taaja khabar..हनुमानगढ़ जन आशीर्वाद रैली में शामिल हुईं पूर्व सीएम राजे:भाजपा प्रत्याशी अमित सहू के लिए मांगे वोट..महाराष्ट्र पंचायत चुनाव: 600+ सीटें जीतकर बीजेपी नंबर वन, बारामती में चाचा शरद पर भारी पड़े अजित पवार..हिज्‍बुल्‍लाह ने अगर किया इजरायल पर हमला तो हम देंगे इसका जवाब...अमेरिका ने दी ईरान को खुली धमकी..भारत ने निभाया पड़ोसी धर्म तो गदगद हुआ नेपाल, राजदूत ने दिल खोलकर की मोदी सरकार की तारीफ..

हनुमानगढ़


मदन अरोड़ा।मतदान के रुझान के बाद गुरुवार को एग्जिट पोल का रुझान भी आ गया।अधिकांश एग्जिट पोल और पोल ऑफ पोल्स के अनुसार राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से आ रही हैं।मध्यप्रदेश में तो भाजपा ऐतिहासिक जीत के साथ पुनः वापिसी कर रही है।वहां उसे 230 में से 140 से 162 सीट दी जा रही हैं।पिछले 2018 के चुनाव में भाजपा को 109 और कांग्रेस को 111 सीट मिली थी।छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में कांग्रेस और मिजोरम में एक नई पार्टी जेडीएम की सरकार आती दिख रही है।कुल मिला कर भाजपा और कांग्रेस को पांच राज्यों में हुए चुनावों में दो-दो राज्य मिलते दिख रहे हैं।अभी भाजपा एक राज्य मध्यप्रदेश जबकि कांग्रेस दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में है।इस लिहाज से भाजपा को एक राज्य में और सत्ता मिलती दिख रही है।जबकि कांग्रेस के खाते में दो ही राज्य जा रहे हैं ।उसे कोई नफा नुकसान होता नहीं दिख रहा।हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस का ओपीएस का मुद्दा काम करता दिख रहा है।सरकारी कर्मचारियों ने सभी राज्यों में कांग्रेस को दिल खोल कर वोट दिए हैं।मुसलमानों को रिझाने में भी कांग्रेस कामयाब होती दिख रही है।उसे मुसलमानों के 80 से 85 फीसदी तक वोट मिलते दिख रहे हैं।लेकिन कांग्रेस का जातीय जनगणना का मुद्दा कोई असर नहीं दिखा पाया है।मतदाताओं ने इसे नकार दिया है।राजस्थान में कांग्रेस और मध्यप्रदेश में भाजपा महिलाओं को रिझाने में सफल होती दिख रही हैं।निर्दलीय और अन्य पार्टियों की हालत पहले से भी कमजोर दिखाई पड़ रही है। अब बात राजस्थान की।प्रदेश में राजनीति के जादूगर के राज के खात्में के साथ सत्ता बदलने का रिवाज सफल होता दिख रहा है।भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती साफ दिखाई दे रही है और निर्दलीय व अन्य छोटी पार्टियों को पिछले चुनाव की तुलना में भारी नुकसान का अनुमान है।आप जैसी पार्टियां अपना जमानत जब्त करवाने का इतिहास दोहराती दिख रही हैं।इंडिया टुडे /एक्सिस को छोड़ बाकी सभी भाजपा को स्पष्ट सरकार बनाते दिखा रहे हैं।इंडिया टुडे/एक्सिस के अनुसार भाजपा को 80-100जबकि कांग्रेस को 86-106 सीट और अन्य को 9-18 सीट मिलने का अनुमान है।जबकि पोल ऑफ पोल्स व अन्य एग्जिट पोल भाजपा को 128 सीट तक दिखा रहे हैं।पोल ऑफ पोल्स के अनुसार भाजपा को 106,कांग्रेस को 82 और अन्य जिसमे सभी अन्य पार्टियां और निर्दलीय शामिल हैं को मात्र 11 सीट जाती हुई दिख रही हैं।2018 में कांग्रेस को 99,भाजपा को 73 और अन्य को 27 सीट मिली थीं।कोई भी एग्जिट पोल अन्य और निर्दलीयों को 9-21 सीट से अधिक नहीं दिखा रहा।इसका मतलब यह हुआ कि निर्दलीय काफी पिछड़ चुके हैं।एग्जिट पोल के अनुसार ओबीसी के 54 फीसदी भाजपा,41 फीसदी कांग्रेस और शेष 9 फीसदी अन्य को गए हैं।एस सी के 38 फीसदी भाजपा ,47 फीसदी कांग्रेस और 15 फीसदी अन्य।एस टी के 34 फीसदी भाजपा,53 फीसदी कांग्रेस और 13 फीसदी बी ए पी,बी ए टी सहित अन्य को गए हैं।मुस्लिम वोट बम्पर रूप से कांग्रेस को गए है।कांग्रेस को 82 फीसदी,भाजपा को 11 और अन्य को 7 फीसदी जाते दिख रहे हैं।जबकि सामान्य वर्ग के 52 फीसदी भाजपा,29 फीसदी कांग्रेस और 19 फीसदी अन्य को गए हैं। कुल मिलाकर आरलपी जैसी पार्टियों और निर्दलीयों की उम्मीदों पर पानी साफ फिरता दिख रहा है। अगर एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित हुए तो राजस्थान में भाजपा की सरकार आना तो तय है ही,एक संकेत और भी आता हुए स्पष्ट दिख रहा है जो निर्दलियों के लिये अच्छा नहीं है।मतदाताओं में आया राम, गया राम वाले निर्दलीय उम्मीदवारों से भरोसा उठता दिखाई दे रहा है।एग्जिट पोल और सट्टा बाजार से मिल रहे संकेत हनुमानगढ़ सहित जिले के अन्य क्षेत्रों के निर्दलीयों पर भी भारी पड़ते दिख रहे हैं।हनुमानगढ़ विधानसभा क्षेत्र को लेकर कहा जा सकता है कि पैसे और शराब के सहारे नैरेटिव गढ़ हवा बनाई जा सकती है।हवा को आंधी में बदला जा सकता है पर वोटों में तब्दील नहीं किया जा सकता।इसके लिए जमीनी स्तर पर समर्पित टीम और बूथ मैनेजमेंट की जरूरत पड़ती है।जिसका निर्दलीयों के पास नितांत अभाव होता है।एग्जिट पोल और हवा दोनों से हनुमानगढ़ से भाजपा की जीत तय है। भाजपा के अमित सहू को 1 लाख प्लस,कांग्रेस को 60 हजार प्लस और गणेशराज को 50 हजार प्लस वोट मिलते दिख रहे हैं।हवा के अनुसार अगर वोट पोल हुए तो कांग्रेस कीं जगह गणेशराज दूसरे नम्बर पर रह सकते हैं।अन्य व नोटा को 16 हजार के करीब वोट जा सकते हैं। गणेशराज को मुसलमानों के वोट कांग्रेस को शिफ्ट होने से तो नुकसान हुआ ही है।उनके जीतने के बाद भाजपा में जाने की चर्चाओं से भी वोट छिटके हैं।मोटे अनुमान के अनुसार 16 हजार वोट निकालने के बाद एस सी,एस टी के 45-45 फीसदी के आसपास भाजपा और कांग्रेस जबकि गणेशराज को 10 फीसदी।जाट समुदाय के 80 फीसदी भाजपा,18 फीसदी कांग्रेस और 2 फीसदी गणेशराज।मुसलमानों के 80 फीसदी कांग्रेस,10-10 फीसदी के करीब भाजपा और गणेशराज।सिख समुदाय के 60 फीसदी गणेशराज,30 फीसदी भाजपा और 10 फीसदी कांग्रेस।ओबीसी के 40 फीसदी भाजपा,15 फीसदी कांग्रेस और 45 फीसदी गणेशराज।अग्रवाल 25 फीसदी भाजपा,5 फीसदी कांग्रेस और 70 फीसदी गणेशराज।अन्य में 55 फीसदी भाजपा,25 फीसदी कांग्रेस और 20 फीसदी गणेशराज को मिलता दिख रहा है। इनमें आंशिक फेरबदल हो सकता है। हवा चली तो मूल ओबीसी, अन्य सामान्य के कुछ अतिरिक्त वोट गणेशराज को मिल सकते हैं और वे दूसरे स्थान पर आ सकते हैं।उनकी सबसे बड़ी कमजोरी उनका मतदाताओं से सीधा जुड़ाव न होकर हवा पर सवार होना है।चुनाव से पूर्व तक ग्रामीण क्षेत्र के 1 लाख 76 हजार मतदाताओं में उनके नाम तक कोई नहीं जानता था और यही उनकी हार की सबसे बड़ी वजह बनेगा।
एड्स से बचाव के लिए संकोच छोड़कर समय पर जांच व उपचार कराना बेहद जरूरी : डॉ. रविशंकर शर्मा
फिर अध्यक्ष बने एडवोकेट ओमप्रकाश अग्रवाल
नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केन्द्रों का क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेन्ट एक्ट के अन्तर्गत होगा पंजीकरण
एसकेडीयू में उद्यमशीलता और कौशल विकास कार्यक्रम शुरू

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नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2019,जब से अमित शाह ने गृह मंत्री का कार्यभार संभाला है, तभी से गृह मंत्रालय हमेशा से ही चर्चा का विषय बना हुआ है. गृह मंत्रालय कब क्या कर रहा है, इसपर हर किसी की नज़र है. राष्ट्रपति भवन के पास नॉर्थ ब्लॉक में मौजूद गृह मंत्रालय के दफ्तर में अब चप्पे-चप्पे नज़र रखी जा रही है, दफ्तर में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं. इस मामले में ताजा अपडेट ये है कि पिछले हफ्ते से CCTV कैमरे लगने की शुरुआत जो हुई है अभी तक मंत्रालय की अहम लोकेशन पर पूरी हो चुकी है. नॉर्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक में मौजूद दफ्तरों पर सुरक्षा काफी कड़ी रहती है, इसी के तहत यहां पर इन सभी काम को किया जा रहा है. गृह मंत्रालय की पूरी सुरक्षा CISF के हाथ में है, जो कि इन CCTV कैमरों की मदद से हर किसी पर नजर रखेंगे. CISF ने इनके अलावा बॉडी कैमरा, एक्स-रे मशीन और मेटल डोर डिटेक्टर भी सुरक्षा में तैनात किए हुए हैं. इनमें काफी सीसीटीवी कैमरे पहले फ्लोर पर लगेंगे, जहां पर गृह मंत्री, गृह राज्य मंत्री, गृह सचिव, सीबीआई डायरेक्टर, IB चीफ, ज्वाइंट सेक्रेटरी रहते हैं. गृह मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, इसे A रूटीन अपग्रेडशन कहा जाता है. ना सिर्फ गृह मंत्रालय बल्कि CCTV के कैमरे अब वित्त मंत्रालय में भी लगाए जा रहे हैं. CCTV से क्या होगा? साफ है कि इन कैमरों के लग जाने के बाद गृह मंत्रालय के हर कोने पर नज़र रहेगी और ये भी पता चलता रहेगा कि कौन किससे मिल रहा है. खास बात ये है कि मंत्रालय में मौजूद मीडिया रूम में भी कैमरे लगाए गए हैं, यानी कौन पत्रकार कब किससे मिल रहा है इसपर भी मंत्रालय की नज़र रहेगी. गृह मंत्रालय में हो रहे इस बदलाव पर मंत्रालय के अफसरों ने भी खुशी जताई है और इस बात का जिक्र किया है कि अब कौन-कब आ रहा है, इसपर आसानी से नज़र रखी जा सकेगी.
66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का ऐलान, अंधाधुन बेस्ट हिंदी फिल्म, आयुष्मान और विकी कौशल बेस्ट ऐक्टर
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राजस्थान


जयपुर,राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। 199 विधानसभा सीटों पर 74.62 फीसदी वोटर्स ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 74.72 और पुरुषों का 74.53 फीसदी रहा। 23 सीटों में महिलाओं ने बंपर वोटिंग की। अब तक हुई वोटिंग में यह एक नया रिकार्ड है। 2018 में 74.71% वोटिंग हुई थी। उस समय पुरुषों का मतदान प्रतिशत 73.80 और महिलाओं का 74.67 रहा था। इस बार भी यही ट्रेंड बरकरार है। एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि प्रदेश में जब भी महिलाओं ने बंपर वोटिंग की है, तब-तब सत्ता बदली है। 2003, 2013 और 2018 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक रहा था। इसी कारण नतीजे भी चौंकाने वाले रहे थे। 2008 में महिलाओं का वोट प्रतिशत मामूली बढ़ा लेकिन ओवरऑल मतदान का प्रतिशत कम रहा। ऐसे में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बीजेपी को 78 और कांग्रेस को 96 सीटें मिली थी। इस पर कांग्रेस ने बसपा और अन्य के सहयोग से सरकार बनाई थी। महिलाओं का सफलता प्रतिशत बेहतर प्रदेश में पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं का ट्रेंड देखें तो भागीदारी लगातार बढ़ रही है। 2018 में 189 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। इनमें से 24 यानी 12.6% प्रत्याशी चुनी गईं। जबकि पुरुषों का सफलता प्रतिशत 8.44% रहा। 2013 में महिला प्रत्याशियों का सफलता प्रतिशत 16.86% था। इस बार कांग्रेस ने 28 और बीजेपी ने 20 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं। यानी बीजेपी ने 10 और कांग्रेस ने 14 प्रतिशत महिलाओं को ही टिकट दिए हैं। वोटर अनुपात में भी लगातार इजाफा अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो एक हजार पुरुष वोटर्स के अनुपात में महिला वोटर्स की संख्या में भी लगातार इजाफा हुआ है। 1972 में यह अनुपात 723 था, जो 1998 में 786 हो गया। 2003 में 841 से बढ़कर 2013 में 892 और 2018 में 914 पर पहुंच गया। महिलाओं की इन योजनाओं का असर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को ध्यान में रखते हुए उनके लिए विशेष योजनाएं लागू की। कांग्रेस ने महिलाओं को मुफ्त मोबाइल फोन बांटे। चुनाव से पहले गृह लक्ष्मी गारंटी योजना के तहत हर परिवार की महिला मुखिया को हर साल 10 हजार रुपए देने की घोषणा की। 1.05 करोड़ परिवारों को 400 रुपए में गैस सिलेंडर, रोडवेज बसों में मुफ्त सफर जैसे वादे किए। वही बीजेपी महिला आरक्षण बिल के साथ ही केंद्र सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, उज्जवला योजना और महिला शक्ति केंद्र योजना के जरिए महिला मतदाताओं को लुभाती नजर आई। विधानसभा कब पहुंचेगी 28 से अधिक महिलाएं प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव 1952 में एक भी महिला विधायक नहीं बन पाई थीं। दूसरे चुनाव में 9 महिलाएं चुनी गई। इसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में महिला विधायकों की संख्या घटती गई और 1967 में चौथे विधानसभा चुनाव में महिला विधायकों की संख्या महज 6 रह गई। 2008 और 2013 में प्रदेश में सबसे ज्यादा 28-28 महिलाएं विधायक चुनी गई। 2003 में प्रदेश में पहली बार मुख्यमंत्री, राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं थीं। हालांकि इस साल विधानसभा में महिलाओं की संख्या केवल 12 थी। 2018 में 15वीं विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 2013 की तुलना में पांच फीसदी कम थी। महिलाओं का एमएलए से सीएम तक का सफर लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी का सफर बहुत धीमा रहा। हालांकि प्रदेश की पहली महिला विधायक 1953 में बांसवाड़ा सीट के लिए हुए उपचुनाव में चुनी गईं। ये पहली महिला विधायक यशोदा देवी थीं। प्रदेश में 1951 से 15वीं विधानसभा चुनाव तक 1055 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, जिसमें से 20 प्रतिशत महिलाएं ही चुनाव जीत सकीं। यानी 194 महिलाएं ही विधानसभा पहुंच सकीं। प्रदेश में 2.51 करोड़ महिला वोटर्स हैं। यह कुल मतदाताओं का 48 प्रतिशत है। जबकि विधानसभा पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या इस मुकाबले में आधी भी नहीं है।
भाजपा सरकार होती तो क्या कन्हैयालाल की हत्या होती?':योगी आदित्यनाथ बोले- जब-जब विपदा आती है कोई इटली चला जाता है तो कोई जयपुर
राजस्थान में जेपी नड्‌डा ने खोला बीजेपी के घोषणा पत्र वाला पिटारा, बहुत कुछ है इस पिटारे में
वसुंधरा राजे होंगी राजस्थान की मुख्यमंत्री !बालकनाथ ने भरी सभा में किया ऐलान
अमित शाह का रथ बिजली के तारों से टकराया:बाल-बाल बचे केंद्रीय गृहमंत्री

बहुत कुछ


जम्मू,बीते 8 नवंबर को नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी यानी NIA ने 10 राज्यों में छापेमारी की। टारगेट पर रोहिंग्या बस्तियां थीं। NIA की एक टीम जम्मू के भटिंडी भी पहुंची और रोहिंग्या समुदाय के जफर आलम को हिरासत में ले लिया। ये छापेमारी ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़े एक रैकेट को ट्रैक करते हुए की गई थी। हालांकि, इस छापेमारी में NIA को ये भी पता चला कि बांग्लादेश के रास्ते लाए गए लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों में बसाया जा रहा है। इनमें ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान हैं। जम्मू में रोहिंग्याओं के डोमिसाइल सर्टिफिकेट और फर्जी आधार कार्ड बनने के मामले आ चुके हैं। NIA की छापेमारी के बाद दैनिक भास्कर भटिंडी और छन्नी रामा की रोहिंग्या बस्ती पहुंचा। दोनों बस्तियां बगल में ही हैं। हमने यहां रह रहे रोहिंग्या और आसपास के लोगों से बात की। बस्ती में हमने देखा कि कई लोगों के पास अपनी बाइक हैं। ई-रिक्शा चला रहे हैं। मोबाइल पर बात कर रहे हैं। सवाल था कि ये कैसे हो रहा है, क्योंकि बिना वैलिड डॉक्यूमेंट के तो न सिम मिल सकती है और न ही बाइक का रजिस्ट्रेशन हो सकता है। हमने इसकी पड़ताल की। पढ़िए ये रिपोर्ट… एफिडेविट देकर सेकेंड हैंड व्हीकल खरीद रहे रोहिंग्या जम्मू के भटिंडी इलाके में खाली प्लॉट पर झुग्गियां बनाई गई हैं। ज्यादातर प्लॉट जम्मू के बाहरी इलाकों में हैं। इन जमीनों के मालिक कश्मीर घाटी में रहते हैं। वे रोहिंग्या परिवारों से हर महीने किराया लेते हैं। बिजली और पानी की सप्लाई प्लॉट मालिक ही करवाता है, बिल भी उनके नाम पर ही आते हैं। बस्ती में करीब हर झुग्गी के सामने बाइक या स्कूटी खड़ी है। हमने पड़ताल शुरू की तो, पता चला कि रोहिंग्या आसानी से एक एफिडेविट देकर ये व्हीकल खरीद रहे हैं। छन्नी रामा एरिया के एक प्लॉट में हमें अनवर हुसैन मिले। वे बाइक से जा रहे थे। हमने रोककर पूछा कि कब से ये बाइक चला रहे हैं। अनवर एफिडेविट दिखाते हुए कहते हैं, ‘26 मई, 2014 को ये बाइक जम्मू में खरीदी थी। तभी से चला रहा हूं।’ पड़ताल में पता चला कि अनवर हुसैन अकेले रोहिंग्या नहीं हैं। उनके जैसे कई लोग बिना लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन बाइक और ई-रिक्शा चला रहे हैं। हमने कुछ रजिस्ट्रेशन नंबर की जांच की। पता चला कि 2013 में खरीदी गई एक स्कूटी रोहिंग्या बच्चों के मदरसे में पढ़ाने वाले मौलवी भी चला रहे हैं। रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस की वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक, जुलाई 2013 में रजिस्टर्ड स्कूटी JK02BC 4616 दिव्या नाम की लड़की के नाम थी। 2014 के बाद से उसका इंश्योरेंस जमा नहीं हुआ है। जम्मू-कश्मीर में बिना जांच सिम नहीं मिलती, पर रोहिंग्या चला रहे मोबाइल जम्मू-कश्मीर में सिक्योरिटी रीजंस की वजह से बिना जांच और वैलिड डॉक्यूमेंट के सिम कार्ड नहीं दिए जा सकते। इसके बावजूद रोहिंग्या बस्ती में कई लोग मोबाइल यूज करते दिख जाते हैं। यहां बच्चों के हाथों में भी मोबाइल दिखे। हालांकि, इनके लिए सिम कैसे मिली, इस बारे में कोई बात नहीं करता। जम्मू-कश्मीर के 5 जिलों में 39 जगहों पर रोहिंग्या आबादी 2018 की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग की रिपोर्ट में बताया गया था कि यहां के 5 जिलों में 39 जगहों पर 6,523 रोहिंग्या रह रहे हैं। मार्च, 2021 के पहले हफ्ते में सरकार ने जम्मू में अवैध तरीके से रह रहे 155 रोहिंग्या को कठुआ जिले के हीरानगर में बने होल्डिंग सेंटर भेज दिया था। पुलिस के मुताबिक, रोहिंग्या परिवारों के पास पासपोर्ट एक्ट के तहत वैलिड ट्रैवल डॉक्यूमेंट्स नहीं थे। इससे पहले अगस्त 2017 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा था कि रोहिंग्या जैसे अवैध अप्रवासी सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं, क्योंकि आतंकी उन्हें भर्ती कर सकते हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों से उनकी पहचान करने और उन्हें डिपोर्ट करने के लिए भी कहा था। इन सबके बावजूद जम्मू के भटिंडी, सुंजवां, छन्नी रामा, नरवाल, बरी ब्राह्मण, नगरोटा और सांबा में बड़ी संख्या में रोहिंग्या रह रहे हैं। ये बेरोकटोक काम भी कर रहे हैं। भटिंडी की रोहिंग्या बस्ती में रहने वाले मोहम्मद रमजान मछली बेचते हैं। वे महीने में दो बार दिल्ली से मछली खरीद कर लाते हैं और भटिंडी में बेचते हैं। इसी इलाके में किराना, साइकिल और मोबाइल रिपेयर की दुकाने चल रहीं हैं। भटिंडी में ही जुबैदा बेगम बेटी के साथ रहती हैं। वे टूटी-फूटी हिंदी बोल लेती हैं। आसपास के घरों में बर्तन साफ करने का काम करती हैं। इसी से गुजारा होता है। जुबैदा के पति हाफिज अहमद को हीरानगर के होल्डिंग सेंटर में रखा गया है। जुबैदा की तरह जाहिद हुसैन के दो जवान बेटे तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में बनिहाल गए थे। वे भी लौटकर नहीं आए। दोनों होल्डिंग सेंटर में हैं। जाहिद हुसैन बताते हैं, ‘होल्डिंग सेंटर में जबसे रोहिंग्या और पुलिस के बीच झड़प हुई है, तब से ज्यादा सख्ती है। मेरी बीवी बहुत बीमार रहती है। वो अपने बच्चों से मिलना चाहती है, लेकिन हमे मिलने नहीं देते।' जुबैदा और जाहिद हुसैन जिस होल्डिंग सेंटर की बात कर रहे हैं, वो जम्मू के कठुआ जिले में है। यहां जम्मू में अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्याओं को 2 साल से रखा गया है। इन्हें म्यांमार भेजा जाना है। फिलहाल यहां 273 रोहिंग्या हैं। ये रिहाई की मांग कर बार-बार प्रदर्शन करते हैं। जुलाई, 2023 में उन्होंने पुलिस अफसरों पर पथराव कर दिया था। बांग्लादेश के रास्ते भारत आए, अलग-अलग शहरों में बसे मोहिबुल्ला का परिवार 2017 से जम्मू में रह रहा है। वे म्यांमार से आए हैं। मोहिबुल्ला बताते हैं, ‘हमारे देश में हालत खराब हुए, तो हम बांग्लादेश से होते हुए कोलकाता पहुंचे। अलग-अलग ट्रेनों में सफर करते रहते। हमें तो मालूम भी नहीं था कि कहां जाना है। हममें से कई लोग हैदराबाद गए, कुछ अलीगढ़ चले गए। हम लोग जम्मू पहुंच गए। यहां रहते हुए छह साल हो गए हैं। मुझे आज तक किसी ने परेशान नहीं किया।’ आसपास के लोग बोले- चोरियां बढ़ गईं, डर लगता है रोहिंग्या बस्ती के ठीक सामने दुकान चलाने वाले शख्स ने पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘पिछले 15 साल से रोहिंग्या हमारे इलाके में रह रहे हैं। पुलिस और प्रशासन ने पहले तो इन लोगों को बसने दिया, पर अब हालात खराब हो रहे हैं। हमें बहुत डर लगता है। मोहल्ले में चोरियां होती रहती हैं। पुलिस को कई बार इसकी खबर देते हैं। पुलिसवाले आते हैं, कुछ लोगों को पकड़कर ले जाते हैं फिर छोड़ देते हैं। नाला गैंग में काम कर रहे रोहिंग्या, 300 से 400 रुपए रोज कमाई जम्मू में बसे ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। कुछ स्क्रैप का काम कर रहे हैं। रोहिंग्या महिलाएं दूसरों के घरों में काम करती हैं। इसके अलावा जम्मू नगर निगम के लिए काम करने वाले ठेकेदारों ने बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को काम पर रखा है। लोकल में लोग इन्हें ‘नाला गैंग’ कहते हैं। ये लोअवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की पहचान करेगा पैनल जम्मू-कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन ने भी 13 अक्टूबर, 2023 को एक पैनल बनाया है, जो 1 जनवरी 2011 से अवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की पहचान करेगा। ये पैनल जम्मू-कश्मीर में लापता विदेशियों की मंथली रिपोर्ट बनाएगा और हर महीने की 7 तारीख तक गृह मंत्रालय को देगा। इसका मकसद जम्मू-कश्मीर में अवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की बसाहट रोकना है। सरकार के मुताबिक, जम्मू में अभी 6,523 रोहिंग्या रह रहे हैं। ग नालियां साफ करते हैं और कूड़ा उठाते हैं।
मोदी डिग्री मामला: अरविंद केजरीवाल की याचिका गुजरात हाईकोर्ट ने फिर की खारिज
लोकसभा से निष्कासित होंगी महुआ मोइत्रा! TMC सांसद के खिलाफ एथिक्स कमेटी में प्रस्ताव पास
महिलाओं पर विवादित बयान,नीतीश ने हाथ जोड़कर माफी मांगी:बोले-शर्म महसूस कर रहा हूं; राबड़ी बोलीं-गलती से मुंह से निकल गया होगा
केजरीवाल इस्तीफा दें या जेल से चलाएं सरकार? दिल्ली की जनता से पूछेगी आम आदमी पार्टी

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में से 41 श्रमिकों को बीती रात सकुशल बाहर निकाल लिया गया है। दिवाली के पर्व के दिन टनल का एक हिस्सा ढ़ह जाने से श्रमिक उसी के भीतर फंसे रह गए थे। हालांकि, मजदूरों ने 17 दिनों तक हार नहीं मानी और प्रशासन की कोशिशों से आखिरकार बाहर आ गए। सुरंग से बाहर आए श्रमिकों से पीएम मोदी ने भी फोन पर बातचीत की। श्रमिकों ने पीएम मोदी को कई अहम जानकारियां दी हैं। पीएम मोदी ने दी बधाई पीएम मोदी ने श्रमिकों को फोन पर बधाई दी कि वे सकुशल सुरंग से बाहर आ गए। उन्होंने कहा कि ये केदारनाथ बाबा और बद्रीनाथ भगवान की कृपा है कि सभी सकुशल बार आ गए। पीएम ने कहा कि सबसे बड़ बात है कि श्रमिकों ने एक-दूसरे का हौसला बनाए रखा और हिम्मत नहीं हारी। ये बात काबिले तारीफ है। पीएम ने कहा कि ये मजदूरों और उनके परिवारजनों का पुण्य है कि सभी श्रमिक वापस आए हैं। अंदर क्या करते थे श्रमिक? पीएम मोदी से बात करते हुए श्रमिकों ने बताया कि उन्होंने अलग-अलग राज्यों का होकर भी एक-दूसरे का ध्यान रखा। उन्हें जो खाना मिलता था वे सभी एक साथ मिलजुल कर खाते थे। श्रमिकों ने बताया कि अंदर फंसे होने के कारण उनके पास कोई काम नहीं था। इसलिए सभी श्रमिक मॉर्निंग वॉक और योगा किया करते थे। श्रमिकों ने उत्तराखंड सरकार और सीएम पुष्कर धामी को धन्यवाद किया। श्रमिकों को सीएम धामी का तोहफा सुरंग में बचाव अभियान के सफल होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कई बड़े ऐलान किए हैं। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सभी 41 श्रमिकों को उत्तराखंड सरकार 1-1 लाख रुपए की राहत राशि देगी। इसके साथ ही वह इन श्रमिकों की कंपनियों से अनुरोध करेंगे कि इन्हें 15 या 30 दिन के लिए बिना तनख्वाह काटे अवकाश भी दिया जाए। मजदूरों के सफल रेस्क्यू पर ​क्या बोला विदेशी मीडिया? बीबीसी ने ऑपरेशन का अपडेट जारी करते हुए कहा, "सुरंग के बाहर, पहले व्यक्ति के सुरंग से बाहर आने की खबर पर जश्न मनाया जा रहा है।" बीबीसी ने अपनी वेबसाइट पर एक फोटो भी अपलोड की, जिसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सुरंग से बचाए गए पहले मजदूर से मिलते हुए दिखाई दे रहे हैं। 'सुरक्षित निकालने के लिए वेल्डेड पाइपों से बनाया मार्ग' वहीं दूसरी ओर सीएनएन ने बताया, "घटनास्थल के वीडियो फुटेज में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को श्रमिकों से मुलाकात करते हुए देखा जा सकता है। मशीन के टूट जाने के बाद हाथों से खुदाई कर के मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है।' इसी तरह कतर के समाचार चैनल अल-जजीरा की रिपोर्ट में कहा गया, "12 नवंबर को सुरंग धंसने से शुरू हुई कठिन परीक्षा को खत्म करने के बाद बचावकर्मियों ने मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया। मजदूरों को लगभग 30 किमी दूर एक अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कई एम्बुलेंस सुरंग के मुहाने पर खड़ी थीं। मजदूरों को वेल्डेड पाइपों से बने मार्ग से बाहर निकाला जा रहा है।" ब्रिटिश अखबार ने लिखा 'मानव की मशीन पर विजय' ब्रिटिश दैनिक 'द गार्जियन' ने बताया कि सिल्कयारा-बारकोट सुरंग के प्रवेश द्वार से स्ट्रेचर पर पहले लोगों के निकलने का नाटकीय दृश्य 400 घंटे से अधिक समय के बाद आया, जिसके दौरान प्रमुख बचाव अभियान में कई बाधाएं, देरी और आसन्न बचाव के झूठे वादे शामिल थे। अखबार ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कहा, "मानव श्रम ने मशीनरी पर विजय प्राप्त की। क्योंकि मजदूरों तक पहुंचने के लिए मलबे के अंतिम 12 मीटर मलबे को मैन्युअल रूप से ड्रिल करने में रेस्क्यू टीम कामयाब रही। एक 'एस्केप पैसेज' पाइप डाला गया था, जिससे बचाव दल - व्हील वाले स्ट्रेचर और ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाने में सक्षम हुए। लंदन स्थित दैनिक 'द टेलीग्राफ' ने अपनी मुख्य खबर में कहा कि सैन्य इंजीनियरों और खनिकों ने एक पेचीदा ऑपरेशन पूरा करने के लिए मलबे के माध्यम से 'रैट हॉल' ड्रिल किया।
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