या में लोगों और यहां के बुनियादी ढांचे को देखते हुए, यह अविश्वसनीय है कि सरकार इसे इतनी कुशलता से संचालित कर पा रही है। हर कोई एक-दूसरे की सहायता करता दिख रहा है।
भारत बनेगा दुनिया का मैनपावर सप्लायर, बजट में मोदी सरकार रख देगी नींव
जदयू सांसद अजय मंडल की गुंडागर्दी, सवाल पूछने पर पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा, मोबाइल भी छीना
विदेश में बैठे वॉन्टेड अपराधियों की खैर नहीं, अमित शाह ने लॉन्च किया BHARATPOL
विरोधियों पर कैसी भाषा बोलनी चाहिए... सुप्रीम कोर्ट ने माननीय नेताओं को समझा दिया

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नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सबसे पहला कूटनीतिक कदम ये उठाया है कि सिंधु जल समझौते (IWT) पर रोक लगा दी है। अगर आगे चलकर भी पाकिस्तान अपनी हरकतें नहीं सुधारेगा तो भारत इसे पूरी तरह से रद्द करने की ओर कदम उठा सकता है। अगर ऐसा हो गया तो एक दिन ऐसी नौबत आ सकती है कि पाकिस्तान को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। यही वजह है कि अपनी पहली प्रतिक्रिया में उसने इसे 'युद्ध की कार्रवाई' माना है। अब हम यहां बात करेंगे कि भारत ने पहली बार इस तरह का कदम उठाया है तो क्या इसके पीछे कुछ ठोस रणनीति है या फिर यह सिर्फ नाराजगी का एक संदेश देने भर की कोशिश है। संधि का बहुत फायदा उठा रहा पाकिस्तान इस फैसले के बारे में एनबीटी ऑनलाइन ने कूटनीतिक मामलों के एक्सपर्ट रॉबिन सचदेवा से खास बात की है। उनका कहना है कि सिंधु समेत चेनाब और झेलम की नदियों का पानी पाकिस्तान की ओर जाने से रोकना और संधि को पूरी तरह से तोड़ देना इतना आसान नहीं है। उन्होंने बताया, "तीन नदी पाकिस्तान को जाते हैं, जो वेस्टर्न रिवर्स कहलाती हैं और तीन भारत की ओर आती हैं, जो ईस्टर्न रिवर्स कहलाती हैं। अभी हमारे ईस्टर्न रिवर्स (रावी, ब्यास और सतलुज) में सालाना करीब 35 मिलियन एकड़ फीट पानी बहता है। इसका करीब 30 मिलियन एकड़ फीट ही हम इस्तेमाल कर पाते हैं।....वेस्टर्न रिवर्स (सिंधु, चेनाब और झेलम) के सालाना मेरे ख्याल से लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट हैं। भारत उस पानी का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन संधि के मुताबिक हम उसे रोक नहीं सकते।" निश्चित रूप से हमें फायदा हो सकता है- एक्सपर्ट सचदेवा ने यह भी बताया कि पाकिस्तान किस तरह से इन नदियों पर पूरी तरह से निर्भर है। उन्होंने बताया, "वेस्टर्न रिवर्स का करीब 130 मिलियन एकड़ फीट मेरे ख्याल से पाकिस्तान चला जाता है। पाकिस्तान की 80% खेती को इससे लाभ मिलता है....अभी जो इस पानी को रोकने की बात हो रही है, वह इतना आसान नहीं होगा... वहां का भूगोल बहुत मुश्किल है। कई तरह का इंजीनियरिंग चैंलेज हैं।" लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह संभव होता है तो, "निश्चित रूप से हमें सिंचाई के लिए और पानी मिल सकता है। हमें चाहिए भी... निश्चित रूप से हमें फायदा हो सकता है। पंजाब में देखिए आप हमारा वॉटर टेबल कहां चला गया है। हम वहां से जितना पानी ला सकें, वह अच्छा है, लेकिन इसमें बहुत खर्चा है....." संधि खत्म, पानी-बिजली की टेंशन दूर! इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1960 का निलंबित करने के भारत के फैसले से चेनाब, झेलम और सिंधु नदियों पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं का काम तेजी से होगा, जो कि इस समझौते की वजह से अटके पड़े हैं। भारत अब पाकिस्तान को पहले से प्रोजेक्ट की जानकारी नहीं देगा। साथ ही, नदियों के बारे में डेटा शेयर करना और सालाना मीटिंग भी बंद कर देगा। इस फैसले से जम्मू-कश्मीर (J&K) में पानी की समस्या दूर होगी और हिमालय क्षेत्र को लगभग 10,000 मेगावाट बिजली मिलेगी। हर कानून पहलुओं पर चल रहा है विचार सिंधु जल संधि के अनुसार, भारत को किसी भी नई परियोजना पर काम शुरू करने से पहले पाकिस्तान को छह महीने का नोटिस देना होता है। पाकिस्तान बार-बार इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है, जिससे काम में रुकावट आती रही है। लेकिन, संधि के निलंबन से भारत को इस नियम का पालन करने की जरूरत नहीं होगी। भारत, पाकिस्तान को बाढ़ के डेटा सहित हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयर करना भी बंद कर सकता है। सरकार इसके कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है। जम्मू-कश्मीर बन सकता है देश का पावर हाउस सबसे बड़ा बदलाव चेनाब और झेलम नदियों पर बिजली परियोजनाएं और पानी के भंडारण की सुविधाएं बनाने में होगा। सबसे पहले 540 मेगावाट की क्वार, 1000 मेगावाट की पाकल दुल, 624 मेगावाट की किरू, 390 मेगावाट की किर्थई I और 930 मेगावाट की किर्थई II, 1,856 मेगावाट की सावलकोट जैसी जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया जाएगा। इनसे 3,000 मेगावाट से ज्यादा बिजली पैदा होने की उम्मीद है। इससे जम्मू-कश्मीर की बिजली क्षमता में 10,000 मिलियन यूनिट की वृद्धि होगी। जम्मू और कश्मीर विधानसभा में भी उठ चुकी है बात यह कदम जम्मू-कश्मीर के लिए बहुत जरूरी हो सकता है। पाकिस्तान की आपत्तियों के कारण भारत की कई बिजली परियोजनाएं जैसे तुलबुल से बगलीहार, किशनगंगा, रैटल, उरी, लोअर कलनई आदि रुकी हुई हैं। बता दें कि पाकिस्तानी विशेषज्ञ जून 2024 में किशनगंगा और रैटल में बन रही हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर (HEP) परियोजनाओं का निरीक्षण करने भारत आए थे पाकिस्तान इन परियोजनाओं के डिजाइन या सिंधु जल संधि (IWT) के कानूनी प्रावधानों पर आपत्ति जताता रहा है। पाकिस्तान के विरोध के कारण भारत अपने ऊपरी इलाकों में बने बांधों से गाद निकालने या उनकी सफाई करने में भी असमर्थ है। जम्मू और कश्मीर विधानसभा में अक्सर इस समझौते में संशोधन की मांग की जाती रही है। उनका कहना है कि संधि के कारण बिजली की कमी हो रही है और सिंचाई की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
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